यूपी सरकार के अनुचित नियम से मुआवजे से वंचित होते कोविड-19 के शिकार चुनाव अधिकारी

21 अगस्त 2021
2 मई को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में गोविंदपुरम अनाज मंडी में पंचायत चुनाव की मतगणना के दौरान मतगणना हॉल के अंदर का दृश्य.
साकिब अली/हिंदुस्तान टाइम्स
2 मई को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में गोविंदपुरम अनाज मंडी में पंचायत चुनाव की मतगणना के दौरान मतगणना हॉल के अंदर का दृश्य.
साकिब अली/हिंदुस्तान टाइम्स

13 जुलाई 2021 को उत्तर प्रदेश सरकार ने उन चुनाव कर्मचारियों की सूची जारी की जिनकी अप्रैल और मई में स्थानीय निकाय चुनावों में ड्यूटी के 30 दिन के दौरान कोविड-19 से मृत्यु हुई है और जिनके परिवार मुआवजे के पात्र हैं. भदोही जिले की रहने वाली 19 वर्षीय उत्तमा मौर्य ने मुझे बताया कि वह यह जानकर परेशान हो गईं कि उनके पिता छविनाथ मौर्य का नाम सूची में नहीं है. छविनाथ की चुनाव ड्यूटी के 35 दिन बाद 20 मई को कोविड​​​​-19 से मृत्यु हो गई थी. उत्तमा ने अपने पिता मेडिकल दस्तावेज और रिपोर्टें जमा कर ली थीं लेकिन सरकार की 30 दिन की कट-ऑफ के कारण वह मुआवजे का दावा नहीं कर सकतीं.

यूपी सरकार ने 30 लाख रुपए की अनुग्रह राशि की घोषणा की है. सरकार की सूची में 2020 लाभार्थी शामिल हैं. कारवां ने कई ऐसे परिवारों से बात की जिनके मृतक रिश्तेदार पात्र होने चाहिए थे और जिन्होंने मुआवजे के लिए आवेदन भी किया था लेकिन सूची से बाहर हैं. राज्य सरकार के 30 दिन और परिवार से कोविड-19 की पॉजीटिव रिपोर्ट की मांग ने परिवारों को मुआवजे से वंचित कर दिया है.

मई के मध्य में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने कोविड-19 मौत के लिए सख्त मानदंड बनाए हैं. आयोग के अनुसार, किसी व्यक्ति की मृत्यु ड्यूटी के दौरान तभी मानी जाती है जब उसकी मृत्यु कार्य स्थल पर, काम करने के रास्ते में या घर के रास्ते में होती है. बिष्ट ने अधिक परिवारों को मुआवजा देने के लिए उदार नजरिया अपनाने की अपील की. राज्य ने ड्यूटी पर रहते हुए मृत्यु को 30 दिनों तक बढ़ा दिया है, यह अभी भी कम है.

इस साल जून में कारवां ने एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे यूपी सरकार ने कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच स्थानीय निकाय चुनाव करा कर चुनाव ड्यूटी में नियुक्त शिक्षकों की जान जोखिम में डाली. राज्य विधान परिषद के अनुमान के अनुसार वायरस के संपर्क में आने के कारण मरने वाले प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों और नॉन टीचिंग स्टाफ की संख्या लगभग 3000 है. कारवां ने उस समय छविनाथ और दक्ष सहित नौ शिक्षकों की मृत्यु का विवरण दिया था.

इसके अलावा उत्तमा ने मुझे बताया कि ऐसा भी नहीं है कि राज्य सरकार 30 दिनों की कट ऑफ को ही मान रही है. जैसे अतुल भारद्वाज के मामले में हुआ है. वह एटा जिले में एक सहायक शिक्षक थे और चुनाव ड्यूटी करने के 32 दिन बाद उनकी मृत्यु हुई. पिता शर्मा ने बताया, "हमें डर था कि दो दिन के अंतर के चलते समस्या होगी लेकिन सौभाग्य से सरकार ने उन्हें पात्र मान लिया है."

अखिलेश पांडे दिल्ली के पत्रकार हैं.

Keywords: coronavirus lockdown coronavirus Uttar Pradesh Yogi Adityanath victim compensation COVID-19 Deaths COVID-19 Covid-19 vaccine
कमेंट