“सफदर के कत्ल ने देश के अंतर्मन को छू लिया”, नाटककार और लेखक की 31वीं बरसी

साभार लेफ्टवर्ड बुक्स
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संवाददाता सम्मेलन के बाद हम मे फिर अस्पताल की तरफ चल पड़े. उस दिन सर्द शाम को भी बहुत सारे लोग वहां मौजूद थे और भीड़ बढ़ती जा रही थी. जोगी, बृजेन्द्र और जनम के साथियों के साथ मैं भी बैठा रहा. बहुत सारे लोग आकर, खासतौर से बृजेन्द्र से बात करते थे. इस चक्कर में उस बेचारे को न जाने कितनी बार अपनी यातना के ब्यौरे दोहराने पड़े होगे. शुक्र है कि लोगो नें मुझे अकेला छोड़ दिया था. जब-तब बृजेश आईसीयू से बाहर आता और माला से व सफदर के भाई सुहेल से बात करता. सुहेल भी शाम को ही त्रिवेंद्रम से लौटे थे.

उस रात को शायद साढ़े दस बजे बृजेश आखिरी बार आईसीयू से बाहर आया. उसके पास खबर थी.

सफदर नहीं रहा.

कुछ मिनटों तक एक संनाटा पसरा रहा. फिर किसी ने दबी-सी आवाज में नारा लगाया, “कॉमरेड सफदर अमर रहें!” इस नारे का किसी ने जवाब नहीं दिया. फिर उसने एक और नारा लगाया, “खून का बदला खून से लेंगे!” माला ने उसे तीखी नजरों से देखा और हाथ उठाकर चुप कराया. वो शख्स चुपचाप पीछे हट गया.

मैं जहां बैठा था वही बैठा रहा. सुन्न. शून्य में ताकता. थोड़ी देर बाद माला हमारे पास आई. “जाओ, थोड़ी देर सो लो. कल सुबह पार्टी ऑफिस आना.”

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