अयोध्या के शीर्ष साधुओं ने किया वीएचपी की धर्म सभा का बहिष्कार

साधुओं का बहिष्कार इस बात का संकेत है कि राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण पैठ बनाने की वीएचपी की उम्मीद बेअसर रही. संजय कनौजिया/एएफपी/गैटी इमेजिस

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25 नवंबर को अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की बहुप्रचारित “धर्म सभा” का उन्माद जैसे ही थमने लगा है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वीएचपी को एक कटु सत्य का सामना करना पड़ रहा है. धर्म सभा का उद्देश्य राम मंदिर के निर्माण के लिए लाखों लोगों का समर्थन हासिल करना था - लेकिन अयोध्या के प्रमुख साधुओं और मठों ने ही इस समारोह का बहिष्कार कर दिया. साधुओं के बहिष्कार से राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण पैठ बनाने की वीएचपी की उम्मीद को झटका लगा है.

अयोध्या के तीन प्रमुख अथवा उग्र रामानंदी अखाड़ों में से दो निर्वाणी और निर्मोही अखाड़ों ने वीएचपी के इस आयोजन से खुद को दूर रखा. इन तीन में से सबसे कम प्रभाव रखने वाला दिगंबर अखाड़ा ही कार्यक्रम में शामिल हुआ.

धर्म सभा के मुख्य वक्ताओं में दिगंबर अखाड़ा के प्रमुख साधु, नृत्य गोपाल दास, जो वीएचपी के ट्रस्ट श्री राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख भी हैं. इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले एक अन्य स्थानीय साधु कन्हैया दास, वीएचपी के जिला स्तर के पदाधिकारी और अयोध्या के एक मंदिर के महंत हैं. सभा में बोलने वाले सभी अन्य प्रमुख साधु मुख्यतः हरिद्वार और चित्रकूट से आए बाहरी साधु थे.

निर्मोही अखाड़ा के प्रमुख दिनेन्द्र दास ने मुझे फोन पर बताया, “संघ की बैठक में भाग लेने और मूर्खों की तरह तालियां बजाने का क्या मतलब है?” उन्होंने आगे कहा, “उन लोगों के लिए यह अच्छा होता कि सर्वोच्च अदालत में चल रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में तेजी लाने के लिए कुछ करते. इनके नाटक को लोग अच्छी तरह समझ चुके हैं.”

निर्मोही अखाड़ा उन दावेदारों में से एक है जिनके बीच 2010 के फैसले में इलाहाबाद उच्च अदालत ने उस विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटा था - जिस पर बनी बाबरी मस्जिद को 1992 में कार सेवकों की भीड़ ने शहीद कर दिया था. धर्म सभा में भाग लेने वालों में एक थे राम दास. राम दास पहले निर्मोही अखाड़े के साधु थे. मैंने उनके बारे में जब दिनेंद्र दास से पूछा तो उनका कहना था, “पिछले साल जब उन्हें अखाड़े के नेतृत्व से बाहर कर दिया गया था तभी से वे वीएचपी से समर्थन हासिल करना चाह रहे हैं. अखाड़े ने पहले से ही खुद को उनसे अलग कर लिया है.”

अयोध्या के सबसे ताकतवर रामानंदी निर्वाणी अखाड़ा के प्रमुख धरम दास अपनी आलोचना में ज्यादा कटु हैं. “साधु लोग सरल स्वभाव के होते हैं लेकिन आपको उनका समर्थन यूं ही मिल जाएगा ऐसा नहीं मान लेना चाहिए, खासकर तब जब वे लोग जानते हैं कि धर्म सभा के आयोजक सिवाए राजनीति के कुछ नहीं कर रहे.”

गौरतलब है कि धरम दास वीएचपी की केन्द्रीय समिति-मार्गदर्शक मंडल-के प्रमुख सदस्य हैं. उन्होंने बताया, “मैंने वीएचपी के आयोजन का बहिष्कार इसलिए किया क्योंकि मैं अयोध्या के साधुओं की भावना का सम्मान करता हूं जो केंद्र में बीजेपी सरकार की धोखाधड़ी को महसूस कर रहे हैं.”

निर्वाणी अखाड़ा का मुख्यालय हनुमानगढ़ी में है. यह अयोध्या का सबसे बड़ा मठ भी है. इसके साधु वीएचपी के इस शक्ति प्रर्दशन से इतने नाराज थे कि अधिकांश साधु आयोजन की बात तक नहीं करना चाहते थे. हनुमानगढ़ी के एक प्रमुख साधु संजय दास का कहना था, “ऐसा इसलिए है क्योंकि हनुमानगढ़ी के निवासी वीएचपी के हाथों का खिलौना बनते बनते थक गए हैं.” उन्होंने आगे बताया, “वे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान चाहते हैं लेकिन वीएचपी ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह इस बारे में गंभीर है. केवल चुनाव के समय वह दिखाता है कि वह गंभीर है. उनकी यह चाल अब और काम नहीं कर सकती.”

चार पट्टियों- सगारिया पट्टी, बसंतिया पट्टी, हरिद्वारी पट्टी और उज्जैनिया पट्टी- के प्रमुखों ने एक सप्ताह पहले मुलाकात की और वीएचपी के कार्यक्रम से दूर रहने का निर्णय लिया. इसके बाद हनुमानगढ़ी में बहिष्कार का निर्णय मुखर हो गया. संजय ने बताया, “एक बार यह निर्णय हो गया तो जाहिर सी बात थी कि हनुमानगढ़ी से कोई भी भाग नहीं लेने वाला था.”

बहिष्कार के प्रभावों को अतिरंजित किए बिना कहा जा सकता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद वीएचपी अयोध्या में उस तरफ का प्रभाव पुनः स्थापित नहीं कर सका है जैसा प्रभाव 1990 के दशक में-बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद- उसका यहां था. पिछले लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया था तब उसका समर्थन जरूर बड़ा था लेकिन अब लगता है मानो कि वह समय भी गुजर गया.

आरएसएस के इस संगठन ने 1984 में राम जन्मभूमि को अपना केंद्रीय मुद्दा बनाया था. उसके बाद से वीएचपी का साधुओं के साथ जिस तरह का संबंध रहा है उसमें दिखाई दे रही तल्खी आने वाले दिनों में अधिक बढ़ने की संभावना है. शायद यह तल्खी ही वह वजह है जिसके चलते स्थानीय प्रशासन ने एक अन्य प्रमुख साधु परमहंस दास को आयोजन की अवधि तक अघोषित नजरबंदी में रखा हुआ था. परमहंस दास ने अक्टूबर के आरंभ में एक हफ्ते की भूख हड़ताल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मंदिर का निर्माण करने के लिए, कानून पारित करने की मांग की थी.

परमहंस दास ने फोन पर मुझे बताया, “सुरक्षा बलों ने मेरे आश्रम के सभी द्वारों को बंद कर दिया है और मैं बाहर ही नहीं जा सकता. उन्हें डर है कि अगर मैं धर्म सभा के आयोजन स्थल पर पहुंच गया तो कुछ ऐसा कर दूंगा जिससे उनके नाटक का पर्दाफाश हो जाएगा.”

हालांकि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने उपवास तोड़ने के बाद उन्हें मनाने के प्रयास किए थे तो भी वे स्थानीय साधुओं के आक्रोश का प्रतिनिधित्व करते हैं. वीएचपी अब उन पर संदेह करती है. परमहंस ने हाल ही में राज्य सरकार को एक अल्टीमेटम जारी किया है कि यदि राम मंदिर के निर्माण के लिए कोई ठोस कदम 5 दिसंबर तक नहीं उठाया गया तो वे अगले दिन आत्मदाह कर लेंगे.

पहले अयोध्या के बहुत से खेमों ने उनकी इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन, कल के आयोजन के बाद उनका अल्टीमेटम फिर से चर्चा का विषय बन गया है और साथ ही वीएचपी के ऊपर लटकी तलवार भी.

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