बिहार के गांवों तक पहुंची सांप्रदायिक नफरत

बिहार के गांवों में मुसलमानों के खिलाफ अफवाहें फैलाई जा रही हैं. लोगों की शिकायत है कि उन्हें सामान बेचने से इनकार किया जा रहा है. (यह प्रतीकात्मक फोटो इलाहाबाद महाकुंभ की है.) इग्जोटिका.इम/ यूनीवर्सल इमेज ग्रुप/ गैटी इमेजिस

बिहार के बेगूसराय जिले के भगवानपुर गांव के रहने वाले 40 वर्षीय मोहम्मद अफाक आलम साइकिल से गांव में घूम-घूम कर कम्पाउंडरी करते हैं. उनके वालिद भी यही करते थे, तो अफाक ने भी यही पेशा चुन लिया. पिछले 9 अप्रैल को अफवाह उड़ा दी गई कि वह घूम-घूम कर कोरोनावायरस का इलाज करते हैं और इसलिए वह खुद भी कोरोनावायरस से संक्रमित हो गए हैं. यह अफवाह तेजी से फैली, तो उसी दिन पुलिस उनके पास पहुंच गई. अफाक आलम ने मुझे बताया, "पुलिस आई और मुझे जांच के लिए अस्पताल ले गई. अस्पताल में मेरी जांच हुई और इसके बाद मुझे एक कागज थमा दिया गया, जिसमें लिखा था कि मेरी जांच हुई और मुझे कोरोनावायरस का संक्रमण नहीं है. मैं कागज लेकर लौटा और गांव के सभी लोगों को दिखाया कि ‘देखिए मैं कोरोनावायरस से संक्रमित नहीं हूं’. लेकिन लोगों ने नहीं माना. इस अफवाह के बाद सब्जी वाला मुझे सब्जी नहीं दे रहा. जिसके यहां से पीने का पानी लाता था, उसने पानी देने से इन्कार कर दिया."

अस्पताल से मिले कागज के टुकड़े को उन्होंने किसी जरूरी दस्तावेज की तरह लेमिनेशन करवा कर रखा है. अफाक ने मुझे कहा, "स्वास्थ्य विभाग से स्वस्थ होने का प्रमाण मिल जाने के बावजूद न केवल मेरे परिवार का बल्कि मेरे मोहल्ले में स्थित सभी 45-50 मुस्लिम परिवारों का सामाजिक बहिष्कार जारी है. हालत ये हो गई है कि कोई मुझसे दवा भी नहीं लेता है. सब्जी का ठेला गांव में आता है, तो लोग उसे मुस्लिम मोहल्ले में आने से रोक देते हैं."

अफाक ने मुझे बताया कि उनके और उनके मोहल्ले के मुस्लिमों के घरों पर पथराव किया जाता है. इसको लेकर उन्होंने 13 अप्रैल को थाने में लिखित आवेदन भी दिया है. आवेदन में उन्होंने लिखा है कि मुन्ना चौधरी नाम का शख्स उन्हें कोरोनावायरस का मरीज बताकर धमकी देता है और उनके तथा उनके समुदाय के लोगों के घर पर पथराव किया जाता है. इस आवेदन को स्थानीय मुखिया ने सत्यापित किया है.

इलाके के मुसलमान गरीब हैं और हिंदुओं के खेतों में कटनी कर रोजी-रोटी चलाते हैं, लेकिन इस अफवाह के बाद उन्हें खेतों में काम नहीं दिया जा रहा है. स्थानीय निवासी मोहम्मद तनवीर ने बताया, "मैं गेहूं कटने गया था, तो लोगों ने यह कहा कर भगा दिया कि मुझे कोरोनावायरस हुआ है. दुकान से राशन-पानी लेने जाता हूं, तो वहां से भी हमलोगों को भगा दिया जाता है. रास्ते में आता-जाता हूं, तो हिंदू लोग कहते हैं कि ‘मियां आ रहा है, इससे हट कर रहो.’” मुस्लिमों का आरोप है कि उनके साथ मारपीट भी की जाती है. तनवीर ने बताया, "मेरी खाला को उन लोगों ने धक्का दे दिया था, जिससे उनके पैर में चोट आ गई."

बेगूसराय में कोरोनावायरस संक्रमण का पहला मामला 31 मार्च को सामने आया था. 16 अप्रैल तक बेगूसराय में कोरोनावायरस संक्रमित मरीजों की संख्या 8 हो गई है. बिहार सरकार ने बेगूसराय को हॉटस्पॉट घोषित किया है.

भगवानपुर के मुखिया सीताराम महतो ने मुस्लिमों के आरोपों को सही बताया और कहा, “मुन्ना चौधरी एक नंबर वार्ड का सदस्य है और बीजेपी से जुड़ा हुआ है. कोरोनावायरस की अफवाह के बाद मुस्लिमों को तंग किया जा रहा है. दो बार भगवानपुर थाने की पुलिस यहां आई भी थी, लेकिन अफवाह अब भी बरकरार है. प्रशासन से मैंने कहा है कि अफवाह को खत्म करने का प्रयास करें. यहां के मुस्लिम फकीर बिरादरी से आते हैं और वे भूमिहीन हैं. अगर उनका इस तरह बहिष्कार किया जाएगा तो वे कैसे जिएंगे?"

रोहतास जिले के दिनारा निवासी 60 वर्षीय मोहम्मद कलामुद्दीन को भी अफवाह का शिकार होना पड़ा है. 2 अप्रैल को शाम करीब 5 बजे वह पास की मस्जिद में थे. मस्जिद कमेटी ने घोषणा की थी कि लॉकडाउन के दौरान गरीबों को निशुल्क राशन मुहैया कराया जाएगा. इसी सिलसिले में पास ही रह रहे एक हिंदू परिवार को राशन देने के लिए वह मस्जिद में गए थे. कलामुद्दीन ने मुझे बताया, “अभी मैंने राशन उठाया भी नहीं था कि मेरा मोबाइल फोन बजने लगा.” उन्होंने कॉल रिसीव किया, तो दूसरी तरफ उनके परिचित इबरार सऊद थे. इबरार ने पहले उनकी खैरियत पूछी और फिर पूछा कि सऊदी अरब में उनका जो लड़का रहता है, वह ठीक है कि नहीं. कलामुद्दीन ने जवाब दिया कि वह भी खैरियत से है. फिर इबरार ने जोर देकर पूछा कि क्या बेटे से उनकी बात हुई है? कलामुद्दीन ने “हां” में जवाब दिया और बातचीत खत्म हो गई. कलामुद्दीन को लगा कि इबरार उनके खैरख्वाह हैं, इसलिए जिज्ञासावश ये सब पूछा होगा. लेकिन उन्होंने बताया कि, “इस कॉल के बाद मेरे मोबाइल पर हर 5-10 मिनट पर फोन आने लगे और फोन करने वाला हर आदमी यही पूछता कि सऊदी में रह रहा मेरा लड़का ठीक तो है न.”

इन अप्रत्याशित फोन कॉलों और अजीबो-गरीब सवालों की तह में जब वह गए, तो उनके पैरों के नीचे जमीन हिलने लगी और चेहरे पर खौफ भर गया. इलाके में अफवाह उड़ा दी गई थी कि उनका बेटा सऊदी अरब से लौटा है और कोरोनावायरस की चपेट में आकर उसकी मौत हो चुकी है. बात सिर्फ इतनी नहीं थी. इलाके में यह बात भी आग की तरह फैल गई थी कि वह अपने लड़के की लाश को गुपचुप तरीके से अपने आंगन में कब्र दे रहे हैं.

कलामुद्दीन टेलरिंग की दुकान चलाते हैं. इससे पहले उन्होंने कुछ दिन टेंट तैयार करने का काम भी किया है. कलामुद्दीन ने मुझे बताया, "फोन करने वालों में हिंदू-मुसलमान दोनों थे. इलाके में मेरे हिंदू दोस्त भी हैं. सभी फोन पर यही पूछ रहे थे कि मेरा बेटा ठीक है कि नहीं. जब मैंने उन लोगों से ये जानना चाहा कि आखिर अचानक उनके जेहन में क्या आया है कि वे फोन कर ऐसे अवांछित सवाल पूछ रहे हैं. इस पर उन्होंने मुझे बताया कि इलाके में अफवाह जोरों पर है कि सऊदी अरब से लौटे मेरे बेटे की मौत कोरोनावायरस से हो गई है और मैं उसे आंगन में दफनाने जा रहा हूं. लेकिन, सच तो ये है कि मेरा बेटा सऊदी अरब से लौटा ही नहीं है."

शाम 5 बजे से देर रात तक उनके पास तकरीबन 50 फोन कॉल आए थे. इसी बीच उसी दिन शाम 6.18 बजे वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ छत पर नमाज पढ़ने गए. लॉकडाउन के बाद  मस्जिद में नमाज पढ़ने पर रोक है इसलिए इलाके के मुस्लिम अपने घरों की छतों पर नमाज पढ़ रहे हैं. कलामुद्दीन अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ नमाज पढ़ रहे थे, तभी किसी ने चुपके से वीडियो बना ली और उसे सोशल मीडिया पर यह बताकर शेयर कर दिया कि कलामुद्दीन के घर में जनाजे की नमाज पढ़ी जा रही है.

कलामुद्दीन मुझे बताते हैं, "यह बात मुझे स्थानीय लोगों ने बताई. यह सब होने से मैं भीतर से काफी डर गया था और रातभर सो नहीं पाया. मुझे डर लग रहा था कि गुस्से में लोग कहीं मेरी और मेरे परिवार की लिंचिंग न कर दें. मकान के मेनगेट पर ताला लगा हमलोग रातभर जगे रहे. देर रात तक फोन आता रहा और लोग मेरे बेटे के बारे में पूछते रहे. खासकर नमाज का वीडियो वायरल होने के बाद तो फोन कॉल की बाढ़ आ गई. फोन करने वालों को मैंने साफ तौर पर कहा कि वे अगर मेरी बातों से आश्वस्त नहीं हैं, तो मेरे घर आकर खोजबीन कर सकते हैं. अगर वे चाहेंगे, तो मैं उन्हें फोन पर अपने बेटे से बात भी करा दूंगा."

अफवाह इतनी तेजी से फैली और लोगों में इतना संदेह भर गया कि बात थाने तक पहुंच गई. रात 9.30 बजे के आसपास दिनारा थाने के प्रभारी सियाराम सिंह ने भी कलामुद्दीन को फोन किया. कलामुद्दीन ने मुझे बताया, "थाना प्रभारी ने मुझसे पूछा कि यह अफवाह कैसे फैली. मैंने जवाब में कहा कि मुझे नहीं पता. फिर थाना प्रभारी ने कहा कि वह दो घंटे से मेरे बारे में पता कर रहे थे और लोगों ने बयाया है कि यह बिल्कुल अफवाह है. किसी शरारती तत्व ने यह अफवाह फैलाई है. उन्होंने मुझे सांत्वना देकर फोन काट दिया, लेकिन रात 12 बजे तक मेरे पास फोन कॉल आता रहा. लेकिन, मेरी खुशकिस्मती थी कि मेरे जो हिंदू साथी थे, उनके पास जितने लोगों ने फोन किया उनको उन्होंने बताया कि सब अफवाह थी."

दूसरे दिन सुबह 9 बजे तक अफवाहों का बाजार गर्म था. कलामुद्दीन ने मुझसे कहा, "सुबह 9 बजे के आसपास मेरे पड़ोस में रहने वाले आसबिहारी नाम के शख्स ने मेरे लड़के को सऊदी में फोन किया और बातचीत की. इसके बाद धीरे-धीरे अफवाहों पर विराम लगा, वर्ना दहशत का आलम यह था कि जिसके यहां से मैं दूध लेता था, उसने दूध देने से इनकार कर दिया था. मेरी बीवी सब्जी लेने एक दुकान पर गई तो दुकानदार ने सब्जी नहीं दी. लगता था कि मेरे परिवार को छूत की बीमारी लग गई है. मोहल्ले में निकलते थे तो लोग हमसे दूर हो जाते थे. हमलोग पूछते भी थे कि हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो कोई जवाब नहीं मिलता. मुझे तकलीफ बस इस बात की है कि लोगों ने मुझसे पूछे बिना ही मुझे अपराधी मान लिया."

कलामुद्दीन तबलीगी जमात से ताल्लुक रखते हैं और पिछले साल अक्टूबर में ही वह दिल्ली से लौटे हैं. कलामुद्दीन जिस बस्ती में रहते हैं, उस बस्ती के सभी मुस्लिम तबलीगी जमात से जुड़े हुए हैं. 14-15 मार्च को निजामुद्दीन में जो जमात हुई थी, उसमें यहां से 5 लोग शामिल हुए थे, जो अभी मेरठ में क्वारंटीन होम में हैं.

गौरतलब हो कि इस तरह की अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का निर्देश है, मगर इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. कलामुद्दीन ने मुझे बताया, "अफवाह इतनी तेजी से फैली थी कि गुजरात, मुंबई तक से मेरे पास फोन आने लगे थे. दूसरे दिन 3 अप्रैल को मुखिया साजिदा बेगम के पति ललन खान के साथ मैंने थाना प्रभारी से मुलाकात की और अफवाह फैलाने वालों पर कार्रवाई करने की बात कही तो उन्होंने मामले को रफा-दफा कर देने को कहा. मैंने उनसे कहा भी कि अफवाह के आधार पर ही बड़े-बड़े कांड हो जाते हैं. मैंने यूपी में मोहम्मद अखलाक की हत्या का जिक्र किया, तो उन्होंने कहा कि वह इस मामले की आंतरिक जांच कराएंगे."

दिनारा में कुल 300-350 घर मुस्लिम के और लगभग 1000 घर हिंदुओं के हैं. कलामुद्दीन की पैदाइश दिनारा में ही हुई है. वह कहते हैं, "पहले कभी ऐसा नहीं हुआ. तबलीगी जमात में शामिल लोगों में कोरोनावायरस का संक्रमण मिलने के बाद जिस तरह से मुसलमानों को कोरोनावायरस का जिम्मेदार माना जाने लगा, मुझे आशंका है कि इसके चलते मुझ पर ऐसा संदेह जताया गया."

दो दिनों तक जिस अफवाह ने दिनारा की आबोहवा में तनाव घोले रखा था, उस अफवाह की जड़ की तलाशने के लिए मैंने सऊदी अरब फोन कर कलामुद्दीन के बेटे से बात करने वाले आसबिहारी से संपर्क किया, लेकिन आसबिहारी ने फोन काट दिया. आसबिहारी का घर कलामुद्दीन के मकान से सटा हुआ है. कलामुद्दीन को संदेह है कि आसबिहारी ने ही नमाज पढ़ते वक्त चुपके से वीडियो बनाया होगा और किसी को देकर सोशल मीडिया पर वायरल करवा दिया होगा.

रोहतास की घटना से दो दिन पहले जब दिल्ली में तबलीगी जमात से जुड़े लोगों को निजामुद्दीन के मरकज से निकाला जा रहा था और मीडिया चैनलों व सोशल मीडिया पर “कोरोनाजिहाद” जैसे नैरेटिव को हवा दी जा रही थी, ठीक उसी वक्त राजधानी पटना से लगभग 60 किलोमीटर दूर जरखा गांव में एक शिव मंदिर से सटी दीवार पर एक पोस्टर लगा दिया गया. काले रंग के पोस्टर में पीले रंग से लिखा था, "शिव मंदिर के अंदर मुस्लिम को आना मना है, नहीं तो सख्त कार्रवाई की जाएगी." शिव मंदिर जहां बना हुआ है, उसके पास से ही मुस्लिमों की बस्ती शुरू हो जाती है. इलाके में हिंदू व मुस्लिमों के बीच यहां कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ है, फिर भी ऐसा पोस्टर लगना स्थानीय लोगों को हैरान कर रहा है. एक स्थानीय युवक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर मुझे बताया, "इलाके में तनाव तो नहीं है, लेकिन मुस्लिम समुदाय डरा हुआ है."  युवक ने मुझे कहा, "इस गांव में 25 से 30 घर मुस्लिमों के हैं. यहां मुस्लिम और हिंदू मिल कर रहते हैं."

पोस्टर के बारे में स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर सिगोड़ी थाने की पुलिस को जानकारी दी गई  है, लेकिन न तो पोस्टर हटाया गया और न दोषियों की शिनाख्त हुई है. मैंने जरखा सरपंच बृजमोहन साव को फोन किया, तो उन्होंने घटना की जानकारी होने की बात मानी. उन्होंने मुझे कहा, "हो सकता है कि लॉकडाउन को लेकर पोस्टर लगा दिया होगा, लेकिन यह गलत है. न तो मस्जिद में ऐसा पोस्टर लगना चाहिए और न ही मंदिर में." बृजमोहन साव पोस्टर को गलत बताते तो हैं लेकिन पोस्टर को क्यों नहीं हटाया गया, इस सवाल का जवाब नहीं दिया. बल्कि जवाब में इतना ही कहा कि पुलिस को इसकी सूचना दी गई है और मुखिया को भी इत्तिला किया गया है.

मार्च के आखिरी हफ्ते में खबर फैली थी कि तबलीगी जमात की तरफ से निजामुद्दीन में मार्च में जुटान हुआ था और बहुत सारे लोग निजामुद्दीन इलाके में मौजूद हैं. इसके बाद वहां से तबलीगी जमात से जुड़े लोगों को निकाल कर क्वारंटीन किया गया. इसके बाद अलग-अलग राज्यों को उन लोगों की सूची सौंपी गई जो लोग दिल्ली में आयोजित जुटान में शामिल हुए थे. इसके बाद सोशल मीडिया से लेकर टीवी स्टूडियो कोरोनावायरस को मुस्लिमों से जोड़ा जाने लगा. इसका परिणाम यह निकला कि जगह-जगह मुस्लिमों का बहिष्कार किया जाने लगा.

झारखंड के गुमला में 7 अप्रैल को अफवाह उड़ी कि मुस्लिम कोरोनावायरस फैलाने के लिए जान बूझ कर थूक रहे हैं. इसके बाद दो गुटों में झड़प हो गई. इंडियन एक्सप्रेस  की 7 अप्रैल की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनावायरस को लेकर दिल्ली और गुड़गांव में मुस्लिमों पर हमले की तीन घटनाएं हो चुकी हैं. 

पिछले दिनों खबर आई थी कि नई दिल्ली के शास्त्री नगर में ठेले पर सब्जी बेचनेवालों का पहचान पत्र देखा जा रहा है और किसी वेंडर की पहचान मुस्लिम साबित होने पर उसे मोहल्ले से भगा दिया जाता है. दैनिक भास्कर की 9 अप्रैल की एक रिपोर्ट में दिल्ली के शास्त्री नगर के आसपास फल बेचने वाले मोहम्मद अनस ने बताया था कि लोग उन्हें किसी भी गली-मोहल्ले में नहीं आने दे रहे. इसी रिपोर्ट में गुलाबी बाग में सब्जी बेचने वाले शिव सिंह बताते हैं कि उसके सामने मोहल्ले में लाउड स्पीकर से यह घोषणा हुई कि अब से किसी भी मुस्लिम को यहां सब्जी-फल बेचने के लिए नहीं आने दिया जाएगा.

पटना से लगभग 60 किलोमीटर दूर जरखा गांव के एक शिव मंदिर की दीवार पर लगे पोस्टर में लिखा है, "शिव मंदिर के अंदर मुस्लिम को आना मना है. नहीं तो सख्त कार्रवाई की जाएगी." साभार : उमेश कुमार राय

बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय कई बार कह चुके हैं कि कोरोनावायरस को लेकर अफवाह और दो समुदायों में नफरत फैलाने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, लेकिन इन तीनों मामलों में पुलिस की कार्रवाई नहीं के बराबर हुई है.

रोहतास जिले के दिनारा की घटना को लेकर जब मैंने थाना प्रभारी सियाराम सिंह से संपर्क किया, तो उन्होंने माना कि कोरोनावायरस की खबर अफवाह थी, लेकिन कार्रवाई के सवाल पर कहा, "अफवाह कहां से उड़ी, यह कैसे पता लगेगा? यह सूचना तो किसी के मुंह से निकली और फैलती गई." जब मैंने उनसे पूछा कि थाने के चौकीदार के पास फोन कॉल आए थे और फोन करने वाले ने कोरोनावायरस फैलने और शव दफनाने की बात कही थी, तो उन्होंने कहा, "चौकीदार के पास दिनभर में पचासों फोन कॉल आते हैं. हम मामले की जांच कराएंगे."

वहीं, बेगूसराय के भगवानपुर की घटना को लेकर थाने के एसएचओ ने मुझे कहा, "शुरू में पथराव की घटना हुई थी. लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है. आरोपित मुन्ना चौधरी की गिरफ्तारी को लेकर दो बार छापेमारी की गई है, लेकिन वह एक हफ्ते से फरार है."

सामाजिक बहिष्कार के सवाल पर एसएचओ ने मुस्लिमों को ही जिम्मेदार ठहराया और कहा, "वे लोग राशन-पानी लाने के लिए जाते हैं, तो सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल नहीं करते हैं. वे लोग अब राजनीति कर रहे हैं."

पटना के जरखा में मंदिर परिसर में मुस्लिमों के प्रवेश को लेकर पोस्टर चिपकाने के सवाल पर सिगोड़ी थाने के एसएचओ मनोज कुमार ने मुझे बताया, "मेरे पास ऐसी न्यूज नहीं आई है. हां, ऐसा सुना है कि कोई बोर्ड लगा है जिसमें कुछ अच्छा ही लिखा हुआ है."

मैंने पूछा कि क्या अच्छा लिखा हुआ है, तो उन्होंने कहा, "यही लिखा हुआ है कि यहां अन्य धर्म वाले को प्रवेश नहीं करना है." मैंने कहा कि पोस्टर में अन्य धर्म का नहीं मुस्लिम का जिक्र है, तो उन्होंने थोड़ी तेज आवाज में कहा, "...अरे तो उसमें वे क्यों हेलेंगे (प्रवेश करेंगे)?" जब मैंने एसएचओ से पूछा कि अब तक तो ऐसा कोई पोस्टर नहीं था और मुस्लिम तो मंदिर में नहीं ही जाते होंगे, तो उन्होंने कहा, "नहीं, वे लोग वहां बैठकर ताश खेलते थे. हालांकि, पोस्टर को लेकर मेरे पास कोई शिकायत नहीं आई है. शिकायत आएगी तो कार्रवाई की जाएगी."

मंदिर परिसर में ताश खेलने के एसएचओ के आरोप पर मैंने स्थानीय मुस्लिम युवक हबीबुल्ला से बात की, तो उन्होंने कहा, "मुस्लिम मंदिर में ताश नहीं खेलते थे. लेकिन पोस्टर को लेकर भी इलाके में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं है. यहां सब आपसी मेलजोल से रहते हैं."

इधर, 18 अप्रैल की सुबह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा के बिहारशरीफ के एक बाजार में ठेले पर सब्जी और फल बेचने वाले दुकानदारों की हिंदू पहचान पुख्ता करने के लिए उनमें भगवा झंडे बांटे गए, ताकि हिंदू खरीदार हिंदू दुकानदारों से ही सामान खरीदे.

जूस और सब्जी का ठेला लगाने वाले मुन्ना कुमार ने मुझे बताया, "कुछ लोग मोटरसाइकिल पर सवार होकर आए थे और दुकानदारों का नाम और धर्म पूछ कर भगवा झंडा बांट रहे थे. वे लोग कह रहे थे कि हिंदू दुकानदार झंडा अपनी दुकान में लगाएं, ताकि हिंदू उनकी दुकान से सामान खरीदें. उन्होंने मेरा नाम भी पूछा और यह भी पूछा कि क्या मैं हिंदू हूं? मैंने जब बताया कि मैं हिंदू हूं तो मुझ भी झंडा दिया."

ठेला फुटपाथ वेंडर्स यूनियन के जिला सचिव रामदेव चौधरी ने मुझे बताया, "50 से ज्यादा फुटपाथी दुकानदारों को झंडा दिया गया था. हमलोगों जब पता चला तो हमने तुरंत इसकी जानकारी बीडीओ और डीएम को दी. सूचना पर प्रशासन बाजार में पहुंचा और सभी दुकानों से भगवा झंडा हटाया."