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16 दिसंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के छात्रों ने नागरिकता संशोधन कानून (2019) और जामिया मिलिया इस्लामिया व अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस की दमकनाकरी कार्रवाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया. विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए छात्रों ने बताया कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने उन पर हमला किया. हमले के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही और उसने मारपीट करने वाले परिषद के सदस्यों का साथ दिया. हमले में कई छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके बाद छात्रों ने जंतर-मंतर पर जमा हो कर प्रदर्शन किया.
इंद्रप्रस्थ कॉलेज की छात्रा मुदिता ने बताया कि एवीबीपी की दो महिला सदस्यों ने उनको बालों से पकड़कर खींचा. दिल्ली पुलिस की दो महिला कांस्टेबल वहां खड़ी देखती रहीं लेकिन बचाव करने आगे नहीं आईं. जब दोनों ने मुदिता को कॉलेज परिसर से बाहर खींचा तो मुदिता का चश्मा टूट गया.
मैंने 16 दिसंबर को हुए प्रदर्शन में शामिल 12 प्रदर्शनकारियों और छात्र नेताओं से बात की. इन सभी ने दिल्ली पुलिस के बारे में मुदिता के जैसे अपने अनुभवों को साझा किया.
9 और 11 दिसंबर को लोकसभा और राज्यसभा ने नागरिकता संशोधन विधेयक (2019) को मंजूरी दी. 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए जिसके बाद यह आधिकारिक गजट में प्रकाशित होकर कानून बन गया और उसके बाद देशभर के विश्वविद्यालयों में इस कानून का विरोध शुरू हो गया.
जामिया और अलीगढ़ में पुलिस ने बर्बर तरीके से प्रदर्शनकारी छात्रों पर लाठियों से हमला किया और आंसू गैस के गोले दागे. जामिया में पुलिस ने पुस्कालय में घुस कर छात्र-छात्राओं को पीटा. 15 दिसंबर को जामिया में हुए पुलिस हमले में 100 से ज्यादा छात्र घायल हुए और 50 को हिरासत में लिया गया. मानव अधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर और अधिवक्ता अली जिया कबीर चौधरी ने वक्तव्य जारी कर कहा है कि पुलिस ने लाइट बुझा कर महिला छात्रों के साथ दुर्व्यवहार भी किया.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कई राजनीतिक संगठनों ने जामिया व अलीगढ़ के छात्रों को अपना समर्थन दिया है. डीयू के राजनीतिक विज्ञान विभाग के छात्रों ने कला संकाय के सत्यकामा भवन के सामने शांतिपूर्ण विरोध का आह्वान किया था जिस पर 5 अन्य कला विभागों ने भी अपना समर्थन जताया. साथ ही उस दिन होने वाली परीक्षा के बहिष्कार की भी अपील की गई.
हंसराज कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान के छात्र विकास कुमार ने बताया, “हमने छात्रों से अपील की कि जामिया और अलीगढ़ में जो हुआ है उस पर विचार करें और अगर उन्हें लगता है कि जो कुछ हुआ वह गलत है तो हमारे साथ खड़े हो सकते हैं. इस अपील के बाद 100 के आसपास छात्र अपनी मर्जी से विरोध में शामिल हुए.”
प्रदर्शन सुबह 9 बजे शुरू हुआ और दो घंटों तक शांतिपूर्वक तरीके से जारी रहा. मुदिता ने बताया कि परिषद के तीन-चार सदस्यों ने लोगों को भड़काने का प्रयास किया. उनका कहना था, “वे लोग ऐसी टिप्पणियां कर रहे थे जिससे छात्र भड़क जाएं. यह हिंसा भड़काने और प्रदर्शन को हिंसक बनाने के लिए था ताकि हमारे रुख को गलत दिखाया जा सके. रामजस कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान के छात्र अभिज्ञान ने बताया कि इस बीच प्रशासन के अधिकारियों ने प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस बुला ली.
वहां मौजूद लोगों के अनुसार तकरीबन 11 और 11.30 बजे तक परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़कर एक दर्जन के करीब हो गई थी और 11.30 बजे प्रदर्शन हिंसक हो गया. परिषद के सदस्य विरोध कर रहे छात्रों पर पत्थर फेंकने लगे और कुछ ने पुलिस की लाठियों से छात्रों पर हमला किया.
इसके बाद सभी छात्र कला संकाय के गेट नंबर 4 पर आ गए और वहां नारेबाजी होने लगी. इसके बाद टकराहट तेज हो गई क्योंकि एबीवीपी के सदस्य छात्र नेताओं को निशाना बना रहे थे. अभिज्ञान ने मुझे बताया कि एबीवीपी की कुछ महिला सदस्य एक अन्य छात्रा श्रेया के करीब आईं और "जब श्रेया को मारने लगीं तो मैं बीच-बचाव करने लगा जबकि पुलिस देखती रही." अभिज्ञान ने बताया, “मुझे, श्रेया को पीटा और दो-तीन साथियों को भी पीटा गया. दिल्ली पुलिस का इस तरह का व्यवहार कोई नई बात नहीं है. जब हम अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ विरोध करना चाह रहे थे तो दिल्ली पुलिस ने हमें ऐसा करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और हमें बैरिकेडों में घेर लिया था लेकिन एबीवीपी के गुंडे खुलेआम नारे लगा रहे थे. "
डीयू के विधि संकाय की कवलप्रीत कौर के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने गेट नंबर 4 पर प्रदर्शनकारी छात्र संगठनों को बताया कि वे तीन सौ छात्रों को एबीवीपी के सदस्यों से नहीं बचा सकती. उन्होंने कहा कि एबीवीपी के सदस्यों ने हिजाब पहने हुए और कश्मीरी छात्रों को विशेष रूप से निशाना बनाया. "यह स्पष्ट था कि दिल्ली पुलिस एबीवीपी कैडरों की रक्षा कर रही थी." उन्होंने बताया, “ऐसा कैसे हो सकता कि बीस छात्र दो सौ से ज्यादा छात्रों को विरोध प्रदर्शन करने से रोक दें? दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर एबीवीपी को कैंपस के अंदर ध्रुवीकरण करने दिया ताकि जामिया-एएमयू के मुद्दे वामपंथी और दक्षिणपंथी विचार की झूठे बाइनरी में उलझ जाए. कोशिश की जा रही है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विश्वविद्यालय में जिहादियों और माओवादियों की सक्रियता को लेकर जो कहा उसे सही ठहराया जा सके.”
इस दौरान, डीयू के कुछ छात्रों को व्हाट्सएप ग्रुपों में ऐसे संदेश आने लगे कि कला संकाय में एबीवीपी सदस्य छुरे-चाकू और छड़े लेकर जमा हो रहे हैं जबकि ऐसा नहीं हुआ. दोपहर 1 बजे के आसपास जब विश्वविद्यालय के मैदान में विरोध चल रहा था तो मैंने देखा कि एबीवीपी के करीब बीस सदस्य थके-हारे नारे लगा रहे थे और वहां विरोध करने वाले 300 छात्र थे. दिल्ली पुलिस दोनों समूहों के बीच खड़ी थी.
बाद में मेरे सहयोगी अप्पू अजीत भी वहां आ गए थे. हम रिपोर्टिंग कर रहे थे कि अचानक हंगामा शुरू हो गया. मैंने देखा कि एबीवीपी के सदस्य अजीत को खदेड़ रहे हैं. भागते हुए अजीत ने बताया कि एबीवीपी के सदस्य उनके साथ मारपीट कर रहे हैं. गनीमत है कि अजीत को चोट नहीं आई. दोनों खेमों के बीच मामूली झड़पें हुईं लेकिन दिल्ली पुलिस ने एबीवीपी के सदस्यों को अलग कर दिया. हालांकि, उन्होंने एबीवीपी के सदस्यों की हरकतों को नजरअंदाज किया. एबीवीपी वाले ऐसा बर्ताव कर रहे थे मानो वह जगह उनकी है.
मुझे कई लोगों ने बताया कि आज की झड़प फरवरी 2017 में रामजस कॉलेज में भड़की हिंसा की याद दिला रही है. उस वक्त उमर खालिद और शेहला राशिद कॉलेज में छात्रों को संबोधित करने आए थे जिसके बाद आईसा और एबीवीपी के छात्रों में लड़ाई छिड़ गई थी. डीयू में छात्र संगठनों के हिंसा के इतिहास को देखते हुए, यह आश्चर्यजनक नहीं था कि एबीवीपी के सदस्यों द्वारा बड़े पैमाने पर हमले की चेतावनी वाले व्हाट्सएप संदेश ने छात्रों को डरा दिया. जिन छात्रों से मैंने बात की उनमें से तीन- अभिज्ञान, विकाश और कवलप्रीत- ने मुझे बताया कि वे लोग एबीवीपी के लोगों की भड़काने वाली नीति से बचते हुए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करना चाहते हैं.