फिलहाल भारत एक जीता-जागता नरक बना हुआ है. हर दिन यह कोविड मामलों का नया रिकॉर्ड बना रहा है. 25 अप्रैल को भारत में 352951 नए कोविड के मामले सामने आए थे और 2812 लोगों की मौत हुई थी. अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मरीज मर रहे हैं. 21 अप्रैल को महाराष्ट्र के नासिक के एक अस्पताल में तकरीबन 24 मरीज ऑक्सीजन की कमी से मर गए और उसके दो दिन बाद दिल्ली में इसी कारण से 25 लोगों की जान गई. लेकिन अगले दिन 24 अप्रैल को सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली उच्च न्यायालय से झूठ बोला कि “यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई भी ऑक्सीजन से वंचित न हो.” इस बीच राज्य सरकारें ऑक्सीजन के टैंकरों को ब्लॉक कर रही हैं और जनता सिलेंडर लूट रही है. ऐसा होना ही था क्योंकि भारत ने अपने लिए जैसे नेताओं और विचारधाराओं को चुना उस स्थिति में ऐसा हो जाना अनिवार्य है.
एक तरह से यह डेजा वू है. अगस्त 2017 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 60 नवजात शिशु ऑक्सीजन की कमी से मर गए. राज्य की आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इस बात से इनकार किया कि यह मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं और आज तक भी वह यही दावा करती है. बच्चों के डॉक्टर कफील खान पर राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि उन्होंने ऑक्सीजन सप्लायर के पैसों का भुगतान नहीं किया था जिसके चलते ऑक्सीजन की कमी हुई और मौतें हुईं. जिसके बाद राज्य सरकार ने झूठे आधार पर खान को गिरफ्तार कर लिया. बाद में विभागीय जांच में वह निर्दोष पाए गए लेकिन राज्य सरकार ने नवजात शिशुओं की पोस्टमार्टम जांच नहीं करवाई और उनके मेडिकल रिकॉर्ड भी परिवारों को नहीं सौंपे. साफ है कि राज्य सरकार तब तक अन्याय को अन्याय नहीं मानती जब तक कि वह कागजों में प्रमाणित नहीं हो जाता.
बीजेपी के नेतृत्व ने लालच और क्रूरता को आम बना दिया है और यह कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर में दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऊपर भारत जैसे गरीब देश में महामारी की रोकथाम की कठिन जिम्मेदारी थी लेकिन उन्होंने बस इतना किया कि इस कठिन काम को विकराल बना कर लगभग असंभव बना दिया है.
पिछले साल मोदी प्रशासन ने देश के शीर्ष वैज्ञानिकों से परामर्श लिए बिना क्रूर लॉकडाउन लगा दिया था जिसकी वजह से इस चिकित्सीय आपातकाल ने आर्थिक और मानवीय संकट का रूप धारण कर लिया. कारवां में इससे पहले की अपनी एक रिपोर्ट में मैंने बताया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस साल फरवरी और मार्च में, जबकि केस बढ़ रहे थे, राष्ट्रीय टास्कफोर्स से परामर्श तक नहीं किया. पिछली बार लॉकडाउन लगाने के बाद मोदी ने औपनिवेशिक काल के क्रूर कानून महामारी कानून 1897 लागू कर दिया और नागरिकों और नागरिक स्वतंत्रता का कुचलने लगी. मोदी प्रशासन ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि वह इस कानून का इस्तेमाल वहीं कर रही है जहां पर स्वास्थ्य कर्मियों को निशाना बनाया जा रहा है.
कारवां ने पहले भी बताया है कि केंद्र सरकार ने पिछले साल ऐसे किसी कानून को पारित नहीं किया जो स्वास्थ्य कर्मियों को संरक्षण देता हो. बताया गया कि लॉकडाउन इसलिए लगाया गया है ताकि महामारी को रोका जा सके. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने दावा किया कि राष्ट्रीय और राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने 15000 करोड रुपए का पैकेज जारी किया है. लेकिन ऑक्सीजन संयंत्र के टेंडर महामारी शुरू होने के आठ महीनों तक भी यानी 9 अक्टूबर 2020 तक, जारी नहीं किए गए थे. उस महीने केंद्र सरकार ने 150 ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने का टेंडर जारी किया था लेकिन अप्रैल 2021 तक केवल 33 ही स्थापित हो पाए थे.
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