माथा नोआटे शिखिनी कोखोनो शशोक तोमार काछे/जादवपुरेर दिवाले दिवाले बिद्रोहो लेखा आछे" यानी हमें सत्ता के आगे झुकना नहीं सिखाया गया है/जादवपुर की हर दीवार पर विद्रोह लिखा है.
20 सितंबर को कोलकाता का जादवपुर विश्वविद्यालय विरोध प्रदर्शन करते हजारों छात्रों के इस नारे की आवाज से गूंज उठा. "इंकलाब जिंदाबाद" और "होक कोलोरोब" यानी “हल्ला बोल” का शोर दक्षिण कोलकाता के केंद्र में गूंज उठा. जेयू के छात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा पिछले दिनों विश्वविद्यालय परिसर के भीतर और बाहर की गई हिंसा, बर्बरता और आगजनी के विरोध में एक साथ आ खड़े हुए थे. इस रैली के बैनरों में "फासीवादी साजिशों और आतंक के खिलाफ विरोध रैली" जैसे नारे और पत्रकार रवीश कुमार का रेमन मैगसेसे पुरस्कार समारोह में दिया गया भाषण अंकित था. मैंने विभिन्न राजनीतिक दलों की युवा शाखाओं के छात्रों को देखा और ऐसे छात्रों से मुलाकात की जिन्होंने बताया कि वे किसी राजनीतिक संगठन से नहीं जुड़े हैं.
इसके तीन दिन बाद विश्वविद्यालय एक और गतिरोध का केंद्र बन गया था क्योंकि एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने पांच दिनों में दूसरी बार परिसर में हुड़दंग मचाने की कोशिश की. दोपहर में कोलकाता पुलिस ने जेयू के गेट नंबर चार पर बैरिकेड खड़े कर दिए, जबकि शिक्षकों ने गेट के सामने मानव श्रृंखला बनाई, जो एबीवीपी के विश्वविद्यालय गेट पर हमला करने के प्रयासों के खिलाफ प्रतिरोध का एक शांतिपूर्ण तरीका था. तुलनात्मक साहित्य विभाग के प्रोफेसर और मानव श्रृंखला की अग्रिम पंक्ति में शामिल सामंतक दास ने मुझे बताया “बैरिकेडों का मूल्य भौतिक से अधिक प्रतीकात्मक और नैतिक है. हमारी मौजूदगी छात्रों को यह बताती है कि हम छात्रों और विश्वविद्यालय की रक्षा करने के लिए वहां मौजूद हैं.” उन्होंने कहा कि “हम जादवपुर विश्वविद्यालय के विचार यानी एक ऐसी जगह की रक्षा करने के लिए वहां गए थे जिसमें हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है.”
सामंतक 19 सितंबर को जेयू परिसर में हुई झड़पों का जिक्र कर रहे थे, जिसके बाद 20 और 23 सितंबर को विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. उस दिन, भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो और फैशन डिजाइनर से बीजेपी नेता बनीं अग्निमित्रा पॉल विश्वविद्यालय की एबीवीपी शाखा द्वारा नए छात्रों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करने वाले थे. एबीवीपी, जिसका जेयू में महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं है, पिछले कुछ वर्षों से, बिना किसी सफलता के, विश्वविद्यालय में पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है.
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