राष्ट्रीय प्रसारण में मोहन भागवत ने पेश किया जातिवादी और धर्मशासित राज्य का दृष्टिकोण

19 नवंबर 2020
25 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंचानवे स्थापना दिवस के अवसर पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने भाषण में एक जातिवादी, धर्मशासित हिंदू राज्य का अपना दृष्टिकोण रखा.
विपीन कुमार / हिंदुस्तान टाइम्स
25 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंचानवे स्थापना दिवस के अवसर पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने भाषण में एक जातिवादी, धर्मशासित हिंदू राज्य का अपना दृष्टिकोण रखा.
विपीन कुमार / हिंदुस्तान टाइम्स

25 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंचानवे स्थापना दिवस के मौके पर संगठन के मुखिया सरसंघचालक मोहन भागवत ने टेलीविजन के माध्यम से लोगों को संबोधित किया और एक जातिवादी धर्मशासित हिंदू राष्ट्र का दृष्टिकोण पेश किया. इसके अगले दिन समाचार पत्रों ने उनके भाषण को मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया लेकिन उन्होंने भारतीय सीमा में चीन की घुसपैठ, हाल ही में लागू किए गए विवादास्पद कृषि कानूनों और कोविड महामारी पर व्यक्त भागवत के विचारों को तहरीज दी. भागवत ने  राष्ट्रीय प्रसारण में अप्रत्यक्ष रूप से जिस हिंदू धर्मशासन की बात की है उसके शब्दों को समझना जरूरी है. विजयदशमी का मौका होता है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना स्थापना दिवस मनाता है.

इस मौके पर मोहन भागवत ने कहा,  “हिंदू शब्द का अर्थ है भारतवर्ष को अपना मानने वाले, उसकी संस्कृति के वैश्विक और शाश्‍वत मूल्यों को आचरण में उतारने वाले तथा उसकी महान पैतृक परंपरा पर गौरव करने वाले. ये बातें सभी 130 करोड़ समाज के बंधुओं को लागू होता है.” उन्होंने कहा कि इस पहचान में गैर हिंदू भी शामिल हैं क्योंकि वे भारतीय पुर्वजों के वंशज हैं. लेकिन उनकी बातें से स्पष्ट होता है कि उनके भारतीय पर्वजों का मतलब है हिंदू पूर्वज. उन्होंने साफ-साफ कहा, अपने अपने राष्ट्र का स्व हिंदुत्व हैं. भागवत के अनुसार, “देश की एकता और सुरक्षा के लिए सभी भारतीयों को हिंदू शब्द को समान पहचान के रूप में अपनाना चाहिए.” लेकिन भागवत ने यह साफ नहीं किया कि कैसे ऐसा न करने से देश की सुरक्षा को खतरा होगा.

भागवत के भाषण में भारत के प्रति संघ का दृष्टिकोण प्रतिबिंबित होता है और इस बात को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि यह संगठन भारतीय राजनीति, नीति और समाज पर गंभीर असर रखता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयंसेवी अर्ध सैनिक दस्तों का अपंजीकृत संगठन है और यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का मातृ संगठन है. फिलहाल नरेन्द्र मोदी सरकार के 53 मंत्रियों में से 38 इसी संगठन की पृष्ठभूमि के हैं यानी 70 प्रतिशत से अधिक. मोदी स्वयं तीन दशकों से भी ज्यादा समय तक आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक रहे हैं. इसके अलावा संघ दर्जनों अन्य संगठनों को संचालित करता है जिनमें भारत का सबसे बड़ा ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ भी है जिसका दावा है कि उसके सदस्यों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा है. इसी तरह उसका छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद देश का सबसा बड़ा छात्र संगठन है. साथ ही, संघ की देशभर में 74 हजार से अधिक शाखाएं चलती हैं और इसके 1000 से ज्यादा एनजीओ 50000 से ज्यादा प्रोजेक्टों से जुड़े हैं. यह संगठन कम से कम 12000 स्कूलों का संचालन भी करता है.

भागवत 2009 में संघ के पांचवे सरसंघचालक बने थे लेकिन भारत के प्रति उनका दृष्टिकोण अपने उन अग्रजों से अलग नहीं है जिन्होंने 95 साल के संगठन के इतिहास में उनके जैसी ही बातें की हैं. भागवत के भाषण को संदर्भों में समझने के लिए मैंने भागवत के भाषण को अन्य चार हिंदू राष्ट्रवादी संघ के विचारकों के साथ मिलाकर पढ़ा. मैंने वी. डी. सावरकर कि 1923 में लिखी किताब एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व, दीनदयाल उपाध्याय की 1965 में प्रकाशित किताब एकात्‍म मानववाद, एमएस गोलवलकर की 1966 में प्रकाशित बंच ऑफ थॉट्स और दत्तोपंत ठेंगड़ी की 1995 में प्रकाशित थर्ड वे का अध्ययन किया. इन्हें पढ़ते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि भागवत भारत को एक गैर बराबरी वाले थियोक्रेटिक अथवा धर्मशासित समाज में बदलना चाहते हैं जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता का निर्धारण व्यक्ति की जाति और धार्मिक पहचान के आधार पर होगा.

उनका भाषण भारत के संवैधानिक मूल्य के अक्कड़ तिरस्कार के लिए मात्र चिंताजनक नहीं है बल्कि हाल के घटनाक्रम इस बात की ओर इशारा करते हैं कि उनकी बातों को नीति में बदल दिए जाने की बहुत असल संभावना है. इस साल जून में मैंने कारवां में लिखा था कि कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के समय मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां ठेंगड़ी द्वारा थर्ड वे में विकसित हिंदू अर्थशास्त्र को प्रतिबिंबत करती हैं. भागवत ने अपने भाषण में भी कहा है कि भारतीय कृषि, श्रम, शिक्षा, आर्थिक और औद्योगिक कानूनों में जो हाल में बदलाव किए हैं वे आशावादी कदम हैं जो स्व को स्थापित करने के लिए लाए गए हैं. उन्होंने इस स्व को हिंदुत्व बताया. उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व से आशा करेगा कि वह स्व पर आधारित नीतियों को आकार देता रहे.

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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