केंद्र ने कारवां के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने से संबंधित आरटीआई खारिज

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जन-सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकरण दोनों ने आरटीआई अधिनियम के राष्ट्रीय-सुरक्षा खंड का हवाला देते हुए कारवां के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने के आदेश के बारे में सूचना के अधिकार के तहत दायर अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया है. एलेस्ट्रेशन : शाग्निक चक्रवर्ती

इस साल जनवरी में कारवां के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आदेश के बारे में मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई थी. मंत्रालय ने इसे देने से इनकार किया है. मंत्रालय ने सार्वजनिक डोमेन पर सूचना जारी करने पर भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरे का हवाला दिया है. मंत्रालय के पहले अपीलीय प्राधिकारी ने सूचना ब्लॉक करने के निर्णय के खिलाफ अपील को खारिज करने के लिए इसी आधार का हवाला दिया. यह स्पष्ट नहीं है कि एक राष्ट्रीय मीडिया का ट्विटर अकाउंट भारत की सुरक्षा, संप्रभुता या अखंडता से किस तरह समझौता करता है.

30 अप्रैल 2021 को मैंने मंत्रायल के समक्ष एक आरटीआई दायर कर उन सभी यूजरनेम और हैशटैग की सूची मांगी, जिन्हें केंद्र सरकार ने ट्विटर को ब्लॉक करने का निर्देश दिया था. तीन महीने पहले 31 जनवरी को मंत्रालय ने ट्विटर पर 257 लिंक ब्लॉक करने का आदेश पारित किया था. साथ ही ट्वीटों, अकाउंटों को भी ब्लॉक किया जाना इसमें शामिल है. एक हैशटैग- "#ModiPlanningFarmerGenocide" को भी ब्लॉक किया गया. मंत्रालय ने दावा किया कि यह लिंक "विरोधों के बारे में गलत सूचना फैला रहे थे और देश में सार्वजनिक व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करने वाली आसन्न हिंसा को जन्म देने की क्षमता रखते हैं." कारवां ने कभी भी इस हैशटैग का इस्तेमाल नहीं किया था. इस मुद्दे पर पारदर्शिता की कमी चलते, यह नहीं बताया जा सकता कि अन्य 256 लिंक में से कितने ने इस हैशटैग का उपयोग किया था.

1 फरवरी को समाचार एजेंसी एएनआई ने अज्ञात "सूत्रों" का हवाला देते हुए कहा कि मंत्रालय ने "गृह मंत्रालय और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अनुरोध पर जारी किसान आंदोलन को देखते हुए किसी भी तरह से कानून-व्यवस्था बिगड़ने को रोकने के लिए'' अकांउट ब्लॉक करने का आदेश जारी किया था. पिछले हफ्ते ही कारवां ने दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान किसान नवप्रीत सिंह की मौत की सूचना दी थी. उनकी मौत के चश्मदीदों, परिवार के सदस्यों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन करने वाले फोरेंसिक विशेषज्ञों ने कारवां को बताया था कि नवप्रीत की गोली मारकर हत्या की गई थी, जबकि दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि तेज गति से ट्रैक्टर चलाते हुए दुर्घटना में उनकी मौत हुई थी. नवप्रीत की मौत के बाद के दिनों में विभिन्न भारतीय राज्यों में पुलिस ने कई पत्रकारों सहित कारवां के संपादकों और मालिक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, उन पर देशद्रोह और दुश्मनी फैलाने जैसे अपराधों का आरोप लगाया गया.

मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2009 (जनता द्वारा सूचना की पहुंच को अवरुद्ध करने के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा) के नियम 9 के तहत आदेश जारी किया था, जो "आपातकाल के मामलों में सूचना को रोकने" की प्रक्रिया को निर्धारित करता है. नियमों के अनुसार, केंद्र सरकार के एक नामित अधिकारी को बगैर बाचतीत का रास्ता दिए सूचना को अवरुद्ध करने के आदेश जारी करने की अनुमति है- जैसे ट्विटर की सुनवाई के मौके पर हुआ. नियम आगे कहते हैं कि सूचना अवरुद्ध किए जाने के आदेश जारी होने के बाद, इस पर 48 घंटों के भीतर गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रतिनिधियों की एक समिति द्वारा विचार किया जाना चाहिए.

अपने 31 जनवरी के आदेश में, मंत्रालय ने ट्विटर को नियम 9 के तहत 257 लिंक को ब्लॉक करने का निर्देश दिया था और अगले दिन दोपहर 3 बजे समिति के साथ एक बैठक निर्धारित की थी. समिति की बैठक से कुछ समय पहले, ट्विटर ने अगले दिन केवल सरकारी आदेश का ही पालन किया. बैठक में, ट्विटर ने नोटिस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह आदेश का पालन नहीं करेगा क्योंकि यह "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों" से जुड़ा है. अपनी प्रतिक्रिया में, ट्विटर ने यह भी बताया कि अकाउंटों को पूरी तरह से ब्लॉक करने के लिए "यह वहज काफी नहीं" थी. 1 फरवरी की शाम तक ट्विटर ने ब्लॉक करने का आदेश वापस ले लिया था.

अगले दिन मंत्रालय ने ट्विटर को अपने पिछले आदेश का पालन न करने के लिए एक नोटिस जारी किया, जिसकी एक प्रति कारवां के पास है. गैर-अनुपालन नोटिस के अनुसार, सरकार ने तर्क दिया कि इस तरह के आदेशों का उद्देश्य केवल अपमानजनक ट्विटर अकाउंटों को दंडित करना नहीं था, बल्कि उन्हें भविष्य में इस तरह के ट्वीट पोस्ट करने से रोकना था. मंत्रालय ने कहा कि विशिष्ट ट्वीटों को रोकने भर से "इच्छित लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा क्योंकि हैंडल आम जीवन से लेकर उत्तेजक ट्वीटों / अवैध पोस्ट डालते हैं." इसमें यह भी दर्ज किया गया कि "आदेश पारित करते समय मध्यस्थ को ब्लॉक करने का औचित्य या संबंधी सामग्री प्रदान करने या प्रदर्शित करने की कोई वैधानिक ... या किसी मध्यस्थ के लिए ऐसे आदेशों की आनुपातिकता को जायज ठहराने की आवश्यकता नहीं है ." “There exists no statutory requirement to provide or demonstrate justifications or material to the intermediary while passing orders … or to justify the proportionality of such orders to any intermediary.”

आरटीआई आवेदन में, मैंने मंत्रालय से इन ट्विटर लिंक को ब्लॉक करने के संबंध में फाइल नोटिंग और विवेचना और आदेशों के रिकॉर्ड की एक प्रति प्रदान करने का भी अनुरोध किया. इनमें द कारवां (@thecaravanindia) के अलावा किसान एकता मोर्चा (@kisanektamorcha) और ट्विटर पर ट्रैक्टर (@tractor2twitr) और आदिवासी कार्यकर्ता हंसराज मीणा (@hansrajmeena) जैसे हैंडल शामिल थे. ट्विटर के साथ अपने पत्राचार और आरटीआई आवेदन के जवाब में पारदर्शिता की कमी के साथ, यह स्पष्ट नहीं है कि द कारवां द्वारा कौन सी अवैध सामग्री पोस्ट की गई थी. इन अकाउंटों में समानता का एकमात्र सामान्य सूत्र यह था कि इनमें से लगभग सभी नियमित रूप से किसान आंदोलन के बारे में अपडेट और राय पोस्ट कर रहे थे.

आरटीआई को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि क्योंकि कारवां के ट्विटर अकाउंट को आईटी अधिनियम की धारा 69 के तहत ब्लॉक किया गया था, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता से संबंधित मुद्दों से जुड़ी है और आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1)(ए) के तहत इसे उजागर नहीं किया जा सकता है.

केंद्रीय जन सूचना अधिकारी गौरव गुप्ता ने इस साल 19 मई को आरटीआई का जवाब दिया था. उन्होंने कहा कि ब्लॉक करने का आदेश ब्लॉकिंग रूल्स 2009 के तहत जारी किया गया था, जो बदले में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69A की रूपरेखा तैयार करती है. धारा 69A राष्ट्रीय सुरक्षा, भारत की संप्रभुता और अखंडता और इसके साथ ही सार्वजनिक हित के लिए आवश्यक माने जाने पर केंद्र सरकार को सूचना तक सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने की इजाजत देती है. गुप्ता ने आरटीआई के जवाब में कहा, "सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 ए और इसके मामले राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता से संबंधित हैं, इसलिए इस पर आरटीआई अधिनियम 2005 के 8 (1)(ए) के प्रावधान भी लागू होते हैं. इसलिए, जानकारी नहीं दी गई है."

आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1)(ए) में कहा गया है, "सार्वजनिक प्राधिकरण ऐसी सूचना देने के लिए बाध्य नहीं है, जिससे भारत की संप्रभुता और अखंडता, सुरक्षा, राज्य के रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों, विदेशी राज्य से संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या जो किसी अपराध को उकसाती है." गुप्ता ने ब्लॉकिंग रूल्स 2009 के नियम 16 का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि अनुरोधों और शिकायतों को गोपनीय रखा जाना है. हालांकि आरटीआई अधिनियम से इसे बाहर रखे जाने के संबंध में नियम खास तौर पर कुछ नहीं बताते लेकिन अधिनियम की धारा 22 में कहा गया है कि इसके प्रावधान अन्य कानूनों के प्रावधानों की अवहेलना करेंगे. डिजिटल-राइट्स एडवोकेसी ग्रुप सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर ने आईटी अधिनियम की धारा 69 ए के तहत ब्लॉक वेबसाइटों से संबंधित जानकारी की मांग करते हुए की पहली अपील के दौरान आरटीआई अधिनियम की धारा 22 के बारे में इसी तर्क का सफलतापूर्वक उपयोग किया है.

उसी दिन मुझे जवाब मिला, मैंने सीपीआईओ के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी और एक अन्य आरटीआई भी दायर की जिसमें विशेष रूप से मंत्रालय से कारवां और ट्विटर के संबंध में अपना पूरा आंतरिक पत्राचार प्रदान करने का अनुरोध किया गया था. अपील और आरटीआई दोनों को एक बार फिर ब्लॉक करने के नियमों के नियम 16, आईटी अधिनियम की धारा 69 ए और आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ए) का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया गया था.

मैंने इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की एक सहयोगी वकील अनुष्का जैन के साथ आरटीआई पर मंत्रालय की प्रतिक्रियाओं के बारे में बात की. यह फाउंडेशन एक गैर-लाभकारी संस्था है जो भारत में ऑनलाइन स्वतंत्रता, गोपनीयता और नेट न्यूट्रेलिटि की रक्षा के लिए कानूनी वकालत और न्यायिक अभियान चलाता है. "आईटी अधिनियम के नियम 16 के अनुसार, इंटरनेट पर किसी भी सामग्री के खिलाफ मंत्रालय द्वारा प्राप्त शिकायतों के संबंध में गोपनीयता बनाए रखी जानी है," जैन ने समझाया. “हालांकि, मंत्रालय ने उक्त शिकायत पर उसके द्वारा पारित आदेशों और निर्देशों को ब्लॉक करके इस नियम की गलत व्याख्या की है. केवल शिकायतें गोपनीय होती हैं, जारी किए गए आदेश या निर्देश नहीं. इसके अलावा, आईटी अधिनियम की धारा 69ए सरकार को इंटरनेट पर कुछ सामग्री को ब्लॉक करने का अधिकार देती है, हालांकि यह सरकार को आरटीआई अधिनियम के तहत ब्लॉक करने के आदेशों को साझा करने से इनकार करने का अधिकार नहीं देती है. (बताना चाहता हूं कि इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के खिलाफ मेरी दूसरी अपील का मसौदा तैयार करने और दायर करने में मेरी सहायता कर रहा है.)

धारा 8 (1)(ए) का इस्तेमाल नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान विवादास्पद फैसलों के बारे में आरटीआई अनुरोधों को खारिज करने के लिए किया है. नवंबर 2018 में मोदी सरकार के बड़े नोटों को बंद करने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी प्रावधान का हवाला देते हुए आरटीआई अनुरोधों पर विचार करने से इनकार कर दिया था. केंद्र सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन-मूल्य निर्धारण नीति पर अपने फैसलों के बारे में दायर एक आरटीआई को भी खारिज कर दिया। खारिज करते हुए दावा किया गया था कि जानकारी का खुलासा करना "राज्य के रणनीतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है."

अधिनियम के इस विशेष प्रावधान के अतिरिक्त केंद्र सरकार ने मोदी की कॉलेज की डिग्री के बारे में मांगी गई जानकारी देने से इनकार करने के लिए भरोसे में रखी गई जानकारी को उजागर करने से छूट देने वाले प्रावधान का भी उपयोग किया है. भारतीय वायु सेना ने राफेल लड़ाकू जेट की विवादास्पद खरीद के बारे में जानकारी के अनुरोधों को अस्वीकार करने के लिए इसी प्रावधान का उपयोग किया है. केंद्र सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त के एक आदेश की अवहेलना भी की और विदेशों से वापस लाए गए काले धन के बारे में जानकारी साझा करने से इनकार करके अर्ध-न्यायिक निकाय के फैसले को पलट दिया. इसके अलावा, 2019 में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने आरटीआई अधिनियम के तहत नए नियम भी पेश किए हैं जो आरटीआई निकायों की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं और केंद्र को सूचना आयुक्तों के वेतन और कार्यकाल पर निर्णय लेने का अधिकार देते हैं.

ब्लॉक करने के मंत्रालय के आदेश के जवाब में ट्विटर ने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के बारे में भी चिंता जताई थी. मंत्रालय के गैर-अनुपालन नोटिस में मंत्रालय ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता एक "अविश्वसनीय ... मौलिक अधिकारों का हिस्सा" है, लेकिन इसमें "गलत सूचना फैलाने, लोगों को भड़काने और सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी की स्वतंत्रता" शामिल नहीं है. फिर भी न तो ट्विटर के साथ मंत्रालय के पत्राचार और न ही आरटीआई के जवाब उन आधारों का कोई स्पष्ट ब्योरा देते हैं जो मंत्रालय के प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का औचित्य साबित करते हों.


सृष्टि जसवाल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह भारत में खोजी पत्रकारों के समूह द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की सदस्य हैं. वह इंटरन्यूज और किसा लैब्स के साथ 2020 मोजो फेलो थीं. उन्हें नेशनल फाउंडेशन फ़ॉर इंडिया का अनुदान भी मिला है.