छत्तीसगढ़ चुनाव: आदिवासी अधिकारों के मामले में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने किया निराश

16 नवंबर 2023
अप्रैल 2018 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा.
प्रेस सूचना ब्यूरो
अप्रैल 2018 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा.
प्रेस सूचना ब्यूरो

छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी, ने आदिवासी हितों की नुमाइंदगी करने के बारे में बड़े-बड़े वादे किए हैं. 7 नवंबर को आदिवासी बहुल जिले सूरजपुर में चुनाव प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “कांग्रेस ने कभी आपकी चिंता नहीं की, आपके बच्चों के बारे में कभी नहीं सोचा. लेकिन बीजेपी ने हमेशा आदिवासी कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है.” मोदी ने आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को भारत का राष्ट्रपति बनाए जाने को आदिवासी समाज के प्रति उनकी पार्टी के समर्थन का प्रमाण बताया.

अभियान के दूसरे छोर पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने राजधानी रायपुर में मतदाताओं को याद दिलाया, "हमने आदिवासियों के लिए छत्तीसगढ़ में पेसा लागू किया और कांग्रेस चाहती है कि हर युवा आदिवासी सपने देखे और काम के सभी क्षेत्रों में खुद को शामिल करके अपने सपनों को पूरा करे.” गांधी और मोदी की इन बयानबाजी के बावजूद छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में पेसा का कार्यान्वयन खराब रहा है और दोनों पार्टियों ने उन प्रमुख कानूनों को कमजोर कर दिया है जो आदिवासियों की स्वायत्तता और जंगलों तक पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए थे. न केवल दोनों पार्टियां वन और भूमि-अधिकारों को चुनावी मुद्दा बनाने में विफल रही हैं बल्कि इन अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग आदिवासी ईसाइयों को निशाना बनाने के लिए किया गया है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे बीजेपी ने बढ़ावा दिया है और कांग्रेस इसे रोकने में नाकाम रही है.

छत्तीसगढ़ की लगभग 34 प्रतिशत आबादी आदिवासी है और राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 29 अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए आरक्षित हैं. राज्य के निर्माण के शुरुआती कारणों में से एक क्षेत्र में आदिवासियों के बेहतर प्रतिनिधित्व की कोशिश थी. फिर भी मैदानी इलाकों में किसानों और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों के मुद्दे अक्सर राज्य चुनावों में प्रमुखता से उभरते हैं. प्रमुख राजनीतिक दल अक्सर राज्य के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में आदिवासियों के सामने आने वाले तात्कालिक मुद्दों को दरकिनार कर देते हैं.

आदिवासी संगठनों की एक प्रमुख संस्था सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे ने मुझे उपरोक्त बात बताई. एसएएस ने हाल ही में “हमार राज” नाम से चुनावी संगठन शुरू किया, जिसने दोनों प्रमुख पार्टियों से मोहभंग होने वाले आदिवासी सिविल सेवकों और आदिवासी राजनेताओं को आकर्षित किया है. रावटे ने मुझसे कहा, "हम अब तक अलग-अलग पार्टियों के साथ काम करते रहे हैं लेकिन हमारे मुद्दों को नजरअंदाज किया गया. इसलिए हमने अपनी पार्टी शुरू की है. हम सरकार नहीं बना पाएंगे लेकिन सरकार बनाने में उन्हें हमारी मदद नहीं मिलेगी.'' रावटे पाटन सीट पर कांग्रेस के मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

केंद्र की मोदी सरकार ने वनों के संरक्षण और भूमि पर आदिवासियों के अधिकार से संबंधित नियमों को लगातार कमजोर किया है. जुलाई 2023 में विपक्ष के विरोध प्रदर्शनों के बीच, जिसमें मांग की गई कि मोदी मणिपुर में चल रहे जातीय सफाए के मुद्दे को संबोधित करें, संसद ने 1980 के वन (संरक्षण) अधिनियम में एक संशोधन पारित किया, जिसने मूल अधिनियम के तहत गारंटीकृत सुरक्षा से वनों की कई श्रेणियों को बाहर कर दिया. उदाहरण के लिए, संशोधन रेल ट्रैक या सार्वजनिक सड़क के किनारे की 0.10 हेक्टेयर भूमि और उस भूमि से सुरक्षा हटाता है जिसका उपयोग सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए किया जाना प्रस्तावित है और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र में पांच हेक्टेयर भूमि तक की सुरक्षा हटा दी गई है.

निलीना एम एस करवां की स्टाफ राइटर हैं. उनसे nileenams@protonmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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