अगस्त 2019 में हुए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम में संशोधन के साल भर के भीतर गृह मंत्रालय ने 13 आतंकवादियों की सूचना दी है जिनमें से चार मुस्लिम और नौ सिख हैं. यह संशोधन लोगों को आतंकवादी ठहराने के लिए केंद्र सरकार को और अधिक अधिकार देता है. 1 जुलाई को मंत्रालय ने नए प्रावधान के तहत कई अधिसूचनाएं जारी कीं जिनमें नौ नए व्यक्तियों की पहचान की गई है. इनमें से हर कोई बतौर आतंकवादी अलग-अलग खालिस्तानी संगठनों से जुड़ा था. इन नौ सिखों में से गुरपतवंत सिंह पन्नू को आतंकवादी घोषित करना इस तरह के लोगों की ब्राडिंग पर सवाल खड़े करता है. इसके साथ ही सवाल उठता है कि गृह मंत्रालय क्यों किसी ऐसे आदमी को, जिसका जनाधार और मौजूदगी न के बराबर है, खतरा बताने की कोशिश कर रहा है.
पन्नू अमेरिका के पृथकतावादी समूह सिख फॉर जस्टिस के संस्थापक और कानूनी सलाहकार हैं. इस समूह को जुलाई 2019 में यूएपीए के तहत एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था. यह संगठन और पन्नू अगस्त 2018 में उस वक्त प्रकाश में आए थे जब इन्होंने लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में खालिस्तान समर्थक सिखों की एक बड़ी रैली आयोजित की थी और अपने अभियान "रेफरेंडम 2020" की घोषणा की. इस आयोजन को लंदन घोषणापत्र कहा जाता है. इसमें घोषणा की गई कि नवंबर 2020 में एसएफजे दुनिया भर के सिखों के बीच एक गैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह का आयोजन करेगा जो पंजाब से भारत के पृथक होने और एक संप्रभु सिख राज्य खालिस्तान के संविधान के बारे में होगा.
लेकिन पिछले दो सालों में यह साफ हो गया कि पंजाब में या राज्य के बाहर अन्य खालिस्तानी कट्टरपंथियों के बीच न तो संगठन को लेकर और न ही किसी व्यक्ति और न ही वादा किए गए जनमत संग्रह के बारे में कोई खार चर्चा हुई. पिछले कुछ महीनों में पंजाब में एसएफजे की पतली हालत और साफ हो गई क्योंकि संगठन ने स्थानीय लोगों को भारी संख्या में पेसै देने की कोशिश भी की ताकि वे खालिस्तानी झंडा फहराएं या किसी गुरुद्वारे में खालिस्तान अरदास पढें. असल बात तो यह है कि उन सिख चरमपंथियों का, जो खालिस्तान की मांग करते हैं, भी मानना है कि खालिस्तानी ही क्यों अन्य मकसदों के लिए भी पन्नू के वादे सवालों के घेरे में हैं. उन्होंने उसे एक ऐसा आदमी बताया जो कुल मिलाकर प्रचार पाना चाहता है और जिसने मीडिया का ध्यान खींचने के लिए कई अभियान चलाए लेकिन अपनी तरफ से तो कोई वैचारिक प्रतिबद्धता जाहिर की और न ही कोई मजबूत इरादा ही.
दल खालसा के अध्यक्ष हरपाल सिंह चीमा ने कहा, “कोई भी अच्छी तरह से समझ सकता है कि यह आदमी और उसका जनमत संग्रह या आंदोलन कितना महत्वपूर्ण होगा जो एक अरदास पढ़वाने या एक खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए नासमझ युवाओं को पैसे का ललचा देता है.” दल खालसा अमृतसर आधारित कट्टरपंथी संगठन है जो एसएफजे की तरह खालिस्तान की स्थापना करना चाहता है लेकिन लोकतांत्रिक तरीकों से. “एक सिख की अरदास उसकी भावनाओं से जुड़ी है. यह विश्वास की बात है ऐसा कुछ नहीं है जिसे पैसों के बदले में किया जाए,” उन्होंने कहा. चीमा का मानना है कि पन्नू ने जो यह पैसे देने का काम किया इसके उलटे नतीजे निकले, क्योंकि भारत सरकार ने इसे उसको आतंकवादी के रूप में पेश करने और “खालिस्तान के लिए वास्तविक आंदोलन और संघर्ष को बर्बाद कर देने" के मौके के तौर पर इस्तेमाल किया.
शेर-ए-पंजाब विकास पार्टी के अध्यक्ष चानन सिंह सिद्धू ने इस साल राज्य में एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई है. उन्होंने चीमा के आकलन का समर्थन किया कि भारत सरकार का उसे आतंकवादी बताना राजनीतिक उद्देश्यों के लिए है. "एकदम बकवास!" सिद्धू कहा. उन्होंने आगे कहा, ''सरकार का एजेंडा भी यही है कि खालिस्तान के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू हो और पंजाब में हिंदुओं में डर फैले और वे इसमें सफल भी हो रहे हैं.” सिद्धू का मानना था कि पंजाब में सिख खालिस्तान नहीं चाहते लेकिन सरकार "चाहती है कि खालिस्तान के खिलाफ नफरत जिंदा रहे ताकि हिंदुओं को सिखों से दूर रखा जा सके." कारवां ने पहले भी रिपोर्ट की है कि जब हिंदू आतंकवाद जैसे धार्मिक अतिवाद लगातार राष्ट्र को खारिज करता जा रहा है, गृह मंत्रालय "इस्लामी और सिख आतंकवाद" की जांच पड़ताल में लगा है.
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