प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन से आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया. उस दिन राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को 39 दिन पूरे हो रहे थे और यह घोषणा विनाशकारी आर्थिक गिरावट से निपटने के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए राजकोषीय पैकेज के एक हिस्से के रूप में की गई थी. महामारी फैलने के बाद से यह देश की जनता के नाम उनका पांचवां संबोधन था और मोदी ने इस मौके पर लोगों को यह याद दिलाया कि वे यह सुनिश्चित करने की "जिम्मेदारी" लें कि "21वीं सदी भारत की होगी." उन्होंने सुझाव दिया कि महामारी के कारण मौजूदा "वैश्विक व्यवस्था" के उभार ने भारत को उस जिम्मेदारी को पूरा करने का "अवसर" प्रदान किया है और इसका लाभ कमाने का एकमात्र तरीका "आत्मनिर्भर भारत" है. अपने 33 मिनट के भाषण में मोदी ने लगभग आधा समय आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की.
ऐसा लग रहा जैसे मोदी एक दयालु गुरु भूमिका में हैं. मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा पर चर्चा करने में काफी वक्त खर्च किया लेकिन मिशन की रूपरेखा क्या होगी ऐसे विवरणों को केंद्रीय वित्त मंत्री फर छोड़ दिया. मोदी ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत का "विचार" सदियों पुरानी "संस्कृती," और "संस्कार" की उपज है और इसकी जड़ें वेद और शास्त्रों जैसे हिंदू धार्मिक ग्रंथों में हैं. उनकी व्याख्या में संस्कृत उद्धरणों की भरमार थी, जो भविष्य के इस सिद्धांत को प्राचीन ज्ञान परंपरा से जोड़ रही थी.
आत्मनिर्भरता क्यों जरूरी इसके लिए उन्होंने मुंडकोपनिषद का हवाला देते हुए कहा, "एश: पंथ:" यानी यही आपकी राह है. भारतीयों के अपनी मातृभूमि से जुड़ाव को नमन करते हुए उन्होंने एक और श्लोक पढ़ा, "माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या" (यह पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं). मोदी ने सुझाव दिया कि यह भारतीय गुण वैश्विक व्यवस्था के लिए भी आवश्यक है. वह "संस्कृति जो जय जगत में विश्वास करती है, जो जीवित प्राणियों का कल्याण चाहती है, जो पूरी दुनिया को अपना परिवार मानती है ... अगर उस भारत की भूमि आत्मनिर्भर हो जाती है तो यह स्वचालित रूप से दुनिया की समृद्धि सुनिश्चित करता है." उन्होंने एक अन्य संस्कृत उद्धरण के साथ अपना संबोधन समाप्त किया, "सर्वम् आत्म् वसन: सुखम्" और एक उपदेशक की तरह इसका अर्थ भी समझाया. "अर्थात जो हमरे वश में है, जो हमार नियंत्रण में है, वही सुख है."
आधिकारिक तौर पर आत्मनिर्भर भारत को स्थानीय विनिर्माण को बढ़ाने के लिए एक अभियान के रूप में शुरू किया गया है, जो धीरे-धीरे अपनी आर्थिक नीतियों के माध्यम से देश को आयात-मुक्त बना देगा. लेकिन मोदी के भाषण ने यह स्पष्ट कर दिया कि आत्मनिर्भरता का विचार आर्थिक नीतियों से आगे का है. स्पष्टत: "अपने दृष्टिकोण" की वैधता के लिए उन्होंने धर्मग्रंथों पर जोर दिया और उसे देश की संस्कृति और चरित्र में निहित बताया. इसके बाद के हफ्तों में मोदी ने कई मंचों पर इस नई सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की वकालत की. भारतीय उद्योग परिसंघ के प्रमुखों और भारतीय वाणिज्य मंडल के अध्यक्ष के साथ बातचीत में, मन की बात में और मिशन के एक हिस्से के रूप में एक रोजगार योजना की शुरूआत करते हुए भी इसका उल्लेख किया.
मोदी के संबोधन से पहले के हफ्तों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व ने उसी आत्मनिर्भरता मॉडल पर बात की थी. आरएसएस मोदी का मातृ संगठन है. उन्होंने तीन दशक तक संघ के साथ काम किया है. 6 मई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले ने विदेशी पत्रकारों के साथ बातचीत की. होसाबले, जो संगठन के नेतृत्व में तीसरे नंबर पर हैं, ने सुझाव दिया कि सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का एक नया मॉडल समय की आवश्यकता है और यह मॉडल "आत्मनिर्भरता और स्वदेशी विचारों पर आधारित" होना चाहिए. होसाबले ने कहा कि नए स्वदेशी मॉडल की आवश्यकता है क्योंकि "महामारी ने वैश्विक पूंजीवाद और वैश्विक साम्यवाद दोनों ही विचारधाराओं की सीमाओं को उजागर किया है."
कमेंट