21 अगस्त को 29 साल पुराने तथाकथित गैरकानूनी हत्या के एक मामले में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी पर हत्या का आरोप दर्ज किया गया है. इस साल 6 मई को मोहाली के मटौर पुलिस स्टेशन में दर्ज पलविंदर सिंह मुल्तानी की एफआईआर में हत्या का आरोप जोड़ा दिया गया है. सैनी के खिलाफ दर्ज एफआईआर का संबंध दिसंबर 1991 में पलविंदर के भाई बलवंत सिंह मुल्तानी के अपहरण और गुमशुदगी से है. एफआईआर में पुलिस के छह अन्य अधिकारियों के नाम भी हैं. मोहाली पुलिस द्वारा इस मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच टीम की अनुशंसा पर न्यायिक मजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास) की अदालत ने एफआईआर में धारा 302 के तहत आरोप जोड़ने की याचिका मान ली थी. एसआईटी ने कोर्ट से यह अनुरोध दो सहआरोपी पुलिस वालों, जागीर सिंह और कुलदीप सिंह, जो अपराध के समय क्रमशः सब इंस्पेक्टर और असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर थे, के बयान के बाद किया था. इन दोनों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने सरकारी गवाह बन जाने की इजाजत दे दी है.
14 अगस्त को जागीर, कुलदीप और एक अन्य आरोपी हरसहाय शर्मा ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अपना बयान दर्ज कराया था. एसआईटी ने अदालत में आवेदन दर्ज कर अनुरोध किया था कि इन तीनों के सरकारी गवाह बन जाने पर इन्हें मामले से बरी कर दिया जाए. इन तीनों के बयानों में सैनी के निर्देश पर पुलिस स्टेशन में बलवंत को दी गई यातना की डरावनी तस्वीर सामने आती है. यातना की वजह से बलवंत की मौत हो गई थी. इन बयानों से हत्या के बाद इसे छुपाने में दो अन्य पुलिस स्टेशन के अधिकारियों की भूमिका का भी पता चलता है. इन्होंने बलवंत को भगोड़ा बता कर फरार करार दिया था. जागीर, कुलदीप और शर्मा के अनुसार, पुलिस अधिकारियों ने ऐसा सैनी के इशारे पर किया था. एसआईटी के आवेदन के अनुसार, चूंकि अपराध पुलिस स्टेशन परिसर के अंदर हुआ था इसलिए लगभग तीन दशक पुराने इस मामले में प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के अलावा यानी कथित अपराध के वक्त वहां मौजूद पुलिस अधिकारियों के बयान के अलावा, अन्य साक्ष्य जुटा पाना मुमकिन नहीं है. 18 अगस्त को मुख्य जुडिशल मजिस्ट्रेट दीपिका शर्मा ने जागीर और कुलदीप को सरकारी गवाह बन जाने की मंजूरी दे दी लेकिन शर्मा के ऐसे ही अनुरोध को नामंजूर कर दिया.
कारवां में प्रकाशित मेरी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सैनी के 36 साल लंबे पुलिस कैरियर में उन पर जबरन गायब कर देने, यातना देने, गैर न्यायिक हत्या और अन्य आरोप लगते रहे थे. इसके अलावा सैनी एक ऐसे अधिकारी भी हैं जिनका नाम मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित राष्ट्र संघ मानव अधिकार परिषद की अप्रैल 2013 की रिपोर्ट में है. इससे पहले जो रिपोर्ट मैंने की थी उसमें मैंने बलवंत के गायब होने और पुलिस के दावे, बलवंत के परिवार द्वारा लड़ा जा रहा केस और प्रत्यक्षदर्शियों को डराने और टॉर्चर करने के सैनी के प्रयासों के बारे में बताया गया था. उस रिपोर्ट में इस बात की पड़ताल की गई थी कि कैसे 15 सालों से भी ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद बलवंत की गुमशुदगी और सैनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए केंद्रीय अनुसंधान ब्यूरो को मामला सौंपा गया लेकिन पंजाब पुलिस ने सैनी का बचाव किया और तकनीकी आधार पर सीबीआई की जांच खारिज करवा ली. मैंने उस रिपोर्ट में यह भी बताया था कि कैसे 2018 में सैनी के रिटायर होने के बाद बलवंत के परिवार ने न्याय की लड़ाई दुबारा शुरू की. उस रिपोर्ट में व्यवस्था के प्रत्येक स्तर पर बलवंत की गुमशुदगी को ढकने की पुलिस की मिलीभगत के बारे में भी बताया गया है.
21 अगस्त को न्यायिक मजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास) जसवीर कौर ने एक आदेश जारी कर कहा कि जागीर और कुलदीप के बयान बताते हैं कि 1991 में बलवंत सिंह मुल्तानी को अमानवीय किस्म की यातना दी गई थी और उनका नामोनिशान मिटाने का व्यवस्थित प्रयास किया गया था. उन्होंने आगे कहा, “इन सरकारी गवाहों ने आरोपी व्यक्तियों द्वारा बलवंत को यातना देते हुए और उसके बाद मामले को कवरअप करने की कवायद को अपनी आंखों से देखा था और इसलिए इससे संबंधित सभी साक्ष्यों की खोज करने के लिए यह अदालत 6 मई 2020 को तत्काल प्रभाव से एफआईआर में आईपीसी की धारा 302 जोड़ने और तदनुसार जांच करने का निर्देश देती है.”
गौरतलब है कि 10 अगस्त को जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रजनीश गर्ग ने एसआईटी को आदेश दिया था कि यदि एफआईआर में धारा 302 जोड़ी जाती है तो सैनी को गिरफ्तार करने से पहले एसआईटी उन्हें तीन दिन का नोटिस दे. कौर ने अपने आदेश में विशेष रूप से उल्लेख किया है कि सैनी और अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने से पहले तीन दिन का नोटिस दिया जाए ताकि वे इस संबंध में अदालत में जा सकें.
24 अगस्त को नोटिस की तीन दिन की अवधि समाप्त होने के कुछ घंटे पहले सैनी ने जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेंद्र सिंह राय की अदालत में अग्रिम जमानत के लिए याचिका डाली. 11 मई को इस मामले में उन्हें पहले ही अग्रिम जमानत दी जा चुकी थी. उस वक्त अदालत ने उन्हें निर्देश दिया था कि वह पुलिस सुपरिटेंडेंट हरमनदीप सिंह हंस की अध्यक्षता वाली एसआईटी के समक्ष सात दिनों के भीतर उपस्थित होकर जांच में सहयोग करें. अदालत ने सैनी को जमानत देते वक्त कड़ी शर्तें भी लगाई. सैनी को चिकित्सा इमरजेंसी या एसआईटी के बुलावे के अतिरिक्त घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी.
सरकारी वकील ने सैनी की हाल की जमानत याचिका का इस आधार पर विरोध किया कि सैनी ने 11 मई के अदालत के आदेश में बताई गई शर्तों का कम से कम तीन बार उल्लंघन किया है. अपने आवेदन में सरकारी वकील के कार्यालय ने कहा है कि 21 और 22 अगस्त को सैनी अपने घर में नहीं थे. उस आवेदन में आरोप लगाया गया है कि सैनी ने जांच को रोकने और जांच अधिकारी के कर्तव्य के निर्वहन में अवरोध खड़ा करने के लिए मामले में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के न्यायाधिकार पर सवाल उठाया. इसके अलावा आवेदन में कहा गया है कि सैनी ने कम से कम दो मामलों में आरोपी जागीर और ओंख सिंह को डराने की कोशिश की ताकि कोर्ट के सामने उन्हें सच्चाई का खुलासा करने से रोका जा सके. उस आवेदन के मुताबिक, जागीर के क्षमा याचना डालने के बाद सैनी के वकील एच. एस. धनवा ने, जिन्होंने पहले जागीर और ओंख सिंह की अग्रिम जमानत याचिका डाली थी, दोनों को सेवा देने से इनकार कर दिया. आवेदन के अनुसार पहले ओंख सिंह सरकारी गवाह बनना चाहता था लेकिन सैनी की धमकी के बाद वह पीछे हट गया.
पीड़ित परिवार के वकील प्रदीप सिंह विर्क ने मुझे बताया कि जब 11 दिसंबर 1991 को पुलिस ने बलवंत को उठाया था तो उसके पिता और परिवार ने उसे छुड़ाने का हर संभव प्रयास किया था लेकिन वे सफल नहीं हो सके क्योंकि बलवंत सिंह मुल्तानी को एसएसपी सुमेध सैनी और उनके मातहत पुलिस अधिकारियों ने अवैध रूप से अपहृत किया था और उसे अमानवीय यातना दी थी और हिरासत में उसकीहत्या कर दी थी.
विर्क ने जागीर और कुलदीप द्वारा अदालत में दर्ज कराए बयान मुझे दिखाए. उनकी क्षमा याचिका के अनुसार, बलवंत को झूठे मामले में फंसाने के लिए तत्कालीन सब इंस्पेक्टर शर्मा जिम्मेदार हैं. यह मामला चंडीगढ़ सेक्टर 17 पुलिस स्टेशन की 1991 की एफआईआर नंबर 440 में दर्ज है. उस झूठे मामले में एक पिस्तौल की जब्ती दिखाई गई थी. उस एफआईआर के आधार पर बलवंत को 11 दिसंबर 1991 की रात को हिरासत में लिया गया था. हालांकि चंडीगढ़ पुलिस ने दावा किया था कि बलवंत को 13 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था. 2007 में चंडीगढ़ पुलिस के वरिष्ठ सुपरिटेंडेंट दिनेश भट्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दायर अपने हलफनामे में भी यही दावा किया था.
जागीर ने अपने बयान में स्वीकार किया है कि रिकॉर्ड से छेड़छाड़ करने के लिए वह भी जिम्मेदार है. उन रिकार्ड में दिखाया गया है कि बलवंत को कादियान पुलिस स्टेशन में 18 दिसंबर 1991 को ले जाया गया था और वहां से अगले दिन वह पुलिस हिरासत से भाग गया. जागीर ने अपने बयान में कहा है कि बलवंत पहले ही मर चुका था. कुलदीप ने अपने बयान में माना है कि कार्यवाही में उन्होंने हस्ताक्षर किए थे.
जागीर के बयान में बताए गए विवरण बड़े डरावने हैं. जागीर ने कहा है, “एक कमरे में एसएसपी सुमेध सिंह सैनी कुर्सी डाल कर बैठे थे और उनके साथ इंस्पेक्टर के. आई. पी. सिंह, डीएसपी बलदेव सिंह सैनी, इंस्पेक्टर प्रेम मलिक और सब इंस्पेक्टर सतबीर सिंह थे. ये सभी लोग बलदेव सिंह मुल्तानी से पूछताछ कर रहे थे. एसएसपी सुमेध सिंह सैनी ने इंस्पेक्टर प्रेम मलिक को निर्देश दिया कि वह बलवंत सिंह मुल्तानी के पीछे डंडा घुसाए. लकड़ी का डंडा बलवंत सिंह मुल्तानी के पीछे लगाने के बाद दूसरी तरफ से उस डंडे पर इंस्पेक्टर प्रेम मलिक ने लात मारी. अगले दिन यानी 14 दिसंबर 1991 को मैंने चंडीगढ़ सेक्टर 17 पुलिस स्टेशन का दुबारा भ्रमण किया और देखा कि वहां बलवंत सिंह मुल्तानी जमीन पर लेटा दर्द से छटपटा रहा है. मैं वापस आ गया और दो-तीन दिन बाद सुमेध सिंह सैनी ने मुझे चंडीगढ़ सेक्टर 17 पुलिस स्टेशन बुलाया. वहां एसएसपी सुमेध सिंह सैनी ने मुझे बताया कि बलवंत सिंह मुल्तानी की मौत हो गई है. इंस्पेक्टर प्रेम मलिक, डीएसपी बलदेव सिंह सैनी और सब इंस्पेक्टर सतबीर सिंह को सुमेध सिंह सैनी ने बलवंत सिंह मुल्तानी की बॉडी को ठिकाने लगाने का जिम्मा दिया.”
जागीर ने अपने बयान में यह भी कहा है कि उसे फाइल बंद करने के लिए सुमेध सिंह सैनी ने कहा था.
कुलदीप ने जो बयान दिया है उससे पुलिस पर लगे आरोप पुख्ता होते हैं. बयान में लिखा है, “18 दिसंबर 1991 को सुमेध सिंह सैनी ने एक टीम बनाई और उस टीम ने बलवंत सिंह मुल्तानी के शव को गुपचुप तरीके से ठिकाने लगा दिया. एसआई जागीर सिंह को एक टीम बनाने के लिए कहा गया था जो बटाला के कादियान पुलिस स्टेशन जाकर बलवंत सिंह मुल्तानी के भाग जाने की एफआईआर दर्ज कराएगी. उसी दिन सब इंस्पेक्टर जागीर सिंह के साथ मैं और सब इंस्पेक्टर अनूप सिंह और अन्य पुलिस अधिकारी बटाला के कादियान पुलिस स्टेशन गए और वहां हमने एफआईआर दर्ज कराई जिसमें कहा गया था कि बलवंत सिंह मुल्तानी भाग गया है.”
इन बयानों का संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा है, “इस मामले के सभी तथ्यों के मद्देनजर अदालत का विचार है कि इस मामले में जागीर सिंह और कुलदीप सिंह को माफ कर दिया जाना चाहिए और दोनों के लिए पर्याप्त होगा कि वे जांच एजेंसी की मदद मुख्य आरोपी के खिलाफ बलवंत सिंह मुल्तानी के कथित अवैध अपहरण, उसकी अवैध गिरफ्तारी और थाने में उसे दी गई यातना, जिसके कारण बलवंत सिंह मुल्तानी की मौत हुई, और मृतक के शरीर को ठिकाने लगाने से जुड़े साक्ष्य जुटाने में करें. अदालत ने यह भी जोड़ा है कि इन दोनों आरोपियों के खुलासे की मदद के बिना किसी भी आरोपी के अपराध को साबित करना मुमकिन नहीं होता इसलिए इन आरोपियों को क्षमा देने से इनकार करना असंभव नहीं भी है तो मुश्किल है.
सैनी द्वारा दूसरी जमानत याचिका डालने के एक दिन बाद जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय अग्निहोत्री ने उन्हें 27 अगस्त तक की अंतरिम जमानत दे दी थी. अब यह मामला सुनवाई के लिए अतिरिक्त जिला और सेशन जज रजनीश गर्ग की अदालत में आएगा.
बलवंत के परिवार को उम्मीद है कि उन्हें न्याय मिलेगा. वकील विर्क ने मुझसे कहा कि सरकारी गवाह हो गए दो आरोपियों के अलावा इस मामले का एक अन्य चश्मदीद सामने आया है. विर्क ने बताया कि उस आदमी का नाम राजेश राजा है और वह बलवंत के साथ ही लॉकअप में बंद था. वह व्यक्ति भी बलवंत को लॉकअप में दी गई यातना का चश्मदीद है.