22 फरवरी को विधानसभा में विश्वास मत हारने के बाद पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वेलु नारायणसामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वर्तमान उपराज्यपाल तमिलिसाई साउंडराजन ने नारायणसामी को बहुमत साबित करने करने के लिए कहा था. 6 अप्रैल को होने जा रहे विधानचुनाव तक यह केंद्र शासित प्रदेश अब राष्ट्रपति शासन के अधीन रहेगा. 33 सदस्यीय विधानसभा में नारायणसामी की स्थिति तब कमजोर हो गई थी जब भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने 2018 में एक ऐतिहासिक मुकदमा जीतते हुए तीन बीजेपी सदस्यों को विधानसभा में नामित किया था. इसके बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस-द्रविड़ मुनेत्र कड़गम गठबंधन की सरकार गठबंधन के सदस्यों के इस्तीफे और दलबदल के बाद अल्पमत में आ गई थी.
पिछले पांच सालों के दौरान नारायणसामी के कई सरकारी आदेशों और विधानसभा के प्रस्तावों को पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी द्वारा रद्द कर दिए जाने से इस प्रदेश को चलाने में परेशानी आ रही थी. बेदी ने कांग्रेस-डीएमके गठबंधन के सामाजिक-कल्याण के उपायों को लागू करना मुश्किल कर रखा था. कई पत्रकारों ने मुझे बताया कि हाल के दलबदल और इस्तीफे काफी हद तक इस निराशा से उपजे थे कि बेदी ने सरकारी कामकाज को ठप कर दिया था. राजनीतिक विश्लेषकों और पत्रकारों ने मुझे यह भी बताया कि नारायणसामी सरकार का पतन केंद्र शासित प्रदेश में लोकतांत्रिक मानदंडों केंद्र की अवहेलना को दर्शाता है. बेदी को 16 फरवरी को पद से हटा दिया गया.
2016 के पुडुचेरी विधानसभा चुनाव कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन के लिए एक बड़ी जीत थी. उन्हें क्रमशः 15 और 2 सीटें मिलीं थीं. उन्हें माहे के स्वतंत्र प्रतिनिधि वी. रामचंद्रन का समर्थन भी मिल गया था. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री एन. रंगासामी की अगुवाई में अखिल भारतीय नामाथु राज्यम कांग्रेस (एआईएनआरसी) ने आठ सीटें जीतीं और रंगासामी विपक्ष के नेता बन गए. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम या एआईडीएमके ने चार सीटें जीतीं. बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी और उसके सभी 18 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. मई 2019 में हुए उपचुनाव में एआईएनआरसी की आठ में से एक सीट पर डीएमके ने जीत दर्ज की. जिससे कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन की सीटें बढ़कर 18 हो गईं. विपक्ष के पास 14 सीटें थीं, जिनमें बीजेपी के तीन नामित सदस्य भी थे.
जनवरी 2020 में पुडुचेरी कांग्रेस ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बहौर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक एन. धनवेलु को निलंबित कर दिया. धनवेलु ने नारायणसामी और स्वास्थ्य मंत्री मल्लदी कृष्ण राव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. इसके बाद जनवरी 2021 के बाद से कांग्रेस के पांच अन्य विधायकों ने इस्तीफा दे दिया या दलबलद कर लिया.
25 जनवरी 2021 को लोक निर्माण विभाग मंत्री नमशिवायम और विधायक ई. थेपनंजन ने इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. नारायणसामी के बाद कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता नमशिवायम ही थे. 16 फरवरी को राव ने भी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. एक पत्रकार ने मुझे बताया, "राव ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि वह बेदी के हस्तक्षेप के कारण कुछ नहीं कर पा रहे थे. वह यानम से एकमात्र नेता हैं और पिछले पांच वर्षों में अपने निर्वाचन क्षेत्र की कोई खास सेवा नहीं कर पाए." इससे पहले 10 फरवरी को राव नारायणसामी के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले थे और उनसे बेदी को वापस बुलाने का आग्रह किया था. अगले हफ्तों में कांग्रेस के दो विधायकों, के. लक्ष्मीनारायण और ए. जॉनकुमार, और डीएमके विधायक डी. वेंकटेशन ने भी इस्तीफा दे दिया. इससे कांग्रेस-डीएमके गठबंधन 11 सीटों पर सिमट गया.
मैंने जिन पत्रकारों से बात की उन्होंने जोर देकर कहा कि यूटी में अधिकांश विधायक जनता के समर्थन को अपनी पार्टी के जुड़ाव के माध्यम से नहीं बल्कि निर्वाचन क्षेत्र में किए गए काम से तौलते हैं. एक पूर्व पत्रकार और एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "पिछले पांच वर्षों से उनके संसाधन के स्रोत सुखा दिए गए थे और सरकार किसी भी योजना को आगे नहीं बढ़ा पा रही थी क्योंकि बेदी लगातार उन्हें रोक दे रही थीं. इसका मतलब है वे जनता का समर्थन तभी बनाए रख सकते थे जब वे किसी ऐसी पार्टी के साथ हो जाएं जो संसाधन मुहैया कराने में सक्षम हो.”
उन्होंने कहा, "लोग बीजेपी से नाराज हैं. उन्हें पता है कि वे इस स्थिति का मुख्य कारण हैं लेकिन विधायक सिर्फ यह मान कर चल रहे हैं कि अंतिम समय में विकास कार्य और भोजन वितरण के लिए यदि धन मिल गया तो बीजेपी के प्रति लोगों की नाराजगी हवा हो जाएगी. विधायकों को लगता है कि अगर वे कांग्रेस के उम्मीदवारों के रूप में फिर चुने गए, तो अगले पांच साल भी लड़ते हुए ही गुजरेंगे. बीजेपी ने बेदी के सहारे जो हासिल किया उससे पूरे राजनीतिक वर्ग दलबदल के लिए मजबूर कर दिया है.” 22 फरवरी को विधानसभा में विश्वास मत हारने के बाद पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वेलु नारायणसामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
पिछले पांच वर्षों में नारायणसामी सरकार प्रदेश के रोजमर्रा के प्रशासन को लेकर बेदी के साथ लगातार माथापच्ची करती रही. चावल की आपूर्ति को लेकर उनके बीच हुई लड़ाई इसका एक उदाहरण है. एक दशक से भी अधिक समय से पुडुचेरी सरकार गरीबी रेखा से ऊपर और नीचे के लोगों के लिए एक सार्वभौमिक चावल आपूर्ति योजना चलाती रही है, जो पड़ोसी राज्य तमिलनाडु की सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के समान है. 2016 में नारायणसामी की मुख्यमंत्री के रूप में पहली पहल चावल के आवंटन को 10 किलोग्राम से बढ़ाकर 20 किलोग्राम करना था. जनवरी 2018 में बेदी ने चावल की आपूर्ति 10 किलोग्राम तक कम कर दी. बेदी ने इस योजना बदलाव कर दिया कि गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को चावल के बदले नकद राशि सीधे हस्तांतरित की जाएगी.
महिला समूहों ने जब मांग की कि नकदी अक्सर पुरुषों द्वारा एकत्र कर ली जाती है और वे इसका इस्तेमाल अन्य कामों के लिए करते हैं तो जून 2019 में मंत्रीमंडल ने चावल ही वितरित करने का आदेश पारित कर दिया. हालांकि बेदी ने गृह मंत्रालय के आदेश का हवाला दिया और परिवर्तनों को रद्द कर दिया. फरवरी 2021 में मद्रास उच्च न्यायालय ने इस कदम को चुनौती देने वाली नारायणसामी की याचिका को खारिज कर दिया.
इसी तरह बेदी ने पोंगल उत्सव के दौरान केंद्र शासित प्रदेश के हर परिवार को साड़ी और चावल उपहार में देने के मुख्यमंत्री के फैसले पर रोक लगा दी और इसके बदले मांग की कि हर खाते में नकदी हस्तांतरित की जाए. इस तरह के उपहार तमिलनाडु और पुडुचेरी में सरकारी परंपरा है और इसे अत्यधिक प्रतीकात्मक सांस्कृतिक संकेत के रूप में देखा जाता है.
बेदी और नारायणसामी के बीच टकराव एक अन्य प्रमुख मुद्दा उच्च शिक्षा में छात्रवृत्ति और आरक्षण का था. 2013 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा या एनईईटी की स्थापना की जो भारत के चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश की परीक्षा है. माना जाता है कि परीक्षा में हाशिए के समुदायों के साथ भेदभाव किया जाता है. इसके बाद पुडुचेरी और तमिलनाडु की सरकारों ने आरक्षण नीतियों को बदलने का प्रयास किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उच्च शिक्षा में बेहतर प्रतिनिधित्व हो.
28 अक्टूबर 2020 को पुडुचेरी सरकार के मंत्रीमंडल ने एक सरकारी आदेश पारित किया जिसमें प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए अंडरग्रेजुएट मेडिकल की 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित थीं. इस आदेश को पुडुचेरी की विधानसभा ने भी सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सरकारी स्कूलों के केवल 16 छात्र ही 2018 में पुडुचेरी के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पा सकते थे, जबकि निजी स्कूलों के उम्मीदवारों के लिए यह आंकड़ा 243 था. यह विशेष रूप से उन ग्रामीण दलित और आदिवासी छात्रों की सहायता के लिए था जिनकी निजी शिक्षा तक पहुंच नहीं है.
मंत्रीमंडल के आदेश के तुरंत बाद बेदी ने इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया. गृह मंत्रालय ने यह कहते हुए जवाब भेजा कि कोई राज्य या केंद्र सरकार चिकित्सा शिक्षा पर कोई आदेश जारी नहीं कर सकती क्योंकि यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दायरे में आता है. 16 दिसंबर को पुडुचेरी की रहने वाली सुबुलक्ष्मी ने गृह मंत्रालय के फैसले को चुनौती देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. वह सरकारी स्कूल की छात्रा थीं जिन्होंने अपनी केंद्र शासित प्रदेश बोर्ड परीक्षाओं में अच्छा परिणाम हासिल किया था लेकिन मेडिकल सीट के लिए नीट की कट-ऑफ से नीचे थीं. सुबुलक्ष्मी ने तर्क दिया कि चिकित्सा शिक्षा स्वास्थ्य मंत्रालय के दायरे में आ सकती है लेकिन आरक्षण राज्य का विषय है और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के पास ऐसा करने की शक्ति है.
अदालत में हुई सुनवाई के दौरान सुबुलक्ष्मी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील पी. विल्सन ने माहे, यनम और कराईकल, दूसरे राज्यों से घिरे पुडुचेरी के इन क्षेत्रों के लोगों के लिए केंद्र शासित प्रदेश में चिकित्सा और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय आरक्षण की बात की जिन्हें पहले अदालत ने बरकरार रखा था. याचिका में सरकारी स्कूलों के लोगों के लिए तमिलनाडु के आरक्षण की बात भी की गई. लेकिन अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और तर्क दिया कि यह मामला केंद्र शासित प्रदेश की निर्वाचित सरकार के दायरे में नहीं आता.
22 फरवरी को विश्वास मत से कुछ ही समय पहले विधानसभा में अपने भाषण में नारायणसामी ने बेदी की कई एकतरफा सरकारी नियुक्तियों के लिए भी आलोचना की. बेदी का प्रदेश के चुनाव आयुक्त के रूप में भारतीय वन सेवा के एक सेवानिवृत्त अधिकारी रॉय पी. थॉमस को नियुक्त करने का मामला भी इसी तरह का था.
इस केंद्र शासित प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव अंतिम बार 2006 में हुए थे और 2011 में निर्वाचित निकायों का पांच साल का कार्यकाल समाप्त हो गया था. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित कर प्रदेश सरकार को चार महीने के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया. प्रदेश दो कारणों से ऐसा कर पाने में असमर्थ था. एक, प्रदेश में कोई चुनाव आयुक्त नहीं था और दूसरा, मद्रास उच्च न्यायालय में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का मामला चल रहा था. 25 मई 2018 को पुडुचेरी के मंत्रीमंडल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक सेवानिवृत्त अधिकारी टीएम बालकृष्ण को पुडुचेरी का चुनाव आयुक्त बनाया गया. उनके निर्णय को विधान सभा द्वारा अनुमोदित किया गया. हालांकि दिसंबर 2019 में बेदी ने घोषणा की कि बालकृष्ण की नियुक्ति “पूरी तरह से अवैध” है और एक नए चुनाव आयुक्त के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी किए.
स्थानीय प्रशासन मंत्री ए. नमशिवाय ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी. अपनी याचिका में बेदी के आदेश को मनमाना और संवैधानिक अधिकार से बाहर का घोषित करने की मांग की लेकिन अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया. 22 अक्टूबर 2020 को निर्वाचित प्रदेश सरकार या विधान सभा के अध्यक्ष की अनुमति के बिना बेदी ने थॉमस को नियुक्त कर दिया और स्थानीय निकाय चुनाव जल्द कराने की घोषणा की. थॉमस तब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सलाहकार थे. द हिंदू ने नारायणसामी को उद्धृत करते हुए कहा, "यह एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को दरकिनार कर लिया गया एकतरफा फैसला है." थॉमस की नियुक्ति को प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थी इसलिए बालकृष्ण पद पर बने रहे. 3 जनवरी 2021 को नारायणसामी ने मीडिया को बताया कि राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक विधायी कार्रवाई है और अधिकारी को हटाना केवल विधायी कार्रवाई के माध्यम से हो सकता है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 243 (के), 243 (एल) और 243 (जेडबी) में कहा गया है. 5 जनवरी को बेदी ने बालकृष्ण को हटाते हुए एक और आदेश पारित किया और एक नए चुनाव आयुक्त के चयन के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी कर दिया. हालांकि नारायणसामी ने दोनों आदेशों के साथ-साथ विज्ञापनों को असंवैधानिक घोषित किया और पुष्टि की कि सरकार ने केवल बालकृष्ण को चुनाव आयुक्त के रूप में मान्यता दी है.
पुडुचेरी सरकार ने प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के नेताओं के नामांकन का भी विरोध किया है. संविधान का अनुच्छेद 239 (ए) संसद को पुडुचेरी के लिए "एक निकाय, (निर्वाचित या आंशिक रूप से नामित और आंशिक रूप से निर्वाचित), जो विधानमंडल के रूप में कार्य करे बनाने की कानूनी अनुमति देता है. हालांकि इस केंद्र शासित प्रदेश के इतिहास में निर्वाचित विधायिका ही रही. 4 जुलाई 2017 को पुडुचेरी सरकार या विधानसभा के अध्यक्ष से परामर्श किए बिना बेदी ने बीजेपी के तीन नेताओं को विधानसभा के मनोनीत सदस्यों के रूप में पद की शपथ दिलाई. इसमें बीजेपी के पुडुचेरी इकाई के अध्यक्ष वी. सामिनाथन, कोषाध्यक्ष केजी शंकर और बीजेपी के वरिष्ठ नेता एस सेल्वगनपति थे. 2016 के चुनावों के दौरान तीनों की जमानत जब्त हो गई थी.
केंद्रीय या राज्य विधानसभाओं में नामांकित पद आमतौर पर अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के लिए आरक्षित होते हैं. एंग्लो-इंडियन समाज के लिए लोकसभा में दो मनोनीत सीटें हैं. केवल राज्यसभा ही ऐसी विधायिका है जहां सदस्यों को नामित किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले लोगों को राज्यसभा के लिए नामित किया जा सकता है.
प्रदेश में विपक्षी दलों ने बेदी के इस कदम का विरोध किया और इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया लेकिन 22 मार्च 2018 को कोर्ट ने इन नामित सदस्यों को बरकरार रखा. बाद में उसी साल 6 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी यह तर्क देते हुए इस फैसले को बरकरार रखा कि इस तरह के नामांकन के लिए संविधान में स्थापित प्रक्रिया का कोई उल्लेख नहीं है इसलिए पुडुचेरी सरकार बेदी को सदस्यों को नामित करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती.
6 जनवरी 2021 को कांग्रेस और उसके सहयोगियों, जिनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और तमिलनाडु और पुडुचेरी में सक्रिय राजनीतिक पार्टी विदुथलाई चिरुथिगाल काची शामिल हैं, ने बेदी के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया. नारायणसामी ने जनवरी 2021 में एनडीटीवी से कहा, "अब तो हद हो गई है." वह अब कैबिनेट मंत्री के फैसले को पलटते हुए फाइलें लौटा रही हैं. यह उपराज्यपाल का काम नहीं है. उन्होंने कहा, “उनके पास कोई स्वतंत्र शक्ति या अधिकार नहीं है. कानून या संविधान के प्रति उनका कोई सम्मान नहीं है. वह खुद संविधान हैं.”
शुरू में यह विरोध राजभवन या बेदी के निवास के बाहर होना था लेकिन बेदी के अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती के आदेश के बाद इसे मुख्य राजमार्ग से एक किलोमीटर दूर अन्ना सलाई में स्थानांतरित कर दिया गया. शहर के कई हिस्सों की कंटीले तारों से घेराबंदी कर दी गई. "यह एक युद्ध क्षेत्र की तरह लग रहा था," पूर्व पत्रकार ने मुझे बताया. "हर जगह पानी की बौछार के लिए वॉटर कैनन और रबर की गोलियां चलाने के लिए भारी वाहनों को तैनात कर दिया गया था." उन्होंने कहा, "यह सब प्रदेश के लिए बहुत खराब छवि है जो काफी हद तक अपनी आय के लिए पर्यटन पर निर्भर करता है. बेदी जिस तरह से कार्रवाई कर रही थी उसे लेकर सभी होटल मालिक और पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग बहुत चिंतित थे.” 11 जनवरी को नारायणसामी ने पोंगल सहित आगामी त्योहारों का हवाला देते हुए विरोध प्रदर्शनों को रोक दिया लेकिन कहा कि वह जल्द ही फिर से इसे शुरू करेंगे. 16 फरवरी को बेदी को उपराल्यपाल के पद से हटा दिया गया और उनकी जगह बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव साउंडराजन को नियुक्त किया गया. उन्हें यह अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है क्योंकि वह पहले से ही तेलंगाना राज्यपाल हैं.
ट्विटर पर जारी एक बयान में बेदी ने कहा कि उन्होंने और उनकी टीम ने "व्यापक सार्वजनिक हितों के लिए काम किया है." उन्होंने कहा, "जो कुछ भी किया गया वह एक पावन कर्तव्य था, अपनी संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए."
पुडुचेरी में अन्नाद्रमुक के सचिव और औपलाम निर्वाचन क्षेत्र के विधायक अंबालागन ने मुझे बताया कि नारायणसामी महज बेदी पर आरोप लगा रहे थे. "नारायणसामी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में 142 वादे किए थे और मेरी जानकारी में उन्होंने एक भी काम नहीं किया. चावल और चीनी या सस्ती बिजली दरों से संबंधित उनके वादे अधूरे हैं. उन्होंने नई कपास मिलों को विकसित करने का वादा किया था लेकिन पुरानी मिलों को बंद होने से रोक नहीं सके. अगर आप इन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए उनकी सरकार द्वारा किए गए वास्तविक प्रयासों को देखें, तो काम न करके बस बेदी पर दोष मढ़ते नजर आएंगे."
अंबालागन ने पुडुचेरी में मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपाल के बीच पिछले संबंधों की तुलना की. "हर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच संबंध खराब रहे हैं. जब रंगसामी मुख्यमंत्री थे, तो वह और एलजी अक्सर भिड़ जाते थे. एआईएनआरसी के कैडरों ने तो तत्कालीन उपराज्यपाल की तस्वीर पर गोबर भी फेंका था. उस समय नारायणसामी केंद्रीय मंत्री थे और उन्होंने कहा था कि रंगासामी काम न करने के लिए उपराज्यपाल का बहाना बना रहे है." उन्होंने आगे कहा, "लेकिन रंगासामी ने फिर भी उनके साथ काम करने और प्रदेश के रोजमर्रा के कामकाज संभालने की कोशिश की." अंबालागन ने कहा कि नारायणसामी ने मुख्यमंत्री की तुलना में विपक्ष के नेता या पार्टी प्रमुख की तरह काम किया. "जब वह खुद मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने 18 बार बंद का आह्वान किया था."
मैंने रंगासामी से भी बात की, जिन्होंने कहा, "शासन का काम संस्थानों के साथ मिलकर मामलों को देखना होता है, उनसे मुकाबला करना नहीं होता है. जब मैं मुख्यमंत्री था तब भी मुझे परेशानी हुई थी लेकिन सभी के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करने करने का प्रयास किया." इस्तीफा देने वाले कांग्रेस विधायकों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “हम निश्चित नहीं हैं कि वे एआईएनआरसी में शामिल होने का इरादा रखते हैं या नहीं. अगर वे रुचि रखते हैं तो हम इंतजार करेंगे कि वह हमसे संपर्क करें.”
पूर्व पत्रकार ने बताया कि सरकारी मामलों में बेदी की मध्यस्थता और हाल ही में लगा राष्ट्रपति शासन पुडुचेरी में लोकतंत्र का दम घोंटने की बहुत पुरानी परंपरा की ही निरंनतरता है. उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि हमारे वोट कोई मायने नहीं रखते हैं और नौकरशाह हमारे राज्य या हमारे लोगों को जाने बिना मनमुताबिक कोई भी निर्णय ले सकते हैं."
1967 में तमिलनाडु में द्रमुक सत्ता में आई और तब से केवल द्रविड़ पार्टियों ने राज्य पर शासन किया है. 1969 में पुडुचेरी में भी डीएमके सत्ता में आई. तब से किसी भी द्रविड़ियन पार्टी- न तो अन्नाद्रमुक, न ही द्रमुक - ने इस केंद्र शासित प्रदेश में पांच साल का आपना कार्यकाल पूरा किया है. डीएमके की सरकारों को 1974, 1985, 1991 और 2000 में बर्खास्त कर दिया गया था, जबकि एआईडीएमके की सरकारों को 1977 और 1980 में बर्खास्त कर दिया गया. एक बार को छोड़कर हर बार तुरंत राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था. लगभग हर बार इस केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी.
राजनीतिक टिप्पणीकार ने मुझे बताया कि केवल एआईएनआरसी ही एक ऐसी गैर-कांग्रेसी सरकार रही जिसने 2011 से 2016 के बीच पांच साल का कार्यकाल पूरा किया." उन्होंने कहा, ''कांग्रेस ने हमेशा पुडुचेरी के लोगों की लोकतांत्रिक आवाज को कुचलने का काम किया है. यह पहली बार हुआ है कि उसे उस चीज का सामना करना पड़ रहा है जो वह खुद करती थी.
लेकिन राजनीतिक टिप्पणीकारों ने यह भी बताया कि पिछली केंद्र सरकारों की तुलना में, बीजेपी सरकार ने पुडुचेरी की स्वायत्तता पर अंकुश लगाने के प्रयासों को बढ़ाया है. तीन विधानसभा सदस्यों को सदन में नामित करना, जो सदन की कुल ताकत का लगभग दस प्रतिशत है, इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है. इसने केंद्र सरकार को न केवल उपराज्यपाल के कार्यालय के माध्यम से बल्कि विधानसभा के माध्यम से, किसी भी चुनी हुई सरकार के खिलाफ जोर आजमाइश करने की इजाजत दी है. 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास मत से पहले झारखंड विधानसभा के लिए एक सदस्य के नामांकन पर रोक लगा दी थी. हालांकि, 2018 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार थी, इसने पुडुचेरी विधानसभा में नामित सदस्यों को बनाए रखा.
बेदी ने संबंधित मंत्रालयों के बजाय गृह मंत्रालय को अनाज के वितरण और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण जैसे कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देकर केंद्र सरकार के नियंत्रण में वृद्धि की. इस प्रकार इन फैसलों को इस तरह के सवाल के रूप में तैयार किया गया था कि इन विषयों पर नीति बनाने का अधिकार किसको है, जबकि यह विषय पीछे ढकेल दिया गया कि ये नीतियां सही थी या गलत. इस प्रक्रिया में, संघ के निर्णय लेने के अधिकार को संकुचित कर दिया गया है. अन्य गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री, जैसे कि दिल्ली के अरविंद केजरीवाल, को भी बीजेपी द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल से भिड़ना पड़ा है.
बीजेपी की दलबदल की इंजीनियरिंग उसी प्रारूप का हिस्सा है जो कई अन्य राज्यों में अपनाया गया है. अरुणाचल प्रदेश में 2016 में मुख्यमंत्री पेमा खांडू सहित 45 कांग्रेस विधायकों में से 44 ने कांग्रेस छोड़ दी और पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए. कुछ महीने बाद खांडू 32 अन्य पीपीए विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और राज्य में भगवा पार्टी को सत्ता में ले आए. गोवा में 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे अधिक सीटें मिलने के बावजूद बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों के समर्थन से सरकार बनाई. आखिरकार 2019 तक राज्य के कम से कम दस कांग्रेस विधायक दलबदल कर बीजेपी में शामिल हो गए.
मणिपुर में 2017 के चुनाव परिणाम त्रिशंकु विधानसभा की ओर ले गए. हालांकि कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में अधिक सीटें मिलीं थी. फिर भी बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव के बाद गठबंधन कर और कांग्रेस के एक विधायक का समर्थन पाकर सरकार बना ली. 2019 में कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) गठबंधन के 16 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. सरकार गिर गई और उसकी जगह बीजेपी सरकार ने ले ली. इस्तीफा देने वालों में से कम से कम 10 बीजेपी की नई सरकार में बतौर मंत्री शामिल हुए. इसी तरह मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 22 विधायकों ने 2020 में इस्तीफा दे दिया. इससे कांग्रेस सरकार का पतन हो गया और बीजेपी की सरकार बनी. पश्चिम बंगाल में 2021 में होने वाले चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस के कम से कम नौ विधायक और दो कांग्रेस विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि, पुडुचेरी अभी भी एक ऐसे उदाहरण के रूप में सामने आता है जहां गैर-बीजेपी सरकार भगवा पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए गिर गई, जबकि बीजेपी का विधानसभा में एक भी निर्वाचित सदस्य नहीं था.
25 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विकास परियोजनाओं को शुरू करने के लिए पुडुचेरी में थे. उन्होंने एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया. कांग्रेस के इस आरोप का जवाब देते हुए कि केंद्र और बेदी ने मिलकर उनकी सरकार को कमजोर किया है, मोदी ने कहा कि यही कांग्रेस थी जिसने सहयोग नहीं किया और "केंद्रीय फंड का इस्तेमाल नहीं किया." केंद्र शासित प्रदेश में स्थानीय चुनावों के न होने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “कांग्रेस दूसरों को अलोकतांत्रिक कहने का कोई अवसर नहीं छोड़ती है. लेकिन उन्हें आईना देखना चाहिए. ये लोग हर तरीके से लोकतंत्र का अपमान करते हैं.” कुछ घंटों बाद पुडुचेरी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
अंबालागन ने कहा कि पिछले पांच सालों में केंद्र शासित प्रदेश की संघीय स्वायत्तता में अपूरणीय क्षति हुई थी. ऐसा नारायणसामी के फैसलों के चलते भी हुआ है. "मुझे लगता है कि नारायणसामी ने राज्य के लिए जो सबसे बड़ी चीज खोई है, वे हमारे संघीय अधिकार हैं. पिछले मुख्यमंत्रियों ने उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ बातचीत करने और हमारे संघीय अधिकारों को बनाए रखने की कोशिशें की थीं. नारायणसामी हर विवाद को उच्च न्यायालयों में ले गए और एक बार जब अदालतें हमारे अधिकारों को स्थगित कर देती हैं, तो हम उन पर फिर कभी नीतियां नहीं बना सकेंगे. यह हमारे राज्य की स्वायत्तता के लिए एक अपूरणीय क्षति है और इसने संघीय नीति निर्माण की भविष्य की संभावनाओं को कुचल दिया है.”