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भारतीय मीडिया के लिए आगे का रास्ता

15 दिसंबर 2020
2020 के शुरुआत में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा को कवर करता पत्रकार. हिंसा के दौरान बहुत से पत्रकारों को निशाना बनाया गया था.
अल्ताफ कादरी/ एपी फोटो
2020 के शुरुआत में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा को कवर करता पत्रकार. हिंसा के दौरान बहुत से पत्रकारों को निशाना बनाया गया था.
अल्ताफ कादरी/ एपी फोटो

2019 की शुरुआत में दिल्ली के एक मेंस्ट्रीम मीडिया के चीफ एडिटर ने मुझे दोपहर के भोजन का आमंत्रण दिया. चलिए उन्हें टीके टीके जी कहते हैं. जो लोग मीडिया से जुड़ें हैं उन्हें पता ही होगा कि टीके का इस्तेमाल संपादन के समय होता है और इसका मतलब होता हैटू कम (आने वाला है). अंग्रेजी मीडिया में टीके का अभी भी प्रयोग किया जाता है. यह उस स्थान पर लगाया जाता है जो तब तक खाली होता है जब तक अतिरिक्त सामग्री या सटीक जानकारी उस जगह पर भर नहीं दी जाती. अंग्रेजी भाषा में यह पुराना दो अक्षरों का शब्द सामान्य है और प्रूफ लगाते समय आसानी से पकड़ में आ जाता है. और “जी” हिंदी और पंजाबी में इस्तेमाल होने वाला आदरसूचक शब्द है जिसे महिला और पुरुष दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तो भोजन के दौरान टीके टीके जी ने मुझे बताया कि नरेन्द्र मोदी राज में उन्हें हमेशा दबाव में रहना पड़ रहा है.

उन्होंने एक फोन कॉल के बारे में मुझे बताया जो उन्हें कारवां की एक स्टोरी के प्रकाशन के बाद आया था. “अध्यक्ष जी आपसे बात करेंगे”, फोन के दूसरे छोर से उन्हें सुनाई पड़ा था. अब संपादक हैरान हो गए कि यह अध्यक्ष जी कौन हैं. क्या यह कोई मजाक है? लेकिन तभी दूसरी आवाज उनके कानों में पड़ी, “मैं अमित शाह बोल रहा हूं.”

उस वक्त शाह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और इसमें कोई शक नहीं कि वह भारत के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे. 2014 में उनकी पार्टी की सरकार बन चुकी थी. उन्होंने संपादक महोदय को बताया कि कारवां द्वारा प्रकाशित एक बड़ी पड़ताल के संबंध में जो प्रेस कॉन्फ्रेंस विपक्ष के नेता करने वाले हैं उसे कवर न करें. मैंने टीके टीके जी से पूछा कि क्या उन्होंने कारवां में खबर छपने के बाद अपने अखबार में वह स्टोरी चलाई थी. उन्होंने कहा, “अरे भूल जाइए. वह असंभव था.”

आमतौर पर होता यह है कि विपक्षी पार्टियां अगर किसी बड़ी खबर पर कोई राजनीतिक प्रतिक्रिया देती हैं तो उसके साथ उस बड़ी खबर को छापना आसान हो जाता है लेकिन यहां संपादक जी को कॉल आया था कि वह विपक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कवर न करें. टीके टीके जी ने मुझे बताया कि उन्होंने बड़े सम्मान के साथ ऐसा करने से इनकार कर दिया और साहब से कह दिया कि उनके लिए विपक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस की खबर न छापना असंभव होगा. उस वक्त आम चुनाव होने में थोड़ा ही वक्त बचा था.

“प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ भी नया नहीं है” अध्यक्ष ने दूसरे छोर से कहा, “इन सारे मामलों पर चर्चा हो चुकी है और इन्हें खारिज किया जा चुका है. इसे कवर करने की आपको कोई जरूरत नहीं है.”

विनोद के जोस कारवां के कार्यकारी संपादक हैं.

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