9 अक्टूबर की सुबह, केरल के उत्तरी कासरगोड जिले में स्थित केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूके) के पूर्व छात्र अखिल ताणत ने विश्वविद्यालय के हेलीपैड में अपनी कलाई काट ली. उसकी जेब से एक खून में सना खत (सुसाइड नोट) मिला जिस पर लिखा था, ‘‘मैं उस दर्द, क्रूरता और उपेक्षा को व्यक्त नहीं कर सकता जिसका सामना मुझे करना पड़ा है.’’ खत में आगे लिखा था, ‘‘कुलपति गोपकुमार, रजिस्ट्रार राधाकृष्णन नायर, प्रो वाइस चांसलर, डॉ मोहन कुंडर ने मुझे न केवल व्यक्तिगत रूप से तंग किया है बल्कि ये लोग समाज विरोधी तत्व हैं.’’
तीन दिन बाद, विश्वविद्यालय ने केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि छात्र आंदोलन से विश्वविद्यालय प्रशासन को सुरक्षा देने के मामले में पुलिस विफल रही. याचिका में ताणत समेत कई छात्रों पर विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर जयप्रसाद को ‘‘जानबूझ कर शारीरिक हानि पहुंचाने की कोशिश’’ करने का आरोप लगाया गया. यह भी कहा गया है कि ताणत ने ‘‘अपने हाथ पर एक छोटा सा घाव लगा लिया,’’ जिसे उसके दोस्त आत्महत्या की कोशिश बता रहे हैं. ताणत की डिस्चार्ज रिपोर्ट में, जिसे कान्हागढ़ जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक विभाग ने जारी किया है, लिखा है कि ‘‘छात्र को कलाई के कटने’’ के कारण भर्ती किया गया था.
ताणत के दोस्तों ने मुझे बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने लगातार उत्पीड़न कर ताणत को आत्महत्या के लिए मजबूर किया. यह 25 जून को तब शुरू हुआ जब सीयूके ने ताणत को निलंबित करने का आदेश दिया जिसमें दावा किया गया था कि ताणत ने 22 जून को 3 बज कर 46 मिनट पर फेसबुक में प्रशासन के खिलाफ ‘‘अपमानजनक और गंदे शब्द’’ लिखे थे. कोर्ट में अपनी याचिका में विश्वविद्यालय ने ताणत की फेसबुक पोस्ट की कुछ लाइनों का स्क्रीनशॉट संलग्न किया है जिसमें उसने सीयूके प्रशासन के सदस्यों के खिलाफ अपशब्द कहे हैं. हालांकि, ताणत ने इस तारीख और समय में कोई ऐसी पोस्ट लिखने से इनकार किया है. याचिका में संलग्न स्क्रीनशॉट में तारीख नहीं है.
ताणत को सितंबर में विश्वविद्यालय से बर्खास्त कर दिया गया था. सीयूके से अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर मास्टर कर रहे ताणत के दोस्त सुब्रमण्यम एन के मुताबिक, बर्खास्त होने के बाद से ही ताणत उदास रहने लगा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि सीयूके के बाद क्या करे. बर्खास्तगी के बाद, उसे विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था- प्रशासन के इस कदम के कारण वह स्नातक की अपनी डिग्री नहीं ले सकता था. आत्महत्या के प्रयास से एक दिन पहले ताणत ने हैदराबाद के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला की बात की थी. जनवरी 2016 में वेमुला की आत्महत्या के बाद जातिगत भेदभाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था. उस दिन, ताणत ने फेसबुक पर एक कविता साझा कीः
एक दिन लड़ने वाले अच्छे लोग हैं,
कई दिनों तक लड़ने वाले बहुत अच्छे लोग हैं,
आजीवन विरोध करने वाले लोग....लड़ाई का सार और तत्व हैं,
आखिरी सांस तक लड़ने वाले लोग...लड़ाई का विचार और वक्त होते हैं
हाल के दिनों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्र आंदोलनों का दमन कर रहे हैं. इसी तरह सीयूके प्रशासन भी परिसर में राजनीतिक गतिविधि को हतोत्साहित कर रहा है. 2016 से प्रशासन के खिलाफ कई तरह के आरोप लगे हैं जिनमें जातिगत भेदभाव, भ्रष्टाचार, यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर निष्क्रियता और असंतोष दबाने के मामले हैं. इसी अवधि में छात्रों के विरोध भी बढ़े हैं और साथ ही प्रशासन द्वारा इनका दमन. सीयूके प्रशासन की दमनमूलक कार्रवाही और उसके बाद पैदा हुए घटनाक्रम, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय की उन घटनाओं से हूबहू मिलता है जिसकी वजह से वेमुला ने आत्महत्या की थी. सीयूके प्रशासन के इन कामों का अंजाम आखिरकार उस हद तक पहुंच गया जहां ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुईं जिनमें ताणत ने आत्महत्या का प्रयास किया.
इस सितंबर विश्वविद्यालय के गेट के बाहर स्थित बस स्टॉप पर मैंने पहली बार ताणत से मुलाकात की. उस वक्त तक उसे बर्खास्त कर दिया गया था. उसने उन घटनाओं के बारे में बताया जिसके चलते उसे निकाला गया था. निलंबन के वक्त, ताणत पॉलिटिकल साइंस और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विभाग में एमए सेकेंड ईअर में था. वह विश्वविद्यालय प्रशासन का मुखर आलोचक था और नियमित रूप से परिसर में होने वाले छात्र आंदोलनों में हिस्सा लेता था. 2017 की जून में वह उन 200 छात्रों में से एक था जिन्होंने छात्रावास सुविधाओं में सुधार की मांग के आंदोलन में भाग लिया था. बाद में इस आंदोलन को छात्र शणार्थी आंदोलन के नाम से मीडिया में व्यापक प्रचार मिला.
29 जून को निलंबित होने के कुछ समय बाद, ताणत ने एक ब्लॉग, द नेल्ली, में इंजीनियरिंग कॉलेज, उसके निरंकुश प्रशासन और जातिवादी तरीके से सत्ता के दुरुपयोग के बारे में एक छोटी कहानी प्रकाशित की. रजिस्ट्रार को ‘‘मनुवादी’’ बताते हुए कहानी में लिखा है, ‘‘रजिस्ट्रार रविंद्रन का पहला निर्णय उन लोगों की छात्रावास सुविधा रद्द करना था जिन्होंने पहले सेमेस्टर में 50 प्रतिशत से कम अंक हासिल किए थे. इस फैसले के कारण तुरंत ही दो दलित छात्रों को छात्रावास से निकाल दिया गया.
ताणत की फेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट में, जिसे विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में संलग्न किया है, उसकी इस कहानी की लाइनें शामिल हैं जबकि ब्लॉग पर इस कहानी के प्रकाशित होने से एक सप्ताह पहले ही निलंबन का आदेश दिया जा चुका था. यह साफ नहीं है कि क्या 22 जून को ताणत ने फेसबुक पर कहानी का कोई हिस्सा पोस्ट किया था जैसा कि निलंबन के आदेश में कहा गया है. ताणत फेसबुक में ऐसा कुछ भी लिखने की बात नहीं मानता. निलंबन के लगभग एक महीने बाद, विश्वविद्यालय ने ताणत के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए प्रोफेसर मोहन कुंडर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया. जिस प्रकार से जांच प्रक्रिया को चलाया गया उससे ताणत की उम्मीद जाती रही. उसका कहना है कि यह जांच अपारदर्शी और पक्षपातपूर्ण है. ‘‘उन लोगों ने ऐसा दिखाया जैसे कि उनके पास सबूत हैं लेकिन ये सबूत मुझे दिखाने से इनकार कर दिया.’’
16 अगस्त को जांच आयोग ने ताणत को अपना अपराध स्वीकार करने और बिना शर्त माफी मांगने को कहा और ऐसा न करने पर निलंबित करने की चेतावनी दी. ताणत ने ऐसा करने से मना कर दिया. सितंबर के पहले सप्ताह में ताणत को निलंबन की आधिकारिक सूचना देने से पहले ही विश्वविद्यालय ने बर्खास्तगी की घोषणा वाली प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित कर दी. ताणत का कहना है कि आयोग ने उसके निलंबन के लिए कोई भी सबूत पेश नहीं किया. ‘‘उनका इरादा मुझे बाहर करने का था क्योंकि उन लोगों ने जांच के जारी रहते हुए ही मेरा निलंबन आदेश जारी कर दिया था.’’
अपनी उस कहानी के शुरू में ताणत ने डिसक्लेमर दिया है कि कहानी का यथार्थ से कोई लेना देना नहीं हैं. तो भी साफ समझ आता है कि यह सीयूके के बार में है. इस साल दो दलित छात्रों, अजीत कुन्युण्णी और शिव कुमार को विश्वविद्यालय से बर्खास्त कर दिया गया. विश्वविद्यालय में पीएचडी के कोर्स में दाखिला लेने के एक महीने बाद मार्च में कुन्युण्णी को फोन पर बताया गया कि छात्रावास में उसका एडमिशन रद्द कर दिया गया है. चार महीने पहले तक, सभी छात्रों के लिए पीएचडी प्रवेश के लिए यूजीसी का कट ऑफ 50 प्रतिशत था. दिसंबर 2017 में सीयूके ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए कट ऑफ प्रतिशत कम कर दिया था. कुन्युण्णी ने नए मानदंडों के अनुसार सीयूके के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और राजनीतिक विज्ञान विभाग के पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला ले लिया.
21 मार्च को प्रशासन ने उसे विश्वविद्यालय से निलंबित करते हुए एक पत्र लिखा जिसमें यह दावा किया गया है कि उनका प्रवेश ‘‘अनियमित’’ था क्योंकि उसके सुपरवाइजर के अधीन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए कोई रिक्तियां नहीं थीं. इसके बाद कुन्युण्णी ने अपनी बर्खास्तगी को केरल उच्च न्यायालय में चुनौती दी. विभाग की शोध समिति के साथ कुन्युण्णी के साक्षात्कार के दौरान पीएचडी कार्यक्रम के सुपरवाइजर न होने को बर्खास्तगी की दलील के रूप में पेश किया गया था. लेकिन कुन्युण्णी ने अन्य साक्षात्कारों के मिनिट्स को सामने रखते हुए अदालत को बताया कि यह बात दूसरे छात्रों के लिए भी लागू होनी चाहिए. कुन्युण्णी ने मुझे बताया, ‘‘मिनिट्स को पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि वर्तमान प्रो-वाइस चांसलर डॉ. जयप्रसाद उनके अंडर पीएचडी करने वाले छात्रों के इंटरव्यू के वक्त मौजूद नहीं थे.’’ विश्वविद्यालय ने अदालत को सूचित किया कि यूजीसी ने न्यूनतम कट ऑफ 50 प्रतिशत निर्धारित किया है और मार्च में इसने दिसंबर 2017 की अधिसूचना को रद्द कर दिया है. इस बीच, कुन्युण्णी ने अगस्त में हैदराबाद विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया. चूंकि उनकी याचिका ने सीयूके में फिर से दाखिले की मांग की गई थी इसलिए हैदराबाद विश्वविद्यालय में दाखिले के बाद यह मामला रद्द हो गया.
5 फरवरी को कुमार ने हिंदी विभाग के पीएचडी कोर्स में प्रवेश लिया. कुमार का कहना है कि 23 अप्रैल को आधिकारिक तौर पर छुट्टी मांगने के बाद वह अपने बीमार पिता से मिलने दिल्ली आ गए. ‘‘विश्वविद्यालय ने बलपूर्वक मुझे हटाने का षडयंत्र किया.’’ जब वह तीन महीनों के बाद विश्वविद्यालय लौटे तो उन्हें बताया गया कि उनका दाखिला रद्द कर दिया गया है. ‘‘जिस वक्त मैं बाहर था कॉलेज ने न मुझे फोन किया और न कोई पत्र भेजा.’’ कुमार को दाखिले के खारिज से संबंधित कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई. वह आज भी इस बारे में विभाग की ओर से आधिकारिक सूचना की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
9 अप्रैल को केरल के लगभग 30 दलित संगठनों ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम को कमजोर करने के प्रयासों के खिलाफ ‘‘दलित हड़ताल’’ का आयोजन किया. इस हड़ताल के एक दिन पहले सीयूके के पांच छात्रों ने आयोजन के बारे में लोगों को बताने के लिए छात्रावास की इमारतों के बाहर नारे लिखे थे. वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की सचिव शिल्पा बोस ने मुझे बताया, ‘‘हमने ब्राह्मणवाद मुर्दाबाद जैसे नारे सड़क पर लिखे थे.’’ इसके बाद, छात्रों ने सेमेस्टर परीक्षा दी और छुट्टियों में अपने अपने घर चले गए. एक महीने बाद उन्हें छात्रावास से निकाले जाने का आदेश थमा दिया गया. उन पांच छात्रों में से एक सुब्रमण्यम ने मुझसे कहा, ‘‘आदेश मे लिखा है कि हम लोगों ने वार्डन, सुरक्षा गार्ड को गालियां दी और आंदालेन किया तथा पेंट पोत कर संस्थान की संपत्ति को क्षतिग्रस्त किया है.’’ सुब्रमण्यम का कहना है कि उन लोगों के खिलाफ कार्रवाही किसी भी आधिकारिक जांच के बिना की गई.
लगता है कि सीयूके में उचित जांच के बिना अत्याधिक अनुशासनात्मक कार्रवाही एक आम बात है. 9 जुलाई की सुबह सीयूके के लिंग्विस्टिक (भाषा विज्ञान) विभाग के पीएचडी छात्र गंथोती नागराजू ने अपने छात्रावास के फायर अलार्म कैबिनेट का शीशा तोड़ दिया. विश्वविद्यालय ने आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के बाद, 6 अगस्त को, नागराजू को गिरफ्तार कर लिया गया और संपत्ति के विनाश के लिए पांच दिनों तक कासरगोड की उप-जेल में बंद रखा गया. उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में विश्वविद्यालय ने दावा किया है कि जुलाई की उस घटना के वक्त नागराजू नशे में धुत्त था.
नागराजू आर्थिक रूप से कमजोर दलित परिवार से आता है. उसके दोस्त बताते हैं कि गिरफ्तारी के समय वो भावनात्मक और वित्तीय संकट से जूझ रहा था. 2008 में, नागराजू ने हैदराबाद में कुथबुल्लापुर नगर पालिका सहकारी कार्यालय में लगभग 15 दिनों तक क्लीनर के रूप में काम किया और फिर उसे डेटा ऑपरेटर के पद पर भर्ती कर लिया गया. 2014 में, राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप हासिल कर नागराजू ने सीयूके में दाखिला लिया. नागराजू की मां की मृत्यु के कुछ महीने बाद, जून 2017 में, उसे फैलोशिप मिलनी बंद हो गई.
जब नागराजू ने शीशा तोड़ा था उस वक्त उसकी फेलोशिप को बंद हुए 11 महीने हो चुके थे. उसकी गिरफ्तारी के बाद, सीयूके के छात्र संघ और देशभर के शिक्षाविदों के नागराजू के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की. गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद, सीयूके के अंग्रेजी विभाग के हेड प्रसाद पनियन ने फेसबुक पर लिखा, ‘‘दुर्व्यवहार के एक कृत्य को अपराधिकारण कर दिया गया है जो बहुत परेशान करने वाला है. जहां तक मैं समझता हूं, यह एक मामूली अपराध है जिसे सीयूके परिसर में ही सुलझाया जाना चाहिए था.’’
7 सितंबर को, प्रशासन ने पनियन को विभाग के प्रमुख पद से निलंबित कर दिया क्योंकि उन्होंने ‘‘विश्वविद्यालय के फैसलों की आलोचना की थी और सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणियां प्रकाशित की थीं.’’ पनियन की बर्खास्तगी ने सीयूके परिसर और सोशल मीडिया में हड़कंप मचा दिया. गौरी विश्वनाथन और नंदिता नारायण जैसे कई शिक्षाविदों ने भारत के राष्ट्रपति से मुलाकात की और उन्हें मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया.
सीयूके अपने फैसले पर अड़ा रहा. प्रो वाइस चांसलर जयप्रसाद ने केन्द्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 (सीसीएस) का हवाला दे कर निलंबन आदेश को उचित ठहराया. ‘‘एचओडी के रूप में वे प्रशासन का हिस्सा हैं. सेवा के दौरान एक सरकारी कर्मचारी प्रशासन की आलोचना नहीं कर सकता है.’’ पिछले कुछ महीनों में, देश भर के विश्वविद्यालयों में सीसीएस आचरण नियम को बार बार लागू किया गया है. 11 अक्टूबर को एक बैठक में सेंट्रल यूनिवर्सिटीज टीचर्स एसोसिएशन फेडरेशन ने ‘‘केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य लोकतांत्रिक अधिकारों पर निरंतर दिख रहे खतरों पर अपना गंभीर ध्यानाकर्षण’’ प्रकट किया जहां शिक्षकों को सीसीएस आचरण नियम के अंतर्गत लाने का प्रयास किया जा रहा है.
26 सितंबर को पनियन ने केरल उच्च न्यायालय में अपने निलंबन आदेश को चुनौती दी. उन्होंने सीयूके के एक सहायक प्रोफेसर, कुलपति और प्रो वाइस चांसलर पर सताने का आरोप लगाया और ऐसे आरोपों का भी जिक्र किया जिन पर कोई कार्रवाही नहीं की गई है. पनियन की याचिका में सीयूके के भीतर व्यवहार के एक ऐसे पैटर्न को देखा जा सकता है जिसमें प्रशासन के खिलाफ किसी भी आंतरिक शिकायत को दबा दिया जाता है और विश्वविद्यालय के भीतर असंतोष की किसी भी अभिव्यक्ति का दमन किया जाता है.
सीयूके के एक सहायक प्रोफेसर वेलिक्कल राघवन ने पनियन के खिलाफ शिकायत दायर की थी जिसके बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था. पनियन की याचिका में, अन्य चीजों के साथ, इस बात का उल्लेख था कि विश्वविद्यालय प्रशासन राघवन के खिलाफ यौन उत्पीड़न शिकायत पर कार्य नहीं कर रहा. पनियन ने बताया कि राघवन ने व्हाट्सएप के जरिए हाईस्कूल की शिक्षिक को ‘‘अमर्यादित और अनुचित टिप्पणियां’’ भेजी थीं. शिक्षिक ने राघवन के खिलाफ कुलपति जी. गोपकुमार से शिकायत की थी लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाही नहीं की. राघवन ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
ऐसा पहली बार नहीं है जब यौन उत्पीड़न की शिकायत पर निष्क्रियता का आरोप विश्वविद्यालय प्रशासन पर लगा है. पिछले साल, पीएचडी की छात्रा अंसिया रहमान ने सहायक प्रोफेसर और सुपरवाइजर वी नागराज के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी. रहमान ने बताया कि दो या तीन क्लास के बाद उनको लगा कि उनके सुपरवाइजर की ‘‘आंखे उनके चेहरे पर नहीं है.’’ इस बात से वह असहज हो गईं. जब अंसिया ने नागराज को ऐसा न करने को कहा तो उन्होंने दावा किया कि ‘‘उनकी भी मां, बहनें और पत्नी हैं. और मैं उस तरह का आदमी नहीं हूं.’’ रहमान ने मुझे बताया कि इसके बाद उन्होंने फरवरी 2017 में विश्वविद्यालय के यौन उत्पीड़न के खिलाफ सेल में शिकायत दायर की. वह शिकायत गोपकुमार को भी भेजी गई. फिर से कोई कार्रवाही नहीं हुई. उस महीने रहमान ने सीयूके छोड़ा दिया. वह अब टाटा इंस्टीट्यूशन ऑफ सोशल साइंसेज से पीएचडी कर रहीं हैं. नागराज अभी भी विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं. जब मैंने उनसे बात करने के लिए फोन किया तो उनका फोन पहुंच से बाहर था.
विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में गोपकुमार का कार्यकाल, मनमाने तरीके से मंहगाई भत्ता लेने और अनावश्यक स्टाफ भर्ती करने और छात्रों पर मनमाने तरीके के अनुशासनात्मक कार्रवाही करने जैसे कामों के चलते, कुप्रशासन और अधिकारों के गलत इस्तेमाल के लिए बदनाम हैं. नवंबर 2017 में, न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि गोपकुमार अनुचित महंगाई भत्ता ले रहे हैं. केरल विश्वविद्यालय (यूओके) से प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद अगस्त 2014 में गोपकुमार सीयूके के कुलपति बने. तीन सालों तक उन्होंने यूओके से पेंशन पर महंगाई राहत और सीयूके से महंगाई भत्ता वसूला. रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कुल मिलाकर यूओके से साढे 14 लाख रुपए अनुचित लाभ लिया. उनके द्वारा वसूली गई अनुचित राशि को अब सीयूके के उनके वेतन से काटा जाएगा और यूओके को लौटाया जाएगा. इस बारे में किसी भी संदेश या फोन का जवाब गोपकुमार ने नहीं दिया.
पनियन की याचिका और प्रशासनिक कार्रवाही का सामना करने वाले छात्रों के केन्द्र में विश्वविद्यालय के प्रो वाइस चांसलर जयप्रसाद हैं. याचिका में कहा गया है कि मार्च 2015 से अक्टूबर 2016 तक मुख्य सतर्कता अधिकारी के रूप में पनियन के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने बहुउद्देशीय हॉल के निर्माण में अनियमितता का खुलासा किया था. जयप्रसाद, जो उस समय विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी थे, ने पनियन को पीछे हटने का निर्देश दिया और ऐसा न करने पर ‘‘गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहने’’ की धमकी दी. जब पनियन ने हॉल के निर्माण में सीबीआई जांच की सिफारिश की, तो उन्हें उनके पद से हटा दिया गया. मुख्य सतर्कता अधिकारी की उनकी कार्यअवधि के पूरा होने से पहले.
जयप्रसाद भारतीय विचार केन्द्रम्, ‘‘राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए अध्ययन केंद्र’’ के उपाध्यक्ष हैं. इसकी स्थापना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक पी परमेस्वरम ने की थी. छात्रों ने मुझे बताया कि आरएसएस के साथ जयप्रसाद की संबद्धता प्रशासन के सदस्य के रूप में उनके फैसले को प्रभावित करती है. जयप्रसाद प्रगति नाम की एक शोध पत्रिका के संपादक है. केन्द्र द्वारा प्रकाशित यह पत्रिका ‘‘वैश्विक मामलों पर भारतीय परिप्रेक्ष्य’’ पर प्रकाश डालती है. 2011 के जनवरी-मार्च के अंक में, उन्होंने पत्रिका में प्रकाशित अपने लेख में लिखा, ‘‘मनुस्मृति धर्म पर आधारित एक आदर्श कानून व्यवस्था की बात करती है.’’ उन्होंने 1991 की अपनी किताब, आरएसएस एंड हिंदू नेशनलिज्म: इनरोड्स इन ए लेफ्टिस्ट स्ट्रॉगहोल्ड (आरएसएस और हिंदू राष्ट्रवादः वामपंथ के गढ़ में प्रवेश) में गोपकुमार को धन्यवाद दिया है.
जयप्रसाद लगातार इस बात की वकालत करते रहे हैं कि शिक्षा परिसरों को अराजनीतिक होना चाहिए. फरवरी 2016 में वेमुला की मौत के बाद सीयूके में जातिगत भेदभाव को लेकर हुए प्रदर्शन के बाद उस वक्त वरिष्ठ एसोसिएट प्रोफेसर रहे जयप्रसाद ने साथी शिक्षकों को एक पत्र भेजा. इस पत्र में तत्कालीन शिक्षक संगठन से अलग होकर ‘‘एक अराजनीतिक शिक्षक संघ’’ के गठन की घोषणा थी. उस पत्र में लिखा था, ‘‘बनने वाला संगठन राजनीतिक उद्देश्यों वाला संगठन नहीं होगा और न ही यह प्रदर्शनकारियों या कार्यकर्ताओं का मंच होगा. विश्वविद्यालय की शैशवावस्था में उसका राजनीतिकरण उसके अकादमिक लक्ष्य के मार्ग में बाधा है.’’
19 सितंबर की शाम को मैं गंगोत्री नाम के प्रशासनिक ब्लॉक के कार्यालय में जयप्रसाद से मिलने गई. उस समय फेसबुक में ऐसे बहुत से पोस्टर शेयर हो रहे थे जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन को ‘‘फासीवादी’’ बताया जा रहा था. मेरे सवाल करने से पहले ही वो बोलेः ‘‘नरेन्द्र मोदी चार साल से वहां हैं, मैं चार साल से यहां हूं. तो फिर आज तक मेरे खिलाफ कोई कार्रवाही क्यों नहीं की गई थी? क्या इससे पहले यहां कोई फासीवाद नहीं था?’’ जब मैंने उन छात्रों के नामों का जिक्र किया जिन्हें निलंबन और बर्खास्तगी के आदेश दिए गए थे, तब उनका कहना था कि वे लोग होस्टल नियमों का लगातार उल्लंघन कर रहे थे. उन्होंने मुझे छात्रों के व्यक्तिगत आचरण और रहन-सहन के तरीकों के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा, ‘‘ड्रग्स, शराब और फ्री सेक्स विश्वविद्यालय की सबसे प्रमुख समस्या है.’’ उन्होंने पनियन के आरोपों पर यह कह कर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वह मामला अदालत में चल रहा है.
ऐसे अपवाद लोगों को छोड़कर जिन्हें लगता है कि उनके पास फिक्र करने के लिए कुछ नहीं है, विश्वविद्यालय में जिन लोगों से भी मैंने बातें की उन लोगों ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उनका नाम रिपोर्ट में प्रकाशित न करूं. एक प्रोफेसर कहते हैं, ‘‘किसी को अपना मुंह नहीं खोलना चाहिए और उन लोगों की करनी का खुलासा नहीं करना चाहिए.’’ आगे उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समझ नहीं आता कि नीतियों की आलोचना कर सकने के हक के बिना हम लोग कैसे ज्ञान को आगे ले जा सकते हैं. हम लोगों की सोच को अंधेरे तहखानों में कैद कर दिया गया है.’’
प्रशासन के खिलाफ ताणत का रुख बर्खास्तगी के बावजूद पहले जैसा ही है. निलंबन का आदेश मिलने के एक दिन बाद, 10 सितंबर को, ताणत ने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘‘विश्वविद्यालय प्रशासन ने मेरी बर्खास्तगी से भी बड़े अपराधिक, हिंसक और प्रतिशोधपूर्ण काम किए हैं.’’ कुछ दिनों बाद, जब मैं ताणत से मिली तो उसका कहना था, ‘‘मैंने भाईभतीजावाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक व्यंग लिखा था और यदि उन्हें लगता है कि यह व्यंग उन पर फिट था तो क्या वे लोग ये नहीं मान रहे कि उन लोगों ने ऐसा किया है.’’
ताणत के आत्महत्या करने के प्रयास के बाद, लगभग 300 छात्रों ने प्रो-वाइस चांसलर के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया. प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों के साथ एक अनौपचारिक समझौता किया जिसके तहत ताणत के बिना शर्त माफी मांगने पर उसका प्रवेश बहाल कर दिया जाएगा. 11 अक्टूबर को, होश में आने के कुछ समय बाद, ताणत ने प्रशासन से एक हैंडरिर्टन नोट में बिना शर्त माफी मांग ली. सीयूके प्रशासन ने यह पुष्टि नहीं की है कि क्या माफी मांगने के बाद उसका प्रवेश बहाल कर दिया गया है. ताणत के नोट में लिखा है, ‘‘यदि मेरी ओर से विश्वविद्यालय के अधिकारियों के खिलाफ कोई गलत काम हुआ है तो मैं बिना शर्त माफी मांगता हूं.’’