ओएनजीसी भर्ती में ओबीसी उम्मीदवारों के साथ भेदभाव, संबित पात्रा की पात्रता पर सवाल

तेल और प्राकृतिक गैस निगम की भर्ती प्रक्रिया में इंटरव्यू राउंड के लिए न्यूनतम अंकों के आधार पर उम्मीदवारों को खारिज करने का एक पैटर्न दिखाई देता है-ये नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में मन की बात के दौरान के एक संबोधन और इसके बाद आए डीओपीटी के आदेश का उल्लंघन करता है. अमित दवे/रॉयटर्स

अलीगढ़ की रहने वाली 29 साल की बुशरा बानो ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में 300 में से 218 अंक हासिल किए- जो तेल और प्राकृतिक गैस निगम की नौकरी के लिए योग्यता प्राप्त करने की आवश्यकताओं में से एक है. परीक्षा 2017 में हुई थी. उस साल बानो ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) में मानव संसाधन (एचआर) कार्यकारी के जूनियर स्तर पद पर आवेदन किया. उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए 194 अंकों के कट ऑफ को पास किया. पद के लिए 20 रिक्त सीटों में से पांच ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थीं और इस श्रेणी के आवेदकों में बानो सबसे ऊपर थीं. बानो मानव संसाधन प्रबंधन में पीएचडी और मानव संसाधन और वित्त में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन डिग्री के मास्टर के साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉक्टरेट फेलो हैं. फिर भी उन्हें इस पद के लिए नहीं चुना गया. बानो कहती हैं, “मेरे नंबर अच्छे थे और आवश्यक योग्यता थी. मैं अपने प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त थी लेकिन मैं आखिरी राउंड में बाहर कर दी गई.”

ओएनजीसी ने अगस्त 2017 में इस पद के लिए विज्ञापन जारी किया. चयन प्रक्रिया तीन पैरामीटर पर आधारित थी जिसमें- एनईटी स्कोर के 60 अंक, शैक्षणिक योग्यता के लिए 25 अंक और व्यक्तिगत साक्षात्कार के लिए 15 अंक थे. कैंडिडेट्स का मूल्यांकन कुल 100 अंकों के आधार पर किया जा रहा था और उन्हें सभी तीन चरणों को स्वतंत्र रूप से सफल होना था. साक्षात्कार को छोड़कर, बानो ने चयन प्रक्रिया के पहले दो चरणों में 85 में से 62 अंक हासिल किए. पीएचडी वाली एकमात्र उम्मीदवार होने के बावजूद उन्हें चुना नहीं गया. बानो ने नौकरी न मिलने के लिए एक भेदभावपूर्ण साक्षात्कार प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराया.

ओएनजीसी से जुड़े मानक प्रश्नों, अनुसंधान के क्षेत्र और कंपनी में उनकी रूचि के अलावा उनसे एक प्रश्न पूछा गया जिसने उन्हें असहज बना दिया. "साक्षात्कार बोर्ड के सदस्यों में से एक ने मुझसे पूछा कि मैं तमिलनाडु या गुजरात में से कहां काम करने में ज्यादा सहज हूं. मैंने कहा कि मैं नौकरी की जगह को लेकर लचीली हूं और बताया कि मैंने दो साल तक दूसरे देश सऊदी अरब में काम किया है." बानो ने सऊदी अरब के जाजान यूनिवर्सिटी में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम किया था. “लेकिन वे तो आपके लोग हैं, है न?” बानो ने कहा कि साक्षात्कारकर्ता ने उनकी मुस्लिम पहचान की ओर संकेत किया. उसने कहा, “लेकिन ये अलग होगा.” बानो अपनी प्रतिक्रिया में दृढ़ थीं: "नहीं, वो मेरे लोग नहीं हैं. मैं इस देश की हूं और मेरे लोग यहां हैं."

अगस्त में रिक्तियों के लिए जारी विज्ञापन से जुड़े सूचना के आधिकार से प्राप्त दस्तावेज बताते हैं कि जूनियर स्तर की नौकरियों के लिए इंटरव्यू राउंड में उम्मीदवारों में से कई टॉप स्कोरर को खारिज कर दिया गया. दिसंबर 2015 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, जो कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्य करता है, ने जूनियर स्तर की सरकारी नौकरियों की भर्ती के लिए निजी साक्षात्कार बंद करने का आदेश जारी किया था जिसमें जनवरी 2016 से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को भी शामिल कर लिया गया था. डीओपीटी आदेश स्पष्ट रूप से कहता है, "1 जनवरी 2016 से जूनियर स्तर की पोस्ट में साक्षात्कार वाली कोई भर्ती नहीं होगी ... भविष्य की भर्तियों के लिए सभी विज्ञापन भर्ती प्रक्रिया के हिस्से के रूप में इंटरव्यू के बिना होंगे."

डीओपीटी के आदेश ने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अक्टूबर 2015 की घोषणा की बात का पालन किया, जिसमें उन्होंने "छोटे पदों के लिए साक्षात्कार की परंपरा को समाप्त करने" के अपने फैसले की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "जब एक गरीब व्यक्ति सामान्य नौकरी के लिए जाता है, तो उसे इतनी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ... उसके पैसे चले जाते हैं चाहे नौकरी मिले या नहीं. हम इन तरह की चीजों को सुनते रहते हैं और इसी से मुझे एक आइडिया आया, हमें सामान्य नौकरियों के लिए साक्षात्कार को समाप्त कर देना चाहिए."

हालांकि, ओएनजीसी की भर्ती प्रक्रिया न केवल एक इंटरव्यू पर आश्रित है, बल्कि उन उम्मीदवारों को भी खारिज कर देती है जो अंतिम चरण में 15 में से न्यूनतम अंक प्राप्त नहीं कर पाते हैं- ये सामान्य और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए नौ, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए छह है. बानो का मानना ​​था कि उसने सभी सवालों के जवाब दिए थे और न्यूनतम साक्षात्कार स्कोर हासिल करने की उम्मीद थी- हालांकि उन्होंने सात अंक हासिल किए थे, नतीजतन इस नौकरी के लिए उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया. बानो जैसे कई उम्मीदवारों ने इस प्रक्रिया को भेदभावपूर्ण पाया है और खारिज किए जाने के कारणों को समझने के लिए आरटीआई दायर की. इन आरटीआई के बदले ओएनजीसी के जवाब साक्षात्कार के लिए न्यूनतम कट ऑफ आवश्यकता के आधार पर नियुक्ति के लिए चुने गए लोगों की तुलना में उच्चतम स्कोर वाले उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का एक पैटर्न दिखाते हैं.

ओएनजीसी अधिकारी संघ या ओओए 2016 से चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं का मुद्दा उठा रहा है. प्रधानमंत्री कार्यालय, केन्द्रीय सतर्कता आयोग, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, बोर्ड के सदस्य और ओएनजीसी के अध्यक्ष के पास की गई शिकायतों के बावजूद-सभी अधिकारी कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं.

अनुसूचित जाति की उम्मीदवार मधु​स्मिता दास ने भी बानो के साथ मानव संसाधन कार्यकारी पद के लिए आवेदन किया था. दास ने अपनी नेट परीक्षा में 206 अंक हासिल किए थे. ओएनजीसी की चयन प्रक्रिया के पहले दो चरणों में उनका कुल स्कोर 85 में से 55 अंक था- ये उनके नेट स्कोर और शैक्षणिक योग्यता के मानदंडों पर आधारित था. लेकिन दास को भी अयोग्य घोषित कर दिया गया था और बाद में पता चला कि ऐसा इसलिए था क्योंकि उन्हें साक्षात्कार में 15 में से 5 नंबर मिले थे- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम अंक मात्र एक अंक कम.

अप्रैल 2018 में बानो और दास ने चयन नहीं होने के बाद अपने अंकों का ब्रेकअप जानने के लिए आरटीआई लगाई. उन्हें प्राप्त प्रतिक्रियाओं से संकेत मिलता है कि चयन प्रक्रिया प्रभावी रूप से साक्षात्कार पर निर्भर करती है. ओओए के प्रेसिडेंट हरि कुमार ने मुझे बताया, “पूरी चयन प्रक्रिया को 15 अंकों के साक्षात्कार में समेट दिया गया है.” शैक्षिक योग्यता और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यूसीजी-नेट का मूल्यांकन, जो कुल स्कोर का 85 प्रतिशत होता है वो व्यर्थ साबित होता है. आखिरी साक्षात्कार में कई योग्य उम्मीदवारों को खारिज कर दिया जाता है.

कुमार कहते हैं कि कई उम्मीदवारों उम्मीदवारी खारिज किए दिए जाने के बाद ओओए के पास सहायता के लिए पहुंचते और एसोसिएशन उन्हें इसके कारण खोजने के लिए आरटीआई आवेदन फाइल करने में मदद करता है. कुमार ने मुझे बताया, “पीड़ित उम्मीदवारों को मिली आरटीआई प्रतिक्रियाओं ने पिछले कुछ सालों में उठाए गए मुद्दों का दस्तावेज वाला प्रमाण दिया है.” हालांकि मैंने इनमें से कई उम्मीदवारों से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनमें से अधिकतर ऑन रिकॉर्ड बात करने को तैयार नहीं थे. कुमार ने कहा कि सरकारी नौकरियों के लिए चयन प्रक्रिया में ब्लैकलिस्ट होने के डर के कारण लोग इस बारे में शिकायत करने से डरते हैं.

मार्च 2018 में एचआर कार्यकारी बनने के लिए साक्षात्कार के लिए आए 72 उम्मीदवारों में से 29 को चुना गया-इनमें से 13 सामान्य, 7 ओबीसी और एससी/एसटी श्रेणी से 9 उम्मीदवार थे. लिस्ट के टॉप वाले उम्मीदवार के साक्षात्कार में 15 में से 14 अंक थे, लेकिन पहले दो चरणों में कुल 57.71 अंक ही थे. जिन उम्मीदवारों का चयन नहीं किया गया था, उनमें से अधिकांश ने साक्षात्कार में लगभग 7 या 8 अंक पाए थे. 13 सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के बीच पहले दो चरणों के लिए कुल स्कोर 54 और 71 के बीच रहा, जबकि 62 और उससे ऊपर वाले 20 उम्मीदवारों अंतिम सूची में जगह नहीं बना पाए.

ऐसे ही ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों में से जिन्होंने 51 से 66 के बीच अंक हासिल किए थे चुन लिए गए, लेकिन 61 और 69 के बीच अंक हासिल करने वाले 13 उम्मीदवारों को खारिज कर दिया गया. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों में से 9 सफल उम्मीदवार के अंक 57 और 64 के बीच रहे जबकि इसी सीमा में स्कोर करने वाले 4 उम्मीदवारों को खारिज कर दिया गया क्योंकि उन्हें साक्षात्कार में 6 से कम अंक दिया गया था. अनुसूचित जाति श्रेणी के कई उम्मीदवार जिन्होंने नेट परीक्षा में 206 से 220 के बीच अंक हासिल किए थे, उन्हें निजी साक्षात्कार में 6 नंबर देकर अयोग्य घोषित कर दिया गया.

चयन प्रक्रिया और साक्षात्कार के मूल्यांकन को नियंत्रित करने वाले नियमों और प्रक्रियाओं के बारे में पूछे जाने पर, ओएनजीसी की कॉर्पोरेट भर्ती और नियुक्ति अनुभाग ने जवाब दिया कि "सार्वजनिक प्राधिकरण के [रिकॉर्ड] में ऐसी कोई जानकारी नहीं है." कुमार ने भर्ती प्रक्रिया के बारे में पूछताछ के लिए एक आरटीआई लगाई- जून 2018 की प्रतिक्रिया में ओएनजीसी ने बताया कि चयन मानदंड को अगस्त 2002 में आयोजित कार्यकारी समिति की एक बैठक में अंतिम रूप दिया गया था और एक कार्यालय आदेश दिनांक 11 सितंबर 2003 द्वारा कार्यान्वित किया गया था. जबकि एक और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की भर्ती प्रक्रिया साक्षात्कार में केवल 10 प्रतिशत अंक देती है और चयन पूरे अंकों पर निर्भर करता है.

11 दिसंबर को मैंने ओएनजीसी के मुख्य प्रबंध निदेशक शशि शंकर और कंपनी के मानव संसाधनों के निदेशक अल्का मित्तल को भर्ती प्रक्रिया और साक्षात्कार मानदंडों के बारे में सवाल ईमेल किए थे. इस कहानी के छपने तक दोनों में से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया है.

ओएनजीसी 2003 से इस भर्ती प्रक्रिया का पालन कर रहा है और मोदी की मन की बात में की गई घोषणा और उसके बाद के डीओपीटी के आदेश के बावजूद प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं आया है. सितंबर 2017 में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को ओएनजीसी के स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दी. लेकिन अब तक पात्रा ने साक्षात्कार बंद करने की सरकारी नीति को लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं.

कुमार कई वर्षों से कई अधिकारियों के साथ ओएनजीसी की भर्ती प्रक्रिया का मुद्दा उठा रहे हैं. मार्च 2016 की शुरुआत में ओओए में चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं को तब के ओएनजीसी के मुख्य प्रबंध निदेशक दिनेश के. सर्राफ और तब के कार्यकारी निदेशक और मानव संसाधन प्रमुख आलोक मिश्रा के संज्ञान में लाया गया. कुमार ने मुझे बताया, “सर्राफ ने इस मुद्दे के बारे में पूछताछ की थी लेकिन दोषपूर्ण चयन प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की.” उस महीने उन्होंने सीवीसी को और फिर अक्टूबर 2017 में शंकर को लिखा. लेकिन उन्हें कहीं से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

मई 2018 में कुमार ने सीवीसी को एक और पत्र लिखा था जिसमें साक्षात्कार प्रक्रिया को लेकर कमिशनर का ध्यान इस ओर आकर्षित करने की कोशिश थी कि "इंटरव्यू में कुल स्कोर के मेरिट को मार दिया जा रहा है." उन्होंने कहा कि वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में "पारदर्शिता की कोई जगह नहीं है" क्योंकि अंकों का ब्रेकअप सार्वजनिक नहीं किया जाता है, उम्मीदवारों को "ओएनजीसी में मिलने वाली अप्राकृतिक विफलता को समझने के लिए आरटीआई लगानी पड़ती है."

ओओए ने इन दस्तावेजों को शंकर और ओएनजीसी के निदेशक मंडल को इस साल 24 अप्रैल को सौंप दिया. 14 मई के बोर्ड को दिए गए एक पत्र में कुमार ने लिखा कि 2016-18 के दौरान भर्ती प्रक्रिया के बाद पता चला कि मानव संसाधन अधिकारियों के एक समूह ने अपने फायदे के लिए "यूजीसी-नेट के तहत तय वास्तविक योग्यताओं को कम करने के लिए सांठ-गाठ की है." कुमार ने प्रबंधन से हस्तक्षेप करने और भ्रष्ट भर्ती प्रक्रिया की जांच के लिए फैसला लेने का अनुरोध किया, लेकिन ओएनजीसी ने कोई कार्रवाई नहीं की.

कुमार ने 13 मई को पीएमओ और पेट्रोलियम मंत्रालय में भी शिकायत दायर की. मंत्रालय ने शिकायत को ओएनजीसी के पास भेज दिया, लेकिन न तो कंपनी और न ही पीएमओ ने कोई जवाब दिया. कुमार ने पेट्रोलियम मंत्रालय के संयुक्त सचिव सुषमा रथ को जुलाई में इस मामले में अपनी सबसे ताजा शिकायत दार्ज की और उन्हें इस मामले को देखने के लिए कहा. फिर भी, कुमार को कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

जूनियर स्तरीय अधिकारियों की भर्ती के अलावा, ओएनजीसी में दो शीर्ष-स्तरीय पदों पर नियुक्तियों ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता के बारे में भी सवाल उठाए हैं. जिस महीने पात्रा की नियुक्ति हुई उसी महीने ओएनजीसी में पूर्व में प्रौद्योगिकी और फील्ड सेवाओं के निदेशक शंकर को अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के पद पर प्रमोट कर दिया गया.

अक्टूबर 2017 में, एनर्जी वॉचडॉग- ऊर्जा क्षेत्र में उपभोक्ता हित के मुद्दों पर काम कर रहा एक गैर-सरकारी संगठन- ने दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने पात्रा और शंकर की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर की. भारी और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में स्वतंत्र निदेशकों के चयन को नियंत्रित करता है. जुलाई 2013 में इसने एक ज्ञापन जारी किया जिसमें नियुक्ति का उम्मीदवार बनने के लिए अनुभव के सात संभावित मानदंडों की सूची है. याचिका में कहा गया है कि पात्रा की नियुक्त को चयन समिति ने उन्हें "उद्योग, व्यापार, कृषि या प्रबंधन में साबित ट्रैक रिकॉर्ड [ए] वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में पहचान कर उनके चयन के फैसले को उचित ठहराया है-ये सूचीबद्ध मानदंडों में से एक है.

एनर्जी वॉचडॉग ने तर्क दिया कि पात्रा किसी भी मानदंड को पूरा नहीं करते और उनके पास "ओएनजीसी के काम से संबंधित किसी भी क्षेत्र में सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है." इसने शंकर की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी कि ओएनजीसी के सतर्कता विभाग ने टेंडर प्रक्रिया को संभालने में "भारी गड़बड़ी" के लिए फरवरी 2015 में उन्हें निलंबित कर दिया था- बाद में उनके निलंबन को रद्द कर दिया गया, और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही अप्रैल 2016 में बंद कर दी गई. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि शंकर की नियुक्ति ने सार्वजनिक कार्यालयों में नियुक्तियों में "ईमानदारी" के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है.

उच्च न्यायालय ने नवंबर 2017 में याचिका खारिज कर दी थी. अदालत ने इस तथ्य पर भरोसा किया कि सीवीसी ने शंकर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही बंद कर दी थी और कहा था कि पात्रा को "प्रतिष्ठित व्यक्ति" माना जा सकता है क्योंकि वह एक डॉक्टर थे और स्वराज नाम का एक जाना माना एनजीओ चलाते थे."

एनर्जी वॉचडॉग ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है. मार्च 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका में उठाए गए आरोपों पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी. मामला अदालत में लंबित है.

बीजेपी के प्रवक्ता के रूप में, पात्रा ने अक्सर मुस्लिमों के खिलाफ भेदभावपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं. ओएनजीसी के लिए आवेदन करने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए यह चिंता का कारण बन गया है. मोहम्मद शाहनवाज नाम के एक पोस्ट ग्रैजुएट कैंडिडेट ने नेट परीक्षा में 196 हासिल किए थे लेकिन साक्षात्कार में बाहर हो गए, उन्होंने मुझे बताया, “बोर्ड में पात्रा जैसे लोगों के होने की वजह से मैंने उचित मौके की उम्मीद खो दी है. मैंने एनईटी परीक्षा और भर्ती परीक्षा के लिए छह महीनों की कड़ी मेहनत की थी. अब मैं बहुत निराश हूं और सभी आशाएं खो दी हैं. मुझे चयन प्रक्रिया पर संदेह है.”

बुशरा बानो ने ओएनजीसी में ए-1 लेवल पोस्ट (एंट्री लेवल की जॉब) के लिए आवेदन किया था. हालांकि, उन्हें खारिज कर दिया गया, बानो ने ई-2 लेवल पोस्ट के लिए आवेदन किया (ई-1 से एक ग्रेड बड़ा पोस्ट) ये आवेदन एक अन्य केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम में किया गया था. उन्होंने ये परीक्षा पास कर ली और वर्तमान में मानव-संपर्क अधिकारी के रूप में काम कर रही हैं. बानो ने मुझसे कहा, “मुझे अभी भी लगता है कि मुझे ओएनजीसी में नौकरी मिल जानी चाहिए थी. लेकिन मैंने इस नौकरी के लिए चयन प्रक्रिया पास की और अब मैं खुश हूं.”