वायनाड के आदिवासी छात्रों ने शिक्षा में संस्थागत भेदभाव के खिलाफ उठाई आवाज

19 अक्टूबर 2020
फोटो साभार : आदिशक्ति समर स्कूल
फोटो साभार : आदिशक्ति समर स्कूल

केरल का आदिवासी समुदाय हमेशा से ही माध्यमिक और उच्च शिक्षा के मामले में बड़े नुकसान में रहा है और कोविड-19 महामारी के समय में आदिवासी छात्रों के सामने आने वाली मुश्किलें बढ़ गई हैं. केरल में स्कूलों और कॉलेजों ने डिजिटल क्लास लेनी शुरू की है लेकिन अक्सर आदिवासी और दलित छात्रों के लिए इस रूप में पढ़ाई कर सकना लगभग असंभव है. समाज के हाशिए पर रहने वाले छात्रों पर इसके पड़ने वाले प्रभाव को 14 वर्ष की दलित छात्रा देविका बालाकृष्णन की आत्महत्या के मामले में साफ देखा जा सकता है जिसने 1 जून को ऑनलाइन क्लास अटेंड न कर पाने से तंग आकर जान दे दी थी.

28 सितंबर से वायनाड जिले में सुल्तान बथरी शहर में 100 से अधिक आदिवासी छात्र सिविल पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्र प्रदर्शनकारियों का कहना है कि डिजिटल क्लास के मामले में राज्य सरकार के प्रयासों, जैसे मुफ्त लैपटॉप का वितरण और राज्य के स्वामित्व वाले टेलीविजन चैनलों पर कक्षाओं का प्रसारण, ने आदिवासी छात्रों के लिए शिक्षा की खराब स्थिति को बेहतर नहीं किया है. इनका कहना है कि ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच न होना बहिष्करण की उस व्यापक प्रणाली का एक हिस्सा है जिसमें अपारदर्शी प्रवेश प्रक्रियाएं, आरक्षित सीटों की कमी और अत्यधिक शुल्क शामिल हैं जो आदिवासी छात्रों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्रणाली से वंचित करता है.

विरोध प्रदर्शन में शामिल होने आए आदिशक्ति समर (ग्रीष्मकालीन) स्कूल के छात्र संगठन के सत्यश्री द्रविड़ ने बताया, " टेलीविजन, लैपटॉप या मोबाइल फोन तो छोड़ दीजिए आदिवासी घरों में अभी भी बिजली नहीं है.” आदिशक्ति स्कूल इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है. द्रविड़ ने कहा, “आधे से अधिक आदिवासी छात्र ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के दायरे से बाहर हैं. मैं बिना संदेह के यह कह सकता हूं सरकार ने अचानक बिना आंकड़ों को जांचे नई शिक्षा प्रणाली शुरू की है." यह स्वीकार करते हुए कि कई छात्रों की पहुंच इंटरनेट तक नहीं है, 1 जून को केरल सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले काइट विक्टर्स टेलीविजन चैनल के माध्यम से स्कूलों और कॉलेजों के बच्चों के लिए कक्षाएं शुरू कराई. लेकिन कई कार्यकर्ताओं ने बताया कि इस तक भी कई आदिवासी छात्रों के लिए पहुंच बना लेना आसान नहीं है. इस विरोध प्रदर्शन का प्रमुख चेहरा और दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले एम गीतानंदन ने मुझे बताया कि कई आदिवासी छात्र पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं और उन्हें अभिभावक का मार्गदर्शन नहीं मिलता है जो आभासी (वर्चुअल) माध्यम से सीखने के लिए आवश्यक हैं.

गीतानंदन ने इस मुद्दे को समझाने के लिए जून की एक घटना सुनाई. उन्होंने बताया, "हमारे पास आठ छात्र थे जो कोच्चि में ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रहे थे. हमने टेलीविजन सेट की व्यवस्था की और उन्हें पहले सत्र से ही विक्टर्स चैनल के माध्यम से पढ़ाने लगे. वे उसे समझने में असमर्थ थे. उन्हें वहां किसी की सहायता चाहिए जो लिखी गई बातों की व्याख्या कर सके.”

इस प्रकार कि सहायता प्रदान करने के लिए केरल सरकार के शिक्षा विभाग ने 2017 में 'केरल समागम शिक्षा' की शुरुआत की थी. इसके अंतर्गत अकेले वायनाड जिले में 241 संरक्षक शिक्षक या गोत्रबंधु नियुक्त किए. इन शिक्षकों के लिए, शिक्षा की डिग्री में स्नातक की योग्यता के साथ मलयालम भाषा का अच्छा ज्ञान और वायनाड में स्थानीय आदिवासी बोलियों में से कम से कम एक की जानकारी जरूरी थी. गीतानंदन ने मुझे बताया, "ये बच्चे पहली कक्षा से ही कक्षा में अलगाव की भावना महसूस करते हैं. इस अंतर को भरने के लिए संरक्षक शिक्षकों की नियुक्ति की गई. उनके कर्तव्यों में आदिवासी छात्रों को सहायता प्रदान करना और उनके घरों का दौरा करना शामिल है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे बीच में स्कूल न छोड़ें” उन्होंने कहा कि उनके संगठन ने सिफारिश की थी कि ये शिक्षक लॉकडाउन के दौरान आदिवासी कॉलोनियों में जाएं और जब टेलीविजन पर क्लास चल रही हो तब उन्हें व्यक्तिगत रूप से बच्चों को समझाएं. उन्होंने मुझे बताया, “एक स्थानीय अध्ययन केंद्र की आवश्यकता थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शिक्षक उनसे मिलने नहीं गए और न ही स्कूल ठीक से कार्य कर रहे थे." सामगरा शिक्षा केरल के राज्य परियोजना निदेशक कुट्टीकृष्णन एपी ने वायनाड में कार्यक्रम के कार्यान्वयन की आलोचनाओं को लेकर किए गए सवालों के जवाब नहीं दिए.

आतिरा कोनिक्करा कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

Keywords: Adivasi community higher education Kerala Digital India
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