फैज़ अहमद फैज़ के नजरिए से कश्मीर समस्या का हल

10 अक्टूबर 2019

मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ का कश्मीर से गहरा नाता रहा. 1941 में जब उन्होंने एक अंग्रेज महिला ऐलिस जॉर्ज से शादी की तो शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह (जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री) ने श्रीनगर में उनका निकाहनामा पढ़ा. निकाहनामे पर बतौर गवाह जी. एम. सादिक, बक्शी गुलाम मोहम्मद और डॉक्टर नूर हसन ने दस्तखत किए. श्रीनगर से सांसद रहे और “आइना” साप्ताहिक के संपादक अहमद शमीम ने 1969 में जब लाहौर में फैज़ अहमद फैज़ का इंटरव्यू किया तो इस शायर ने कहा, ‘‘मेरा निकाहनामा एक ऐतिहासिक दस्तावेज का दर्जा रखता है.’’ पहले पहल यह इंटरव्यू “आइना” में छपा था उसके बाद 18 अप्रैल 2011 को श्रीनगर से प्रकाशित ताहिर मोहिउद्दीन के साप्ताहिक अखबार “चट्टान” में इसे दुबारा छापा गया.

लेखक ए. जी. नुरानी ने अपनी किताब द कश्मीर डिसप्यूट 1947–2012 खण्ड : एक में इस इंटरव्यू को प्रकाशित किया है. कारवां के पाठकों के लिए नीचे इंटरव्यू को लेखक और प्रकाशन की अनुमति से प्रकाशित किया जा रहा है.

शमीम : आप आखिरी दफा कब कश्मीर गए थे?

फैज़ : मैं 1947 में वहां गया था. 15 अगस्त 1947 को जब इस उप–महाद्वीप का बंटवारा हो रहा था तो मैं श्रीनगर में था और 24 अगस्त को वहां से लौट गया. उसके बाद कश्मीर समस्या भड़क उठी और हालात सुधरने के बजाय दिन-ब-दिन खराब होते चले गए.

शमीम : आपके खयाल से इस समस्या का हल कैसे हो सकता है ?

ए जी नूरानी संविधान विशेषज्ञ और द आरएसएस : ए मेनिस टू इंडिया , आर्टिकल 370 : ए कॉन्स्टटूशनल हिस्ट्री ऑफ जम्मू एंड कश्मीर के लेखक है.

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