ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ (17 सितंबर, 1879—24 दिसंबर, 1973) भारत की बहुजन-श्रमण परंपरा के आधुनिक युग के महानतम नायकों में एक हैं. वे एक ऐसे नायक हैं, जिन्हें अन्याय एवं असमानता का कोई रूप स्वीकार नहीं है. वे जाति एवं पितृसत्ता को भारतीय समाज के पांव की एक ऐसी बेड़ी मानते हैं, जिसे तोड़े बिना न्याय एवं समता आधारित आधुनिक लोकतांत्रिक भारत का निर्माण नहीं किया जा सकता है. उनका कहना था कि जाति व्यवस्था को पोषित करने वाले ब्राह्मणवाद, शास्त्रों, धर्म और ईश्वर के विनाश के बिना जाति का विनाश नहीं हो सकता है, क्योंकि ये सब लोगों में गुलामी की भावना भरने और अज्ञानता की वृद्धि के लिए रचे गए हैं.
उनकी विशिष्ट तर्क-पद्धति, तेवर और अभिव्यक्ति शैली के चलते जून 1970 में यूनेस्को ने उन्हें ‘आधुनिक युग का मसीहा’, ‘दक्षिण-पूर्वी एशिया का सुकरात’, ‘समाज सुधारवादी आंदोलनों का पितामह’ तथा ‘अज्ञानता, अंधविश्वास, रूढ़िवाद और निरर्थक रीति-रिवाजों का कट्टर दुश्मन’ स्वीकार किया.
आजीवन अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाले पेरियार का जन्म तमिलनाडु के इरोड कस्बे में हुआ था. इनके पिता का नाम वेंकटप्पा नायकर और मां का नाम चिन्ना थयम्मल उर्फ मुथम्मल था.
प्रस्तुत अंश ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ में एक कार्यक्रम में पेरियार द्वारा दिए गए एक भाषण का लिखित रूप है. तमिल भाषा में 1944 में यह ‘इनी वरुम उलहम?’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था. अंग्रेजी में इसका पहला संस्करण 1980 में ‘दी वर्ल्ड टू कम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ. तमिल से अंग्रेजी में इसका अनुवाद प्रो.एस. वेणु ने किया था. 2012 में इसका संशोधित संस्करण प्रकाशित हुआ, जिसका संपादन प्रो.एस.एफ. एन. चेलैया ने किया. इसे पुस्तिका के रूप में ‘द पेरियार सेल्फ-रिस्पेक्ट प्रोपेगेंडा इंस्टीट्यूट’ ने प्रकाशित किया. जिसकी समीक्षा सुप्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक ‘दि हिंदू’ में छपी थी, जहां पेरियार की तुलना बीसवीं शताब्दी के एच.जी.वेल्स से की गई थी.
पेरियार मानव जाति के लिए कैसी दुनिया की कल्पना करते हैं, इसकी विस्तृत रूपरेखा उन्होंने ‘भविष्य की दुनिया’ शीर्षक अपने इस लेख में प्रस्तुत की है.
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