रमा मित्रा और राम मनोहर लोहिया के प्रेम संबंधों के बारे में लोहिया के खतों से पता चलता है. कई बार तो दिन में तीन-तीन खत लिखते. उनके खत उनकी राजनीति की तरह ही खुले और स्वच्छंद होते थे. उस समय बिना शादी के एक व्यक्ति के साथ खुले तौर पर उस तरह रहना जैसा कि लोहिया और मित्रा रहते थे, वह साहस और दृढ़ विश्वास का काम था. लोहिया राजनीति और व्यक्तिगत जीवन दोनों में जुनूनी थे. मित्रा को लिखे पत्रों में वे एक ऐसे व्यक्ति दिखाई देते हैं, जो प्यार में पागल है. जिसने उनके साथ कई लोकों की यात्रा की, प्रेमीयों वाले नखरे किए, प्रेमिका को डांट लगाई, उसकी बीमारी में विचलित हुए, उनकी पीएचडी के लिए चिंतित रहे और राजीनित के अलावा इतिहास की भी शिक्षा प्रेमिका को दी.
एक प्रेमी युवा की तरह लोहिया हमेशा अपने व्यस्त राजनीतिक जीवन के बीच कुछ अनमोल क्षणों को चुराने की विस्तृत योजना बनाते थे. इन चिट्ठियों के लोहिया मानवीय आशक्तियों से परे नहीं थे. वो प्यार में जलते और असुरक्षित होते, कई प्यार भरे नामों से अपनी प्रेमिका को बुलाते, विदेश यात्राओं पर उसके लिए फुटवियर खरीदते, सावधानी से इलायची और लौंग के मिश्रण की व्यवस्था करते ताकि जर्मनी भेजा जा सके और उनके लिए खरीदी गई कोलोन के लिए वे मित्रा को शुक्रिया भी अदा करते. जब वे अपमानित महसूस करते तो उनके शब्दों में नारी विरोध की झलक मिलती.
उनकी अधिकांश चिट्ठियों में लोहिया की खीझ एक बात को लेकर झलकती है कि वे मित्रा से मिलने के पहले एक-एक मिनट का कार्यक्रम पहले से ही तय कर लेते ताकि वे साथ समय बिता सकें. मित्रा को सारनाथ आने के लिए कहते हुए लोहिया ने लिखा,
“प्रिय इला, बनारस कार्यक्रम 10 और 11 अप्रैल को है. सारनाथ होटल में रहने का इरादा है. 12 अप्रैल को बिल्कुल कोई काम नहीं है. यहां तक कि 10 और 11 की शाम भी कुछ नहीं करना. तुम इस दौरान आने की कोशिश करो.”
कमेंट