“अकादमिक जगत को सिविल सेवा नियमों से नियंत्रित किया जा रहा है”, हनी बाबू, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर

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10 सितंबर 2019 की सुबह पुलिस की एक टीम ने दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू एमटी के नोएडा स्थित अपार्टमेंट पर छापा मारा और लैपटॉप, मोबाइल , इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और दो किताबें जब्त कर लीं. इस टीम में पुणे पुलिस के जवान भी थे. छापेमारी छह घंटे तक चली लेकिन बाबू ने बताया कि पुलिस के पास तलाशी वारंट नहीं था.

पुलिस ने बाबू को बताया कि यह तलाशी एल्गार परिषद और भीमा कोरेगांव मामले के संबंध में है. पुलिस की टीम नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों की गिरफ्तारी का जिक्र कर रही थी जिन पर 1 जनवरी  2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा की घटना में शामिल होने और एक दिन पूर्व एल्गार परिषद के आयोजन पर एक सामूहिक सार्वजनिक बैठक करने का आरोप लगा है. इस मामले में विभिन्न राज्यों के पुलिस अधिकारियों ने इसी तरह के छापे मारे हैं, जिनमें हैदराबाद में अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय परिसर के शिक्षक सत्यनारायण के घर और एक पादरी तथा आदिवासी-अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी भी शामिल हैं.

कारवां के मल्टीमीडिया संपादक शाहीन अहमद और बुक एडिटर माया पालित ने बाबू से छापे और उसके बाद की घटनाओं के बारे में बातचीत की. बातचीत में जाति-विरोधी आंदोलनों और जेल में बंद प्रोफेसर जीएन साईबाबा के बचाव के लिए बनी समिति में बाबू की भूमिका पर भी बात हुई. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को मई 2014 में माओवादियों के संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था और तीन साल बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. देश भर में व्यापक स्तर पर शिक्षाविदों पर हो रहे हमलों के परिप्रेक्ष्य में बाबू ने घर पर पड़े छापे पर कहा, "मुझे लगता है कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है, क्योंकि इस का मकसद ऐसा माहौल बनाना है जिसमें समाजिक-राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय लोगों के खिलाफ नकारात्मक छवि तैयार हो. यह तो लंबे समय से चल रहा है.”

शाहीन अहमद : 10 सितंबर को आपके घर में क्या हुआ था क्या आपको इसकी जानकारी पहले से थी?

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