स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण या पीपीई जैसे मास्क, दस्ताने और रेस्परेटरों (श्वासयंत्र) की आपातकालीन खरीद अब तक रुकी हुई है. सरकारी कंपनी एचएलएल लाइफकेयर को पीपीई किटों की खरीद का एकाधिकार दिया गया है और पीपीई निर्माता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय और एचएलएल के अधिकारियों ने 23 मार्च को एकाधिकार, पीपीई की आपूर्ति में देरी और लॉकडाउन के चलते हो रही परेशानियों को हल करने के लिए दो बैठक कीं लेकिन कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा.
पीपीई निर्माताओं के अनुसार, भारत सरकार की पीपीई खरीद प्रक्रिया के तहत सभी पीपीई निर्माताओं को पीपीई किटों को एचएलएल भेजना पड़ता है जो इन्हें असेंबल कर विभिन्न राज्य और केंद्रीय अस्पतालों को भेजती है जहां कोविड मरीजों का उपचार हो रहा है. इस कठोर प्रक्रिया के कारण ऐसी परिस्थिति का निर्माण हुआ है जिससे भारतीय स्वास्थ्य कर्मियों को ये चिकित्सीय सामग्री पहुंचने में देरी हो रही है. प्रिवेंटिव वियर मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष संजीव कुमार कहते हैं, “वे चाहते हैं कि हम गाउन (सुरक्षात्मक कपड़े) एचएलएल को सप्लाई करें जो इन्हें असेंबल कर विभिन्न राज्यों को भेजेगी. हमें उन परेशान डॉक्टरों के फोन आ रहे हैं जिन्हें इन किटों की फौरन आवश्यकता है. आपको क्या लगता है कि हमारे पास एचएलएल को सप्लाई करने का वक्त है. हम यहां लोगों की मौत का करोबार करने नहीं बैठे हैं.”
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी आयसोला ने बताया, “खरीद प्रक्रिया में बहुत सी गड़बड़ियां हैं. स्टॉक हासिल करने में मिल रही असफलता एकदम साफ है. एचएलएल और सरकारी एजेंसियां, जो इस काम को देख रही हैं, ने स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ खिलवाड़ किया है. उन्होंने कोविड-19 के खिलाफ भारत की प्रतिक्रिया को कमजोर बना दिया है.” आयसोला ने साफ-साफ कहा कि “एचएलएल से पीपीई सप्लाई का एकाधिकार वापस ले लेना चाहिए.” उन्होंने ने आगे कहा, “स्वास्थ्य मंत्रालय को राज्यों के लिए न्यूनतम आवश्यकता और कीमतों के संबंध में दिशानिर्देश जारी करना चाहिए जिसका इस्तेमाल निजी अस्पताल भी कर सकें. उसे आवश्यकता के संबंध में त्वरित प्रतिक्रिया के लिए और देश के विभिन्न हिस्सों से भंडारण के लिए एक केंद्रीय संयंत्र बनाना चाहिए.”
22 मार्च को कारवां अंग्रेजी ने खबर दी थी कि 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश जारी करने के बावजूद भारत अपने स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए आवश्यक पीपीई का भंडारण करने में विफल रहा. इस मामले को सरकार ने तब और बिगाड़ दिया जब उसने 19 मार्च तक पीपीई किट के निर्माण के लिए जरूरी कच्चे माल के निर्यात पर रोक नहीं लगाई थी जिसके चलते बाजार में इसकी भारी कमी हो गई क्योंकि निर्माताओं ने दूसरे देशों में कच्चे माल निर्यात जारी रखा.
कारवां की रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने प्रेस से बातचीत में कहा कि उन्हें नहीं पता था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसा कोई दिशानिर्देश जारी किया है. उन्होंने पूछा, “डब्ल्यूएचओ की वह रिपोर्ट कहां है जिसमें उसने भारत को ऐसे कदम उठाने को कहा है?” कारवां की उस रिपोर्ट में यह दावा नहीं किया गया था कि डब्ल्यूएचओ ने भारत को विशेष तौर पर ऐसा दिशानिर्देश दिया है बल्कि हमने बताया था कि 27 फरवरी को डब्ल्यूएचओ ने “कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण के तार्किक इस्तेमाल” नाम की अपनी रिपोर्ट जारी की थी जो उसकी वेबसाइट में मौजूद है. इसके बावजूद अग्रवाल प्रेसवार्ता में दावा करते रहे, “हमें ऐसी कोई सलाह नहीं दी गई. यह अफवाह फैलाना और फेक न्यूज है.” उन्होंने पीपीई किटों की कमी के बारे में पूछे गए पूरक सवाल का जवाब नहीं दिया.
कमेंट