जेएनयू में रहने वाले परिवारों ने सुनाई आतंकी रात की भयावह आपबीती

ज्यादातर हिंसा छात्रावासों में हुई लेकिन नकाबपोश गुडों ने शिक्षकों के आवास पर भी हमला किया. महावीर सिंह बिष्ट

5 जनवरी की शाम लगभग 6.30 बजे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुछ नकाबपोश गुंडों की भीड़ ने लाठी और रॉड से छात्रों और फैकल्टी पर हमला किया. छात्र और शिक्षक छात्रावास की प्रस्तावित फीस बढ़ोतरी का विरोध करने के लिए जमा हुए थे. छात्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस भीड़ ने पथराव किया, कारों को क्षतिग्रस्त किया, छात्रावासों में तोड़फोड़ की और छात्रों और शिक्षकों के साथ मारपीट की. विश्वविद्यालय में तैनात पुलिस से मदद की गुहार के बावजूद पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया. बीस से अधिक घायल लोगों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया. कई छात्रों का दावा है कि नकाबपोश लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे. एबीवीपी ने इन आरोपों का खंडन किया है और दावा किया है कि "कम्युनिस्ट" और "वामपंथी" समूहों ने उसके सदस्यों पर हमला किया. 7 जनवरी को दक्षिणपंथी संगठन, हिंदू रक्षा दल के पिंकी चौधरी ने एएनआई को बताया कि ''उनका दल जेएनयू में हुए हमले की पूरी जिम्मेदारी लेता है और हम यह भी बताना चाहते हैं कि हमला करने वाले हमारे कार्यकर्ता थे.”

हालांकि हिंसा की ज्यादातर घटनाएं छात्रावासों में हुईं लेकिन नकाबपोशों ने शिक्षकों के आवासों पर भी हमला किया. एक दंपत्ति ने हमें आतंक की शाम के बारे में बताया. 5 जनवरी की शाम को उर्दू के सहायक प्रोफेसर शिव प्रकाश, न्यू ट्रांजिट हाउस II आवास में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आराम कर रहे थे. तभी अचानक, लगभग 7 बजे, एक सहयोगी ने उन्हें फोन पर साबरमती छात्रावास में हो रहे हो-हल्ले की सूचना दी. शिव अपनी पत्नी और 12 साल तथा 18 महीने के दो बेटों को छोड़कर बाहर निकले. उनकी आठ साल की बेटी पड़ोसी के घर पर थी. “मैं साबरमती की ओर जा रहा था कि अचानक पुरुषों की एक बड़ी भीड़ को हाथों में लाठी और रॉड के साथ ट्रांजिट हाउस की ओर बढ़ते देखा. मैं मुड़ गया और घर वापस चला गया,” शिव ने याद किया. उनकी पत्नी सुनीता ने बताया कि शिव हमसे चीखते हुए फौरन बेडरूम में चले जाने के लिए बोल रहे थे. इससे हम चौंक गए. मुख्य दरवाजे को बंद कर देने के बाद भी शिव इसी तरह चिल्ला रहे थे. “उनका चेहरे में बहुत घबराहट थी. मैंने तुरंत बच्चों को पकड़ लिया और अंदर भाग गई.”

सुनीता ने डरते-डरते अपनी बेडरूम की खिड़की से झांका और पंद्रह-बीस आदमियों को देखे. “कुछ नकाबपोश थे. उन सब के हाथों में स्टील की छड़ें और लाठियां थीं,” उन्होंने बताया. अचानक, उन्होंने अपने सामने के दरवाजे पर धमाके की आवाज सुनी. सुनीता ने कहा, “लोग हमारे घर के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. वे जोर-जोर से सामने का दरवाजा पीट रहे थे और लात मार रहे थे और दरवाजा खोलने के लिए हम पर चिल्ला रहे थे.” प्रकाश ने अपने पड़ोसी को अपना दरवाजे बचाए रखने और अपनी बेटी को अपने पास रखने के लिए बोल दिया था. जल्द ही, सामने के दरवाजे की कुंडी खुल गुई और नकाबपोश भीड़ उनके कमरे में घुस आई. तब तक दंपति बेडरूम में चले गए थे. सुनीता ने कहा, "मैंने अपने दोनों हाथों से बेडरूम के दरवाजे को कस कर बंद करने की कोशिश की ताकि उन्हें बेडरूम का दरवाजा तोड़ने से रोक सकूं." इसके चलते उनके हाथों में पड़े लाल निशान उन्होंने हमें दिखाए. "यह सोचकर कि मेरे बच्चों का क्या होगा मैं इतनी डर गई कि रोने लगी."

वे ज्यादा देर तक दरवाजे को नहीं रोक सकते थे और लोग उनके बेडरूम में घुस आए. शिव और उनका परिवार भयभीत था. सुनीता ने अपने बच्चों को बचाने-छिपाने की कोशिश करते हुए नकाबपोश भीड़ से उन्हें छोड़ देने की मिन्नते कीं. “मैं जेएनयू में पढ़ाता हूं, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम क्या चाहते हो?” शिव ने उन लोगों से पूछा. "अचानक, उनमें से एक ने मुझे पहचान लिया और दूसरों को बताया कि मैं शिक्षक हूं और मुझे न मारा जाए,” उन्होंने हमें बताया. सुनीता ने कहा, "अगर उस आदमी ने मेरे पति को नहीं पहचाना होता तो वे हमें पीट सकते थे, शायद हमें मार भी सकते थे." जब मैंने शिव से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि वह छात्र कौन था, तो उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि वह जेएनयू का ही छात्र था, लेकिन मैं उसे पहचान नहीं सका.”

शिव का जन्म पूर्वी उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी जिले में हुआ. उनका घर एक मुस्लिम कॉलोनी के बगल में स्थित था. स्कूल में उन्होंने उर्दू सीखी और भाषा के लिए अपनी रुचि विकसित की. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद, उन्होंने साल 2005 में जेएनयू में एमए में प्रवेश लिया. उन्होंने बताया कि उस समय मुझे नहीं पता था कि जेएनयू क्या है? “मेरे दोस्तों ने मुझे दिल्ली के एक विश्वविद्यालय के बारे में बताया जहां बहुत अच्छी शिक्षा दी जाती है." तब जेएनयू की मेस का शुल्क 1200 रुपए प्रति माह था और प्रकाश को 600 रुपए की मासिक छात्रवृत्ति मिलती थी. “मुझे घर से सिर्फ 1000 रुपए लेने पड़ते थे. फीस सस्ती थी इसलिए मैं इस विश्वविद्यालय में पढ़ पाया.” उन्होंने आगे कहा, "जेएनयू में फीस वृद्धि, विशेष रूप से मेस की फीस में बढ़ोतरी, गरीब छात्रों को बहुत मुश्किल में डालने वाला फैसला है." प्रकाश ने जेएनयू से उर्दू में एमए, एमफिल और पीएचडी पूरी की. एमफिल में उनका विषय बाल साहित्य और पीएचडी में कथा और लघु कथाएं था. सुनीता भी कौशाम्बी से हैं और खुद को "गृहिणी" मानती हैं. परिवार तीन साल से फैकल्टी आवास में रह रहा है. वे विश्वविद्यालय परिसर को परिवार के लिए सबसे सुरक्षित जगह मानते आए हैं.

सुनीता ने कहा, "जेएनयू में फैकल्टी को कभी निशाना नहीं बनाया गया और मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारा सामना इस बुरे सपने से होगा. हमने अभी तक कौशाम्बी में अपने परिवारों को नहीं बताया है कि क्या हुआ था. अगर सरकार हमें अपने आवासों में सुरक्षित नहीं रख सकती है, तो हम यहां नहीं रहेंगे," उन्होंने बताया. जब मैंने उनसे पूछा कि भीड़ ने उन पर और ट्रांजिट हाउस पर हमला क्यों किया होगा, तो सुनीता ने कहा कि भीड़ में शामिल लोगों ने उन्हें बताया था कि वे कुछ ऐसे लोगों की तलाश कर रहे थे जिनके बारे में उनको लगता है कि यहां छिपे हुए हैं.

उसी समय जब नकाबपोश प्रकाश परिवार को आतंकित कर रहे थे, ट्रांजिट हाउस की एक और निवासी कुमारी नीलू ऐसे ही बुरे अनुभव से गुजर रही थीं. शाम 7.10 बजे नीलू टहलने निकलीं. ट्रांजिट हाउस के प्रवेश द्वार पर, एक उबर ड्राइवर ने उन्हें चेताया कि साबरमती हॉस्टल में कुछ गड़बड़ हो गई है. नीलू साबरमती हॉस्टल की ओर लगभग सत्तर मीटर तक चली होंगी और हॉस्टल के करीब चालीस आदमियों को गालियां देते और चिल्लाते हुए देखा. “वे जेएनयू के नहीं लग रहे थे," नीलू वहीं स्तब्ध खड़ी हो गईं. उन्होंने अपने फोन को छिपाते हुए, ताकि कोई देख न सके, वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया. 100 मीटर दूर खड़ी भीड़ के कुछ लोगों ने उन्हें देख लिया और उनकी तरफ दौड़ने लगे.

नीलू घबराई, पलटी और तेजी से घर की ओर चल पड़ी. उन्होंने मुझे बताया, “मैं मुश्किल से पांच कदम ही आगे बढ़ पाई थी कि मैंने जोर की आवाज सुनी. मैंने पीछे मुड़कर देखा कि करीब 30 आदमी मेरे पीछे दौड़ रहे थे. मैं भी भागने लगी.” वह ट्रांजिट हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंच गईं, जहां तीन गार्ड गेट बंद करने की कोशिश कर रहे थे. “मैं अंदर भाग गई और मैंने सुना कि मेरा पीछा कर रहे लोग, गेट खोलने के लिए गार्डों को गाली दे रहे थे." वह सीढ़ियों से अपनी पहली मंजिल के अपार्टमेंट में भागीं और दरवाजे की घंटी बजाने लगीं. नीलू ने कहा, "मुझे लगता था कि वे तुरंत मेरे पीछे नहीं आएंगे क्योंकि वे गार्ड से उलझे हुए हैं." इस दौरान उनके फोन का वीडियो लगातार चल रहा था. अगर मैं बाद में वीडियो नहीं देखती तो मुझे कभी यह एहसास नहीं होता कि चार गुंडे मेरे कितने नजदीक पहुंच गए थे."

जब उनके साथी विक्रमादित्य चौधरी, जो क्षेत्रीय विकास अध्ययन केंद्र में सहायक प्रोफेसर हैं, ने दरवाजा खोला, तो वह दौड़कर अंदर आईं और एक ही सांस में हांफते हुए यह समझाने की कोशिश की कि क्या हो रहा है. "जब कुछ बुरा होता है तो मेरा दिमाग ज्यादा सतर्क मोड में चला जाता है," नीलू ने बताया. उन्होंने दरवाजा बंद किया, लाइट बुझा दी और बेडरूम में चले गए. अंधेरे में उन्होंने खिड़की से बाहर झांका और उन्हें आंगन में चार लोग दिखाई दिए. नीलू तब बाथरूम में चली गईं और खिड़की से बाहर झांकने लगी. वह यह देखकर वह खौफ में आ गईं कि सामने के दरवाजे के बाहर 20 आदमी खड़े हैं. वे दरवाजा पीट रहे थे, गालियां दे रहे थे और धमकी दे रहे थे. “विक्रम और मैंने सोचा, अगर वे सामने के दरवाजे को तोड़ते देते हैं, तो हम बेडरूम का दरवाजा बंद कर देंगे और अगर वे बेडरूम का दरवाजा तोड़ते हैं, तो हम बाथरूम में छिप जाएंगे और दरवाजा बंद कर लेंगे.”

नीलू ने दिल्ली पुलिस की हेल्पलाइन पर फोन किया, जबकि विक्रम बदहवास होकर विश्वविद्यालय के मुख्य सुरक्षा अधिकारी और रजिस्ट्रार को फोन लगा रहे थे. किसी ने फोन नहीं उठाया. केवल जेएनयू सुरक्षा नियंत्रण कक्ष ने फोन उठाया, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं किया. विक्रम ने अपने पड़ोसियों और सहकर्मियों को फोन करके उन्हें अपने दरवाजे बंद कर लेने को कहा. भीड़ उनके सामने के दरवाजे के बाहर पंद्रह मिनट तक खड़ी गालियां देती रही लेकिन दरवाजा तोड़ पाने में नाकाम रही. जब मैंने नीलू से पूछा कि भीड़ ने ट्रांजिट हाउस पर हमला क्यों किया, तो उन्होंने कहा, "जब मैं वापस लौट रही थी तो मुझे लगा कि वे मेरा पीछा कर रहे हैं क्योंकि मैंने उनका वीडियो बनाया था लेकिन अब मैं यह बात यकीन से नहीं कह सकती.”

नीलू और विक्रम के गलियारे के चारों ओर भीड़ ने एक कोरियाई शिक्षक पर अपना रोष प्रकट किया. किम, जो अपने पूरे नाम का खुलासा नहीं करना चाहते, 15 साल के हैं और अपनी मां, मायुंग ई-ली के साथ रहते हैं. ली कोरियाई अध्ययन केंद्र में विजिटिंग फैकल्टी हैं. जब हमने उनके घर के दरवाजे की घंटी बजाई तो किम ने दरवाजा खोला. मायुंग ई-ली सो रहीं थीं, इसलिए हमने किम से ही बात करनी शुरू की. "जब भीड़ ने दरवाजे की घंटी बजाई, तो हम डर गए, क्योंकि हमने पहले ही भीड़ को बाहर देख लिया था," किम ने याद किया. उन्होंने कहा, "हमने दरवाजा खोल दिया और उन्हें एहसास हुआ कि हम विदेशी हैं इसलिए वे बहुत हमलावर नहीं थे." उन्होंने कहा, "उनमें से एक ने कहा कि वे हमारे घर की जांच करना चाहते हैं कि क्या हमने किसी को यहां छुपाया है. उन्होंने कहा कि वे हमें परेशान नहीं करेंगे." ये लोग गैर-कानूनी रूप से अंदर चले आए. उन्हें कुछ भी नहीं मिला इसलिए वे यहां से चल दिए.

इन तमाम बातों में यह स्पष्ट नहीं है कि शिक्षकों पर हमला क्यों किया गया. कुछ का कहना है कि साबरमती हॉस्टल पर हमले के बाद कुछ छात्र छिपने के लिए ट्रांजिट हाउस की ओर भागे थे और नकाबपोशों ने उनका पीछा किया था, जबकि अन्य का कहना था कि भीड़ उन लोगों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी जो वीडियो और तस्वीरें ले रहे थे.

 


कौशल श्रॉफ स्वतंत्र पत्रकार हैं एवं कारवां के स्‍टाफ राइटर रहे हैं.
तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.