एमएसएमई संशोधन विधेयक पर निर्माताओं का एतराज

उदित कुलश्रेष्ठा/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस
05 December, 2019

अंजू बजाज ने 1990 में पहली बार एक उद्यम शुरू किया था. उन्होंने महिला उद्यमियों की सरकारी योजना, महिला उद्योग योजना के तहत 10 लाख रुपए का कर्ज लिया और भूमि, भवन, संयंत्र और मशीनरी में निवेश किया. उन्होंने दिल्ली के पास बहादुरगढ़ औद्योगिक क्षेत्र में पीएनए इंडस्ट्रीज, स्थापित की. अंजू ने बिजली सुरक्षा, पाइप, फिटिंग और जंक्शन बॉक्स का निर्माण शुरू किया. उनके शुरुआती ग्राहक रक्षा प्रतिष्ठान और भारतीय रेलवे जैसी सरकारी संस्थाएं थीं. धीरे-धीरे कारोबार बढ़ने के कारण उनका निजी क्षेत्र में विस्तार हुआ. पीएनए इंडस्ट्रीज को एक माइक्रो एंटरप्राइज के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसे बजाज द्वारा प्लांट और मशीनरी में निवेश किए गए धन के आधार पर परिभाषित किया है.

कई अन्य निर्माताओं की तरह, बजाज अब सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक, 2019 को लेकर चिंतित हैं. यह विधेयक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के रूप में योग्यता प्राप्त करने के लिए मानदंडों को फिर से परिभाषित करता है. पहले की कसौटी के बजाय, संयंत्र और मशीनरी में निवेश की गई राशि के आधार पर, यह विधेयक एमएसएमई के वार्षिक कारोबार के आधार पर वर्गीकृत करने का प्रस्ताव करता है. इस विधेयक को 13 दिसंबर को समाप्त होने वाले संसद के वर्तमान सत्र में प्रस्तुत करने, विचार करने और पारित होने के लिए सूचीबद्ध किया गया है. अगर यह विधेयक पारित हो जाता है तो बजाज को डर है कि वह विनिर्माण व्यवसाय में बने रहने में असमर्थ हो सकती हैं.

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अधिनियम, 2006 वर्तमान में उन मानदंडों को परिभाषित करता है जिनके तहत व्यवसायों को एमएसएमई के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है. अधिनियम माल उत्पादक या सेवाएं प्रदान करने वाले व्यवसायों पर लागू होता है. यह संयंत्र और मशीनरी में अपने निवेश के आधार पर विनिर्माण में लगे एमएसएमई को परिभाषित करता है, यानी उस अचल संपत्ति - जैसे कि मशीन और उपकरण - के आधार पर जो किसी फर्म में माल बनाने के लिए उपयोग होती है. अधिनियम के अनुसार, एक सूक्ष्म उद्यम वह है जहां 25 लाख रुपए से अधिक निवेश नहीं हुआ है, एक लघु उद्यम वह है जहां निवेश 25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए के बीच निवेश होता है और एक मध्यम उद्यम में 5 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए के बीच निवेश होता है.

सेवा प्रदान करने वाले व्यवसाय के मामले में, उपकरण पर 10 लाख रुपए तक का निवेश करने वाला उद्यम सूक्ष्म उद्यम के रूप में, 10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए तक के निवेश वाला लघु उद्यम के रूप में और 2 करोड़ रुपए से लेकर 5 करोड़ रुपए तक के निवेश वाला मध्यम उद्यम के रूप में अर्हता प्राप्त कर सकता है.

एमएसएमई को बैंकों से अनिवार्य सरकारी खरीद और प्राथमिकता ऋण देने जैसे कई लाभ मिलते हैं. सरकार की खरीद नीति के अनुसार, रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ अपवादों के साथ केंद्र सरकार द्वारा खरीद का 25 प्रतिशत - जिसमें मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम शामिल हैं - सूक्ष्म और लघु इकाइयों से होना चाहिए. 2016-17 में, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में एमएसएमई का योगदान 29 प्रतिशत था.

नया एमएसएमई बिल अपने कुल कारोबार के आधार पर एमएसएमई को पुनर्परिभाषित करना चाहता है. कुल कारोबार एक लेखा अवधि के दौरान हुई कुल बिक्री होती है, आमतौर पर यह लेखा अवधि एक वर्ष की होती है. प्रस्ताव के अनुसार, एक सूक्ष्म उद्यम इकाई 5 करोड़ रुपए तक के कुल कारोबार वाला उद्यम होगा. इसी तरह लघु उद्यम इकाई 5 करोड़ रुपए से 75 करोड़ रुपए तक के कारोबार वाली होगी, जबकि एक मध्यम उद्यम इकाई 75 करोड़ रुपए से 250 करोड़ रुपए तक कारोबार वाली होगी. बिल के उद्देश्य और घोषणा वाले भाग में कहा गया है, "यह उचित माना गया है कि यदि वार्षिक कारोबार को वर्गीकरण के लिए एक मानदंड के रूप में लिया जाता है तो माल और सेवा कर, नेटवर्क और अन्य स्रोतों के साथ उपलब्ध जानकारी का उपयोग उद्यमों की श्रेणी के निर्धारण के लिए किया जा सकता है. कुल मिलाकर, उद्यमों की श्रेणी कारोबार आधारित वर्गीकरण व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ाएगी और गैर-विवेकाधीन, पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ प्रणाली को लागू करेगी."

हालांकि, निर्माता चिंतित हैं कि नए कारोबार-आधारित वर्गीकरण व्यापारियों को एमएसएमई के लिए निर्धारित स्थान में प्रवेश करने की अनुमति देगा. चूंकि प्लांट, मशीनरी और उपकरण में निवेश अब परिभाषित मानदंड नहीं होंगे, इसलिए नए वर्गीकरण से व्यापारियों के लिए खुद को निर्माताओं के रूप में स्थापित करना आसान हो सकता है उन्हें बस भारत में निर्माण करने के बजाय विदेशों से सस्ता माल आयात करना होगा. इससे सरकारी लाभ और बाजार में होड़ बढ़ सकती है.

निर्माताओं ने तर्क दिया है कि यह भारत में विनिर्माण के लिए प्रोत्साहन को रोकेगा और आयात को प्रोत्साहित करेगा. बजाज ने मुझे बताया, "अगर यह बिल इसी तरह पारित हो जाता है तो शायद मुझे अपनी फर्म को बंद करना होगा. भारत में विनिर्माण गैर—प्रतिस्पर्धी हो जाएगा और चीन से आयात करना सस्ता हो जाएगा. उसे ही भारत में निर्माण कह दिया जाएगा. भारत के पास जो भी विनिर्माण आधार है उसे भी मिटा दिया जाएगा.”

एमएसएमई का प्रतिनिधित्व करने वाले कई उद्योग संघ सरकार की योजना के खिलाफ सामने आए हैं. एमएसएमई का प्रतिनिधित्व करने वाली संघ परिवार की संस्था लघु उद्योग भारती ने भी विधेयक का विरोध किया है. लघु उद्योग भारती के अखिल भारतीय महासचिव गोविंद लेले ने एक फोन इंटरव्यू में कहा, "हमारा मानना है कि यह विधेयक अतार्किक और अनावश्यक है और हम सरकार को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि एमएसएमई को कारोबार के आधार पर परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए." बजाज के विचारों का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा, “विनिर्माण किसी भी औद्योगिक देश की रीढ़ होती है और वर्तमान परिभाषा का उद्देश्य भारतीय उद्यमियों के जरिए सूक्ष्म और लघु उद्योगों को बढ़ावा देना है. इस परिभाषा को कारोबार के आधार पर बदलने का मतलब यह होगा कि व्यापारी विदेशों से निर्मित वस्तुओं को आयात करना पसंद करेंगे, बजाए इन्हें भारत में बनाने के, जिससे भारत में बहुत कम उत्पादन होगा.

एमएसएमई क्षेत्र द्वारा उत्पन्न होने वाले रोजगार के कारण भी लघु उद्योग भारती बिल का विरोध कर रहे हैं. लेले ने कहा, "कृषि के बाद रोजगार का मुख्य चालक एमएसएमई है. एक औसत एमएसएमई इकाई सात लोगों को रोजगार देती है, अगर व्यापारियों को भी इसमें शामिल किया जाता है तो क्या होगा? उन्हें बहुत अधिक लोगों की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए रोजगार कम हो जाएगा. यह अर्थव्यवस्था और समाज के लिए नुकसानदेह होगा.” जब मैंने लेले से पूछा कि उन्होंने किस तरह से सरकार का विरोध करने की योजना बनाई है, तो उन्होंने कहा, “हम इसके खिलाफ तार्किक रूप से और तथ्यों के आधार पर लड़ेंगे. हम वामपंथी ट्रेड यूनियनों की तरह सड़कों पर नहीं उतरेंगे या बंद का आह्वान नहीं करेंगे."

सरकार के आंकड़े आंशिक रूप से लेले के तर्कों का समर्थन करते हैं. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने अपनी 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि एमएसएमई ने 2015-16 की अवधि के दौरान 11.10 करोड़ नौकरियां पैदा की थीं.

उद्योग संगठन अखिल भारतीय निर्माता संगठन के उत्तरी क्षेत्र के अध्यक्ष, वीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा, "विनिर्माण सिकुड़ रहा है और आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. भारत में विनिर्माण गैर-प्रतिस्पर्धी है और व्यापार में बदलाव पहले से ही हो रहा है. अगर यह विधेयक इसी तरह से पारित हो जाता है, तो इस प्रक्रिया में तेजी आएगी. भारत कभी वस्त्रों के लिए एक वैश्विक केंद्र था, लेकिन अब बांग्लादेश और वियतनाम हमसे आगे निकल गए हैं." विनिर्माण क्षेत्र के गैर—प्रतिस्पर्धी होने को समझाने के लिए सिंह ने खराब सड़कों और पानी और बिजली जैसी अपर्याप्त सुविधाओं के रूप में लचर बुनियादी ढांचे का हवाला दिया.

मैंने सांख्यिकी मंत्रालय और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के पूर्व सचिव और वर्तमान में आर्थिक विकास केंद्र इंटरनेशनल डेवलपमेंट सेंटर में भारत कार्यक्रम के निदेशक प्रोनाब सेन से भी बात की. उन्होंने मुझे बताया कि कारोबार के आधार पर एमएसएमई को वर्गीकृत करना "ऐसा करने का विशेष रूप से वांछनीय तरीका नहीं है" क्योंकि यह माल और सेवा कर से बचने में अंडर-रिपोर्ट टर्नओवर के लिए एक प्रोत्साहन का कार्य करेगा. इसके अलावा, एक कारोबार आधारित प्रणाली का झुकाव निर्माताओं के बजाय व्यापारियों के पक्ष में ज्यादा होगा.

सेन ने मुझे बताया कि, "एक व्यापारी का मूल्य संवर्धन निर्माता की तुलना में कम है. वह कोई सामान खरीदता है, उसे ट्रांसपोर्ट करता है और थोड़ी अधिक कीमत पर उसे फिर से बेच देता है. जिन वस्तुओं का वह व्यापार करता है, अगर उनका मूल्य अधिक होता है तो उसका कारोबार अधिक होता है, लेकिन मूल्य संवर्धन या लागत मूल्य और विक्रय मूल्य के बीच का अंतर कम होता है.” एक निर्माता द्वारा कारखाने की लागत, संयंत्र और मशीनरी में किए गए निवेश का जिक्र करते हुए सेन ने कहा, "दूसरी तरफ एक निर्माता उत्पादन प्रक्रिया के माध्यम से बहुत अधिक मूल्य जोड़ता है और इसलिए उसे किसी व्यापारी से अधिक पैसा निवेश करना पड़ता है." सेन ने कहा कि अगर एमएसएमई को वर्गीकृत करने के लिए कारोबार को आधार बनाया जाता है, तो व्यापारी और निर्माता दोनों का मूल्यांकन एक ही मानदंड पर किया जाएगा और दोनों का एक ही प्रोत्साहन प्राप्त होगा. "लेकिन जो भी बचत होती है, वह सीधे व्यापारी की जेब में चली जाती है, जबकि निर्माता को अपने बैंक ऋण और अन्य लागतों को चुकाने के लिए अपनी बचत के एक हिस्से का उपयोग करना पड़ता है." सेन ने कहा कि यह संभव है, अगर एमएसएमई के निर्धारण के लिए कारोबार-आधारित मापदंड अपनाया गया तो यह विनिर्माण को खत्म कर देगा.

हालांकि, कुछ उद्योग निकायों ने विधेयक में प्रस्तावित परिवर्तनों का समर्थन किया है. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में एमएसएमई वर्टिकल के सह-अध्यक्ष हरीश पाल कुमार ने मुझसे कहा, "कारोबार के आधार पर एमएसएमई का पुनर्वर्गीकरण बेहतर होगा क्योंकि इससे एमएसएम इकाई की पहचान करना और उसे कर के दायरे में लाना आसान हो जाएगा. इससे पहले यह जानने के लिए कि संयंत्र और मशीनरी में कितना निवेश किया गया है, मूल बैलेंस शीट को देखना पड़ता था. मशीनरी और संयत्र ऐसी संपत्ति है जिसका मूल्य कम होता जाता है, इसलिए इसका पता लगाना मुश्किल होता है." जब मैंने उनसे उन चिंताओं के बारे में पूछा, कि व्यापारी बाजार में प्रवेश करेंगे तो निर्माताओं की जगह लेंगे उन्होंने कहा कि एमएसएमई मंत्रालय पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि केवल वास्तविक निर्माताओं को लाभ मिले. कुमार ने कहा, "अगर आप चांदनी चौक में एक व्यापारी हैं और निर्माताओं को मिलने वाले लाभ का फायदा उठा रहे हैं तो यह पंजीकरण अधिकारियों की गलती है उन्हें इसकी जांच करनी होगी कि क्या वह विनिर्माण इकाई है." "लेकिन अगर किसी को गलत माध्यमों से पंजीकरण मिलता है, तो उनका पंजीकरण खत्म किया जा सकता है."

जनवरी 2019 में, भारतीय रिजर्व बैंक ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर एक समिति का गठन किया. इसने जून में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया था कि समिति ने परिभाषा में प्रस्तावित बदलाव पर विचार-विमर्श किया और यह पाया कि "इसे माल और सेवा कर की शुरूआत और परिचालन के साथ लागू करना तर्कसंगत, पारदर्शी, प्रगतिशील और आसान होगा."

एमएसएमई मंत्रालय में एमएसएमई नीति के एक उप निदेशक पीयूष अग्रवाल ने मुझे बताया कि सरकार निवेश मानदंड में होने वाली समस्याओं के कारण वर्गीकरण में बदलाव कर रही है. अग्रवाल ने कहा, "जो फर्म, संयंत्र और मशीनरी में अपने निवेश की सूचना दे रही थीं वे सूक्ष्म या लघु इकाई होने का लाभ उठाती रहेंगी, जो मूल रूप से एमएसएमई से 25 प्रतिशत सरकारी खरीद में भागीदार हैं. कारोबार आधा​रित होने से, यह आंकड़ा स्वचालित रूप से जीएसटी नेटवर्क के दायरे में आ जाएगा और यह पता लगाना आसान होगा कि कौन सी कंपनियां लघु और सूक्ष्म हैं और कौन सी मध्यम."

अग्रवाल ने कहा कि व्यापारी उद्योग आधार पोर्टल पर पंजीकरण नहीं कर सकते हैं. यह एमएसएमई के ऑनलाइन पंजीकरण के लिए एक सरकारी मंच है, लेकिन यह माना गया कि कुछ व्यापारी ऑनलाइन हेरफेर का सहारा ले सकते हैं और अपनी फर्मों को एमएसएमई इकाई के रूप में पंजीकृत करवा सकते हैं. उन्होंने कहा, "लेकिन वह गैरकानूनी है."

एमएसएमई विधेयक को पहली बार पिछले साल जुलाई में लोकसभा में पेश किया गया था. चूंकि यह पारित नहीं हुआ था इसलिए सोलहवीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर यह विधेयक भी समाप्त हो गया. संसद के मौजूदा सत्र में इस विधेयक का क्या हश्र होगा, यह देखना अभी बाकी है.


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.