27 जनवरी 2019 को हरियाणा के रोहतक जिले के दयानंद मठ में आर्य समाज का प्रांतीय आर्य महासम्मेलन हुआ. इस वार्षिक सम्मेलन में राज्य सरकार के मंत्री, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य शामिल हुए. साथ ही, मनीष ग्रोवर एंव देववर्त आर्य जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कई नेता मंच पर दिखाई दिए. मंच पर हिंदू भगवान राम का एक बड़ा फ्लेक्स लगा था. आर्य समाज हमेशा से ही मूर्ति पूजा और अवतार पूजा के खिलाफ रहा है और केवल ओम (ॐ) को ही मानता है इसलिए मंच पर शोभायमान राम का पोस्टर एक अलग ही संदेश दे रहा था.
संघ की विचारधारा से अलग आर्य समाज का स्थापना काल से ही कर्मकाण्ड से अलग अध्यात्म पर विशेष जोर रहा है. इससे जुड़े लोगों ने हिंदू धर्म की सती प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया. जबकि आरएसएस के लिए ये दोनों ही हिंदू धर्म के जरूरी अंग हैं. 1999 में वीएचपी के तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गिरिराज किशोर ने सती प्रथा का यह कह कर बचाव किया था कि “यदि कोई महिला अपने मृत पति के साथ अग्नि में भस्म हो जाना चाहती है तो इसमें कोई हानि नहीं है.” दूसरी ओर 1987 में स्वामी अग्निवेश ने 101 आर्य समाजियों के साथ सती प्रथा के खिलाफ 18 दिनों की पद यात्रा की थी. इस यात्रा का विरोध सती प्रथा के समर्थकों ने किया था.
फिर भी आर्य समाज और संघ के लोगों का मंच साझा करना अब आम बात हो गई है. इससे पहले भी कई बार उत्तर भारत में आरएसएस के इंचार्ज इंद्रेश कुमार आर्य समाज के मंचों पर दिखाई दिए हैं. अक्टूबर 2018 में दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में कुमार, गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ दिखे थे.
आर्य समाज और आरएसएस के बनते गठजोड़ पर जब मैंने वरिष्ठ आर्य समाजी और हरियाणा के पूर्व मंत्री स्वामी अग्निवेश से पूछा तो उनका कहना था, "संघ शुरुआत से ही आर्य समाज के साथ गठजोड़ बनाने की कोशिश करता रहा है लेकिन आजादी के बाद के शुरुआती सालों में उसकी दाल नहीं गली. 1967 में जब मैं और स्वामी इंद्रवेश किसान-मजदूरों के आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को लेकर राजनीति में आए तो संघ के मुख्यालय नागपुर से देवरस (बाला साहब) का हमें विरोध भी झेलना पड़ा.” 1973 में सदाशिव गोलवलकर की मृत्यु के बाद देवरस आरएसएस के प्रमुख बने थे.
कमेंट