राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनाआरसी) और नागरिकता संशोधन कानून, 2019 (सीएए) के खिलाफ 21 दिसंबर को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बिहार बंद के दौरान औरंगाबाद शहर में कथित तौर पर पुलिस पर हुए पथराव के बाद पुलिसिया कार्रवाई में कुल 46 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इन गिरफ्तार लोगों में 14 नाबालिग थे.
इनमें से 13 नाबालिगों को अलग-अलग तारीखों में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने जमानत दे दी है. लेकिन, जमानत के लिए उनके परिजनों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. अव्वल तो उनके परिजनों को यह साबित करने में ही एक महीना गुजर गया कि ये 13 नाबालिग हैं. नाबालिगों के परिजनों ने मुझे बताया कि नाबालिग साबित करने के लिए स्कूल के सर्टिफिकेट समेत अन्य जरूरी दस्तावेज भी दिखाए थे, लेकिन उनका केस जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में स्थानांतरित नहीं किया गया, बल्कि सभी नाबालिगों को बालिग बताकर औरंगाबाद मंडल कारा (जेल) भेज दिया गया. बाद में 3 जनवरी को आरोपितों के वकील ने सभी 14 नाबालिगों के केस की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में करने का आवेदन दिया था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में सुनवाई के बाद, आखिरकार उन्हें गया के जुवेनाइल होम में भेज दिया गया. इससे पहले उन्हें करीब एक महीना औरंगाबाद मंडल कारा में संगीन अपराधों में सजा काट रहे अपराधियों के साथ बिताना पड़ा.
नाबालिग समेत 43 आरोपियों की तरफ से केस लड़ रहे वकील मेराज खान ने मुझे बताया, “13 में से 10 नाबालिगों के सर्टिफिकेट और उनके चेहरे-मोहरे से अदालत संतुष्ट हो गई कि उनकी उम्र कम है. वहीं, तीन नाबालिगों की उम्र का पता लगाने के लिए उनकी मेडिकल जांच कराने का आदेश दिया गया है. इन 13 नाबालिगों को जमानत मिल गई है, जबकि अन्य आरोपियों, जिनमें तीन महिलाएं और एक नाबालिग भी शामिल हैं, की जमानत याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं.”
एनआरसी-सीएए के खिलाफ राजद के बिहार बंद के दौरान औरंगाबाद शहर में जामा मस्जिद के पास दो गुटों में पत्थरबाजी हुई थी, जिसके बाद कुरैशी मोहल्ला, डॉ. नेहाल की गली, शाहगंज, पठान टोली आदि मुस्लिम बहुल इलाकों में पुलिस ने बर्बर कार्रवाई की थी. हालांकि, उस दिन औरंगाबाद शहर के जामा मस्जिद के पास कानून व व्यवस्था बनाए रखने के लिए ड्यूटी पर तैनात औरंगाबाद के ग्रामीण विकास अभिकरण के असिस्टेंट इंजीनियर मनोज कुमार ने पुलिस को दिए अपने लिखित बयान में कहा था कि गिरफ्तार सभी आरोपित पुलिस पर पथराव में शामिल थे. इसी बयान के आधार पर पुलिस ने भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी), विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी. लेकिन, इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद फुटेज व स्थानीय लोगों के मोबाइल में दर्ज तस्वीरों से साफ पता चलता है कि पुलिस ने बर्बरता की थी.
मैंने घटना के बाद इलाके के कुछ मुस्लिम परिवारों से बात की थी, जिनके घरों में पुलिस घुसी थी. कई परिवारों ने मुझे बताया था कि पुलिस जबरदस्ती उनके घरों में दाखिल हुई थी और बिना कसूर लोगों को गिरफ्तार कर ले गई. कुछ नाबालिगों के परिवारों से भी मैंने मुलाकात की थी. उन्होंने मुझसे कहा था कि उनके बच्चे बेकसूर हैं.
पिछले दिनों जुवेनाइल होम से जमानत पर छूटे कुछ नाबालिगों से मैंने मुलाकात की और उनसे जानने की कोशिश की कि घटना के वक्त वे कहां थे और उनके साथ पुलिस का बर्ताव कैसा था? नाबालिगों ने बातचीत में न केवल पुलिस के आरापों को खारिज किया बल्कि उन पर थाने में बेरहमी से पिटाई करने का भी संगीन आरोप लगाया.
जिस दिन मैं इस रिपोर्ट के सिलसिले में यहां आया था, उस दिन पुलवामा हमले की बरसी थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन एबीवीपी के सदस्य इस इलाके से एक जुलूस निकाल रहे थे. पहले तो उनके जुलूस में देशभक्ति वाले गाने बज रहे थे लेकिन जैसे ही वे लोग एक मस्जिद के पास पहुंचे, तो गाना रोक कर नारेबाजी करने लगे. एबीवीपी वाले नारे लगा रहे थे, “पुलिस पर पथराव करने वाले देश के गद्दार हैं.” इसके थोड़ी देर बाद जब जुलूस आगे बढ़ गया तो औरंगाबाद से बीजेपी के सांसद सुशील कुमार सिंह भी आकर जुलूस में शामिल हो गए.
कुरैशी मोहल्ले में रहने वाले 17 साल के एक नाबालिग को 3 फरवरी को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने निजी मुचलके पर जमानत दी है. उनके साथ 5 और नाबालिगों को जमानत मिली है. 17 साल के नाबालिग के दाहिने हाथ में लगे प्लास्टर की सफेदी पर मैल जम चुका है और उस पर पेन से प्लास्टर की मोटाई के बारे में लिखा हुआ है. काले व कत्थई रंग का जैकेट व नीली पतलून पहने, उस नाबालिग के चेहरे पर मायूसी और थकान बराबर मात्रा में मौजूद हैं. आंखें कुछ भीतर धंसी हुई हैं. डॉक्टर ने डेढ़ महीने बाद प्लास्टर हटाने की हिदायत दी है.
पुलिस को दिए गए लिखित बयान के मुताबिक, कुरैशी मोहल्ले के घरों की छत से उपद्रवी पुलिस पर ईंट-पत्थर से हमला कर रहे थे. तभी मौका पाकर कुछ पुलिस कर्मी छत पर चढ़ने लगे, जिसकी आहट सुन कर कुछ उपद्रवी दूसरी छत पर तो कुछ छत से नीचे कूद गए. कुछ उपद्रवियों को अतिरिक्त बल के साथ खदेड़ा गया, जो भागने के क्रम में गिरफ्तार कर लिए गए.
पुलिस को दिए गए लिखित बयान में इस नाबालिग और उसके पिता को अलग-अलग वक्त में गिरफ्तार करने की बात कही गई है. लेकिन, नाबालिग ने लिखित बयान में लगाए गए सभी आरोपों को खारिज करते हुए मुझे बताया, “हमारे घर में शादी की तारीख तय होनी थी, इसी की तैयारी चल रही थी. इन तैयारियों के चलते हमलोग उस दिन सुबह से ही घर के कामों में ही व्यस्त थे. कोई घर से बाहर नहीं गया था. 1.30 से 1.45 बजे के करीब 50 से 60 पुलिस कर्मचारी हमारे घर का दरवाजा तोड़ कर भीतर दाखिल हुए और मुझे, मेरे पिताजी, 3 बुआ और 3 भाइयों को पकड़ कर थाने में ले गए. महिलाओं को भी पुरुष पुलिस कर्मचारियों ने ही पकड़ कर बाहर निकाला.”
17 साल का यह नाबालिग मैट्रिक पास है. इस बार इंटर की परीक्षा दी थी, लेकिन फेल हो गया. अभी तक उसने नामांकन नहीं करवाया है.
हाथ में लगे प्लास्टर के बारे में जब मैंने पूछा तो, उसने कहा, “पुलिस ने मुझे घर से पकड़ा और पीटते हुए गाड़ी में ले गई. गाड़ी में कुछ पुलिसवालों ने मुझे और गिरफ्तार अन्य लोगों को घूसों से मारा. जब थाने में गए, तो हाजत (हवालात) से कुछ दूर हमें ले जाकर उन्होंने (पुलिसवाले) कहा कि हमलोग दौड़ कर हाजत में जाएं. हमलोग दौड़ने लगे, तो दो दर्जन से ज्यादा पुलिसवाले हम पर अंधाधुंध लाठियां बरसाने लगे. वे हमारे सिर पर लाठियां मार रहे थे. सिर बचाने के लिए मैंने दाहिना हाथ सिर के सामने अड़ा दिया, तो लाठियां हाथ पर पर लगीं. दर्द से हमलोग बेइंतहा कराह रहे थे, लेकिन शनिवार (21 दिसंबर) को पुलिस हमें इलाज के लिए अस्पताल नहीं ले गई. रविवार को हमें औरंगाबाद के सदर अस्पताल के कैदी वार्ड में भर्ती कराया गया, जहां प्लास्टर लगाया गया और फिर जेल भेज दिया गया. लेकिन वह कच्चा प्लास्टर था. जब मैंने जेल में यह बात बताई, तो मुझे वापस सदर अस्पताल ले जाया गया. सदर अस्पताल में दो दिन भर्ती रहने के बाद 8 जनवरी को पटना मेडिकल कॉलेज व अस्पताल ले जाया गया. वहां 5 दिन भर्ती रहा और फिर वापस मुझे जेल भेज दिया गया.”
नाबालिग के मुताबिक, डॉक्टर ने उसे बताया है कि उसके हाथ की हड्डियों में दरार आ गई है. उसने मुझे शरीर के अन्य हिस्सों में आए जख्मों के निशान भी दिखाए और कहा, “पुलिस जिस गुस्से में मार रही थी, उससे लग रहा था कि हमलोगों को लेकर उनके जेहन में नफरत भरी हुई है. मेरे भाई को इतनी बेरहमी से मारा है कि वह घटना के दिन से ही अस्पताल में भर्ती हैं.”
“हमलोगों को पीटते हुए पुलिस वाले ने कहा था, ‘बहनचोद पुलिस पर पत्थर चलाता है...जम्मू-कश्मीर बना देंगे,’” उसने बताया.
वह 17 साल की अपनी जिंदगी में पहली बार जेल गया था. उसने जेल का कड़वा अनुभव साझा करते हुए कहा, “जेल का खाना बेतरह खराब था. बिल्कुल खाया नहीं जा रहा था. बाद में जब जुवेनाइल होम में भेजा गया, तो वहां ठीकठाक खाना मिलता था.”
मैंने उससे पूछा कि क्या वह राजद की रैली में शामिल हुआ था या प्रदर्शन के वक्त मौके पर मौजूद था, तो उसने इससे साफ तौर पर इनकार किया और कहा कि उसे नहीं मालूम कि पुलिस पर पत्थर किसने फेंके. उसके पिता घूम-घूम कर सामान बेचते हैं और उसके दो भाई मुंबई में चिकेन की दुकान में काम करते हैं. घर में शादी की तारीख तय होनी थी, इसीलिए दोनों मुंबई से यहां आए हुए थे. 21 दिसंबर से वे लोग जेल में बंद हैं, तो घर की कमाई भी रुकी हुई है.
उसकी मां ने मुझसे मिन्नतें करते हुए कहा, “उन तीन लोगों की कमाई से ही घर का खर्च चलता था. अभी कर्ज लेकर किसी तरह घर चला रहे हैं. सर, किसी तरह उन्हें जेल से छुड़वा दीजिए.”
उसका 16 साल का नाबालिग भाई 13 फरवरी को जुवेनाइल होम से छूटा है. उसने भी पुलिस पर थाने में बेरहमी से पीटने का आरोप लगाया है. 16 साल के भाई ने बताया कि पुलिस ने भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए ताबड़तोड़ लाठियां बरसाईं. लाठी की मार से उसके सिर पर गंभीर चोट आई है. उसने मुझे कहा, “रह-रह कर सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द होता है.”
इन नाबालिगों के घर से कोई 3-4 मिनट पैदल चलने पर डॉ. नेहाल की गली आती है. यहां डॉ. नेहाल की क्लीनिक है और संभवतः उन्हीं के नाम पर इस गली को डॉ. नेहाल की गली कहा जाता है. इस गली का एक सिरा मुख्य सड़क में मिलता है. पुलिस के मुताबिक, इसी जगह से पथराव की पहली वारदात हुई थी और डॉ. नेहाल की गली से उपद्रवी पुलिस पर पथराव कर रहे थे. इसी गली में 14 साल के एक अन्य नाबालिग का घर है जिसे पुलिस ने पकड़ा था.
14 साल का नाबालिग गली में ही एक डॉक्टर की क्लीनिक में एक साल से काम कर रहा है. यह क्लीनिक सुबह 8 बजे खुलती है और दोपहर 1.30 बजे के आसपास बंद हो जाती है और कुछ देर बंद रहने के बाद फिर खुलती है. घटना के दिन यानी 21 दिसंबर को भी क्लीनिक खुली हुई थी. 14 साल के नाबालिग ने मुझे बताया, “क्लीनिक खुली हुई थी. मैं सुबह 8 बजे से ही क्लीनिक में था. 1.30 बजे के करीब डॉक्टर साहब चले गए, तो क्लीनिक को बंद कर घर जाने लगा. मैं अपने घर के मेनगेट के पास पहुंचा ही था कि देखा भगदड़ मची हुई है. लोग इधर-उधर भाग रहे थे और पुलिस उन्हें डंडे लेकर दौड़ा रही थी. यह देख कर मैं डर गया. मुझे लगा कि घर में घुसूंगा, तो पुलिस पकड़ लेगी, इसलिए दूसरी तरफ भागने लगा. कुछ दूर जाने के बाद मैं थक गया और बैठ कर पानी पीने लगा, तभी पुलिस ने पकड़ लिया और बेरहमी से पीटती हुई थाने ले गई.” पत्थरबाजी के सवाल पर उसने कहा कि बाहर से कुछ लोग यहां आए थे, जो इस गली से पत्थर फेंक रहे थे, लेकिन वह उसमें शामिल नहीं था और न ही उसने राजद की रैली में ही शिरकत की थी.
इस 14 साल के नाबालिग के पिता की मौत उसके बचपन में ही हो गई थी. उस वक्त वह इतना छोटा था कि उनका चेहरा भी उसे याद नहीं. माली हालत खराब होने के कारण नाबालिग ने पढ़ाई नहीं की. घर में मां, बहन और बड़ा भाई है.
उसने बताया कि पुलिस ने थाने ले जाने के क्रम में रास्ते भर पिटाई की. और तो और थाने में ले जाने के बाद हाजत में बंद करने से पहले भी उस पर डंडे बरसाए. “पुलिस गंदी-गंदी गालियां दे रही थी और पीट रही थी. मैंने पुलिस से कहा भी कि मैं पत्थरबाजी में शामिल नहीं था, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी और मारते रहे. डंडे की चोट से पीठ पर कई जगह लाल निशान पड़ गए थे,” उसने बताया.
अन्य आरोपियों के साथ उसे भी औरंगाबाद के सदर अस्पताल के कैदी वार्ड में भर्ती कराया गया था. वहां उसे सूई-दवाई दी गई थी और फिर जेल भेज दिया गया.
मैंने उस डॉक्टर से भी मुलाकात की, जिनकी क्लीनिक में वह काम करता है. डॉक्टर ने मुझे बताया कि घटना के दिन सुबह से ही वह उनकी क्लीनिक में था और दोपहर को जब बाहर पत्थरबाजी हो रही थी, तब भी वह यहीं था. उन्होंने कहा, “1 से 1.30 बजे के बीच मैं क्लीनिक से निकला था. उस वक्त भी वह क्लीनिक में था. मैं जब घर पहुंचा तो पता चला कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया है.”
उल्लेखनीय है कि 21 दिसंबर को राजद ने एनआरसी व सीएए के खिलाफ बिहार बंद किया था. इस बंद को विफल करने के लिए कई जगहों पर बीजेपी व उससे जुड़े दक्षिणपंथी संगठनों ने एनआरसी व सीएए के समर्थन में रैलियां निकाली थीं. कुछ जगहों पर दोनों गुटों में भिड़ंत हो गई थी. बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ में तो राजद की रैली पर पथराव के साथ ही गोलीबारी भी की गई थी, जिसमें आधा दर्जन से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे. फुलवारी शरीफ में ही राजद के जुलूस में झंडा लेकर 18 साल का आमिर हांजला निकला था, जिसे अगवा कर लिया गया था. 10 दिन बाद उसकी सड़ी हुई लाश इलाके के एक जलाशय बरामद हुई थी.
इस मामले में फुलवारी शरीफ थाने की पुलिस ने आधा दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें हिंदूपुत्र और हिंदू समाज पार्टी नाम के संगठनों से जुड़े लोग शामिल थे. हिंदूपुत्र उन डेढ़ दर्जन संगठनों में शामिल है, जिनके बारे में गहन जानकारी जुटाने का निर्देश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने दिया था. फुलवारी शरीफ थाने के प्रभारी रफीक-उर-रहमान ने मुझे बताया था कि गिरफ्तार सभी आरोपितों ने हत्या में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली है.
फुलवारी शरीफ की तरह ही औरंगाबाद शहर के जामा मस्जिद के पास भी बंद के दौरान पथराव की वारदात हुई थी और आरोप है कि बंद समर्थकों ने पुलिस पर पथराव किया था. इसके बाद पुलिस ने मुस्लिम मोहल्लों में जबरदस्त कार्रवाई की थी. कथित तौर पर लोगों के घरों में घुस कर तोड़फोड़ की थी और लोगों को घर से उठा कर ले गई थी.
हालांकि, स्थानीय राजद नेता युसूफ अंसारी ने बंद समर्थकों की तरफ से पुलिस पर पथराव के आरोपों से इनकार करते हुए मुझे बताया था कि राजद की रैली खत्म हो गई थी, तो लोग लौट रहे थे. उसी वक्त तेली मोहल्ले के पास जुलूस में शामिल लोगों पर हमला हुआ, जिसके बाद दोनों तरफ से रोड़ेबाजी हुई थी.
15 साल के एक अन्य लड़के को पुलिस ने एफआईआर में पत्थरबाजी करते हुए गिरफ्तार दिखाया था. लेकिन जमानत पर रिहा हुए इस लड़के ने मुझे बताया कि वह उस दिन वह दिनभर घर पर था. “दोपहर करीब 1.30 बजे मैं खाने के लिए प्लेट लेकर दूसरे घर में जा रहा था, तभी देखा कि मेनगेट से कुछ लड़के घर में आ रहे हैं. वे लोग भीतरे घुसे व दीवार फांद कर दूसरी तरफ भाग गए. उनके पीछे पुलिस भी दौड़ती हुई आई और मुझे पकड़ लिया,” उसने कहा. इस लड़के ने भी अन्य तीन नाबालिगों की तरह ही पुलिसिया ज्यादती की कहानी सुनाई.
उसने मुझे बताया, “घर पर तो मारा ही, गाड़ी में भी मुक्के व कोहनी से पीटा. इसके बाद थाने ले गए. वहां हाजत से 10-20 कदम दूर हमें पुलिस ने उतारा और कहा, ‘भाग कर हाजत में जाओ जल्दी.’ जब हमलोग दौड़ने लगे, तो पुलिस लाठियां बरसाने लगीं. हमलोग मार खाते हुए हाजत तक पहुंचे. जब हाजत के भीतर दाखिल हो गए, तब पुलिस ने मारना बंद किया.”
उसने कहा, “थाने में पहुंचने के बाद पहला डंडा मेरे सिर पर मारा गया. चोट इतनी गहरी लगी थी कि मैं वहीं माथा पकड़ कर बैठ गया. मुझे लगा कि मैं जिंदा नहीं बच पाऊंगा. उस पर भी पुलिस वाले मारते रहे. एक ही हाजत में सभी 46 लोगों को रखा गया था. हमलोगों ने रात दर्द से कराहते हुए गुजारी.”
15 साल के इस नाबालिग के सिर का पिछला हिस्सा अब भी फुला हुआ है. उसके पिता ने मुझे बताया कि उसने दर्द की शिकायत की, तो डॉक्टर से दिखाया है. डॉक्टर ने एक्सरे कराने की सलाह दी है.
नाबालिगों के आरोपों को लेकर औरंगाबाद टाउन थाने के प्रभारी रवि भूषण से बात की गई, तो वह इस पर बात करने से बचते नजर आए. जब मैंने उन्हें बताया कि नाबालिगों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने थाने में उन्हें बेरहमी से पीटा है, तो उन्होंने कहा, “ना, ना! ये सब गलत बात है....चलिए बाद में बात करेंगे.” इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया.