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ग्रीनपीस इंडिया पर्यावरण से जुड़ा एक एनजीओ है. निकट भविष्य में इसे अपने भारतीय काम और स्टाफ में 50 प्रतिशत तक कटौती करनी पड़ेगी. अक्टूबर 2018 में प्रवर्तन निदेशालय ने इस संस्था के प्राथमिक बैंक खातों पर पाबंदी लगा दी थी. पाबंदी के कुछ महीने बाद यह जानकारी सामने आई है. संस्था के जिन कर्मचारियों से मेरी बात हुई उन्होंने कहा कि सरकार की कार्रवाई ने संस्था पर भारी आर्थिक दबाव डाला है. संस्था अपने कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में नहीं है और अपने काम को पुनर्गठित कर रही है. संस्था पर कार्रवाई करने वाली ईडी, वित्त मंत्रालय के अंदर आती है.
ग्रीनपीस के भारत में करीब 60 कर्मचारी हैं और संस्था कम से कम 30 लोगों की कटौती कर सकती है. इसके कर्मचारियों के मुताबिक संस्था के कैंपेन (अभियान), प्रबंधन, वित्त, मानव संसाधन जैसे विभागों से लोगों को कम किया जाना है. वायु प्रदूषण, नविकरणीय ऊर्जा, पावर सेक्टर उत्सर्जन और खेती से जुड़े इसके अभियनों को भी झटका लगेगा.
ग्रीनपीस के कर्मचारी ने नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर कहा कि संस्था इससे भी अधिक की कटौती कर सकती है. कर्मचारी ने कहा की हद से हद 15 लोगों को रखा जा सकता है. उसने बताया कि ग्रीनपीस के ऑफिस को आधिकारिक तौर पर “बंद” नहीं किया जाएगा लेकिन वास्तविकता में इसका काम रुक सकता है.
ग्रीनपीस इंडिया के क्लाइमेट और एनर्जी के कैंपने मैनेजर नंदिकेश शिवलिंगम ने कहा, “हमारे ऊपर लगातार हो रहे हमलों की वजह से हम सैलरी देने की स्थिति में नहीं हैं इसलिए लोग जाने के लिए मजबूर हैं. हालांकि, इनमें कुछ स्वयंसेवक के तौर पर संस्था को अपना समय दे रहे हैं. पुनर्गठन प्रक्रिया में हमारे ज्यादातर कैंपेन को छोटा करना पड़ेगा, हालांकि अभी हम इसके तौर-तरीकों पर काम कर रहे हैं.”
ग्रीनपीस के खिलाफ उठाया गया कदम कई एनीजओ पर की गई व्यापक कार्रवाई का हिस्सा है. इस कार्रवाई की जद में एनजीओ के अलावा ऐसे समाजसेवी और सिविल सोसाइटी समूह भी आए हैं जो सरकार और उसकी विकासशील नीतियों के आलोचक हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की सहायक संस्था को भी ऐसे ही निशाना बनाया गया है. सरकार ने इसके खातों पर रोक लगा दी है. इसकी वजह से संस्था को कम से कम 70 कर्मचारी कम करने पड़े.
मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ हफ्ते बाद जून 2014 में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक रिपोर्ट सौंपी जिसका शीर्षक, “विकास के ऊपर एनजीओ का असर” था. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि विदेश से पैसा पाने वाले एनजीओ देश में कोयले और माइनिंग प्रोजेक्ट के खिलाफ विरोध करके भारत के विकास को रोक रहे हैं और इसका जीडीपी पर भी दो से तीन प्रतिशत प्वाइंट का नकारात्मक असर पड़ रहा है. रिपोर्ट में ग्रीनपीस को “देश की आर्थिक सुरक्षा” के लिए खतरा बताया गया.
ग्रीनपीस ने पर्यावरण में हो रहे बदलाव, भूमि अधिकार, कोयला खनन और इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को लेकर कैंपेन चलाए हैं. ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में अडाणी समूह की एक प्रस्तावित प्रोजक्ट है. ये कई-अरब डॉलर की कोयला खनन प्रोजेक्ट है. इसके खिलाफ ग्रीनपीस ऑस्ट्रेलिया ने भी एक अभियान चलाया. अपने कैंपेन में संस्था ने इस योजना को पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बताया है. अडाणी समूह के प्रमुख गौतम अडाणी हैं जिन्हें नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है. 2011 से 2014 में मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते अडाणी समूह की संपत्ति में भारी बढ़त दर्ज की गई. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद समूह और तेजी से बढ़ रहा है.
2014 से ही मोदी सरकार ने सीविल सोसाइटी समूहों पर कार्रवाई करना जारी रखा है. इसके तहत इनका लाइसेंस कैंसिल किया गया है. फॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेग्युलेशन एक्ट यानी एफसीआरए के तहत कम से कम 20000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द किए गए हैं- जिससे उन्हें विदेशी फंड मिलना बंद हो गया है. विदेशी फंड पाने वाले ट्रस्ट और सोसाइटियों के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी किया जाना वाला एफसीआरए लाइसेंस अहम शर्त है. सितंबर 2015 में गृह मंत्रालय ने ग्रीनपीस का एफसीआरए लाइसेंस कैंसिल कर दिया था. गृह मंत्रालय ने इस दावे पर लाइसेंस रद्द किया कि संस्था ने एफसीआरए नियमों का उल्लंघन किया है क्योंकि इसने विदेश और घरेलू फंड को मिला दिया और “पैसे के लेन देन” को सही तरीके से नहीं दिखाया.
ग्रीनपीस को मोदी सरकार के कार्यकाल में लगातार दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा है. 2015 में ग्रीनपीस की एक सीनियर कैंपेनर प्रिया पिल्लई को लंदन की एक फ्लाइट में चढ़ने से रोक दिया गया. दरअसल, लंदन पहुंचकर वो एक ब्रिटिश संसदीय समूह के सामने सेंट्रल इंडिया में कोयला खनन के दुष्प्रभावों पर बोलने वाली थीं. संस्था के स्टाफ ने कहा कि इसे लगातार आयकर नोटिस दिए जा रहे हैं.
सरकार ने जिन ताजा आरोपों के तहत ग्रीनपीस के प्राथमिक बैंक खातों पर रोक लगाई है उनमें कहा गया है कि एफसीआरए के रद्द किए जाने के बाद भी इसे विदेशी फंड मिलना जारी है. 5 अक्टूबर को ईडी ने ग्रीनपीस के बेंगलुरु ऑफिस की तलाशी ली और इसके आईडीबीआई बैंक खाते पर रोक लगा दी. ग्रीनपीस के स्टाफ का कहना है कि यही वो प्राथमिक खाता है जिसमें जमा पैसों से वेतन दिया जाता है. जांच एजेंसी ने डायरेक्ट डायलॉग इनिशिएटिव इंडिया यानि डीडीआईआईपीएल के ऑफिस की भी तलाशी ली. ये एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है जो ग्रीनपीस के लिए पैसे जुटाती है. ये उसी बिल्डिंग में है जिसमें ग्रीनपीस है. ग्रीनपीस के खिलाफ ईडी के मामले के केंद्र में डीडीआईआईपीएल है. ईडी का कहना है कि कानून का उल्लंघन करते हुए 2016 में डीडीआईआईपीएल का गठन इसलिए किया गया था ताकि ग्रीनपीस तक विदेशी फंड पहुंचाया जा सके.
23 अक्टूबर को ग्रीनपीस ने कर्नाटक हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की. इसमें संस्था ने बैंक खातों पर लगी रोक को चैलेंज किया. ईडी ने 2 नवंबर को एक एफिडेविट फाइल की. इसमें कोर्ट को बताया गया कि ग्रीनपीस ने एक “गुप्त रूप से एक व्यवसायिक इकाई” का गठन किया जिसका नाम डायरेक्ट डायलॉग इनिशिएटिव इंडिया है. इसका गठन तब किया गया जब एनजीओ “एफसीआरए प्रक्रिया के तहत पैसे पाने में असफल रहा.” ईडी ने आगे कहा कि दिसंबर 2016 से सितंबर 2018 तक डीडीआईआईपीएल ने नीदरलैंड स्थित ग्रीनपीस इंटरनेशनल से 29 करोड़ का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हासिल किया. इसने दावा किया कि इस एफडीआई को ग्रीनपीस इंडिया को ट्रांसफर किया गया. इस दौरान फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) का उल्लंघन किया गया. ईडी ने कहा कि खाते पर रोक लगाना इसकी जांच के लिहाज से अहम है.
ग्रीनपीस का कहना है कि इसने कानून का उल्लंघन नहीं किया है. इसने कोर्ट में दी गई अपनी याचिका में कहा कि हालांकि, इसने पैसे को आउटसोर्स करने का काम डीडीआईआईपीएल को दे रखा है. लेकिन इसके लिए इकट्ठा किए जाने वाले पैसे पूरी तरह से भारत के दानदाताओं से लिये जाते हैं. इसने कहा कि डीडीआईआईपीएल दानदाताओं के पास ग्रीनपीस की ओर से जाता है और जो पैसे इकट्ठा किया जाता है उसे सीधे दानदाताओं द्वारा ग्रीनपीस को दिया जाता है. एनजीओ ने कोर्ट और अपने सार्वजनिक बयान में कहा है कि ईडी मामले को साबित करने के लिए सबूत जुटाने में सक्षम नहीं रही है. नंदिकेश ने कहा, “ईडी किसी विदेश लेन-देन की जानकारी नहीं जुटा पाया है जो ग्रीनपीस इंटरनेशनल के रास्ते ग्रीनपीस इंडिया तक डायरेक्ट डायलॉग के जरिए आया हो. ऐसा कोई लेन-देन हुआ ही नहीं इस वजह से इसके सबूत भी नहीं हैं.” उन्होंने कहा कि एफसीआरए के कैंसिल किए जाने के बाद से ग्रीनपीस इंडिया को जो भी पैसा मिला है वो भारत के दानदाताओं से मिला है.
मैंने डायरेक्ट डायलॉग इनिशिएटिव इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीनू जैकब से उनकी कंपनी और ग्रीनपीस इंडिया के बीच के संबंधों के बारे में बातचीत की. उन्होंने कहा कि ग्रीनपीस इंडिया और डीडीआईआईपीएल के बीच एक व्यवसायिक अनुबंध है जिसके जरिए हम एनजीओ के लिए पैसे जुटाते हैं और अपना कमिशन लेते हैं. उन्होंने कहा कि ग्रीनपीस स्टिंचिंग काउंसिग को आधिकारिक तौर पर ग्रीनपीस इंटरनेशनल में शामिल कर लिया गया है और ग्रीनपीस स्टिंचिंग काउंसिग का डीडीआईआईपीएल में 99 प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी है जिसकी वजह से ये इसका बड़ा मालिक है. लेकिन उन्होंने जोर दिया कि ग्रीनपीस इंडिया के लिए भारत के लोगों से पैसा इकट्ठा किया गया है.
जैकब ने कहा, “हमने कोर्ट से कहा है कि कोई मामला नहीं बनता क्योंकि सारा पैसा बैंकों के माध्यम से गया है और इसकी जानकारी हासिल की जा सकती है. जो पैसे हमें एफडीआई के तौर पर मिले उसे हम अपने स्टाफ और अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल करते हैं, जबकि ग्रीनपीस इंडिया के हम पूरी तरह से घरेलू दानदाताओं से पैसे लेते हैं. हम ऐसे दानदाताओं को जोड़ते हैं जो सीधे ग्रीनपीस इंडिया को पैसे देते हैं, इसलिए ग्रीनपीस को विदेश धन चोरी-छुटे ट्रांसफर करने का कोई सवाल ही नहीं है.” जैकब ने कहा कि ईडी दानदाताओं को फोन करके पता लगा रही थी कि क्या वो असली हैं क्योंकि ईडी को लगता है कि डीडीआईआईपीएल फर्जी दानदाता बना सकता है. इस दावे को उन्हें ईडी की “रचनात्मक सोच” करार दिया.
एक तरफ कोर्ट केस तो जारी है लेकिन ईडी की कार्रवाई ने ग्रीनपीस के लिए सहजता से काम करना मुश्किल बना दिया है. 23 अक्टूबर की अपनी रिट याचिका में ग्रीनपीस ने कर्नाटक हाई कोर्ट से कहा कि इसे सैलरी देने, ऑफिस के काम और अन्य ख़र्चों के लिए 50 लाख़ की दरकार है. ईडी ने कोर्ट से कहा कि अकाउंट पर रोक जारी रहनी चाहिए क्योंकि किसी तरह का लेन-देन जांच को प्रभावित कर सकता है. इस आरोप को ग्रीनपीस के वकील ने आधारहीन करार दिया है. पांच नवंबर को कोर्ट ने ग्रीनपीस को 50 लाख 66 हजार 320 रुपए निकालने की अनुमति तो दी लेकिन इसके एवज में संस्था को ईडी के पास इसी रकम की एक गारंटी जमा करानी पड़ी. कोर्ट ने ईडी को जांच जारी रखने की भी अनुमति दी. ग्रीनपीस ने सिक्योरिटी जमा के तौर पर गारंटी दी और नवंबर में अपने कर्मचारियों की सैलरी दी. एनजीओ ने अपने कर्मचारियों को दिसंबर तक की सैलरी दे दी है. लेकिन स्टाफ का कहना है कि आगे की सैलरी देने के लिए संस्था को मुश्किलों का समाना करना पड़ रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बंद खाते से पैसे निकालने के लिए संस्था को आगे की बैंक गारंटी जुटाने में दिक्कत हो रही है.
अपनी जांच के दौरान ईडी ने क्षितिज उर्स को बुलावा भेजा. उर्स उस समय ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकारी निदेशक थे. इसके बाद उन्होंने ग्रीनपीस छोड़ दिया. उन्होंने 27 और पांच नवंबर को दो बार बुलाया गया. उर्स ने मुझसे बात करने से इनकार कर दिया. लेकिन अंतरिम कार्यकारी निदेशक मौशमी धर ने मुझे बताया कि ईडी ने ग्रीनपीस से अपने दानदाताओं की लिस्ट देने को कहा था. ईडी द्वारा नवंबर में भेजे गए समन में संस्था के बैंक खातों की भी जानकारी मांगी गई थी. वो दस्तावेज भी मांग गई थे जो इसने एनजीओ को रजिस्टर करने के लिए दिए थे. इसके अलावा संस्था के अभियानों की लिस्ट, रेंट पर ली गई प्रॉपर्टी की लीज एग्रीमेंट, इनकैम टैक्स रिटर्न और इसके कर्मचारियों की जानकारी भी मांगी गई थी.
मैं ईडी के बेंगलुरु के दफ्तर पहुंचा. यहां मैं ईडी के असिस्टेंट डायरेक्टर बसावाराज मागादुम से बात करने पहुंचा था. उन्होंने ही कर्नाटक हाई कोर्ट वाली ईडी के एफिडेविट पर दस्तखत किए हैं. मुझे बताया गया कि न तो वो और न ही एजेंसी का कोई मीडिया से बात करेगा.
नंदिकेश ने कहा, “अगर आप देखेंगे कि सिविल सोसाइटी, पत्रकारों, रिसर्चरों के साथ क्या हो रहा है तो पाएंगे कि सबको निशाना बनाया जा रहा है. ये उसका हिस्सा है जिसके तहत अधिकार मांगने वालों और पर्यावरण से जुड़ा न्याय मांगने वालों को सरकार दुश्मन दिखाना चाहती है. सरकार और उद्योगपति साफ हवा देने में असक्षम हैं, देश में पानी की घोर समस्या है और जब वो इन चीजो को हल नहीं कर सकते तो आप उन्हें समाप्त करने की कोशिश करते हैं जो सवाल उठा रहे हैं.”