29 फरवरी 2012 की सुबह हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पॉवर डिवीजन रेणुसागर, सोनभद्र की पूर्व अध्यापिका सुधा पांडेय रसोई में चाय बना रही थीं जब उनके पति विष्णुदत्त पांडेय ने घर के बरामदे से आवाज दी और कहा कि “देखिए, अखबार में आपकी थीसिस के विषय में क्या छपा है?” उस दिन पहली बार पांडेय ने दैनिक जागरण में अपनी थीसिस के चोरी होने की खबर पढ़ी. 59 वर्षीय सुधा पांडेय ने मुझे बताया, “खबर पढ़ते ही जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.” वह बताती हैं, “इतनी मेहनत से मैंने थीसिस लिखी थी. हमने जो संघर्ष किया था सब याद आने लगा."
जागरण की उस खबर के मुताबिक संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के विक्रय अधिकारी पद्माकर मिश्र ने तत्कालीन कुलपति बिंदा प्रसाद मिश्र से लिखित शिकायत में आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय के तुलनात्मक धर्म दर्शन के उपाचार्य (रीडर) “डॉ. रजनीश कुमार शुक्ल ने बीएचयू की डॉ. सुधा पांडेय के शोध प्रबंध की नकल करके पीएचडी हासिल की है.” मिश्र ने आरोप में कहा था, “डॉ. शुक्ल के शोध प्रबंध में डॉ. पांडेय के शोध प्रबंध की अक्षरशः कॉपी की गई है.”
पांडेय ने याद करते हुए मुझे बताया, "हमारे गाइड ने बहुत पहले आगाह किया था कि तुम्हारा हिंदी में पहला और इतना अच्छा काम है यदि तुमने पब्लिश नहीं कराया तो कोई चुरा सकता है.” उन्होंने कहा कि तब परिस्थिति बहुत अच्छी नहीं थी कि वह अपनी थीसिस को पुस्तक के रूप में पब्लिश करा पातीं. वह बताती हैं, “हमें तब और ज्यादा बुरा लगा जब पता चला कि हमारी मेहनत से लिखी थीसिस को चुरा कर रजनीश कुमार शुक्ल ने भुना लिया, उसी के लिए उन्हें पुरस्कार भी मिला.”
फिलहाल शुक्ल केंद्रीय विश्वविद्यालय महात्मा गांधी आंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं. वह कुलपति होने के साथ-साथ उच्च शिक्षण संस्थानों की कई मुख्य समितियों में निर्णायक सदस्य की भूमिका में शामिल हैं. वह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), गुजरात विश्वविद्यालय और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य हैं.
शुक्ल पर थीसिस चोरी के आरोप की जड़ें बड़ी दूर तक जाती हैं. इस मामले में शुरू से अंत तक आरोप को निराधार साबित करने में प्रमुख पदों पर आसीन कई लोगों की संलिप्तता नजर आती है.
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