यह मेरी नैतिक हार थी और यह हार बर्दाश्त नहीं कर पाया. पर यह कदम मैंने डरके नहीं उठाया है. बस उन लोगों की आंखें खोलने के लिए यह कदम उठाया है. और इसकी पूरी जिम्मेदारी समिति वालों की है. सभी साथियों से क्षमा चाहूंगा कि लड़ाई बीच में छोड़ कर जा रहा. एक बात याद रखना कि क्रांति हमेशा शहादत मांगती है. मैं इसी शहादत को पाने की इच्छा रखता हूं. अब पुरखों के इज्जत से खिलवाड़ करने वालों की खैर नहीं होना चाहिए. यह दुर्गा पूजा मुझे दिन रात तोड़ रही थी. लगा 55 दिन का बलिदान व्यर्थ गया. मैं साथियों से चाहूंगा मेरी अधूरी लड़ाई जोर-शोर से लड़ें. मैं हमेशा आप सभी के साथ हूं. उन तमाम लोग जो मुझसे जुड़े हुए थे, से पुनः माफी चाहूंगा. मैं घर वालों से भी माफी चाहूंगा कि मेरी वजह से आपको हमेशा शर्मिंदा होना पड़ा. बस यह आखिरी तकलीफ दे रहा हूं. इसके बाद और नहीं. मेरे शरीर का चीरफाड़ न किया जाए, यही मेरी इच्छा है.
Love Gondwana. सोनू
22 साल के आदिवासी युवा जितेंद्र मरावी का यह सुसाइड नोट उस वीभत्स दौर का जिंदा दस्तावेज है जिस तरफ हिंदू बहुसंख्यकवादी विचारधारा देश को आक्रमकता से धकेल रही है.
9 अक्टूबर 2019 को आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के केतका गांव में जितेंद्र मरावी (सोनू मरावी) ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली क्योंकि उसके घर में जबर्दस्ती दुर्गा पूजा कराई गई. जितेंद्र के मित्र रूपेश मरकाम ने मुझे बताया कि स्थानीय स्तर पर दुर्गा पूजा समिति का गठन हुआ था, इसमें जितेंद्र के पिता धनसाय मरावी भी शामिल थे. रूपेश ने कहा, “समिति की बैठक में जितेंद्र के पिता पर दबाव डाला गया कि उनका बेटा दुर्गा का विरोध करता है और वह उसे समझाएं.” रूपेश का कहना है कि जितेंद्र के पिता को “अपने घर में दुर्गा पूजा करने का संकल्प” लेने को भी कहा गया.
रूपेश मरकाम और उसके अन्य साथियों यथा देव कोराम और विजय मरपच्ची के मुताबिक जितेंद्र अपने पिता से नाराज हो गया था कि जिन कारणों से वह महिषासुर और रावण के अपमान का विरोध करता रहा और जिस विचारधारा के लिए वह जेल गया, वही पूजा उसके घर में हुई.
पिछले साल अक्टूबर में जितेंद्र के खिलाफ सूरजपुर थाने में मामला दर्ज कराया गया था कि उसने दुर्गा पूजा पर आपत्तिजनक पोस्ट की है. इस मामले में पुलिस ने जितेंद्र को गिरफ्तार किया था और अदालत के निर्देश पर उसे 55 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. जितेंद्र ने अपनी पोस्ट में अपने पुरखे रावण और महिषासुर की महानता का जिक्र किया था.
स्थानीय स्तर पर जितेंद्र की आत्महत्या और पुलिस द्वारा जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई न करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं लेकिन रायपुर के मीडिया संस्थानों ने इस खुदकुशी के मामले पर बेचैन करने वाली चुप्पी साध रखी है और राष्ट्रीय स्तर की मीडिया ने इस खबर को छापने-दिखाने लायक भी नहीं समझा.
जितेंद्र को जानने वाले लोगों ने मुझे फोन पर बताया कि करीब 16 साल की उम्र में वह गोंड संस्कृति और परंपराओं को लेकर चल रहे आंदोलन में कूद पड़ा था. कम उम्र में ही जितेंद्र ने आदिवासी विरासत और इतिहास की वैकल्पिक समझदारी विकसित कर ली जो इन विषयों में मुख्यधारा के वर्चस्व को तोड़ती है. अपनी कविता “मेरा आदिवासी होना ही काफी है!” में जितेंद्र ने लिखा :
मेरा आदिवासी होना ही काफी है मेरी हत्या के लिए,
नक्सली व मुखबीर होना तो बस बहाना है.
मेरी माटी पर है नजर तुम्हारी,
विकास व समसरता तो बस फसाना है.
अभी 26 सितंबर को जितेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिलकर स्थानीय जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा था जिसमें उसने लिखा था :
आदिवासियों, मूल निवासियों के पूर्वज असुर राजा, गोंडवाना सम्राट महिषासुर की प्रतिमा को दुर्गा की प्रतिमा के साथ रखकर दुर्गा द्वारा हिंसा दिखा कर अपमानित किया जाता रहा है, जो सिर्फ असुर राजा महिषासुर का ही अपमान नहीं है बल्कि आदिवासी, मूल निवासी समाज का भी अपमान है. यह कहीं से न्यायसंगत नहीं है... (आदिवासी) समाज आदि-अनादि काल से अपने आराध्य शक्ति के रूप में गोंगो पूजा करते रहे हैं. इसलिए महाराज रावण (रावेन) पेन की प्रतिमा को हर वर्ष विजयादशमी के दिन न जलाया जावे. इस पर प्रशासन द्वारा तत्काल रोक लगाई जाए...हम मांग करते हैं कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग तथा जन्म स्थान के आधार पर विभेद न किया जाए तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में दिए गए अधिकारों का पालन किया जाए. ...अगर जिले में कोई संगठन, (दुर्गा पूजा) समिति महिषासुर की प्रतिमा दुर्गा के साथ लगाकर हिंसा को दिखाती है या बुराई के प्रतीक के रूप में महाराजा रावण को जलाती है तो…उनके खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई की जाए. ...प्रशासन द्वारा इस संबंध में स्वत: कार्रवाई न करने की स्थिति में समाज को रोड पर आकर कानून-सम्मत कार्रवाई करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा, जिसके लिए प्रशासन जिम्मेदार होगा.
छत्तीसगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात सहित कई राज्यों के आदिवासी महिषासुर और रावण को अपना पुरखा मानते हैं. गोंड परंपराओं में रावण को पेन या पुरखा माना जाता है. गोंडी भाषा में पेन का मतलब “पुरखों की आत्मा” है. पिछले एक दशक में आदिवासी इलाकों में जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्ष के तेज होने के साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता का सवाल भी प्रभावकारी तरीके से उठने लगा है. यही वजह रही है कि गोंड इलाकों में आदिवासी दुर्गा पूजा के दौरान महिषासुर और रावण के वध को अपने पुरखों का अपमान कह कर विरोध दर्ज करा रहे हैं.
यहां के आदिवासियों के ब्राह्मणीकरण का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. 1 सितंबर 2019 को आदिवासी रिसर्जेंस नाम की वेबसाइट में प्रकाशित अपने एक लेख में जितेंद्र ने लिखा था :
सन 1951 के आते तक सरगुजा क्षेत्र में राजमोहिनी देवी के नेतृत्व में एक आंदोलन शुरू हो चुका था. यह कांग्रेस पार्टी द्वारा समर्थित था, जिसमे हिंदू धर्म, राष्ट्रवाद और गांधीवादी विचारधारा का प्रचार किया गया. राजमोहिनी देवी आंदोलन ने महुआ की शराब पर पाबंदी का आह्वान किया, मांस का त्याग करना, गाय की पूजा करना, अहिंसा का पालन करना और महात्मा गांधी आदि की शिक्षाओं का पालन करना आदि का प्रचार-प्रसार किया गया. आंदोलन के दौरान, ग्राम के देवताओं को “शुद्ध” करने और उन्हें भगत बनाने का भी प्रयास हुआ-इस प्रकार गांवों के बाद गांवों में हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार किया गया.
इस क्षेत्र के ज्यादातर गोंड आदिवासी परिवार राजमोहनी देवी के आंदोलन के प्रभाव में आए और जितेंद्र का परिवार भी इससे अछूता नहीं रहा.
हिंदू मान्यता के विपरीत छत्तीसगढ़ के गोंड आदिवासी कोया पुनेम दर्शन को मानते हैं. इस बारे में गोंड संस्कृति, परंपरा और भाषा के प्रख्यात अध्येता डॉ. मोतीरावण कंगाली ने विस्तार से लिखा है. अपनी पुस्तक में उन्होंने बताया है कि गोंड संस्कृति में एक त्योहार “खडेयारा पंदुम या गढ़ पूजा” या मेघनाद पूजा कहलाता है. इस त्योहार के बारे में गोंडी मान्यता है कि मेघनाद रावण (कोयावंशी गोंडों के रावेन) के प्रतापी पुत्र थे जो दाई कली कंकाली के भक्त थे और निशस्त्र होकर एकांत में उनकी पूजा करते थे. इसी पूजा के दौरान राम और लक्ष्मण नामक आर्य योद्धाओं ने उन्हें छलपूर्वक मारा था. यह कथा ब्राह्मणी हिंदू साहित्य में भी पाई जाती है जिस पर हिंदू गर्व करते हैं. आज भी गोंड समुदाय के गीतों में पूरी घटना दोहराई जाती है.
छोटा नागपुर के असुरों में या उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के महिषासुर मंदिर के आसपास के या छत्तीसगढ़ और झारखंड के अनेक मूलनिवासी समुदायों के लिए महिषासुर एक सच्चाई हैं. उनके लिए महिषासुर न केवल एक प्रतापी राजा, पूर्वज और मिथकीय चरित्र हैं बल्कि एक महाशक्तिशाली शूरवीर भी हैं. कई जनजातीय समाजों में आज भी महिषासुर की पूजा की जाती है. झारखंड के असुर स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं और महिषासुर सहित, मेघनाद, रावण और अन्य असुर माने जाने वाले वीरों की पूजा करते हैं.
इसी तरह पश्चिम बंगाल के उत्तरी इलाके में जलपाईगुड़ी जिले में स्थित अलीपुरद्वार के पास माझेरदाबरी चाय बागान में रहने वाली एक जनजाति के लोग दुर्गा पूजा के दौरान मातम मनाते हैं. इस दौरान वे न तो नए कपड़े पहनते हैं और न ही घरों से बाहर निकलते हैं, ये लोग असुर हैं और महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं.
सोशल मीडिया में जितेंद्र “सोनू मरावी रुद्र” के नाम से सक्रिया था. अभी भी उसके फेसबुक अकाउंट पर गोंड संस्कृति और परंपराओं के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को देखा जा सकता है. फेसबुक पेज पर उसने 22 सितंबर की पोस्ट में लिखा था, “अपना काफिला बढ़ता जा रहा है.” इसके साथ उसने केतका में आयोजित “एक दिवसीय संवैधानिक व सांस्कृतिक प्रशिक्षण” की तस्वीरें भी अपलोड की थी.
बहरहाल, जितेंद्र केवल सांस्कृतिक सवालों को लेकर ही सक्रिय नहीं था. वह अन्य सवालों को लेकर भी युवाओं को जागरुक बना रहा था. 28 सितंबर 2019 को रात करीब साढ़े दस बजे उसने पोस्ट किया :
अपन माटी ल बचाये खातिर....हो में अलगाववादी...
अगर मोर संस्कृति के पंथी, सुवा, कर्मा के हत्या करे खातिर, राष्ट्रीयता के नाम म मोर लइका मन ल जबरदस्त भक्ति के माहौल बना के गैर छत्तीसगढ़िया नाच गाना सिखाहु त मे ओकर जोरदार विरोध करहु.
यही कारण हे आज पूरा राज्य म नौकरी खातिर 100% आउटसोर्सिंग होवत हे अउ सब्बो छत्तीसगढ़िया युवा बेरोजगार घुमत हे, काबर के तहू मन अपन छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान ल खत्म करें म परदेसिया मन के साथ देवत हो.
ये सब बात से कोई राष्ट्रवादी मोला "अलगाववादी सोच के हव" किथे त अपन माटी ल बचाये खातिर.....हो में अलगाववादी, मोर बर मोर माटी, संस्कृति अउ भाखा सर्वोपरि हे.
~ जोहार छत्तीसगढ़
जितेंद्र के साथ पढ़ाई करने वाले और उसके दोस्त देव कोराम उसे “बहुत अच्छा वक्ता” के रूप में याद करते हैं. “उसमें गजब की नेतृत्व क्षमता थी”, देव ने बताया. “जब वह मंचों पर अपने पुरखों का इतिहास और बाहरी लोगों द्वारा फैलाए जा रहे झूठों का पर्दाफाश करता तब सुनने वाले उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते.”
देव कोराम को कभी लगा ही नहीं था कि अपने दम पर पूरे सूरजपुर में दुर्गा पूजा के आयोजन के खिलाफ आंदोलन चलाने वाला जितेंद्र कभी खुदकुशी कर लेगा. वह कहते हैं, “उसने खुदकुशी क्यों की, यह समझ में नहीं आता.” देव ने कहा, “लेकिन इतना पता चला है कि दुर्गा पूजा समिति वालों ने उसके घरवालों पर दुर्गा पूजा करने का दबाव बनाया था. जबकि जितेंद्र को यह मंजूर नहीं था.”
जितेंद्र मरावी के एक अन्य मित्र विजय सिंह मरपच्ची ने बताया कि अजय तिवारी ने जितेंद्र के पिता धनसाय मरावी के ऊपर घर में दुर्गा पूजा कराने का दबाव बनाया था. अजय तिवारी का छोटा भाई ओमप्रकाश तिवारी शिवसेना का सक्रिय कार्यकर्ता रहा है. इसके अलावा अजय तिवारी के स्थानीय कांग्रेसी विधायक खेलसाय सिंह और जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक जगते से नजदीकी संबंध रहे हैं.
विजय सिंह मरपच्ची के मुताबिक राजनीतिक नेताओं के शह से ताकतवर हो चुके दुर्गा पूजा समिति के लोगों ने धनसाय मरावी पर तमाम तरह के दबाव बनाए और धमकी दी कि अगर उन्होंने अपने घर में दुर्गा पूजा नहीं कराई तो अंजाम बहुत बुरा होगा. हालांकि जितेंद्र मरावी के पिता इस बारे में खुलकर नहीं बताते हैं कि समिति वालों ने उन्हें किस तरह की धमकी दी. वह बस इतना ही कहते हैं कि “मेरा बेटा बहुत होनहार था. उसे दुर्गा ने मार डाला.”
जितेंद्र के साथी देव कोराम सूरजपुर में ही परचून की दुकान चलाते हैं. वह जितेंद्र से 8 अक्टूबर को रात करीब 11-12 बजे मिले थे. देव कोराम को याद है कि अजय तिवारी, जो सूरजपुर में ही गैराज चलाता है, ने जितेंद्र के घर जाकर उसके पिता को भला-बुरा कहा था. कोराम के मुताबिक अजय तिवारी के छोटे भाई ओमप्रकाश तिवारी ने ही पिछले साल अक्टूबर में जितेंद्र मरावी के खिलाफ सूरजपुर थाने में मामला दर्ज कराया था. इसके बाद जितेंद्र को 55 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. अपने सुसायड नोट में जितेंद्र ने इन्हीं “55 दिन के बलिदान के व्यर्थ हो जाने” की बात कही है.
मैंने जिन लोगों से बात की उनका कहना था कि जितेंद्र मरावी खुदकुशी मामले में सूरजपुर की पुलिस उन लोगों का बचाव कर रही है जिन्हें मरावी ने जिम्मेवार ठहराया है. मैंने सूरजपुर के एसपी राजेश कुकरेजा से 10 अक्टूबर को फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि पुलिस सुसाइड नोट की “जांच हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से कराएगी और आवश्यक कदम उठाएगी.” लेकिन दस दिनों बाद इस खबर के लिखे जाने तक भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है. सूरजपुर थाना के प्रभारी विवेक तिवारी ने माना : “जितेंद्र मरावी उर्फ सोनू मरावी नामक एक नौजवान ने खुदकुशी की है.” विवेक तिवारी ने कहा, “वह अपने गांव में दुर्गा पूजा नहीं होने देना चाहता था.” यह पूछने पर कि सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, तिवारी ने बताया, “मर्ग (पंचनामा) दर्ज कर लिया गया है.”
जाहिर तौर पर स्थानीय पुलिस से लेकर स्थानीय प्रशासन तक को जितेंद्र मरावी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन की जानकारी थी. ऐसे में उसकी खुदकुशी पर पुलिस की चुप्पी का मतलब यही निकलता है कि वह दुर्गा पूजा समिति में शामिल अजय तिवारी और उसके जैसे लोगों को बचाना चाहती है.
दिल्ली हाईकोर्ट के प्राख्यात वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता अरविंद जैन के मुताबिक “सुसाइड नोट एक अहम सबूत होता है. पुलिस को सुसाइड नोट में जिम्मेदार ठहराए गए व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर उनके खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई करनी चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है तो यह पुलिस की नीति पर संदेह पैदा करता है.”
गोंडी साहित्य की चर्चित अध्येता चंद्रलेखा कंगाली मानती हैं, “जितेंद्र मरावी ने भले ही खुदकुशी की हो, लेकिन यह असल में हत्या है. वे लोग जो हमारे धर्म और संस्कृति पर वर्चस्व कायम करना चाहते हैं, उन्होंने इसे अंजाम दिया है. ऐसा 1947 के पहले भी होता था और आज भी हो रहा है.”