इस्कॉन को सरकारी स्कूल सौंप कर त्रिपुरा सरकार कर रही आदिवासियों का हिन्दूकरण?

24 सितंबर 2019
आईटीसीटी के मुख्य संयोजक दास के मुताबिक सरकारी पाठ्यक्रम के अलावा न्यास, कृषि और रोबोटिक्स जैसी पाठ्येतर गतिविधियों को भी शामिल करेगा.
संदीप रसल/सोपा इमेजिस/लाइट रॉकेट/गैटी इमेजिस
आईटीसीटी के मुख्य संयोजक दास के मुताबिक सरकारी पाठ्यक्रम के अलावा न्यास, कृषि और रोबोटिक्स जैसी पाठ्येतर गतिविधियों को भी शामिल करेगा.
संदीप रसल/सोपा इमेजिस/लाइट रॉकेट/गैटी इमेजिस

अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन की संस्था भारतीय आदिवासी देखभाल न्यास (आईटीसीटी) की वेबसाइट के अनुसार, उसने त्रिपुरा के 20 सरकारी स्कूलों को चलाने के लिए राज्य सरकार से समझौता किया है. ये सभी स्कूल राज्य के दुर्गम और आदिवासी इलाकों में हैं. 20 जून को त्रिपुरा के शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि राज्य मंत्रिमंडल ने 20 सार्वजनिक स्कूलों को इस्कॉन को सौंपने का फैसला किया है. उन्होंने बताया कि इस्कॉन ने स्कूलों में स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की है. इन 20 स्कूलों में से 13 में कोई छात्र नहीं है और सात में 10-10 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं.

इस साल के शुरू में त्रिपुरा सरकार ने विद्यार्थियों की कम संख्या के मद्देनजर कई स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया था. आईटीसीटी के मुख्य संयोजक एचजी श्रीधाम गोविंद दास ने मुझे बताया, “जब सरकार ने इन स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया तो हमने इन स्कूलों को चलाने का प्रस्ताव उसे दिया और सरकार ने हमारा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.”

मंत्री नाथ के अनुसार, न्यास इन स्कूलों को पांच साल तक चलाएगा. स्कूलों को चलाने की शर्ते हैं कि प्रत्येक स्कूल में कम से कम 30 विद्यार्थी हों और इन्हें केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड या आईसीएससी से संबद्ध रहना होगा. साथ ही शिक्षा के अधिकार कानून के दिशानिर्देशों का पालन करना होगा. समझदारी पत्र में उल्लेख है कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होगी और राष्ट्रीय शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद द्वारा तैयार पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा.

एक ऐसी धार्मिक संस्था जिसका लक्ष्य ब्राह्मणवादी धर्म का प्रचार करना है, उसे स्कूलों का जिम्मा देना गलत है और संविधान में उल्लेखित आदिवासी समुदायों के शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन भी.

संयोजक दास के मुताबिक सरकारी पाठ्यक्रम के अलावा न्यास, कृषि और रोबोटिक्स जैसी पाठ्येतर गतिविधियों को भी शामिल करेगा. उन्होंने बताया, “केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि मूल्य आधारित शिक्षा भी दी जाएगी. हम बच्चों को पढ़ाएंगे कि महाभारत और रामायण से क्या सीख ली जा सकती है. पूरी तरह से आध्यात्मिक न होकर ऐसी शिक्षा जो हमारे जीवन के लिए लाभदायक हो.”

निलीना एम एस करवां की स्टाफ राइटर हैं. उनसे nileenams@protonmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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