13 और 17 सितंबर को तमिलनाडु के कई शहरों में छात्र और दलित संगठनों ने राष्ट्रीय प्रवेश एवं पात्रता परीक्षा (नीट) के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया. ये प्रदर्शन मदुरई, करुर, तंजावुर, तिरुवरूर पुदुकोत्तई, कन्याकुमारी, विरुधुनगर, वीलूर और चेन्नई आदि शहरों में हुए. नीट परीक्षा भारत के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में दाखिले के लिए आयोजित की जाती है. इस साल यह परीक्षा 13 सितंबर को आयोजित की गई थी. नीट परीक्षा 2017 में शुरू हुई थी और तमिलनाडु के छात्र, नागरिक समाज के अगुवा और यहां की राजनीतिक पार्टियां तब से ही इस परीक्षा का विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि यह परीक्षा वंचित समुदाय के साथ भेदभाव करती है. जबसे नीट परीक्षा आयोजित होनी शुरू हुई है तब से राज्य के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के इच्छुक कई छात्रों ने आत्महत्या की है. 13 और 17 सितंबर को हुए विरोध प्रदर्शन, परीक्षा के एक दिन पहले तीन छात्रों द्वारा आत्महत्या कर लेने से उमड़े गुस्से का परिणाम थे.
19 साल की एम ज्योतिश्री दुर्गा ने 12 और 13 सितंबर की दरमियानी रात को आत्महत्या कर ली. ज्योतिश्री नीट परीक्षा की तैयारी कर रही थी. उसने सालभर इसकी तैयारी की थी. ज्योतिश्री के पिता मुरुगासुंदरम मदुरई पुलिस में सब इंस्पेक्टर हैं. उन्होंने मुझसे कहा कि वह और उनकी पत्नी जानते थे कि बेटी के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है लेकिन उन्हें लग रहा था कि यह परीक्षा नजदीक होने के कारण है जो स्वाभाविक ही है. मुरुगासुंदरम ने मुझसे कहा, “शुक्रवार की रात को वह बहुत सामान्य लग रही थी. उसने हमारे साथ रात का भोजन किया और अपने कमरे में चली गई. सुबह हमने देखा कि हमारे कमरे का दरवाजा बाहर से बंद है. हम बड़ी मुश्किल से बाहर निकले और पाया कि हमारी बेटी हॉल में लटक रही है.”
अपने पीछे 19 साल की ज्योतिश्री ने एक ह्रदय विदारक चिट्ठी छोड़ी है जिसमें उसने लिखा है कि हालांकि उसने परीक्षा की अच्छी तैयारी की थी लेकिन फिर भी उसे डर लग रहा था कि कहीं वह परीक्षा में पास न हुई तो क्या होगा. ज्योतिश्री के शब्दों में, “यदि मुझे सीट नहीं मिल पाई तो आप सभी को निराशा होगी. आई एम सॉरी, अप्पा. आई एम सॉरी, अम्मा. अप्पा अपनी सेहत का ख्याल रखना क्योंकि आप दिल के मरीज हैं. आप मेरी चिंता मत करना. अम्मा-अप्पा प्लीज अपने आप को दोष मत देना. यह आपकी गलती नहीं है. यह निर्णय सिर्फ मेरा है. अम्मा मैं आपको मिस करूंगी. अम्मा, आई एम सॉरी.” 7 पेज के उस सुसाइड नोट में उसने लिखा है कि मैंने पढ़ाई अच्छी की थी और पिछले मॉक टेस्ट में मुझे 590 से ज्यादा नंबर मिले थे लेकिन अब मैं इस परीक्षा को लेकर डरी हुई हूं. ज्योतिश्री के सुसाइड नोट की एक पंक्ति विरोध प्रदर्शनों में बार-बार दोहराई गई जो है, “मुझे माफ कर देना. मैं थक गई हूं.”
पहले नीट परीक्षा 3 मई को होनी थी लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया. इसके बाद नीट परीक्षा को 13 सितंबर को आयोजित किया गया. हालांकि देशभर के छात्र परीक्षा टाले जाने की मांग कर रहे थे और परीक्षा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका तक डाली गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था. 2017 से नीट परीक्षा के कारण राज्य में 18 बहुजन छात्रों ने आत्महत्या की है. इनमें से पांच मौतें तो इसी साल हुई हैं.
2017 तक तमिलनाडु में 12वीं के परीक्षा परिणाम के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलता था. राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूलों की संख्या तुलनात्मक रूप से अच्छी है जिसके चलते मेडिकल शिक्षा वंचित दलित, आदिवासी और बहुजन समाज के लिए अच्छा अवसर थी लेकिन केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम पर आधारित नीट परीक्षा शुरू हो जाने से राज्य के वंचित समाज के विद्यार्थियों के लिए मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाना कठिन हो गया है.
उम्मीदवरों के भीतर यह परीक्षा डर पैदा करती है और पिछले तीन साल के परिणाम इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस परीक्षा के कारण वंचित तबके को घाटा हुआ है. इसे पाठ्यक्रम के अध्ययन के लिए निजी कोचिंग सेंटर में पढ़ाई करनी पड़ती है ताकि सीबीएससी आधारित पाठ्यक्रम को समझा जा सके. ऐसी कोचिंग संस्थाएं ग्रामीण इलाकों में प्रायः नहीं या महंगी होती हैं. इस वजह से वंचित समाज के पहली पीढ़ी के शिक्षित जन दाखिले से वंचित हो गए हैं. पुरानी व्यवस्था में इस समाज के लोग दाखिला पा जाते थे.
मेडिकल शिक्षा में वंचित समुदाय के प्रतिनिधित्व में सुधार लाने के लिए काम करने वाले डॉक्टर और जाति विरोधी कार्यकर्ता एजिलन नागनाथन ने बताया, “अन्य परीक्षाओं के मुकाबले नीट परीक्षा उम्मीदवारों के भीतर ज्यादा अपराधबोध पैदा करती है. जब आप 17 या 18 साल के होते हैं और आपकी जिंदगी के तीन साल इस परीक्षा को बार-बार देने में निकल जाते हैं जबकि आपके माता-पिता आपकी तैयारी के लिए बहुत पैसा खर्च कर रहे हैं तब ऐसा लगता है कि आपने जिंदगी का बहुत ज्यादा समय यूं ही खो दिया.”
नागनाथन ने बताया, “उस उम्र में जब आप देखते हैं कि अगड़े समाज के आपके दोस्त तरक्की कर रहे हैं और जिंदगी में आप से आगे निकल गए हैं जबकि आप इस परीक्षा को पास करने में ही टूटे जा रहे हैं. इससे बुरा यह है कि अधिकांश बहुजन छात्रों ने देखा है कि अभी 10 साल पहले तक उनके चाचा, दोस्त मेडिकल कोर्ट में प्रवेश पा लेते थे. वे भी उनकी तरह ही होनहार थे और उन्होंने तमिलनाडु की पुरानी व्यवस्था के चलते मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश प्राप्त किया था. लेकिन वे यह नहीं समझ पाते की नीट के आने से पूरी व्यवस्था उनके खिलाफ हो गई है. वे बेचारे तो इसे निजी असफलता मानते हैं और खुद को अपने माता-पिता के ऊपर बोझ की तरह देखने लगते हैं.”
माता-पिता के साथ संबंध की यही जटिलता नीट परीक्षा के एक दिन पहले हुई तीन आत्महत्याओं के पीछे है. ज्योतिश्री ने सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त स्कूल से पढ़ाई की थी. यह स्कूल विरुधुनगर जिले के अरुप्पाकोटाई नगर में है. उसने दसवीं कक्षा में 600 में से 518 अंक प्राप्त किए थे. मुरुगासुंदरम ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र को बताया था कि ज्योतिश्री ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तमिल भाषा स्कूल में की थी और इसके बाद वह अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने लगी. उसके लिए यह बदलाव चुनौतीपूर्ण था. आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण 2019 में वह केवल 40 दिन के नीट क्रैश कोर्स की कोचिंग ही ले पाई थी. वह उस साल परीक्षा में फेल हो गई. लेकिन ज्योतिश्री ने हार नहीं मानी. उसके मां-बाप ने पढ़ाई में उसकी तैयारी में मदद करने के लिए ट्रांसफर की अर्जी दी. मुरुगासुंदरम दिल्ली के तिहाड़ जेल में गार्ड थे और उनकी बेटी कोचिंग ले सके इसलिए उन्हें मदुरई ट्रांसफर कर दिया गया. लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते मार्च में सारे कोचिंग सेंटर बंद हो गए.
समाचार पत्र न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मुरुगासुंदरम ने बताया कि ज्योतिश्री और उसके जैसे कई बच्चों को, जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते थे, नीट के आने से नुकसान उठाना पड़ा है. उन्होंने पूछा, “सरकारी स्कूल के किस टीचर को नीट के पाठ्यक्रम का पता होता है? क्या उनके पास इस परीक्षा के लिए विद्यार्थी को तैयार करने के संसाधन होते हैं. नीट कोई सामान्य प्रवेश परीक्षा नहीं है. कुछ भी पहले जैसा नहीं है और आगे भी पहले जैसा नहीं रहेगा. हम जिंदगी भर इन यादों के साए में जिएंगे और हमें समझ नहीं आ रहा कि हम इसका सामना कैसे करें.”
राज्य भर में परिवार अपने बच्चों को इस परीक्षा के लिए तैयार करने की जद्दोजहद कर रहे हैं. सेनथिल नगर गांव, जो धर्मपुर जिले में आता है, का 20 साल का एम आदित्य उन 29 विद्यार्थियों में से एक था जिसने परीक्षा के एक दिन पहले जान दे दी. आदित्य बहुत होनहार छात्र था और उसने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा में बहुत अच्छे अंक अर्जित किए थे. लेकिन राज्य बोर्ड वाले स्कूल में पढ़ना नीट के लिए सही साबित नहीं हुआ. उसने 2018 और 2019 में भी यह परीक्षा दी थी लेकिन वह मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने में सफल नहीं रहा था. उसके पिता मणिवन्नन ने बताया कि 2019 में फेल होने के बाद उसे बेंगलुरु में प्राइवेट कोचिंग दिलाई थी. मणिवन्नन अति पिछड़ा वर्ग वनियार समुदाय से आते हैं और ट्रैक्टर मकैनिक हैं.
12 सितंबर को मणिवन्नन और उनकी पत्नी जयाचित्र सलेम में थे जो उनके गांव से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. दोनों यहां निजी काम से आए थे. आदित्य का परीक्षा केंद्र भी सलेम में था और गांव वापस लौटने से पहले दोनों मां-बाप आदित्य का परीक्षा केंद्र देखने गए थे. उस दिन शाम 6 बजे जब मणिवन्नन और जयाचित्र वापस लौटे तो उन्होंने पाया कि आदित्य ने घर के पंखे से लटककर फांसी लगा ली है.
मणिवन्नन और जयाचित्र ने पहले तो आदित्य के शव को लेने से यह कह कर इनकार कर दिया कि सरकार पहले नीट परीक्षा रद्द करे लेकिन स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव ले जाने के लिए राजी कर लिया. लेकिन आदित्य की मौत के बाद धर्मपुरी सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन चालू हो गए और सेनथिल नगर में भी प्रदर्शन होने लगे जिसमें नीट परीक्षा को स्थाई तौर पर रद्द करने की मांग की गई और यदि ऐसा नहीं हो सकता तो तमिलनाडु में इसे नहीं करने की अपील की गई. आदित्य मणिवन्नन और जयाचित्र की इकलौती औलाद थी और अगर वह यह परीक्षा पास कर लेता तो वह गांव का पहला डॉक्टर होता.
आदित्य की तरह ही 20 साल के एम मोतीलाल ने पहले दो बार नीट परीक्षा दी थी. मोतीलाल नमक्कल जिले के कुमारमंगलम गांव का था. मोतीलाल को अच्छी शिक्षा मिली थी और उसने अपने गांव के निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की थी. 12वीं की परीक्षा में उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हुए 1200 में से 1081 अंक लाए थे. मोतीलाल के पिता मुरुगेशन घर के एकमात्र कमाने वाले हैं. उनकी इलेक्ट्रिकल सामान की छोटी दुकान है. वह मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से आते हैं और मोतीलाल के परिवार ने उसे नीट की कोचिंग करवाई थी. 12 सितंबर की रात को मुरुगेशन और उनकी पत्नी के बुलाने पर मोतीलाल ने दरवाजा नहीं खोला तो उन्होंने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटने पर उन्होंने पाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा मोतीलाल जा चुका है.
अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद मोतीलाल का शव उसके मां-बाप को सौंप दिया गया. पुलिस ने मोतीलाल की मौत के कारण पर लीपापोती करने की कोशिश की है. नमक्कल के पुलिस सुपरिटेंडेंट एस शक्ति गणेशन ने हमें बताया कि “हम अभी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या लड़के ने नीट परीक्षा के डर से आत्महत्या की थी. पुलिस जांच के बाद ही इसकी सही जानकारी मिल पाएगी.” 20 सितंबर तक पुलिस ने जांच का कोई अपडेट नहीं दिया था.
हाल की आत्महत्याएं मेडिकल कॉलेज में दाखिला चाहने वाले दलित और बहुजन समाज के छात्रों की आत्महत्या के लंबे सिलसिले का हिस्सा है जो 2017 में नीट परीक्षा के अस्तित्व में आने से शुरू हुआ है. इसमें सबसे भयावह मामला 17 साल की षणमुगम अनीता का है जो अरियालुर जिले के खुजमुर गांव की थी. अनीता की मौत के बाद पूरे तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन चालू हो गए.
अनीता की मां उसके बचपन में ही गुजर गई थी और उसके पिता दिहाड़ी मजदूर थे. गरीबी के बावजूद उसने राज्य परीक्षा बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में टॉप किया था. उसके घर में टॉयलेट तक नहीं है. उसने कुल 1200 अंकों में से 1176 अंक प्राप्त किए थे. यदि नीट परीक्षा का अस्तित्व नहीं होता तो इतने अधिक अंक प्राप्त करने पर उसे आसानी से तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल जाता.
दलित समाज की अनीता गांव की पहली डॉक्टर होती और अपने परिवार की पहली ग्रेजुएट. लेकिन नीट परीक्षा के पाठ्यक्रम से वह पूरी तरह से अनभिज्ञ थी और उसने 700 में से केवल 86 अंक हासिल किए. नीट में विद्यार्थी के लिए परसेंटाइल व्यवस्था भी होती है और अनीता का परसेंटाइल 12.33 था. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित श्रेणी का परसेंटाइल 14.9 था.
जबसे नीट प्रस्तावित किया गया था तभी से तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके की सरकारों ने इसका विरोध किया है. इन दलों का कहना है कि नीट परीक्षा से ग्रामीण और राज्य बोर्ड से पढ़ाई करने वाल छात्रों को नुकसान होगा. जब 2017 में केंद्र सरकार ने नई प्रवेश प्रक्रिया चालू की तो तमिलनाडु सरकार ने इसे अदालत में चुनौती दी थी. अनीता भी इस मामले में अपीलकर्ता थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वह याचिका खारिज कर दी. उसके बाद राज्य सरकार ने राज्य बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए अलग मेरिट लिस्ट निकाली और उसमें राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 85 फीसदी सीटें स्टेट बोर्ड के छात्रों के लिए आरक्षित कर दी. उस साल 14 जुलाई को मद्रास हाई कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया.
उसी साल 14 अगस्त को तमिलनाडु सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव आरके मित्रा को मसौदा अध्यादेश सौंपा जिसमें तमिलनाडु राज्य बोर्ड के छात्रों को एक साल के लिए नीट परीक्षा से मुक्त कर दिया गया. उस अध्यादेश में 12वीं के परिणामों के आधार पर मेडिकल दाखिला देने का प्रस्ताव था. राज्य सरकार ने ऐसा तत्कालीन व्यापार एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण के एक वक्तव्य के आधार पर किया था जो उन्होंने एक दिन पहले दिया था जिसमें सीतारमण ने कहा था कि यदि कोई राज्य ऐसा अध्यादेश पारित करता है जिसमें एक साल की छूट की बात हो तो केंद्र सरकार उसे मानेगी.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अध्यादेश के खिलाफ याचिका डाले जाने के बाद केंद्र सरकार अपनी बात से पीछे हट गई. महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने पहले तो अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी लेकिन जब स्वास्थ्य मंत्रालय ने अध्यादेश उनके पास वापस भेजा तो उन्होंने अपने विचार बदलते हुए मंत्रालय के अधिकारियों को बताया कि यह अध्यादेश अदालत में टिक नहीं पाएगा. 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि वह नीट के अंकों के आधार पर सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिले की प्रक्रिया चालू करे.
वरिष्ठ अधिवक्ता नलिनी चिदंबरम इस मामले में सीबीएससी की वकील थीं. 2012 में जब नीट प्रस्तावित किया गया था, उस वक्त उनके पति पी चिदंबरम केंद्रीय मंत्री थे. न्यूज मिनट से बातचीत में नलिनी चिदंबरम ने कहा था, “अब दाखिले का आधार नीट परीक्षा होनी चाहिए. यदि अध्यादेश नहीं है तो तमिलनाडु सरकार के पास विरोध करने का कोई आधार नहीं है. अब नीट के खिलाफ अपील सिर्फ भगवान की अदालत में हो सकता है. 1 सितंबर को यानी सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के 9 दिन बाद अनीता ने खुदकुशी कर ली. अनीता बहुत होनहार छात्रा थी और नीट की वजह से उसकी मेहनत बेकार हो गई थी.
विल्लुपुरम जिले के पेरूवल्लूर गांव की दलित युवती एस प्रदीपा गरीब परिवार से थी लेकिन उसका अकादमिक रिकॉर्ड शानदार था. उसने दसवीं में अपनी कक्षा में टॉप किया था. उस परीक्षा में उसे 500 में से 490 अंक मिले थे. 12वीं की परीक्षा में प्रदीपा ने 1200 में 1125 अंक अर्जित किए थे. प्रदीपा के पिता खेत मजदूर हैं और वह 11वीं और 12वीं में प्रदीपा को निजी स्कूल में इसलिए पढ़ा सके क्योंकि उसे पूर्ण स्कॉलरशिप मिल रही थी. 2017 में उसने नीट पास कर लिया था और उसे नेचुरोपैथी कोर्स में दाखिला मिला था लेकिन उस कोर्स की फीस बहुत अधिक थी इसलिए उसने उसे छोड़ दिया. उसे उम्मीद थी कि वह फिर से इस परीक्षा में बैठेगी और किसी न किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाखिला पा लेगी. लेकिन उसके घर से सरकारी कोचिंग सेंटर 70 किलोमीटर दूर था. 4 जून 2018 को जब उसे पता चला कि वह नीट में फेल हो गई है तो उसने आत्महत्या कर ली. उसी साल नीट परीक्षा की एक अन्य उम्मीदवार तिरुचिरापल्ली जिले की सुभाश्री ने परीक्षा परिणाम आने के बाद आत्महत्या कर ली.
2019 में नीट परीक्षा के परिणाम आने के केवल दो दिनों के भीतर ही तीन आत्महत्या हुईं. विल्लुपुरम जिले के कोणिमेदु कुप्पम गांव की 18 साल की एम मनीषा ने दूसरी बार इस परीक्षा में असफल होने के बाद अपनी जान दे दी. वह गरीब मछुआरा समाज थी और उसके परिवार वाले नीट की कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते थे. दो अन्य लड़कियां एस ऋतुश्री और एन वैश्य ने भी इस परीक्षा में असफल हो जाने के दो दिन के भीतर खुदकुशी कर ली. दोनों लड़कियों ने 12वीं परीक्षा में 90 अंक हासिल किए थे. वैश्य ने खुद को आग लगा ली. तमिलनाडु में केंद्र सरकार के अन्याय के खिलाफ विरोध जताने का यह एक आम तरीका है. आग लगाकर विरोध करना 1965 के हिंदी विरोधी आंदोलन का प्रमुख रूप था. 2017 में जल्लीकट्टू खेल को रोके जाने के खिलाफ भी लोगों ने आत्मदाह किया था और इससे पहले श्री लंका में नरसंहार और युद्ध अपराधों की जांच की मांग करते हुए भी लोगों ने विरोध के इस तरीके को अपनाया था.
इस साल तमिलनाडु में परीक्षा से पहले जान देने वाले इन उपरोक्त 3 प्रतिस्पर्धी ओं के अलावा भी कई लोगों ने जान दी है. कोयंबटूर के 19 साल की आर सुभाश्री ने पिछली बार नित परीक्षा दी थी और उन्हें 451 नंबर मिले थे जिससे वह जनरल मेडिसिन पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं ले पाई थी. 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के नीट परीक्षा के पक्ष में फैसला आने के बाद की परीक्षा को 13 सितंबर को ही किया जाए सुभाश्री ने आत्महत्या कर ली. 9 सितंबर को 19 साल की वी विग्नेश ने आत्महत्या कर ली. विग्नेश अरियलूर जिले का था और उसका गांव अनीता के गांव से ज्यादा दूर नहीं था. वह तमिलनाडु केअति पिछड़ा वर्ग, वन्नियार समुदाय से आता था. विग्नेश ने इससे पहले दो बार परीक्षा दी थी लेकिन दोनों बार ही असफल रहा था. उसकी मौत के बाद उसके माता-पिता ने मीडिया को बताया कि परीक्षा का दबाव और तीसरी बार फेल होने के डर से उसने जान दे दी.
नीट परीक्षा के डेटा से साफ है कि यह परीक्षा वंचित समाज के लोगों, पहली पीढ़ी के शिक्षितों और राज्य परीक्षा बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए नुकसानदायक है. नवंबर 2019 में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए समुचित काउंसलिंग प्रक्रिया की मांग से संबंधित याचिका पर सुनवाई की थी. तमिलनाडु सरकार द्वारा कोर्ट में दायर किए गए तथ्यों के अनुसार, 2019 में नीट परीक्षा पास करने वालों में से केवल 2.1 फीसदी लोग ही ऐसे थे जिन्होंने प्राइवेट कोचिंग नहीं ली थी. सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाले सिर्फ 1.55 फीसदी लोगों ने प्राइवेट कोचिंग नहीं लेती. उस याचिका में यह भी कहा गया है कि केवल 1040 विद्यार्थी ने पहले प्रयास में नीट परीक्षा पास की है और 2042 विद्यार्थियों ने दो या अधिक बार में परीक्षा पास की. सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया कि प्राइवेट कोचिंग संस्थान एक साल की कोचिंग के 250000 रुपए से 500000 रुपए तक फीस लेते हैं जो गरीब तमिलों के बस के बाहर है, खासकर वंचित समुदाय के लोगों के लिए.
न्यायाधीश एन किरूबाकरण और पी वेलमुरूगन ने कहा था कि नीट परीक्षा व्यवस्था गरीब छात्रों के साथ भेदभाव करती है और जो कमजोर हैं उन्हें मजबूत लोगों की तरह प्रदर्शन करने को मजबूर करती है. अदालत ने केंद्र सरकार को परीक्षा रद्द करने पर विचार करने के लिए कहा था लेकिन ऐसा करने का आदेश नहीं दिया.
पाठ्यक्रम के चलते वंचित हो जाने के अलावा नीट में अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. साथ ही यह परीक्षा एक राज्य के छात्रों को दूसरे राज्य में अध्ययन करने की अनुमति देती है. नीट में प्रावधान है कि राज्य और निजी मेडिकल कॉलेज 15 फीसदी सीट अंडर ग्रेजुएट कोर्स के लिए और 50 फीसदी सीट पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स के लिए ऑल इंडिया कोटे के तहत रखेंगे. लेकिन इस ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण का प्रावधान नहीं है. ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस एंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन ने जो आंकड़े संकलित किए हैं उनके अनुसार, अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट सीटों के लिए ओबीसी के उम्मीदवार को ऑल इंडिया कोटे में आरक्षण नहीं दिया गया है.
इस साल मई में ओबीसीईडब्लूए ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को खत लिखकर बताया था कि 2017 से ऑल इंडिया कोटे के तहत एक भी ओबीसी छात्र का किसी भी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं हुआ है. 29 मई को डीएमके ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ऑल इंडिया कोटे में पिछड़े वर्ग के लिए 50 फीसदी सीट आरक्षित करने की मांग की थी. उसके कहा था कि तमिलनाडु में इस वर्ग के लिए 50 फीसदी आरक्षण है. जुलाई में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खत लिखकर कहा था कि नीट परीक्षा में आरक्षण न होने से 11000 ओबीसी छात्र मेडिकल पढ़ाई के अवसर से वंचित हो गए हैं.
चिकित्सक और शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता एजिलन ने नीट के चलते भाषा, वर्ग और जातिगत भेदभाव का सर्वे करने के लिए आरटीआई दाखिल की थी. उन्होंने मुझे बताया, “आरटीआई से जो डेटा हमने संकलित किया उससे हमें पता चलता है कि 2017 से पहले मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाने वाले 90 फीसदी से अधिक विद्यार्थी सरकारी या सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त या छोटे निजी स्कूलों के होते थे जो राज्य बोर्ड की पढ़ाई करते थे. यह क्रांतिकारी बात थी क्योंकि वंचित से वंचित समुदाय के बच्चे भी मेडिकल शिक्षा हासिल कर सकते थे. इस तरह का सामाजिक न्याय और लोकतंत्र अन्य किसी राज्य में देखने को नहीं मिलता.”
उन्होंने बताया, “हमारे समुदायों की सफलता की ढेरो कहानियां हैं और इन कहानियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी छात्रों को प्रेरित किया है. इन बच्चों को यकीन था कि यदि वे राज्य शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम को अच्छे से पढ़ेंगे तो उन्हें सफलता जरूर मिलेगी.” उन्होंने बताया कि तमिलनाडु द्वारा प्रत्येक जिले में सरकारी मेडिकल कॉलेज खोलने की नीति अपनाने के बाद सरकारी कॉलेजों की संख्या बढ़ गई. उन्होंने कहा राज्य में इस वक्त 24 या 25 मेडिकल कॉलेज हैं और इनमें सीटों की संख्या 3600 है. “हमारी आरटीआई से पता चला कि 2016 में तमिल मीडियम स्कूल से पढ़ाई करने वाले 600 बच्चों ने मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाया था और यही कारण है कि नीट के आने से अन्य राज्यों की तुलना में तमिलनाडु पर ज्यादा असर पड़ा है. यह एक ऐसा राज्य था जहां एक दशक से भी ज्यादा समय से गरीब तबके के बच्चों को सर्वश्रेष्ठ मेडिकल शिक्षा मिल पा रही थी.”
जाति विरोधी एक्टिविस्ट और वरिष्ठ पत्रकार केविन मलार ने कहा कि ये आत्महत्याएं हमारी व्यवस्था की असफलता है. मलार ने कहा, “इस व्यवस्था ने और सत्ताधारी सरकारों ने हमारे बच्चों के साथ नाइंसाफी की है. क्या यह संविधान के खिलाफ नहीं है? अपनी इच्छा अनुसार की पढ़ाई न करने देकर वंचित तबके के बच्चों के शिक्षा के अधिकार का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है.”
मलार ने आगे कहा कि कैसे कह सकते हैं कि नीट से बराबरी आएगी जबकि माता-पिता को कोचिंग क्लास में लाखों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं. निम्न वर्ग के बहुसंख्यक परिवारों के लिए यह संभव नहीं है. उन्होंने बताया, “कोचिंग के बिना और उस हाल में जब मां-बाप शिक्षत नहीं होते और वे अन्य अवसरों के बारे में सलाह नहीं दे सकते तो ऐसे में बच्चे अकेले ही इस परीक्षा से जूझ रहे होते हैं. वे अगल परिणामों के लिए तैयार नहीं रहते.” उन्होंने बताया कि 17 साल के बच्चे ऑल इंडिया स्तर की परीक्षा की तैयारी के लिए खुद पर निर्भर हैं और लोग उनसे उम्मीद करते हैं कि वे कोचिंग पर पैसा खर्च करने वालों की बराबरी करेंगे. पैसे वालों के बच्चों के घरों में डॉक्टर और पेशेवर लोग होते हैं जो मार्गदर्शन देते हैं. इस गैरबराबरी को बराबरी कैसे कह सकते हैं?”
तमिलनाडु की शिक्षा व्यवस्था में न केवल वंचित समुदाय से डॉक्टरों का निर्माण किया है बल्कि ऐसे डॉक्टरों को बनाया है जो ग्रामीण इलाकों में जाकर काम करने के इच्छुक हैं और अपनी सेवाओं के लिए बहुत मामूली फीस लेते हैं. मालर ने मुझे कहा, “जब संभ्रांत समाज के छात्र लाखों रुपए खर्च करके मेडिकल शिक्षा में प्रवेश लेते हैं तब वे सरकारी अस्पतालों में या गांवों में सेवा करना नहीं चाहते. तमिलनाडु में हमारे पास पांच रुपए या 10 रुपए फीस लेने वाले डॉक्टर हैं. नीट लागू होने से पहले तमिलनाडु ने देश के लिए उत्कृष्ट डॉक्टरों का निर्माण किया. ये डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में सेवा दे रहे हैं और महामारी के दौरान हजारों लोगों की जाने बचा रहे हैं. यदि नीट के जरिए हम वंचित तबके के नौजवानों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद कर देंगे तो आज से कुछ सालों बाद हम सरकारी अस्पताल और गांव के लिए डॉक्टरों की कमी का सामना करेंगे जिससे हमारे सामाजिक ताने-बाने को गंभीर क्षति पहुंचेगी.”
एजिलन ने सरकारी मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है. उन्होंने बताया कि वंचित समुदाय की पृष्ठभूमि वाले डॉक्टरों का निर्माण करने को प्राथमिकता देने से प्रदेश में मेडिकल सफलता की मिसाल बन पाया है. उन्होंने कहा, “तमिलनाडु में एमबीबीएस पढ़ने के बाद लगभग 50 फीसदी डॉक्टर सरकारी ग्रामीण सेवा में काम करते हैं. इसका लाभ उन्हें तमिलनाडु में पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में दाखिला पाने में मिलता है और हमारे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की कमी नहीं होती.” आत्महत्या करने वालों ने जो खत छोड़े हैं या वे जो कहते थे उससे समझ में आता है कि वे लोग मेडिकल की पढ़ाई अपने गरीब समुदायों की सेवा करने के लिए करना चाहते थे.
एजिलन के मुताबिक, “इन नीतियों से कारण तमिलनाडु में बाल मृत्यु दर और प्रसव मृत्यु दर सबसे कम है. वंचित समुदायों के अधिकांश डॉक्टर सरकारी सेवा शामिल होते हैं. तमिलनाडु की स्वास्थ्य सेवा में लगभग 18000 या 19000 डॉक्टर है. तमिलनाडु में हर 253 लोगों में एक डॉक्टर है जो अन्य किसी भी राज्य की तुलना में बहुत ज्यादा है. यहां तक कि यह डब्ल्यूएचओ के दिशा निर्देश से भी बेहतर है और इस अनुपात की तुलना विकसित स्कैंडिनेवियन देशों से की जा सकती है. इसी गौरवशाली मेडिकल क्रांति को नीट लागू कर खत्म किया जा रहा है. हमारे बच्चों की हत्या कर रही है.”