क्या पुष्कर को खत्म करना चाहती है राजस्थान सरकार?

19 नवंबर 2022
डगलराम रायका अपने ऊंट के साथ मेले में. हालांकि कई लोग ऊंट पालते हैं लेकिन ऊंटों की ब्रीडिंग कराने के लिए केवल रायका रेबारी समुदाय ही है.
फोटो सौजन्य : अश्वनी शर्मा
डगलराम रायका अपने ऊंट के साथ मेले में. हालांकि कई लोग ऊंट पालते हैं लेकिन ऊंटों की ब्रीडिंग कराने के लिए केवल रायका रेबारी समुदाय ही है.
फोटो सौजन्य : अश्वनी शर्मा

58 साल के राजू नट और 62 वर्षीय सुरेश नट हताश दिख रहे थे. उनके चेहरे की लकीरें साफ बता रही थीं कि वे उम्मीद हार चुके हैं. राजू और सुरेश पुष्कर के रहने वाले हैं. वे नट घुमंतू समुदाय से संबंधित हैं. वे सदियों से नट कला करते आ रहे हैं. सुरेश एकमात्र नट हैं जो 867 वर्ष पुरानी छत्र कला करना जानते है. राजू ने बताया कि "यह कला राजे रजवाड़ों के छत्र से जुड़ी है. राजाओं के सिंहासन से छत्र की पहचान है. एक समय था जब पुष्कर मेले की आन, बान और शान यह कला होती थी. जब तक हम अपने मुंह से बीड़ा नहीं काटते थे, तब तक मेले का समापन नहीं होता था. हमें इस मेले से बहुत उम्मीद थी. किंतु राजस्थान सरकार ने हमारी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है." 

छत्र कला, मुंह से बीड़ा काटने की कला और माउंटी फिरना ये दुर्लभ कलाएं हैं. उनकी इस दुर्लभ कला के लिए पुष्कर मेले के सांस्कृतिक कार्यक्रम में कहीं स्थान नहीं है. लोक अध्येताओं और एक्सपर्ट्स का मानना है कि उपरोक्त उलूल-जुलूल निर्णयों का प्रभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा. यदि हम पुष्कर को तनिक भी जानते समझते तो ऐसा मजाक नहीं करते. 

राजू इसलिए ऐसा कह रहे थे क्योंकि इस साल राजस्थान सरकार ने विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेले में पशु लाने पर रोक लगाई थी. इसके साथ ही मेले में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों से यहां की लोक संस्कृति को एकदम बाहर रखा गया. जबकि यहां इस बार बंबई से कलाकार आ रहे हैं. 

पशुओं पर रोक का कारण लंपी बीमारी को बताया गया है. लेकिन लंपी बीमारी अब तक तो केवल गायों में देखी गई है और गायें तो पुष्कर मेले में आती नहीं हैं, तो फिर ये रोक क्यों लगाई गई है? इसके पीछे के तर्क का कोई औचित्य समझ नहीं आता. 

सरकार के फैसले ने पशुचारकों की स्थिति भयावह कर दी है. चित्तौड़गढ़ से हरिया देवासी 9 ऊंट लेकर आए थे. मेले से बहुत उम्मीद थी. ऊंट बिकेंगे तो बच्ची की शादी करेंगे. पुलिस ने मेला मैदान के बाहर से ही डंडे मार कर उनको भगा दिया. वह पुष्कर से तीन किलोमीटर दूर गनेडा गांव के पास मिट्टी के टीले पर बैठे हैं. हरिया हमें बताते हैं, "बात केवल पशुओं को बेचने तक सीमित नहीं हैं. यह तो हमारा बुतरा (अपनो से मिलने का स्थान) है. साल में एक बार ही तो अपनो से मिलते हैं. दुख-सुख की बतलाते हैं. अपने मन की बात करते है." हरिया, आगे बताते हैं, "मैंने नए कपड़े बनाए हैं. फैन धोती और बखतरी. साल में एक बार ही नए कपड़े मिलते हैं. बाकी तो जंगलों में खेत खलिहानों में ढोर, रेवड़ (पशुओं) के पीछे घूमते रहते हैं." 

अश्वनी शर्मा स्कॉलर एवं एक्टिविस्ट हैं और घुमंतू समुदायों के साथ काम करने वाली सामाजिक संस्था नई दिशाएं के संयोजक हैं और हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय में पीएचडी हेतु रामचंद्र गुहा और शेखर पाठक के रेफरल स्टूडेंट हैं.

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