मोदी के पहले कार्यकाल में मीडिया से लापता होने वाली 10 बड़ी खबरें

नवंबर 2015 में मीडियाकर्मियों से बातचीत करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह. BJP.ORG

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पिछले 10 सालों में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 105 (2009) नंबर से नीचे गिरकर 140वें (2019) स्थान पर पहुंच गया है. आज वह इस सूची में मालदीव, जॉर्डन और युद्ध से जर्जर फिलिस्तीन से भी पीछे है. मीडिया पर कॉरपोरेट समूहों की मलकियत और सरकारी विज्ञापनों से प्राप्त होने वाले राजस्व की वजह से एक ऐसे राष्ट्रीय मीडिया का निर्माण हुआ है जो बाहरी दबाव के आगे घुटने टेक देता है. कई दफा मजबूरी में और अक्सर अपनी मर्जी से वह ऐसा करता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में यह समस्या अधिक स्पष्टता से सामने आई. उदाहरण के लिए जून 2017 में सीबीआई ने एनडीटीवी समूह के मालिक राधिका और प्रणय रॉय के घर पर छापा मारा. दिसंबर 2018 में कारवां में प्रकाशित जोसी जोसफ की एक रिपोर्ट में लिखा है, “हालांकि दबाव देने की यहां प्रक्रिया बहुत पहले से जारी है लेकिन वर्तमान सरकार के कार्यकाल में इसमें अभूतपूर्व तेजी आई है.”

नीचे दस ऐसी खबरें दी जा रही हैं जिन्हें नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान मीडिया समूहों ने प्रकाशित कर हटा लिया. इन रिपोर्टों में संपादकीय चूक जैसी कोई गलती नहीं है लेकिन उन उद्योगपतियों, जिन्हें सरकार का करीबी माना जाता है या भारतीय जनता पार्टी में मोदी के साथी सदस्यों पर सवाल उठे हैं. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इन 10 खबरों में तीन से जुड़े हैं. मैंने इन कहानियों को हटाने वाले मीडिया घरानों से संपर्क किया लेकिन इस कहानी के प्रकाशित होने तक किसी ने भी जवाब नहीं दिया.

1. फैक्ट चेक : न्यूज नेशन में प्रसारित नरेन्द्र मोदी के साक्षात्कार से पहले सौंपे गए थे सवाल, वीडियो में प्रधानमंत्री फाइल से पढ़ कर जवाब देते दिखे.

फर्स्टपोस्ट (13 मई 2019)

मोदी ने अपने कार्यकाल में बहुत कम साक्षात्कार दिए और किसी भी साक्षात्कार में उनसे गंभीर सवाल नहीं पूछे गए. 11 मई 2019 को मोदी ने हिंदी समाचार चैनल न्यूज नेशन के पत्रकारों को एक साक्षात्कार दिया. पाकिस्तान की सरहद में हाल में भारतीय वायुसेना के हमले का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि जिस दिन यह हमला किया गया था उस दिन बारिश हो रही थी और मौसम भी खराब था. ऐसे में वायुसेना के अधिकारी असमंजस में थे कि हमला करें या नहीं. फिर प्रधानमंत्री ने वायुसेना को सुझाव दिया कि बादल छाए हुए हैं और बारिश भी हो रही है तो पाकिस्तानी रडार से बचना आसान होगा. इसके बाद उन्होंने वायुसेना को हमले की अनुमति दे दी.

दूसरे दिन ट्वीटर में उस साक्षात्कार का एक अंश शेयर होने लगा जिसमें देखा जा सकता है कि मोदी पहले से ही तैयार जवाब दे रहे हैं. जवाब वाले कागज के ऊपर वह सवाल भी लिखा हुआ था जो मोदी से साक्षात्कार के दौरान पूछा गया. 13 मई को रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी की मलकियत वाली समाचार वेबसाइट फर्स्टपोस्ट ने मोदी के साक्षात्कार को लेकर ऑल्ट न्यूज के संपादक प्रतीक सिन्हा के ट्वीट संदेशों वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें प्रतीक सिन्हा ने इंटरव्यू के स्क्रिप्टेड (पूर्व तय) होने का दावा किया. वह रिपोर्ट बिना कारण बताए वेबसाइट से हटा ली गई. उस रिपोर्ट की कैश कॉपी फिलहाल ऑनलाइन उपलब्ध है.

2. अहमदाबाद जिला सहकारिता बैंक में 745.59 करोड़ रुपए मूल्य के रद्द नोट जमा

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स नाउ, फर्स्टपोस्ट (जून 2018)

पिछले साल 21 और 22 जून को भारत की कई समाचार वेबसाइटों ने समाचार एजेंसी इंडो-एशियन न्यूज सर्विस की एक खबर प्रकाशित की. उस खबर में बताया गया था कि जिला सहकारिता बैंक को नोटबंदी के 6 दिनों यानी 14 नवंबर तक रद्द किए गए नोटों को जमा करने की अनुमति थी. सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार इस समयावधि में अहमदाबाद जिला सहकारिता बैंक ने 745.59 करोड़ रुपए मूल्य के रद्द नोट जमा किए. उस समय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, इस बैंक के निदेशक थे.

22 जून को द वायर ने खबर दी कि फर्स्टपोस्ट, टाइम्स नाउ और एक्सप्रेस पब्लिकेशन (मदुरई) लिमिटेड द्वारा प्रकाशित द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को वेबसाइट से हटा लिया है. आईएएस के प्रबंध निदेशक हरदेव सनोत्रा ने फैक्ट चेकिंग वेबसाइट बूम को बताया, “हम अपनी खबर पर अडिग हैं. यह आरटीआई से प्राप्त तथ्यों के हवाले से तैयार की गई है. हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है.”

3. पेटीएम अपने उपभोक्ताओं की जानकारी करता है प्रधानमंत्री कार्यालय से साझा, कोबरापोस्ट के स्टिंग में हुआ खुलासा.

इकोनॉमिक टाइम्स (मई 2018)

पिछले साल 26 मई को टाइम्स ग्रुप के अखबार इकनॉमिक टाइम्स ने अपनी वेबसाइट पर कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन से जुड़ी खबर चलाई. इस स्टिंग में पेटीएम के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अजय शेखर शर्मा और उनके भाई विजय शेखर शर्मा का वीडियो है. वीडियो में अजय बता रहे हैं कि पेटीएम ने अपने कश्मीरी उपभोक्ताओं का डेटा प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ साझा किया है. बाद में पेटीएम ने इस स्टिंग ऑपरेशन को यह कहकर खारिज किया कि “इस वीडियो में कोई सच्चाई नहीं है”.

कोबरापोस्ट ने उसी दिन एक दूसरा वीडियो जारी किया जिसमें टाइम्स ग्रुप के प्रबंध निदेशक विनीत जैन, एक पत्रकार से 500 करोड़ के एवज में हिंदुत्व से जुड़े कंटेंट को प्रकाशित-प्रसारित करने की बात कर रहे हैं. टाइम्स ग्रुप के एक प्रतिनिधि ने बाद में द वायर को बताया कि उनका समूह इस पत्रकार के दावे का खुलासा करने के लिए उल्टा स्टिंग कर रहा था. इकोनामिक टाइम्स ने अपनी खबर जिसका उपशीर्षक “पेटीएम बराबर पेटूपीएम” था, वेबसाइट से हटा ली.

4. वीडियो में देखिए एक आदमी को मुकेश अंबानी से कहते हुए, “जिओ नहीं चल रहा”, वीडियो हुआ वायरल

डीएनए दिसंबर 2018

पिछले साल 4 दिसंबर को जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज के प्रकाशन डेली न्यूज एंड एनालिसिस ने फिल्म जगत के दो कलाकारों, दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह, की शादी का एक वीडियो अपलोड किया. वीडियो में जिस वक्त मुकेश अंबानी फोटोग्राफर के सामने पोज दे रहे हैं, उसी वक्त एक आदमी चिल्ला रहा है, “जिओ नहीं चल रहा.”

इसके दो दिनों के भीतर खबर को वेबसाइट से हटा दिया गया. न्यूजलॉन्ड्री ने डीएनए के अपने सूत्रों के हवाले से बताया कि “उन्हें शीर्ष प्रबंधन ने रिपोर्ट को हटाने का निर्देश दिया था”. इस रिपोर्ट की कैश कॉपी इंटरनेट पर उपलब्ध है.

5. जय शाह को मिलने वाले कर्ज में 4000 प्रतिशत की बढ़ोतरी, क्या यह भाई-भतीजावाद है?

एनडीटीवी (अक्टूबर 2017)

10 अक्टूबर 2017 को एनडीटीवी की वेबसाइट में अमित शाह के बेटे जय शाह से संबंधित खबर प्रकाशित हुई. उस खबर में बताया गया था कि मोदी सरकार के आने के बाद जय शाह को मिलने वाले कर्ज में अभूतपूर्व रूप से 4000 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इस खबर को एनडीटीवी के प्रबंध संपादक श्रीनिवासन जैन और मानस प्रताप सिंह ने लिखा था. बाद में इस खबर को “कानूनी पेच” का हवाला देकर हटा दिया गया. इसके कुछ दिनों बाद जब यह खबर वापस नहीं लगाई गई तो जैन ने फेसबुक पर बयान दिया, “यह एक दुखी करने वाली घटना है और मैंने फैसला किया है कि मैं एनडीटीवी से जुड़े रहकर पत्रकारिता करते रहूंगा”. इस खबर की कैश कॉपी ऑनलाइन उपलब्ध है.

6. कृषि बीमा- किसानों पर प्रीमियम की ‘मार’

टाइम्स ऑफ इंडिया (सितंबर 2017)

टाइम्स ऑफ इंडिया के जयपुर संस्करण में 14 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आलोचना करते हुए पत्रकार रोसम्मा थॉमस की खबर प्रकाशित हुई. खबर के अनुसार, “सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल खरीफ मौसम में केवल हनुमानगढ़ के किसानों से 125.63 करोड रुपए का प्रीमियम वसूला गया है. लेकिन बीमा भुगतान केवल 8.71 करोड रुपए का हुआ जिसका लाभ 7 हजार किसानों को मिला जबकि 137000 किसानों ने बीमा कराया है. समाचार वेबसाइट द वायर के अनुसार खबर के प्रकाशित होने के कुछ ही घंटों के अंदर टाइम्स ऑफ इंडिया की वेबसाइट से इसे हटा दिया गया.

थॉमस ने द वायर को बताया कि उन्हें अपनी रिपोर्ट से जिस “धोखाधड़ी” शब्द को हटाने को कहा गया वह उनकी मूल कॉपी में था ही नहीं. जयपुर संस्करण के रेजीडेंट संपादक कुनाल मजूमदार ने द वायर को बताया, “हम खबर के इंट्रो से सहमत नहीं थे”. इस खबर का हिंदी अनुवाद नवभारत टाइम्स पर उपलब्ध है लेकिन खबर पर थॉमस की बाईलाइन नहीं है.

7. 5 साल में अमित शाह की संपत्ति 300 गुना बढ़ी

टाइम्स ऑफ इंडिया (जुलाई 2017)

29 जुलाई 2017 को टाइम्स ऑफ इंडिया के अहमदाबाद संस्करण में 2012 से 2017 के बीच अमित शाह की संपत्ति के 300 गुना हो जाने की रिपोर्ट प्रकाशित हुई. इस रिपोर्ट में तीन अन्य नेता, बीजेपी के बलवंत सिंह राजपूत, स्मृति ईरानी और कांग्रेस पार्टी के अहमद पटेल की संपत्ति की जानकारी भी दी गई थी. द वायर के अनुसार, प्रकाशन के चंद घंटों के भीतर इस खबर को वेबसाइट से हटा दिया गया. टाइम्स ऑफ इंडिया की हिंदी वेबसाइट नवभारत टाइम्स और इकनॉमिक टाइम्स ने भी इस खबर को प्रकाशित किया था और दोनों ने ही बाद में से इसे हटा लिया.

8. मोदी सरकार का अडानी समूह को 500 करोड़ रुपए का तोहफा

इकोनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली (जुलाई 2017)

समीक्षा न्यास की पत्रिका इकोनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली के एक लेख में बताया कि अडानी समूह को जून 2017 में मोदी सरकार के वित्त मंत्रालय ने गैरवाजिब तौर पर 500 करोड़ रुपए दिए हैं. अडानी पावर लिमिटेड ने ईपीडब्ल्यू को अपने वकीलों के जरिए एक पत्र भेजा जिसमें उस रिपोर्ट को वेबसाइट से हटाने की मांग की गई. फिलहाल उस रिपोर्ट से संबंधित लिंक पर लिखा है, “यह रिपोर्ट ईपीडब्ल्यू के मानकों पर खरी नहीं उतरती और इसमें ईपीडब्ल्यू की संपादकीय समीक्षा प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है.” इसके बाद तत्कालीन ईपीडब्ल्यू के संपादक और उस रिपोर्ट के लेखकों में से एक परंजॉय गुहा ठाकुरता ने पत्रिका से इस्तीफा दे दिया.

9. मोदी के राष्ट्रवाद के खतरे के चलते प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत पहुंचा नीचे

टाइम्स ऑफ इंडिया (अप्रैल 2017)

अप्रैल 2017 में टाइम्स ऑफ इंडिया और इकोनामिक टाइम्स ने प्रेस स्वतंत्रता पर काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की 2017 की रिपोर्ट से जुड़ी एक खबर को अपनी वेबसाइट से हटा दिया. ऑल्ट न्यूज के मुताबिक, हटाई गई खबर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की 2017 की भारत संबंधी वह रिपोर्ट थी जिसके अनुसार, “हिंदू राष्ट्रवादियों के सभी ‘राष्ट्रीय विरोधी’ विमर्श को कुचलने के प्रयास के कारण मुख्यधारा के मीडिया में सेल्फ सेंसरशिप बढ़ रही है”. दोनों वेबसाइटों ने इस खबर को हटा दिया.

10. जीएसटी और भूमि कानून अटके, वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली की क्षमता पर मोदी को करना होगा विचार

फर्स्टपोस्ट जुलाई 2015

20 जुलाई 2015 को फर्स्टपोस्ट ने अपने एडिटर इन चीफ आर. जगन्नाथन का एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने मोदी सरकार की वित्तीय नीतियों की आलोचना की थी. उस लेख में जगन्नाथन ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को “उम्मीद से कम सफल” बताया था और लिखा था कि वित्त मंत्रालय ने बार-बार चीजों को उलझाया है. इससे पहले कारवां में प्रकाशित एक रिपोर्ट में फर्स्टपोस्ट में सेंसरशिप के बारे में बताया गया था. उस रिपोर्ट में फर्स्टपोस्ट की सह संस्थापक और कार्यकारी संपादक लक्ष्मी चौधरी ने बताया था कि “एक मीटिंग में हमें निर्देश दिया गया कि कुछ चुनिंदा नेताओं की आलोचना नहीं छापनी है. जेटली से संबंधित उस रिपोर्ट को हटाने की बात भी उसी मीटिंग में हुई थी”. बाद में चौधरी ने संस्था से इस्तीफा दे दिया.

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