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बीते साल 5 सितंबर की शाम दिल्ली के तीन मूर्ति एस्टेट में सेडान कारों का एक बेड़ा दाखिल हुआ. यहां कभी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहा करते थे. वहां जमा कारों और लोगों की तादाद के बारे में एक सुरक्षा गार्ड ने मुझसे कहा कि 400 से अधिक लोग आए हैं.
यह बीते साल की दूसरी छमाही में राजधानी की कानूनी बिरादरी का सबसे शानदार आयोजन था. भीतर, ऑडिटोरियम की सीटों पर, देश के चोटी के वकील और सेवानिवृत्त जज खचाखच भरे थे. कई जूनियर वकील, लॉ इंटर्न और कानून के छात्र पीछे की तरफ़ जमा थे. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित थे और इस आयोजन के सम्मानित मेहमान राम जेठमलानी के पुत्र महेश जेठमलानी थे. जैसे ही ये दोनों गणमान्य व्यक्ति वहां पहुंचे युवा और बुज़ुर्ग वकील उनसे हाथ मिलाने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे.
इस कार्यक्रम का आयोजन अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (एबीएपी) ने किया था. एबीएपी की स्थापना 1992 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वकीलों की शाखा के रूप में की गई थी. आज एबीएपी भारत में वकीलों का शायद सबसे बड़ा संगठन है. पिछले तीन आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत की छत्रछाया में इस संगठन की गतिविधियां ख़ूब फैली हैं. अध्ययन मंडलियों, रणनीतिक मुकदमेबाज़ी और निजी रिश्तों के लगातार बढ़ते नेटवर्क के ज़रिए, समाज के बढ़े हिस्से के साथ-साथ देश भर के हज़ारों जिला और ट्रायल कोर्टों में एबीएपी फैल चुका है.
एबीएपी का यह कार्यक्रम उन वकीलों के लिए एक समारोह था, जिन्हें हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था. 39 नामितों में से 30 इस आयोजन में मौजूद थे. मौजूद दिग्गजों में बीजेपी की सांसद बांसुरी स्वराज, इंद्रा साहनी, जिनकी याचिका के चलते सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा तय की, और अपर्णा भट, जिन्होंने अदालतों में लिंग आधारित हिंसा के कई पीड़ितों की नुमाइंदगी की है, शामिल थीं. कार्यक्रम से जुड़े एबीएपी के एक कार्यकारी सदस्य ने मुझे बताया, "हमने 40 से अधिक नए अधिवक्ताओं को आमंत्रित किया है, चाहे उनकी विचारधारा कुछ भी हो." यह आयोजन आंशिक रूप से एबीएपी के 'अध्ययन मंडल' की एक नियमित बैठक भी था.