शिक्षण संस्थानों के ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर देने से पिछड़ रहे गरीब और ग्रामीण छात्र

शैक्षणिक संस्थाओं के ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर देने से गरीब और ग्रामीण परिवेश के छात्रों की मुश्किल बढ़ रही है. छात्रों की शिकायत है कि वे संपन्न परिवारों से आने वाले अपने साथियों से पिछड़ जाएंगे. मौर्य काकडे/ गैटी इमेजिस

देशव्यापी लॉकडाउन को लागू हुए 70 दिनों से अधिक हो गए हैं. 24 मार्च की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधन करते हुए 21 दिन के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी. हालांकि अब सरकार चरणबद्ध रूप से लॉकडाउन को हटा रही है लेकिन शैक्षणिक संस्थाओं को खोलने के बारे में वह राज्य सरकारों से परामर्श कर फैसला करेगी.

देश के अधिकांश शिक्षण संस्थान मोदी की घोषणा से पहले ही बंद हो चुके थे. मार्च का महीना भारतीय शिक्षण संस्थानों में परीक्षाओं या परीक्षाओं की तैयारी का होता है. कॉलेज और स्कूल के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए यह समय सबसे महत्वपूर्ण होता है. उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करनी होती है. अचानक हुए लॉकडाउन के चलते छात्रों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उनकी सबसे बड़ी परेशानी ऑनलाइन पढ़ाई से संबंधित है. ग्रमीण परिवेश और ऐसे इलाकों से आने वाले छात्र-छात्राएं जहां मोबाइल नेटवर्क कमजोर होता है, वहां के छात्रों को डर है कि ऑनलाइन पढ़ाई पर शिक्षण संस्थाओं के जोर के कारण वे पिछड़ जाएंगे.

1 जून को पढ़ाई में पिछड़ जाने के इसी डर से केरल के मालापुरम जिले के वालेनचेरी गांव की कक्षा 9 में पढ़ने वाली एक 14 साल की छात्रा ने आत्महत्या कर ली. खबरों के मुताबिक, दिहाड़ी पर काम करने वाले उसके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल फोन की व्यवस्था कर पाते.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एमए अंतिम वर्ष की छात्रा गुड़िया यादव ने मुझे बताया, ''मैं इस लॉकडाउन के चलते अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत परेशान हूं. गांव में मेरी पढ़ाई हो भी नहीं पा रही है. ना मेरे पास किताबे हैं और ना पढ़ाई का मेटेरियल.” जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो अन्य छात्रों की तरह ही गुड़िया को भी पता नहीं था कि यह इतना लंबा चलेगा. गुड़िया उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिसे के हरौली गांव की रहने वाली हैं. उन्होंने बताया, “मैं अपने गांव की पहली लड़की हूं जो बीएचयू पढ़ रही हूं. इस साल मेरे गांव की 20 लड़कियों ने बीएचयू के प्रवेश परीक्षा के फार्म भरे हैं. वे लड़कियां अक्सर अब मेरे घर आती हैं और प्रवेश परीक्षा के बारे पूछती हैं.” गुड़िया ने बताया कि उन्हें खुशी होती है यह देख कर कि इतनी सारी लड़कियां उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए तैयार हैं “लेकिन मुझे अपनी चिंता भी रहती है.” गुड़िया ने बताया कि वह पीएचडी में प्रवेश लेना चाहती हैं लेकिन लॉकडाउन ने “मेरे सारे सपनों पर पानी फेर दिया.”

गुड़िया की तरह ही दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलिज में बीएसी अंतिम वर्ष के छात्र अनिकेत कुमार भी मार्च में होली पर अपने घर पटना आ गए थे. उन्होंने बताया, “मुझे पता भी नहीं था कि ऐसा कुछ होगा. हमने पहले लॉकडाउन में सोचा 21 दिनों में सब सही हो जाएगा. हमको पता भी नहीं था आखिर यह इतना लंबा चलेगा. मैं अपनी किताबें भी लेकर नहीं आया था. तो घर में मेरी पढ़ाई भी नहीं हो पा रही है.'' 

दिल्ली के उत्तम नगर की इप्शिता बीएचयू आईआईटी में बीटेक इंटिग्रेटिड कोर्स में अंतिम वर्ष की छात्रा हैं. यह कोर्स पांच साल का होता है. उन्होंने बताया कि अचानक किए गए लॉकडाउन ने जरूरी तैयारी कर लेने से वंचित कर दिया जिससे उनकी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है. फिलहाल वह दिल्ली में हैं लेकिन वह ऑनलाइन क्लास नहीं ले पा रही हैं, उन्होंने बताया, “मैं अभी अपने घर दिल्ली में हूं. होली की छुट्टी के बाद मैं कैंपस गई थी मगर जैसे ही क्लास बंद होने लगी तो मैं 21 मार्च को बनारस से दिल्ली आ गई. हम लोगों को एक मेल आया था कि हमारी ऑनलाइन परीक्षा होगी और यह भी कहा गया था कि हमें सारे असाइंमेंट ऑनलाइन जमा कराने हैं. लेकिन यह सब बाद में बताया गया. मैं जब आ रही थी तो बस इतना पता था कि 21 दिनों की बात है और इसलिए मैं अपना लैपटॉप भी नहीं लाई था. अब मैं अपने डिसर्टेशन पर काम नहीं कर पा रही हूं.”

गुड़िया और इप्शिता ने ऑनलाइन की मुश्किलों के बारे में भी बताया. गुड़िया ने कहा, ''सर ऑनलाइन क्लास तो करवा रहे हैं लेकिन गांव में अच्छा नेटवर्क ना होने की वजह से मैं वह भी नहीं कर पा रही हूं.'' इसी प्रकार इप्शिता ने बताया, ''कुछ प्रोफेसर ऑनलाइन वीडियो बना रहे हैं और छात्रों को असाइनमेंट दे रहे हैं. लेकिन जिनके घरों में अच्छा इंटरनेट नहीं आता, वे अपने सहपाठियों से पीछे छूट रहे हैं. अंतिम वर्ष के जिन छात्रों को अपनी थीसिस जमा करनी थी उनको घर पर ही थीसिस बना कर ऑनलाइन देने को कहा गया है. लगभग सभी छात्रों का शोध कार्य अभी अधूरा ही छूटा हुआ था, ऐसे में किसी की थीसिस अच्छी नहीं बन पाएगी और उनकी साल भर की मेहनत बेकार हो जाएगी.''

पंकज कुमार बाबा साहब भीम राव आंबेडकर विश्वद्यालय लखनऊ में बीएड के चौथे सेमेस्टर के छात्र हैं. पंकज ने मुझे फोन पर बताया, ''मैं और मेरे दोस्त पूरी तरह घबराए हुए हैं. इस बार हमारा बीएड का कोर्स पूरा हो जाता. मगर इस लॉकडाउन के चलते पूरा नहीं हो पाया है. हमारे विश्वद्यालय की ओर से ऑनलाइन क्लास भी चली जिससे मैं पूरी तरह वंचित रह गया. मेरा फोन कुछ समय पहले ही खराब हो गया था और इस स्थिति में घर वालों से नया फोन दिलवाने की बात भी नहीं कह सकता. अब आगे मैं नहीं जानता क्या होगा.''

दिल्ली विश्वविद्यालय में एलएलबी अंतिम वर्ष के छात्र शुभम देशवाल भी अपने भविष्य की चिंताओं से आशंकित हैं. देशवाल ने मुझे बताया, ''ऑनलाइन कक्षा का कोई फायदा नहीं है. पहली बात तो यह कि संसाधनों की समस्या है. सभी के पास अच्छे इंटरनेट की भी व्यवस्था नहीं है और ना लेपटॉप या स्पार्टफोन हैं. मेरे लिए यह साल बहुत महत्वपूर्ण है. इसमें में अपनी डिग्री पूरी करता लेकिन अब इसके आसार कम नजर आ रहे हैं.''

दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में बीकॉम अंतिम वर्ष के छात्र अंकुर चौहान लॉकडाउन में अपने घर लौट आए थे और आज कल घर पर परिवार के साथ खेती बाड़ी में हाथ बंटाते हैं. वे भी ऑनलाइन शिक्षण में आने वाली परेशानियों से जूझ रहे हैं. वह कहते हैं, ''गांव में सही नेटवर्क नहीं रहता. यह मेरा फाइनल ईयर था. इसके बाद क्या स्थिति होगी पता नहीं. इसको लेकर मैं बहुत परेशान हूं.''

ऑनलाइन के अलावा आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों को लॉकडाउन की वजह से दूसरी तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में ऐसे बहुत से छात्र पढ़ते हैं जो अपना मासिक खर्च पार्ट टाइम नौकरी कर चलाते हैं. जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय संबंध की पढ़ाई कर रहे एमए प्रथम वर्ष के छात्र नीलोत्पल कांत अपनी पढ़ाई का खर्च कोचिंग सेंटर में पढ़ा कर निकाल रहे थे लेकिन लॉकडाउन के चलते कोचिंग सेंटर बंद हो जाने से उनकी आय का जरिया सूख गया है. मुझे फोन पर उन्होंने बताया, ''कोरोना का असर तमाम विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे मजदूर-किसानों के बच्चों पर पड़ रहा है. ऐसे छात्र इस समय अपना पूरा स्टडी मेटेरियल नहीं जुटा पा रहे हैं.'' वह आगे कहते हैं,''मैं अपनी पढ़ाई का खर्च कोचिंग सेंटर पर पढ़ा कर निकाल रहा था. मुझें हॉस्टल नहीं मिला. जिसकी वजह से मुझे मुनीरका में 6500 रुपए महीना कमरे का किराया देना होता है. इस महामारी के चलते मेरी आया का स्रोत भी बंद हो गया. मकान मालिक केजरीवाल के 28 मार्च वाले निवेदन के बाद भी किराया वसूल रहा है.'' 

जेएनयू में पिछले दिनों फीस बढोत्तरी के खिलाफ लेकर लंबा आंदोलन चला था. आंदोलन के चलते क्लास बहुत समय तक बंद रहीं. नीलोत्पल ने बताया, ''पहले सेमेस्टर की परीक्षा भी समय से नहीं हुई थी और रिजल्ट भी अभी तक नहीं आया.''

भारत में शिक्षा संस्थानों का ऑललाइन पर जोर देना, यहां की हकीकत से आंख मूंद लेने जैसा है. सामाजिक-आर्थिक तौर से वंचित तबकों से आने वाले छात्र, खासकर गरीब, दलित और लड़कियां, खूब मेहनत और तमाम मुसीबतों के बाद ही बीएचयू, डीयू, जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में प्रवेश ले पाते हैं. ऑनलाइन शिक्षा और प्रवेश परीक्षा ने संसाधनों के अभाव में उनके लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. 

कुछ समय पहले दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा एक विज्ञापन जारी किया गया जिसमें 1 जुलाई से परीक्षा कराने का फैसला किया लिया गया है. साथ ही साथ इसमें परिस्थिति बिगड़ने पर ओपन बुक परीक्षा की व्यवस्था करने की बात कही गई थी. इस संदर्भ में, दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा पद्धति को लेकर डीयू के 51 हजार छात्रों के बीच सर्वे किया है. जिसमें 85 फीसदी छात्रों ने परीक्षा के इस माध्यम को नकारा है. डूटा पदाधिकारी आभा देव हबीब ने रिपोर्ट जारी करते हुए ऑनलाइन प्रेस विज्ञप्ति में बताया था कि 80.5 फीसदी छात्रों का कहना है कि वह घर में रह कर पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. उन्होंने कहा, ''डीयू को एक प्रयोगशाला मानकर यहां पर सभी प्रयोग किए जा रहे हैं लेकिन इसमें डीयू शिक्षकों, छात्रों से किसी तरह की राय नहीं ली जा रही है.” 

लखनऊ विश्वविद्यालय में एलएलबी द्वितीय वर्ष के छात्र ओमवीर सिंह ने मुझे बताया, “हमारे विश्वविद्यालय में पढ़ाई, परीक्षा और नए सत्र में प्रवेश जैसी सभी गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं.” उन्होंने आगे बताया, “हमारे शिक्षकों ने ऑनलाइन कक्षाएं चलाईं पर इसका हम लोगों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. 'छात्र-शिक्षक के बीच संवाद, उनके अध्ययन संबंधी समस्याएं जो क्लास रूम में शिक्षक दूर कर सकते हैं, वह ऑनलाइन माध्यम से मुश्किल है. हम जैसे ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र, जिनके पास मोबाइल-कंप्यूटर की सुविधा नहीं हो तो वे ढंग से पढ़ाई नहीं सकते. इस तरह हमारे लिए ऑनलाइन कक्षाओं का कोई मतलब नहीं है.'' 

मैंने जिन छात्रों से बात की उन्होंने ऑनलाइन कक्षाएं होने की तो बात स्वीकार की लेकिन ज्यादातर छात्रों ने इसके प्रति असंतुष्टी जाहिर की. गुड़िया ने मुझे बताया था. ''सर ने हमको पीपीटी भेजी है. वह अंग्रेजी में है और मैं हिंदी मीडियम की छात्रा हूं. वह पीपीटी मेरी समझ में नहीं आ रही है. गूगल पर जो हमारा पाठ्यक्रम है वह भी सब अंग्रेजी में है. मैं वह नहीं पढ़ पा रही हूं.'' वह आगे कहती हैं, ''हम लोगों को इस समय क्लास की बहुत जरूरत थी मगर वह हो नहीं पा रही हैं. अब समझ नहीं आ रहा है हमारी परीक्षा कैसे होगी और रिजल्ट समय पर आएगा की नहीं. मैं अपने दोस्तों को फोन करती हूं तो उनकी भी हालत यही है. अब तो इस लॉकडाउन में एक मानसिक जकड़न बन गई है. हम लोगों को अपने अध्यापकों का भी सहयोग नहीं मिल पा रहा है. अभी तक सेमेस्टर क्लॉस टेस्ट भी नहीं हुए. पिछले सेमेस्टर का रिजल्ट भी नहीं आया है जिससे हमको बड़ी परेशानी हो रही है.''

ओमवीर बताते हैं, ''ऑनलाइन परीक्षा ,ओपन बुक परीक्षा जैसे विषयों पर विचार-विमर्श चल रहा है. यह विषय अपने आप में हास्यास्पद है. परीक्षा की शुचिता, तकनीकी ज्ञान की ग्रामीण परिवेश की कम समझ और नेटवर्क संबंधी समस्याओं पर गौर ना करने के चलते इसका कोई अर्थ नहीं है.”