लखनऊ के केजीएमयू ने मास्क के लिए डॉक्टरों की वेतन कटौती का प्रस्ताव विरोध के बाद लिया वापस

केजीएमयू के आइसेलेशन वार्ड में तैयारी कर रही अस्पताल की स्वास्थ्य कर्मी. साभार : असद रिज़वी

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लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के प्रशासन ने थ्री लेयर सर्जिकल मास्क खरीदने के लिए डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के वेतन से कटौती करने का अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है. वहां के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा प्रस्ताव का विरोध करने के बाद केजीएमयू प्रशासन को मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा 27 मार्च 2020 को वेतन कटौती के लिए भेजा गया प्रस्ताव वापस लेना पड़ा है.

केजीएमयू में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी लंबे समय से व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण या पीपीई की मांग कर रहे हैं. 26 मार्च को कारवां में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया था कि केजीएमयू के रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने 23 मार्च को विश्वविद्यालय के उपकुलपति को पत्र लिख कर बताया था कि केजीएमयू के विभिन्न विभागों में सेवा दे रहे रेसिडेंट डॉक्टर कोरोनावायरस से संभावित संक्रमण वाले मरीजों सहित अन्य मरीजों की जांच बिना पीपीई के कर रहे हैं. एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राहुल भरत और महासचिव डॉ. मोहम्मद तारिक अब्बास के हस्ताक्षरों वाले उस खत में लिखा था कि “आपसे हमारी प्रार्थना है कि काम के स्वास्थ्य वतावरण और (संक्रमण) के सामुदायिक फैलाव से बचाव के लिए हम डॉक्टरों को पीपीई उपकरण उपलब्ध कराएं.” उस खत में यह भी लिखा था कि “हम रेसिडेंट डॉक्टर काम की ऐसी परिस्थिति से डरे हुए हैं जिससे हमारे भीतर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक तनाव पैदा हो रहा है.” 

डॉक्टरों की इन चिंताओं पर जब मैंने केजीएमयू प्रशासन से बात की थी, तो उसने पीपीई किट की कमी की बात से इनकार कर दिया था. वहां के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. सुधीर सिंह ने मुझसे कहा था कि यूनीवर्सिटी के पास पर्याप्त संख्या में किट उपलब्ध हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जो डॉक्टर किट न होने की बात कर रहे हैं उन्हें “मालूम नहीं था कि किन डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को किट की आवश्यकता है और किन को नहीं.”

पत्र में लिखा है, “कोरोना वायरस से पीड़ित रोगियों के उपचार में तैनात कर्मचारियों की सुरक्षा हेतु थ्री लेयर सर्जिकल फेस मास्क की नितांत आवश्यकता है.” साभार : असद रिज़वी

लेकिन जो पत्र केजीएमयू प्रशासन ने 27 मार्च को लिखा है वह “पर्याप्त किट होने” के विश्वविद्यालय प्रशासन के अपने ही दावे का खंडन तो करता ही है साथ ही डॉक्टरों सहित स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति संकट की इस घड़ी में उसकी संवेदनहीना को भी दर्शाता है.

27 मार्च को विश्वविद्यालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस. एन. शंखवार ने कुलसचिव आशुतोष कुमार द्विवेदी को पत्र (पत्रांक संख्या 8447/20) लिख कर “कोरोना महामारी के उपचार हेतु” डॉक्टरों से लेकर सफाई कर्मचारियों तक की एक दिन की वेतन कटौती का प्रस्ताव भेजा था. कारवां के पास उपलब्ध उस पत्र में लिखा है, “कोरोना वायरस से पीड़ित रोगियों के उपचार में तैनात कर्मचारियों की सुरक्षा हेतु थ्री लेयर सर्जिकल फेस मास्क की नितांत आवश्यकता है.”

इस पत्र के सामने आने के बाद केजीएमयू के डॉक्टरों और कर्मचारियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. साथ ही, केजीएमयू कर्मचारी परिषद ने इस प्रस्ताव में सहयोग करने से साफ इनकार कर दिया. परिषद ने केजीएमयू के कुलसचिव को पत्र लिख कर कहा है कि “चिकित्सा विश्वविद्यालय में कार्यरत अधिकांश कर्मचारी वर्तमान परिवेश में अपने वेतन कटौती के पक्ष में नहीं है.”

कर्मचारी परिषद ने कुलसचिव को पत्र में लिखा है, “चिकित्सा विश्वविद्यालय में कार्यरत अधिकांश कर्मचारी वर्तमान परिवेश में अपने वेतन कटौती के पक्ष में नहीं है.” साभार : असद रिज़वी

परिषद के अध्यक्ष प्रदीप गंगवार ने मुझसे कहा, “सभी कर्मचारी 7-8 दिन तक लगातार अस्पताल में रुक कर कोरोना के विरुद्ध जंग में सहयोग कर रहे हैं. ऐसे में हमरा वेतन भी कटा जाए, परिषद इसका विरोध करता हैं.” गंगवर के अनुसार केजीएमयू के कर्मचारियों ने केदारनाथ और पुलवामा हमले के समय अपना वेतन काट कर सरकार को सहयोग दिया था और जब आज सभी महंगाई के चलते अर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, लॉकडाउन कि वजह से सभी जरूरी वस्तुओं कि कीमतें असमान पर हैं, ऐसे में वेतन कटौती करवाना संभव नहीं है.” उन्होंने कहा, “हम दूसरों के समय पर सहयोग करते आए हैं. अब हम संकट का सामने कर रहे हैं तो दूसरे विभागों को मदद के लिए आगे आना चाहिए हैं.” 

कर्मचारियों के अलावा केजीएमयू डॉक्टरों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया. केजीएमयू के रेसिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के अध्यक्ष डॉ. भरत ने मुझसे कहा, “निजी स्तर पर तो मैं इस प्रस्ताव का स्वागत करता हूं और वेतन कटौती को लेकर मेरी कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन केजीएमयू के दूसरे 700 के करीब रेसिडेंट डॉक्टर और करीब 350 संकाय सदस्य की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी, यह नहीं कहा जा सकता है.”

नाम न छापने को कह कर एक अन्य वरिष्ठ डॉक्टर ने मुझे बताया कि अधिकतर डॉक्टरों ने कटौती का विरोध किया है. उन्होनें कहा, “हम लोग सेना के जवानों की तरह इस समय मोर्चे पर खड़े होकर कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं. अगर सीमा पर लड़ते समय सैनिकों के पास आवश्यक चीजों की कमी हो जाती है तो क्या उनके वेतन से कटौती कर जरूरत की चीजें मुहैया कराई जाती हैं?”

विरोध के बाद केजीएमयू प्रशासन ने कटौती का प्रस्ताव वापस ले लिया. साभार : असद रिज़वी

केजीएमयू वित्तीय विभाग के एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया कि रेसिडेंट डॉक्टरों का वेतन 70 हजार से 90 हजार रुपए मासिक है. एक दिन की वेतन कटौती से प्रत्येक डॉक्टर पर 2300 से 3000 रुपए तक का भार आ रहा था. केजीएमयू वित्तीय विभाग के उस अधिकारी ने कहा, “पैरामेडिकल, नर्सिंग स्टाफ, तृतीया और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का मानसिक वेतन 20 हजार से 90 हजार रुपए मासिक तक है. ऐसे में एक दिन की वेतन कटौती से उन पर 1900 से 3000 रुपए तक का भार आएगा.

केजीएमयू प्रशासन ने डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है. मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस एन शंखवार ने स्वयं कुलसचिव को पत्रांक संख्या 716/CMS CAMP/2020 में कहां है कि केजीएमयू में पर्याप्त मात्रा में मास्क आ गए हैं. इसलिए उनके द्वारा वेतन कटौती के संबंध में भेजे गए प्रस्ताव को निरस्त कर दिया जाए. उक्त पत्र में लिखा है, “चिकित्सालय में कार्यरत संकाय सदस्यों, पैरामेडिकल स्टाफ एवं कर्मचारियों हेतु वर्तमान में प्रयाप्त (पर्याप्त) मात्रा में मास्क एवं अन्य सुरक्षा समाग्री (सामग्री) की उपलब्धता की जा चुकी है. अतः उक्त प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जा रहा है.” डॉ. शंखवार ने मुझे बताया कि उनको नहीं मालूम था की पुणे से मास्क लेकर ट्रक आ गया है “इसलिए उन्होंने गलती से वेतन कटौती के लिए प्रस्ताव भेज दिया था जबकि अब केजीएमयू में पर्याप्त मात्रा में मास्क आ चुके हैं.”

दूसरी ओर केजीएमयू प्रशासन वेतन कटौती के प्रस्ताव वाले पत्र को टाइपिंग की एक गलती भर बता रहा है. केजीएमयू के प्रवक्ता डॉक्टर सुधीर कहते हैं कि कुलसचिव को भेजे गए पत्र में लिपिक से टाइपईग में गलती हो गई थी. उनके अनुसार पत्र का उद्देश्य मास्क खरीदने के लिए नहीं, कोरोना के इलाज के दौरान अगर विकृत हालत उत्पन्न होते हैं तो उसके लिए एक रहात कोष बनाना था.

इस राहत कोष से दोनों, स्थायी और अस्थायी, कर्मचारियों की सहायता की जानी थी. डॉ. सुधीर के अनुसार अगर कोष की जरूरत नहीं पड़ती तो इस धन से कोरोना का प्रकोप खत्म होने के बाद उपचार में सेवा देने वालों को पुरस्कृत किया जाना था और बाकी बचे धन को कोरोना पर शोध में लगाया जाता.

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असद रिज़वी 15 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं और देश के कई मीडिया संस्थानों के लिए लिखते रहे ​हैं.