बीते साल की एक सर्द सुबह, बिहार के सगुनी गांव में, 9 महिलाओं ने ग्राम कचहरी या ग्राम अदालत की अध्यक्षता की, जिसमें शराब के सेवन, वैवाहिक विवादों और स्थानीय निवासियों को प्रभावित करने वाले अन्य मुद्दों की शिकायतें सुनी गईं. सगुनी गांव राज्य के रोहतास जिले के परसा ब्लॉक में स्थित है, इसकी पंचायत नजदीकी 13 गांवों पर अपने अधिकार क्षेत्र को लागू करती है. अदालत को संबोधित करने वाली महिलाओं को इन क्षेत्रों से प्रतिनिधि चुना गया था. 2006 में, नीतीश कुमार सरकार ने बिहार के पंचायती राज संस्थानों, या पीआरआई में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की थी. फिर भी, स्थानीय प्रशासन में सीधे तौर पर खुद को शामिल करने वाली महिलाओं का शांत विश्वास ग्रामीण बिहार में एक दुर्लभ दृश्य था.
हालांकि बिहार में एक "मौन क्रांति" लाने के लिए महिला आरक्षण का बहुत से लोगों ने स्वागत किया है, लेकिन जमीनी तौर पर इस नीति का वास्तविक सशक्तीकरण नहीं हुआ है. दिसंबर 2018 और इस साल फरवरी में, बिहार में तीन जिलों के आठ गांवों की यात्रा के दौरान, मैंने देखा कि आरक्षण नीति लागू होने के बाद एक नई प्रथा शुरू हो गई थी. महिलाएं अपने पतियों की ओर से प्रॉक्सी अधिकारियों के रूप में चुनाव लड़ती थीं, जिन्हें “मुखियापति और सरपंचपति” यानी मुखिया और सरपंच के पति कहा जाता था. हालांकि प्रॉक्सी उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ने वाली महिलाएं पूरे बिहार में यथास्थिति में दिखाई दीं, लेकिन सगुनी जैसे कई गांवों में, मैं ऐसी महिलाओं से मिली, जिन्होंने अपने पदों की शक्तियों और जिम्मेदारियों को अपनाया और अपने सार्वजनिक पद पर अपनी स्वतंत्रता का दावा किया. इन महिलाओं ने अपने गांव के अन्य लोगों को स्थानीय शासन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया, लेकिन मेरी रिपोर्टिंग बताती है कि ऐसे उदाहरण अपवाद ही थे, नियम नहीं.
बिहार में पीआरआई एक त्रिस्तरीय संरचना को अपनाता है. पीआरआई संरचना के सबसे निचले स्तर पर प्रत्येक गांव या गांवों के समूह के लिए ग्राम पंचायतें हैं, उसके बाद ब्लॉक स्तर पर पंचायत समितियां और जिला स्तर पर जिला परिषदें हैं, जहां एक निर्वाचित मुखिया प्रत्येक ग्राम पंचायत की अध्यक्षता करता है, और प्रत्येक पंचायत के क्षेत्र के भीतर एक ग्राम कचहरी गांव के संबंध में न्यायिक कार्यों को करती है. ग्राम कचहरी मे भी निर्वाचित पदाधिकारी शामिल होते हैं, जिन्हें पंच के रूप में जाना जाता है, और इसका नेतृत्व सरपंच करता है.
सगुनी की ग्राम कचहरी की सरपंच बिंदू देवी ने अन्य महिला अधिकारियों को अपनी न्यायिक जिम्मेदारियों पर नियंत्रण रखने के लिए प्रेरित करने में एक बड़ी भूमिका निभाई है. बिंदू का कहना है, "पंचों को कचहरी में भाग लेने के लिए राजी करना आसान नहीं था, बजाय इसके कि उनके पति उनका प्रतिनिधित्व करें." उनके पास पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री है, वे अपने पति मणिलाल के साथ राज्य की राजधानी में रहती हैं. प्रत्येक रविवार को, बिंदू अपने प्रशासनिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए सगुनी से बस से पचास किलोमीटर की यात्रा करती हैं और अन्य महिला अधिकारियों को भी अपने साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं. “वे अब भी हर हफ्ते एक बार कचहरी आने से हिचकिचाती हैं, लेकिन मैं गांव की महिलाओं को इसमें शामिल होने के लिए मना लेती हूं. अब जबकि महिला पंचों ने कचहरी में आना शुरू कर दिया है, मैं इसे एक उपलब्धि के रूप में देखती हूं.”
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