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5 जुलाई 2019 को पूर्वाह्न 11.01 बजे, ट्रेजरी बेंच की मेजों की गड़गड़ाहट के बीच निर्मला सीतारमण लोकसभा में अपना पहला बजट भाषण देने के लिए खड़ी हुईं. लोक सभा में केवल दूसरी बार किसी महिला ने ऐसा किया था- इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान 1970 में बजट पेश किया था. इस ऐतिहासिक अवसर की तैयारी के दौरान, सीतारमण ने अपने दो पूर्ववर्तियों का आशीर्वाद मांगा था- पहला, बीमार अरुण जेटली, जिन्हें वह अगले महीने श्रद्धांजलि में “मेरे गुरु, मेरे पथप्रदर्शक, मेरी नैतिक शक्ति” के रूप में वर्णित करने वाली थीं, और दूसरा, मनमोहन सिंह, जिनके जुलाई 1991 के बजट भाषण ने सुधारों के एक नए युग की शुरुआत की थी, उन्होंने संसद को आश्वासन दिया, भारत “चालू वित्त वर्ष में तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा” और अगले कुछ वर्षों में वह “पांच ट्रिलियन डॉलर” तक पहुंच जाएगा.
सीतारमण बजट दस्तावेजों को लाल कपड़े में लिपटी एक पारंपरिक खाता-बही के रूप में संसद में ले गई थीं, जो उनके पूर्ववर्तियों की पसंदीदा उस लाल ब्रीफ केस के बजाय एक नया तरीका था,जो ब्रिटिश सरकार के मंत्री स्तरीय डिस्पैच बॉक्स की नकल हुआ करती था. उस समय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने मीडिया को बताया कि यह विकल्प “पश्चिमी विचारों की दासता से पीछा छुड़ाने” का प्रतीक है. सीतारमण ने बाद में बताया कि खाता-बही के चयन के पीछे का सूक्ष्म संदेश यह था कि नरेन्द्र मोदी सरकार “सूटकेस के आदान-प्रदान की संस्कृति में विश्वास नहीं करती है” - दूसरे शब्दों में कहें तो, रिश्वतखोरी में.
“हालिया चुनाव, जिसने हमें आज इस प्रतिष्ठित सदन में आने का मौका दिया, उसेएक उज्ज्वल और स्थिर नए भारत के लिए आशा और उम्मीद के साथ संचालित किया गया था,” सीतारमण ने उस आम चुनाव का जिक्र करते हुए अपना भाषण शुरू किया, जिसने उनकी भारतीय जनता पार्टी को सत्ता वापस लौटा दिया था, दो महीने पहले, 2014 से भी बड़े जनादेश के साथ पार्टीसत्ता में आई. उन्होंने कहा, “भारत की जनता ने हमारे देश के भविष्य के दो लक्ष्यों को मान्यता प्रदान किया है: राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास.”
जब तक उन्होंने अपना 137 मिनट लंबा भाषण समाप्त किया, तब तक शेयर बाजारों में गिरावट आ चुकी थी. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का हेडलाइन इंडेक्स, सेंसेक्स उस दिन लगभग एक प्रतिशत और अगले महीने लगभग दस प्रतिशत गिर गया. एक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करने के बजाय, जिसके बारे में मोदी के फिर से चुने जाने के मद्देनजर कारपोरेट उम्मीद कर रहे थे, सीतारमण ने सालाना 2 करोड़ रुपए से अधिक कमाने वालों पर आयकर अधिभार बढ़ा दिया, धनाढ्य विदेशी फंडों पर कर लगाया, कैपिटल गेन टैक्स को बरकरार रखा, जो निवेशकों के बीच अलोकप्रिय था, उन्होंने देश की सबसे बड़ी कंपनियों को कारपोरेट टैक्स में कटौती के दायरे से बाहर रखा और कई सामानों पर शुल्क बढ़ा दिया. इसके अलावा, इस बात पर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई थी कि सरकार एक बड़े संकट का जवाब कैसे देगी, जिसे अर्थशास्त्रियों और उद्योगपतियों ने विकास को मन्द करने के लिए जिम्मेदार माना था.
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