आर्य समाज को हथियाने की आरएसएस की कोशिश

2016 में आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती की जयंति के अवसर पर दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत. सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
19 June, 2019

27 जनवरी 2019 को हरियाणा के रोहतक जिले के दयानंद मठ में आर्य समाज का प्रांतीय आर्य महासम्मेलन हुआ. इस वार्षिक सम्मेलन में राज्य सरकार के मंत्री, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य शामिल हुए. साथ ही, मनीष ग्रोवर एंव देववर्त आर्य जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कई नेता मंच पर दिखाई दिए. मंच पर हिंदू भगवान राम का एक बड़ा फ्लेक्स लगा था. आर्य समाज हमेशा से ही मूर्ति पूजा और अवतार पूजा के खिलाफ रहा है और केवल ओम (ॐ) को ही मानता है इसलिए मंच पर शोभायमान राम का पोस्टर एक अलग ही संदेश दे रहा था.

संघ की विचारधारा से अलग आर्य समाज का स्थापना काल से ही कर्मकाण्ड से अलग अध्यात्म पर विशेष जोर रहा है. इससे जुड़े लोगों ने हिंदू धर्म की सती प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया. जबकि आरएसएस के लिए ये दोनों ही हिंदू धर्म के जरूरी अंग हैं. 1999 में वीएचपी के तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गिरिराज किशोर ने सती प्रथा का यह कह कर बचाव किया था कि “यदि कोई महिला अपने मृत पति के साथ अग्नि में भस्म हो जाना चाहती है तो इसमें कोई हानि नहीं है.” दूसरी ओर 1987 में स्वामी अग्निवेश ने 101 आर्य समाजियों के साथ सती प्रथा के खिलाफ 18 दिनों की पद यात्रा की थी. इस यात्रा का विरोध सती प्रथा के समर्थकों ने किया था.

फिर भी आर्य समाज और संघ के लोगों का मंच साझा करना अब आम बात हो गई है. इससे पहले भी कई बार उत्तर भारत में आरएसएस के इंचार्ज इंद्रेश कुमार आर्य समाज के मंचों पर दिखाई दिए हैं. अक्टूबर 2018 में दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में कुमार, गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ दिखे थे.

आर्य समाज और आरएसएस के बनते गठजोड़ पर जब मैंने वरिष्ठ आर्य समाजी और हरियाणा के पूर्व मंत्री स्वामी अग्निवेश से पूछा तो उनका कहना था, "संघ शुरुआत से ही आर्य समाज के साथ गठजोड़ बनाने की कोशिश करता रहा है लेकिन आजादी के बाद के शुरुआती सालों में उसकी दाल नहीं गली. 1967 में जब मैं और स्वामी इंद्रवेश किसान-मजदूरों के आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को लेकर राजनीति में आए तो संघ के मुख्यालय नागपुर से देवरस (बाला साहब) का हमें विरोध भी झेलना पड़ा.” 1973 में सदाशिव गोलवलकर की मृत्यु के बाद देवरस आरएसएस के प्रमुख बने थे.

अग्निवेश बताते हैं कि विरोध का “सीधा कारण हमारा प्रगतिशील आर्य समाज और वैदिक समाजवाद का प्रचार करना था.” 10 अप्रैल 1970 को उत्तर भारत के आर्य समाजियों ने आर्य सभा नाम की एक राजनीतिक पार्टी बना ली. अग्निवेश कहते हैं, “आरएसएस की तरह आर्य समाज की राजनीतिक शाखा हमें 1951 में ही बना लेनी चाहिए थी. खैर, उस समय मैंने और स्वामी इंद्रवेश ने आर्य समाज को स्वतंत्र रूप से उभारा और आरएसएस को उत्तर भारत से पीछे हटना पड़ा."

स्वामी अग्निवेश का दावा है कि उनकी और इंद्रवेश की सक्रियता की वजह से ही 1995 तक आरएसएस हरियाणा और इसके आसपास के इलाकों में अपने पैर नहीं जमा सका था. आर्य समाज पर रिसर्च कर चुकीं जेएनयू की प्रोफेसर नोनिका दत्ता का दावा है कि आर्य समाज के प्रभाव के कारण ही इस इलाके के लोगों की मंदिर आंदोलन में कोई दिलचस्पी नहीं रही और न ही उस समय आर्य समाज ने कभी मंदिर निर्माण की वकालत की.

संघ ने आर्य समाज से संबंध बनाने का औपचारिक प्रयास अक्टूबर 1951 में किया था. भारतीय जनसंघ, जिसने आगे चलकर वर्तमान सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का रूप लिया, के गठन की तैयारी भी इसी समय चल रही थी. (जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 में हुई थी.) पॉलिटिक्स ऑफ चौधर किताब के लेखक और हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी ने मुझे बताया, “नई दिल्ली के 15 हनुमान रोड पर स्थित आर्य समाज कार्यालय में आरएसएस के सरसंघचालक गोलवलकर समेत संघ के बड़े नेताओं की बैठकों का दौर चला था.” वह बताते हैं, “आर्य समाज में पैठ रखने वाले और खुद को आर्य समाजी कहने वाले बलराज मधोक ने उत्तर भारत के प्रमुख आर्य समाजी नेताओं के साथ लगातार कई बैठकें की थीं और अब वह दोनों के संबंधों को औपचारिक रूप देना चाहते थे.” बलराज मधोक आर्य समाजी से आरएसएस प्रचारक बने थे. जनसंघ और आरएसएस के एजेंडों पर आर्य समाजियों के साथ मधोक की बातचीत सफल तो नहीं हो सकी, लेकिन इन बैठकों से जनसंघ शहरी तबके के बनिया, ब्राह्मण और अरोड़ा-खत्री जाति के आर्य समाजियों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गया.

उत्तर भारत के शहरी आर्य समाजी आरएसएस के प्रति शुरू से ही आकर्षित रहे हैं. पंजाब में पहली बार आरएसएस की शाखा लगाने वाले देवदत्त खुल्लर बटाला आर्य समाजी थे और उन्होंने साल 1937 में शहर के आर्य समाज मंदिर में ही आरएसएस की शाखा आरंभ की थी.

शहरी आर्यसमाजियों के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन उन्हें लोक समर्थन हासिल नहीं था. दरअसल आर्य समाज को उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों की किसान जातियों जैसे जाट, गुज्जर, अहीर व अन्य दूसरी जातियों ने अपनाया था. पत्रकार त्यागी बताते हैं, “गांव-देहात के आर्य समाजी मुख्यतः खेती-किसानी करने वाले थे. इस कारण किसानी और मजदूरी के मुद्दे और मूर्ति पूजा के विरोध के कारण आरएसएस के साथ उनका समझौता नहीं हो सका.”

आजादी के कुछ समय बाद ही गोलवलकर, जिन्हें संघ में गुरुजी बुलाया जाता है, ने ग्रामीण आर्य समाजियों को आरएसएस से जोड़ने के लिए प्रमुख ग्रामीण आर्य समाजियों के साथ हरियाणा के झज्जर गुरुकुल में एक बैठक भी की. यह बैठक उन्होंने भारत के विभाजन और मुसलमानों के कत्लेआम को लेकर की थी, जिसका खुलासा बाद में झज्जर गुरुकुल के आचार्य भगवान देव ने हरियाणा के पत्रकार व लेखक मनोज कुमार के साथ एक इंटरव्यू में किया था. लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला. उसी इंटरव्यू में भगवान देव ने कुमार को बताया था कि गोलवलकर आर्य समाजियों को हथियार पहुंचाने का वादा करके आए थे जो उन्होंने नहीं निभाया.

उस समय जनसंघ के नेता आर्य समाज को अपने साथ जोड़ने में तो कामयाब न हो सके लेकिन समय के साथ दोनों नजदीक आ गए.

हरियाणा के वरिष्ठ आर्य समाजी आचार्य संत कुमार बताते हैं, "साल 1996 में भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को हरियाणा का प्रभारी बनाकर यहां भेजा था. यहां आकर मोदी ने कुरुक्षेत्र गुरुकुल के प्रधानाचार्य और हाल में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मुलाकात की.” संत कुमार ने मुझे बताया कि मोदी इस इलाके में आर्य समाज की ताकत को पहचान चुके थे इसलिए आचार्य देवव्रत को आरएसएस में लेकर आए. मोदी लगातार 3 महीनों तक आचार्य देवव्रत के पास कुरुक्षेत्र गुरुकुल में ही रहे और उन्हें आरएसएस के किसान संघ का अध्यक्ष भी बनाया. “बीजेपी के सत्ता में आते ही आचार्य देवव्रत को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया जाना मोदी के साथ उनकी दोस्ती का ही इनाम है."

इलाके के हिसाब से अपने मुद्दे बदलना आरएसएस की पुरानी रणनीति है. आज उत्तर भारत में आरएसएस के लिए गौरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है और आर्य समाज के लिए भी यह एक बड़ा मुद्दा रहा है. लेकिन आर्य समाज और आरएसएस में राष्ट्र निर्माण को लेकर दो अलग-अलग नजरिए मौजूद हैं जिनकी वजह से इनमें टकराव भी होता है. आरएसएस हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करना चाहता है जबकि आर्य समाज के राष्ट्र निर्माण के एजेंडे का नाम मिशन आर्यवर्त है जिसका उद्देश्य देश के सभी निवासियों को आर्य समाजी बनाना और वेदों का प्रचार करना है. आरएसएस की तर्ज पर ही आर्य समाज का एक यूथ विंग आर्य वीर दल भी है जहां शस्त्र चलाने और युद्ध लड़ने की ट्रेनिंग बच्चों को दी जाती है. आर्य वीर दल के कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के तौर पर ज्यादातर बीजेपी और संघ के नेताओं को बुलाया जाता है.

फेसबुक पर आर्य समाज लिखकर सर्च करने पर मिलने वाली ज्यादातर सामग्री आरएसएस की प्रचार सामग्री से मेल खाती है. राम मंदिर से लेकर हिंदुत्व वाले फेसबुक पोस्ट्स आर्य समाजियों द्वारा खूब फैलाए जाते हैं.

इतना ही नहीं पिछले कुछ सालों से आर्य समाजी भी आरएसएस की भाषा में आरक्षण, समलैंगिक संबंधों, मुस्लिमों, सूफियों और ईसाइयों के खिलाफ घृणा और उग्र राष्ट्रवाद का समर्थन कर रहे हैं.

आचार्य संत कुमार मानते हैं कि आर्य समाजियों द्वारा कट्टर हिंदुत्ववादी कंटेंट के फैलाए जाने से मंदिर आंदोलन के बाद उत्तर भारत में ही नहीं पूरे देश के आर्य समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है. वह बताते हैं कि आर्य समाज मानने वाले लोग अब आरएसएस की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. इसका कारण पूछने पर संत कुमार बताते हैं, "उत्तर भारत में आरएसएस ने बड़े तरीके से आर्य समाज को अपने साथ जोड़ा और इसके लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया है. आरएसएस के सदस्य पहले आर्य समाजी और फिर आर्य समाज की संस्थाओं के प्रधान बनते हैं.” संत कुमार ने बताया, “आर्य समाज की संस्थाओं के प्रधान बनने के बाद वे इन संस्थाओं में आरएसएस और बीजेपी के कार्यक्रम कराते हैं. इनके प्रभाव में आकर ही इनकी प्रचार सामग्री को आर्य समाजी इधर-उधर फैलाते हैं.”

इस समय हरियाणा की गौशालाओं के ज्यादातर प्रधान जैसे श्रवण गर्ग, सत्यवान, संजय शर्मा, देवीलाल शर्मा, जयसिंह ठेकेदार आरएसएस और बीजेपी के लोग बने हुए हैं. (जयसिंह ठेकेदार ने 5 साल प्रधान रहने के बाद पद छोड़ दिया था.) संत कुमार कहते हैं, “कभी इनके प्रधान अराजनीतिक आर्य समाजी हुआ करते थे.”

आर्य समाज और उसकी संस्थाओं पर आरएसएस के कब्जे की बात हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक सर्वदमन सांगवान भी मानते हैं. सांगवान ने हरियाणा की महिला आयोग की अध्यक्ष प्रतिभा सुमन का उल्लेख किया जो “आरएसएस और बीजेपी की सक्रिय कार्यकर्ता हैं.” वह बताते हैं कि स्वयं को आर्य समाजी बताने वाली प्रतिभा सुमन की रोहतक के दयानंद मठ की जमीन पर आर्य प्रिंटिंग प्रेस नाम की संस्था भी है. सांगवान कहते हैं, “उनका ऑफिस भी काफी समय तक आर्य समाज की जमीन पर कब्जा करने के कारण विवादों में रहा लेकिन अब बीजेपी सरकार आने के बाद सब चुप हैं. आर्य समाज के पास उत्तर भारत में सबसे ज्यादा संस्थाएं और जमीनें हैं और आरएसएस की नजर इस समय आर्य समाज की संपत्ति पर है ताकि उन्हें अपना संगठन चलाने में आसानी हो सके और बने-बनाए कार्यकर्ता भी मिल जाएं."

आर्य समाज की संस्थाओं पर आरएसएस के बढ़ते दखल के बारे में स्वामी अग्निवेश का कहना है, "यह सच है कि ऐसा हो रहा है. आरएसएस यहां आकर आर्य समाज और इसकी संस्थाओं पर कब्जा करना चाहता है. इसलिए जो आर्य समाजी उनकी नफरत की राजनीति के खिलाफ बोलता है उन पर ये लोग हमला करवाते हैं.” 17 जुलाई 2018 को झारखंड में और उसी साल अगस्त में दिल्ली में अग्निवेश पर हमला हुआ था. वे आरएसएस को इन हमलों का जिम्मेदार मानते हैं और कहते हैं, “हम तो खुलकर आरएसएस का मुकाबला कर रहे हैं लेकिन अब विपक्षी दलों को भी इसे समझने की और हमारा साथ देने की जरूरत है.” स्वामी अग्निवेश मानते हैं, “विपक्षी दल इनके कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला अपने सॉफ्ट या नरम हिंदुत्व से नहीं कर सकते. इनके खिलाफ वैचारिक मुकाबला हम आर्य समाजी ही कर सकते हैं."

स्वामी अग्निवेश की तरह ही संत कुमार भी यह बात मानते हैं कि आरएसएस समाज में धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास फैला रहा है और इनका मुकाबला आर्य समाज ही कर सकता है. संत कुमार एक किस्सा याद करते हुए बताते हैं, "झज्जर के पास एक दादरी तोए गांव है जहां हम मंदिर आंदोलन से पहले काम करते थे. गांव में ज्यादातर हिन्दू और कुछ मुस्लिम परिवार हैं. हमने वहां कई साल काम करके मूर्ति पूजा या मंदिर-मस्जिद के मुद्दों को गायब कर आपस में एक भाईचारा कायम किया था. हमारी मेहनत की वजह से वहां आपस में दोनों धर्मों में ब्याह-शादियां भी हुईं. लेकिन मंदिर आंदोलन के बाद इतनी कट्टरता फैली कि वहां हिंदू-मुस्लिम के बीच शादियां बंद हो गईं और दोनों दोबारा धार्मिक अंध-विश्वासों की चपेट में आ गए."

हरियाणा में 2014 से पहले बीजेपी और उसके पुराने दल जनसंघ का प्रभाव जरूर था लेकिन वह सिर्फ शहरों में देखने को मिलता था. हरियाणा में आरएसएस के दोनों राजनीतिक दलों के इतिहास का जिक्र करते हुए त्यागी बताते हैं, "आरएसएस हमेशा से ही हरियाणा में अपने पैर जमाना चाहता था. हरियाणा के कई शहरी ब्राह्मण-बनिए-अरोड़ा-खत्री नेता जैसे मौलीचन्द्र शर्मा और श्रीचंद गोयल, जन संघ के संस्थापक सदस्य भी रहे. सरदार पटेल द्वारा आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने के बाद हरियाणा के मौलीचन्द्र शर्मा ने ही सरदार पटेल और गोलवलकर की मीटिंग फिक्स करवाई थी. मौलीचन्द्र शर्मा बाद में जनसंघ के अध्यक्ष भी बने.” त्यागी कहते हैं, “आर्य समाजियों में गौरक्षा और मुस्लिम-ईसाई के प्रति नफरत तो पहले से ही थी. आरएसएस ने उसी को पकड़कर आर्य समाज को अपने वश में कर लिया है और यह काम 1996 में मोदी के यहां प्रभारी रहने के बाद खूब तेजी से हुआ है."

हरियाणा में आर्य समाज दो हिस्सों में हमेशा बंटा रहा है एक शहरी तबका और दूसरा ग्रामीण तबका. आर्य समाज पर आरएसएस के प्रभाव का जिक्र करते हुए प्रोफेसर नोनिका दत्ता कहती हैं, "शुरुआत से ही आर्य समाज के दो हिस्से तो रहे हैं. शहरों में रहने वाले ब्राह्मण-बनिया जाति के आर्य समाजियों की शिक्षा डीएवी स्कूलों में हुई और ग्रामीण क्षेत्रों के जाटों-गुज्जरों की शिक्षा गुरुकुलों में हुई है. इस वजह से दोनों में एक प्रकार का अलगाव है.” नोनिका का कहना है कि आर्य समाज का एक बड़ा हिस्सा गांव में है जो हाल तक आरएसएस की गिरफ्त से बाहर था लेकिन 2014 के बाद ग्रामीण आर्य समाजी भी आरएसएस की तरफ आकर्षित हुए हैं, इसी वजह से हरियाणा और आसपास के इलाकों में बीजेपी मजबूती के साथ खड़ी हो पाई है. लेकिन, वह बताती हैं, “यह गठजोड़ प्रैक्टिकल मालूम नहीं होता क्योंकि देहात के आर्य समाजी खेती-किसानी से जुड़े हुए हैं और उन्हें कृषि संकट से पैदा होने वाली दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए बीजेपी से उनकी बगावत की संभवानाएं साफ नजर आती हैं."

आर्य समाज को लेकर लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं लेकिन सभी इस बात पर जरूर एकमत हैं कि पिछले कुछ सालों में आर्य समाजियों को बीजेपी अपने वोट बैंक में तब्दील करने में सफल रही है. इस साल फरवरी में आर्य समाज के संत स्वामी नित्यानंद ने आरोप लगाया था कि “बीजेपी और आरएसएस आर्य समाज को समाप्त कर उसकी संस्थाओं पर कब्जा करना चाहते हैं.” जिन आर्य समाजियों से मैंने बात की उनमें से बहुतों ने नित्यानंद के बयान पर सहमति व्यक्त की. उनका कहना है कि इस समय हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली और पंजाब के इलाकों में आर्य समाज अगर खुद को आरएसएस से अलग नहीं खड़ा करेगा तो भविष्य में आर्य समाज के आरएसएस में समाहित हो जाने की आशंका है.