“सर हम दिव्यांग हैं और हमको राज्य सरकार की तरफ से दिव्यांग पेंशन की राशि मिलने से काफी राहत मिली है. ”
“आगे क्या विचार है?”
“यहीं रोजगार दिलाएं सर, यहां से नहीं जाएंगे.”
“चिंता मत कीजिए, आपका पूरा खयाल रखा जाएगा.”
यह बातचीत कोलकाता से लौटे विकलांग कामगार कैलाश रविदास और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच 24 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई थी. 1 मई से केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों-कामगारों को उनके गृह राज्य पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का निर्णय लिया था. इस निर्णय के बाद दर्जनों श्रमिक स्पेशल ट्रेनें बिहार आईं और इन ट्रेनों के जरिए हजारों की संख्या में लोग बिहार लौटे.
कोविड-19 महामारी का डर और फिर फैक्टरियां बंद हो जाने से खाने-पीने के संकट के चलते मजबूर होकर लौटे कामगारों को उम्मीद थी कि बिहार सरकार उनके लिए कुछ करेगी. बिहार सरकार ने भी मीडिया में सार्वजनिक बयान देकर आश्वस्त किया कि बिहार लौटे लोगों के लिए रोजगार के उपाय किए जाएंगे. इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद कई क्वारंटीन सेंटरों में ठहरे लोगों से बातचीत कर रोजगार का सब्जबाग दिखाया था. मजदूरों-कामगारों को भी लगा कि जब नीतीश कुमार खुद बातचीत कर नौकरी देने की बात कह रहे हैं, तो जरूर कुछ ठोस काम होगा इस बार. लेकिन अब वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
कैलाश रविदास 23 मई को बस से कोलकाता से बिहार लौटे थे. वह जमुई जिले के सिकंदरा ब्लॉक के नवकाडीह के रहने वाले हैं. 23 मई को घर लौटने के बाद वह सिकंदरा के आईटी केंद्र में बने क्वारंटीन सेंटर में रहने चले गए थे.
उसी दिन उनके पास जिले के डीएम पहुंचे और उनसे काम के बारे में पूछताछ की और यह भी कहा कि क्या वह सीएम नीतीश कुमार से बात करना चाहेंगे.
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