किसान आंदोलन में मारे गए नवरीत के दादा ने लगाई न्यायिक जांच की अर्जी, कहा सच जानना संवैधानिक हक

किसान आंदोलन में मारे गए नवरीत के दादा हरदीप सिंह डिबडिबा ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दर्ज कर न्यायिक जांच की मांग की है. कारवां के लिए सीके विजयकुमार
15 February, 2021

26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान मारे गए नवरीत के दादा हरदीप सिंह डिबडिबा ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पोते नवरीत सिंह की मौत की न्यायिक निगरानी में समयबद्ध जांच की मांग की है. नवरीत के परिजनों का मानना है कि उसकी मौत पुलिस की गोली से हुई थी लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस आरोप का खंडन किया है.

अपनी याचिका में डिबडिबा ने मांग की है कि न्यायपालिका द्वारा नियुक्त और उसी की निगरानी में विशेष जांच टीम बनाई जाए जिसमें ऐसे पुलिस अधिकारी हों जो ईमानदार, प्रभावकारी और सत्यनिष्ठ हों. उन्होंने न्यायालय को यह निर्देश देने के लिए भी कहा है कि एजेंसी उन्हें नवरीत के शरीर की एक्स-रे रिपोर्ट और उस पोस्टमार्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराए जो उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में की गई थी. याचिका में पोस्टमार्टम में उल्लेखित एफआईआर की भी मांग की गई है. डिबडिबा ने उस इलाके के सीसीटीवी फुटेज भी मांगे हैं जहां नवरीत की मौत हुई थी. उनकी याचिका की सुनवाई 11 फरवरी को न्यायाधीश योगेश खन्ना ने की और उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस और रामपुर जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को नोटिस जारी किया है.

सुनवाई में दिल्ली पुलिस के वकील राहुल मेहरा ने अदालत को आश्वासन दिया कि पुलिस मामले में सहयोग करेगी और याचिकाकर्ता को सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराएगी. मेहरा ने कोर्ट से कहा, “हमें दस्तावेज और सीसीटीवी फुटेज याचिकाकर्ता को देने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन हमें स्टेटस रिपोर्ट जमा करने के लिए वक्त चाहिए.”

याचिकाकर्ता की ओर से जिरह करते हुए अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने प्रत्यक्षदर्शी हरमनजीत सिंह और बलविंदर सिंह के उन बयानों का उल्लेख किया जो कारवां में प्रकाशित हुए हैं. दोनों प्रत्यक्षदर्शियों ने कारवां को बताया था कि उन्होंने पुलिस को नवरीत के ट्रैक्टर पर गोली चलाते देखा था जिसके बाद उसका ट्रैक्टर पलट गया. ग्रोवर ने लंदन के पैथोलॉजिस्ट डॉ. बेसिल पर्ड्यू के विचार का भी उल्लेख किया जो उन्होंने नवरीत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के संदर्भ में समाचार पत्र गार्जिअन में व्यक्त किए थे. ग्रोवर ने कारवां की रिपोर्ट के उन अंशों को कोर्ट में पढ़कर सुनाया. उन्होंने कहा कि फोरेंसिक विशेषज्ञों ने माना है कि नवरीत के शरीर पर लगी चोटें गोली के घाव जैसी थीं. ग्रोवर ने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसी किसी चोटों का उल्लेख नहीं है जो सड़क हादसे में लगती हैं.

ग्रोवर ने अदालत से कहा कि दिल्ली पुलिस ने गंभीर प्रक्रियात्मक गलतियां की हैं और उसने जल्दबाजी में नवरीत की मौत को ट्रैक्टर दुर्घटना बता दिया. उन्होंने कहा, “दिल्ली पुलिस का मौत की अधिकारिक जांच न करना दंड प्रक्रिया संहिता का उल्लंघन है.” उन्होंने कहा, “पुलिस खुद मौत की वजह को सड़क हादसा नहीं बता सकती. यदि पुलिस को यकीन था कि नवरीत की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है तो भी वह ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उसे जांच करनी थी. दिल्ली पुलिस अपनी इच्छा से आपराधिक प्रक्रिया संहिता हो त्याग नहीं सकती और असत्यापित और निराधार दावे नहीं कर सकती.

कारवां ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि पुलिस नवरीत की मौत के स्थान को सुरक्षित करने में लापरवाही कर रही थी. एक चश्मदीद के मुताबिक नवरीत की मौत 26 जनवरी को दोपहर 1.30 बजे के करीब हुई थी. कारवां के रिपोर्टर उस स्थान पर दोपहर 2.30 बजे पहुंच गए थे और वहां अगले तीन घंटे तक थे. इस दौरान अपराध स्थल को सुरक्षित करने कोई पुलिस अधिकारी वहां नहीं पहुंचा. शाम करीब 4.30 बजे पुलिस का एक दल दंगा-रोधी वर्दी में वहां पहुंचा लेकिन उसने केवल आंध्र एजुकेशन सोसायटी भवन की सीसीटीवी फुटेज अपने कब्जे में ली और पीछे के रास्ते से भवन से बाहर चला गया. सोसायटी के बाहर सड़क पर खून फैला हुआ था लेकिन स्थल को तब भी सुरक्षित नहीं किया गया.

नवरीत की मौत की खबर को इसके कुछ घंटों बाद कुछ पत्रकारों और मीडिया संस्थानों ने एक सीसीटीवी क्लिप के माध्यम से दिखाया जिसमें ट्रैक्टर पलटता दिखाई दे रहा है. समाचार एजेंसी एएनआई ने इस क्लिप को दिल्ली पुलिस के हवाले से दिखाया. इसी वक्त अन्य मीडिया संस्थान इस क्लिप को चलाने लगे. इस वक्त तक भी दिल्ली पुलिस ने मौत के संबंध में औपचारिक बयान नहीं दिया था और पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ था.

ग्रोवर ने अदालत में उस क्लिप के बारे में कहा कि ट्रैक्टर का चलना और उसका पलट जाना दिख रहा है लेकिन यह क्यों पलटा यह साबित नहीं होता. उन्होंने कहा कि पुलिस को वे सीसीटीवी फुटेज दिखाने चाहिए जो उसने सोसायटी की बिल्डिंग से कब्जे में ली है जिनमें नवरीत की मौत का घटनाक्रम समीप से दर्ज है. वहीं सीसीटीवी फुटेज एकमात्र ऐसी हैं जो बता सकती हैं कि क्या हुआ था.

ग्रोवर ने कहा कि औपचारिक कार्यवाही न करने के बावजूद दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने 27 जनवरी को दावा किया कि पुलिस कार्रवाई में किसी की मौत नहीं हुई. ग्रोवर ने अदालत से कहा कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई दिन ब दिन संदिग्ध होती जा रही है.

नवरीत की मौत के बाद के दिनों में कई पत्रकारों और समाचार संस्थानों के खिलाफ नवरीत की मौत की रिपोर्टिंग करने या ट्वीट करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गईं. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटका और दिल्ली के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में 10 एफआईआर दर्ज की गईं. इन एफआईआर में सात लोगों के नाम हैं जिनमें कारवा के संपादक और मालिक भी हैं. इनमें राजद्रोह, समाज के अंदर शत्रुता का बढ़ाने, धार्मिक भावनाओं को उकसाने और आपराधिक भय जैसे अपराध शामिल हैं. ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इन एफआईआरों को खारिज कर दिया जाए और इन सभी मामलों में गिरफ्तारियां रोक दी जाएं.

ग्रोवर ने अदालत से कहा कि सूचना पाना याचिकाकर्ता का संवैधानिक अधिकार है. ग्रोवर ने डिबडिबा की याचिका पढ़ी कि “मैंने अपना 25 साल का पोता खोया है और मुझे यह जानने का हक है कि उसकी मौत कैसे हुई. समयबद्ध और पक्षपात रहित जांच का मेरा अधिकार है. पुलिस ने लगातार ऐसा व्यवहार किया है जिसके चलते मैं उस पर नाममात्र विश्वास नहीं कर पा रहा हूं. मुझे सच जानने का अधिकार है.”

पुलिस के वकील मेहरा ने कहा कि नवरीत की मौत एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी. दिल्ली पुलिस द्वारा प्राप्त निर्देशों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, “हमारी घोषित पोजीशन है कि नवरीत की मौत ट्रैक्टर पलटने से हुए है.” मेहरा ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज जब्त कर ली गई है और उनकी जांच की गई है. उन्होंने अदालत को आश्वासन दिलाया कि परिवार शव को उत्तर प्रदेश ले गया अन्यथा पोस्टमार्टम और अन्य जांच दिल्ली में ही हो जाती. लेकिन कारवां ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नवरीत का शव आईटीओ में घंटों तक पड़ा था और वह जगह पुलिस कमिश्नर कार्यालय के एकदम करीब थी.

मेहरा ने अदालत को बताया कि 2021 की एफआईआर संख्या 19 आईपी एस्टेट पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी. 26 जनवरी को कारवां के पत्रकारों ने शाम करीब 6 बजे उस पुलिस स्टेशन का भ्रमण किया था यह पूछने के लिए कि क्या उन्हें नवरीत की मौत की शिकायत प्राप्त हुई है. वहां ड्यूटी में मौजूद अधिकारियों ने कहा था कि उन्हें कोई कॉल नहीं आया है. मेरे सहयोगी और मैंने उन्हें जानकारी दी कि हमने किसानों को आंध्रा एजुकेशन सोसायटी के बाहर पुलिस को बार-बार फोन करते देखा है. एक ड्यूटी अधिकारी ने कहा कि उन्हें एक कंप्लेन प्राप्त हुई है लेकिन तब तक भी उस शिकायत को डेली डायरी में दर्ज नहीं किया गया था.

मेहरा ने अदालत से वादा किया कि वह दस्तावेज और फुटेज याचिकाकर्ताओं के साथ साझा करेंगे. उन्होंने स्टेटस रिपोर्ट जमा करने के लिए अदालत से समय मांगा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 26 फरवरी को होगी.