राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार द्वारा गरीब परिवारों के छात्रों को लाभांवित करने के लिए शिक्षा ऋण योजना शुरू करने के लगभग बीस साल बाद भारत के सार्वजनिक बैंक उन छात्रों को ऋण देने से लगातार इनकार करते रहे हैं जिनके माता-पिता की क्रेडिट रेटिंग खराब है. देश में कार्यालय वाले सभी बैंकों की प्रतिनिधि संस्था इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने साल 2000 में एक मॉडल शिक्षा ऋण योजना के रूप में यह प्रस्ताव तैयार किया था. इसके अगले साल एनडीए सरकार ने केंद्रीय बजट में इस योजना की घोषणा की और उच्च शिक्षा की चाह रखने वाले छात्रों को रियायतें देने का वादा किया. उसी साल अप्रैल में भारतीय रिजर्व बैंक ने इसे अधिसूचित किया. लेकिन छात्रों के अनुभव और न्यायिक हस्तक्षेप की निरंतर आवश्यकता यह दर्शाती है कि योजना का कार्यान्वयन आकांक्षी छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि बैंकों की सावधानी से किया गया है.
आरबीआई के परिपत्र में कहा गया है कि ऋण योजना "का लक्ष्य भारत और विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पात्र/मेधावी छात्रों को बैंकिंग प्रणाली से वित्तीय सहायता प्रदान करना है." योजना के तहत पात्र होने के लिए छात्रों को स्नातक पाठ्यक्रमों में 60 प्रतिशत अंक प्राप्त करने होते, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के आवेदकों के लिए यह 50 प्रतिशत था. इस योजना ने सभी वाणिज्यिक बैंकों को भारत में पाठ्यक्रमों के लिए 7.50 लाख रुपए और विदेशों में पाठ्यक्रमों के लिए 15 लाख रुपए की सीमा के साथ "माता-पिता/छात्रों की ऋण चुकाने की क्षमता के तहत" ऋण प्रदान करने की अनुमति दी. इसके अलावा, इसने ऋण की अदायगी को पाठ्यक्रम की अवधि और उसके एक साल बाद या नौकरी मिलने के 6 महीने बाद, जो भी पहले हो, पर रोक लगाने की पेशकश की.
आरबीआई के सर्कुलर में कहा गया है, “हालांकि हर गरीब मेधावी छात्र को शिक्षा पाने का मौका देने के लिए बैंकिंग प्रणाली से किफायती नियम और शर्तों पर वित्तीय मदद करने पर इसका खास जोर है. किसी भी योग्य छात्र को उच्च शिक्षा पाने के लिए वित्तीय सहायता से वंचित नहीं किया गया है." फिर भी, आमतौर आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के आवेदनों को माता-पिता के सीआईबीआईएल स्कोर का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया जाता है. सीआईबीआईएल स्कोर, मुंबई स्थित क्रेडिट-सूचना कंपनी ट्रांस यूनियन सीआईबीआईएल द्वारा जारी किए गए तीन अंकों की संख्या है. पहले इसे क्रेडिट सूचना ब्यूरो इंडिया लिमिटेड के रूप में जाना जाता था.
बैंक एक संभावित उधारकर्ता की साख का आकलन करते हुए इस स्कोर का उल्लेख करते हैं. हालांकि, आरबीआई के परिपत्र से पता चलता है कि छात्र और उनके माता-पिता मुख्य उधारकर्ता नहीं माने जाते हैं. अगस्त 2015 में इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने शिक्षा ऋण योजना पर "संशोधित दिशानिर्देश नोट" जारी किया. "छात्र ऋण लेने वाले का कोई क्रेडिट इतिहास नहीं होता है और इस तरह उसे ऋण देने योग्य माना जाता है, यह भविष्यगत ऋण है." यह उन परिस्थितियों को भी संबोधित करता है जहां किसी आवेदक छात्र के माता-पिता की क्रेडिट रेटिंग खराब है. "यह संभावना है कि ऋण के लिए संयुक्त उधारकर्ता के पास क्रेडिट इतिहास है और किसी भी प्रतिकूल प्रभाव का क्रेडिट जोखिम के आकलन पर असर पड़ सकता है... इसे दूर करने के लिए छात्र के माता-पिता/अभिभावक के प्रतिकूल क्रेडिट इतिहास के मामले में बैंक एक विवेकपूर्ण उपाय के रूप में बैंक को मंजूर एक संयुक्त उधारकर्ता पर जोर दे सकता है.
लेकिन इनमें से कोई भी व्यवहार में लागू नहीं होता है. रेडियोलॉजी विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने वाली छात्रा वाणी राजीव के शिक्षा-ऋण के आवेदन को भारतीय स्टेट बैंक ने उनकी मां के खराब क्रेडिट इतिहास का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया था. वाणी की मां अंजू जयन ने मुझे फोन पर बताया, "हमने फरवरी में ऋण के लिए आवेदन किया था. मेरी बेटी के पिता तो नहीं हैं केवल मैं हूं. मेरे पास आवास ऋण के लिए आवेदन करने से पहले सीआईबीआईएल रिकॉर्ड था. मेरे सीआईबीआईएल रिकॉर्ड के कारण ऋण को अस्वीकार कर दिया गया था.” फरवरी 2020 में जयन ने अपनी बेटी की शिक्षा के लिए 4 लाख रुपए के ऋण के लिए आवेदन किया लेकिन कोट्टायम में एसबीआई की कुलशेखरामंगलम शाखा ने तुरंत ही आवेदन अस्वीकार कर दिया.
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