खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू को आतंकवादी घोषित कर क्या हासिल करना चाहता है गृह मंत्रालय?

2014 में न्यूयॉर्क में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिका स्थित खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस के संस्थापक और कानूनी सलाहकार गुरपतवंत सिंह पन्नू. इस साल जुलाई में गृह मंत्रालय ने पन्नू को आतंकवादी करार दिया है. पन्नू को पंजाब या बाहर बहुत कम समर्थन प्राप्त है. ज्वेल समद / एएफपी / गैटी इमेजिस

अगस्त 2019 में हुए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम में संशोधन के साल भर के भीतर गृह मंत्रालय ने 13 आतंकवादियों की सूचना दी है जिनमें से चार मुस्लिम और नौ सिख हैं. यह संशोधन लोगों को आतंकवादी ठहराने के लिए केंद्र सरकार को और अधिक अधिकार देता है. 1 जुलाई को मंत्रालय ने नए प्रावधान के तहत कई अधिसूचनाएं जारी कीं जिनमें नौ नए व्यक्तियों की पहचान की गई है. इनमें से हर कोई बतौर आतंकवादी अलग-अलग खालिस्तानी संगठनों से जुड़ा था. इन नौ सिखों में से गुरपतवंत सिंह पन्नू को आतंकवादी घोषित करना इस तरह के लोगों की ब्राडिंग पर सवाल खड़े करता है. इसके साथ ही सवाल उठता है कि गृह मंत्रालय क्यों किसी ऐसे आदमी को, जिसका जनाधार और मौजूदगी न के बराबर है, खतरा बताने की कोशिश कर रहा है.

पन्नू अमेरिका के पृथकतावादी समूह सिख फॉर जस्टिस के संस्थापक और कानूनी सलाहकार हैं. इस समूह को जुलाई 2019 में यूएपीए के तहत एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था. यह संगठन और पन्नू अगस्त 2018 में उस वक्त प्रकाश में आए थे जब इन्होंने लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में खालिस्तान समर्थक सिखों की एक बड़ी रैली आयोजित की थी और अपने अभियान "रेफरेंडम 2020" की घोषणा की. इस आयोजन को लंदन घोषणापत्र कहा जाता है. इसमें घोषणा की गई कि नवंबर 2020 में एसएफजे दुनिया भर के सिखों के ​बीच एक गैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह का आयोजन करेगा जो पंजाब से भारत के पृथक होने और एक संप्रभु सिख राज्य खालिस्तान के संविधान के बारे में होगा.

लेकिन पिछले दो सालों में यह साफ हो गया कि पंजाब में या राज्य के बाहर अन्य खालिस्तानी कट्टरपंथियों के बीच न तो संगठन को लेकर और न ही किसी व्यक्ति और न ही वादा किए गए जनमत संग्रह के बारे में कोई खार चर्चा हुई. पिछले कुछ महीनों में पंजाब में एसएफजे की पतली हालत और साफ हो गई क्योंकि संगठन ने स्थानीय लोगों को भारी संख्या में पेसै देने की कोशिश भी की ताकि वे खालिस्तानी झंडा फहराएं या किसी गुरुद्वारे में खालिस्तान अरदास पढें. असल बात तो यह है कि उन सिख चरमपंथियों का, जो खालिस्तान की मांग करते हैं, भी मानना है कि खालिस्तानी ही क्यों अन्य मकसदों के लिए भी पन्नू के वादे सवालों के घेरे में हैं. उन्होंने उसे एक ऐसा आदमी बताया जो कुल मिलाकर प्रचार पाना चाहता है और जिसने मीडिया का ध्यान खींचने के लिए कई अभियान चलाए लेकिन अपनी तरफ से तो कोई वैचारिक प्रतिबद्धता जाहिर की और न ही कोई मजबूत इरादा ही.

दल खालसा के अध्यक्ष हरपाल सिंह चीमा ने कहा, “कोई भी अच्छी तरह से समझ सकता है कि यह आदमी और उसका जनमत संग्रह या आंदोलन कितना महत्वपूर्ण होगा जो एक अरदास पढ़वाने या एक खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए नासमझ युवाओं को पैसे का ललचा देता है.” दल खालसा अमृतसर आधारित कट्टरपंथी संगठन है जो एसएफजे की तरह खालिस्तान की स्थापना करना चाहता है लेकिन लोकतांत्रिक तरीकों से. “एक सिख की अरदास उसकी भावनाओं से जुड़ी है. यह विश्वास की बात है ऐसा कुछ नहीं है जिसे पैसों के बदले में किया जाए,” उन्होंने कहा. चीमा का मानना है कि पन्नू ने जो यह पैसे देने का काम किया इसके उलटे नतीजे निकले, क्योंकि भारत सरकार ने इसे उसको आतंकवादी के रूप में पेश करने और “खालिस्तान के लिए वास्तविक आंदोलन और संघर्ष को बर्बाद कर देने" के मौके के तौर पर इस्तेमाल किया.

शेर-ए-पंजाब विकास पार्टी के अध्यक्ष चानन सिंह सिद्धू ने इस साल राज्य में एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई है. उन्होंने चीमा के आकलन का समर्थन किया कि भारत सरकार का उसे आतंकवादी बताना राजनीतिक उद्देश्यों के लिए है. "एकदम बकवास!" सिद्धू कहा. उन्होंने आगे कहा, ''सरकार का एजेंडा भी यही है कि  खालिस्तान के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू हो और पंजाब में हिंदुओं में डर फैले और वे इसमें सफल भी हो रहे हैं.” सिद्धू का मानना ​​था कि पंजाब में सिख खालिस्तान नहीं चाहते लेकिन सरकार "चाहती है कि खालिस्तान के खिलाफ नफरत जिंदा रहे ताकि हिंदुओं को सिखों से दूर रखा जा सके." कारवां ने पहले भी रिपोर्ट की है कि जब हिंदू आतंकवाद जैसे धार्मिक अतिवाद लगातार राष्ट्र को खारिज करता जा रहा है, गृह मंत्रालय "इस्लामी और सिख आतंकवाद" की जांच पड़ताल में लगा है.

पन्नू को समर्थन की स्पष्ट कमी के बावजूद राज्य और केंद्र सरकार ने उसे या सिख फॉर जस्टिस के प्रति नरमी दिखाते हुए ज्यादा खोजबीन नहीं की. अधिसूचना में उन्हें आतंकवादी घोषित करने के लिए उन पर उकसाने और अलगाववादी गतिविधियों को वित्त पोषण करने का आरोप लगाया गया है. अगले दिन पंजाब पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह और अलगाववाद के आरोप में दो मामले दर्ज किए. इस साल अगस्त में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने राज्य के युवाओं से पन्नू के बहकावे में न आने का आह्वान किया और अमेरिका में रहने वाले इस सिख कट्टरपंथी को खुलेआम धमकी देते हुए कहा, “तुम पंजाब आने की कोशिश करके देखो, मैं तुमको सबक सिखा दूंगा." इस साल सितंबर में गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी के साथ पन्नू पर मुस्तैदी से कार्रवाई की. एंजेसी का कहना है कि उसने अमृतसर स्थित पन्नू दो संपत्तियों की कुर्की की है. एनआईए ने उल्लेख किया कि संपत्तियों को एसएफजे और रेफरेंडम 2020 के खिलाफ एक मामले में इसकी जांच के हिस्से के तौर पर कुर्क किया गया है.

केंद्र और राज्य सरकार इसी आक्रामकता के साथ अन्य नामित आतंकवादियों पर कार्रवाई करती नहीं दिखाई दिए. नौ सिख कट्टरपंथियों में पन्नू के खिलाफ आरोप सबसे हल्के थे. आतंकवादियों के रूप में अधिसूचित लोगों की सूची में विश्व स्तर पर प्रतिबंधित संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल के वधवा सिंह बब्बर जैसे लोग शामिल हैं जो कई आतंकी हमलों का आरोप है. उस पर हवाई हमले, हत्याएं और राजनीतिक हमले के आरोप हैं. पन्नू, दूसरों के उलट, किसी भी हिंसक हमले के आरोपी नहीं हैं.

यह देखते हुए कि उन्हें और उनके संगठन को पंजाब या इसके बाहर उदारपंथियों या अतिवादियों के बीच बहुत कम समर्थन हैं गृह मंत्रालय पन्नू को उनके हिस्से से ज्यादा भाव दिया है. ऐसा करके मंत्रालय ने एक व्यक्ति को, जो कोई खास खतरा नहीं है, इस तरह से पेश किया है कि वह असली खतरा है. ऐसा करके मंत्रालय उन्हेंज्यादा विश्वसनीयता दे रहा है.

पेशे से वकील पन्नू पंजाब के अमृतसर जिले के एक गांव खानकोट के निवासी बताए जाते हैं. उन्होंने 2007 में सिख फॉर जस्टिस की स्थापना की. चीमा ने बताया कि 2012 में पन्नू ने संयुक्त राज्य अमेरिका में दिल्ली के उन सिखों के लिए एक अभियान शुरू किया था जिन्हें 1984 के नरसंहार के बाद न्याय नहीं मिला था. इस नरसंहार में राष्ट्रीय राजधानी में तीन हजार से अधिक सिख मारे गए थे. चीमा के मुताबिक, पन्नू ने सिख पीड़ितों के लिए वकीलों को नियुक्त करने के लिए पैसा जुटाया था "लेकिन फिर उन्होंने आखिरकार अभियान को बीच में ही छोड़ दिया." चीमा ने कहा कि पन्नू ने 2016 में सतलुज-यमुना लिंक नहर का मुद्दा भी उठाया, जो पंजाब और हरियाणा के बीच रावी और ब्यास नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर है. चीमा ने कहा कि एसएफजे के नेता ने एक बार फिर कुछ विरोध प्रदर्शनों के बाद इस मुद्दे को छोड़ दिया.

2014 के आसपास पन्नू और एसएफजे ने उन भारतीय राजनीतिक नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज करने का अभियान शुरू किया जो संयुक्त राज्य अमेरिका या कनाडा की यात्रा कर रहे थे. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हैं. इन शिकायतों में नेताओं पर हजारों सिखों की हत्या में मिलीभगत, नरसंहार के लिए व्यक्तिगत दायित्व, मानवाधिकारों के उल्लंघन और हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया. 2016 में समूह ने पहले तो अमरिंदर के खिलाफ पंजाब में एक व्यक्ति को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करके उनकी कनाडा यात्रा में देरी करवा दी और उसके बाद उनके यह कहने के लिए कि एसएफजे को पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस का समर्थन प्राप्त है,  अमरिंदर के खिलाफ मानहानी का मुकदमा दायर कर दिया.

हाल के वर्षों में भारतीय राजनीति के बारे में भी पन्नू मुखर रहे हैं. लगातार भारतीय राज्य को लेकर आलोचनात्मक होता गए हैं. इस साल मई में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई झड़पों के बाद, जिसमें चार सिखों सहित 20 सैनिक मारे गए थे, पन्नू ने "चीन के लोगों के साथ सहानुभूति रखते हुए" 17 जून को चीनी प्रमुख शी जिनपिंग को पत्र लिखा था. पन्नू ने "भारत के पंजाब से अलगाव के लिए गैर-सरकारी जनमत संग्रह 2020 के लिए एसएफजे के हालिया आह्वान पर दिए गए उत्साहजनक प्रोत्साहन और समर्थन के लिए चीन के लोगों का आभार व्यक्त किया." उन्होंने “लद्दाख घाटी सीमा पर भारत की हिंसक आक्रामकता की भी निंदा की.”

चीमा का मानना ​​है कि पन्नू मीडिया में बने रहने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि भले ही पन्नू द्वारा दायर किए गए सभी मामलों को अंततः खारिज कर दिया गया, वह हर बार कुछ हो हल्ला करने में कामयाब रहे और इसके चलते कुछ लोगों को अपने सा​थ लाने में भी सफल रहे. चीमा ने कहा, "इससे पहले उसने कभी भी खालिस्तान के बारे में बात नहीं की थी, जब उसके कैंपेन खत्म हो गए, तो उसने अचानक इस सिख रेफरेंडम 2020 की शुरुआत कर दी."

दल खालसा और एक अन्य खालिस्तानी संगठन शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) या एसएडी (ए) ने प्रस्तावित जनमत संग्रह के बारे में अपनी चिंता जाहिर की. जुलाई 2018 में लंदन घोषणा से एक महीने पहले, मान (शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता) और चीमा ने पन्नू को एक संयुक्त पत्र लिखा था जिसमें रेफरेंडम 2020 को "अस्पष्ट" कहा था और एकतरफा जनमत संग्रह की निरर्थकता के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त किया था.

चीमा ने कहा, "हमने उनसे जनमत संग्रह कराने की प्रक्रिया साझा करने के लिए कहा था कि पंजाब के लोग कैसे वोट डालेंगे और कौन सी एजेंसी पंजाब में यह सब करेगी. हमने उनसे पूछा कि उनके जनमत संग्रह को कौन प्रायोजित कर रहा है, भारत सरकार या संयुक्त राष्ट्र?"

यह पूछे जाने पर कि क्या दल खालसा ने पन्नू का समर्थन किया है, चीमा सतर्क थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने न तो उनका समर्थन किया और न ही उनकी आलोचना की. "हालांकि हम जनमत संग्रह के उनके विचार से सहमत हैं, लेकिन जनमत संग्रह करवाने का हमारा तरीका उनके तरीके से पूरी तरह से उलट है, जो एक गैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह है." दल खालसा के अध्यक्ष ने कहा, “हम चाहते हैं कि जनमत संग्रह भारत सरकार द्वारा या यूएनओ द्वारा संचालित किया जाए. इसके अलावा कोई जनमत संग्रह मायने नहीं रखता. "

एसएडी (ए) के मान ने यह भी कहा कि उन्होंने यह तर्क देते हुए कि जनमत संग्रह केवल एक संप्रभु देश द्वारा संचालित किया जा सकता है, पन्नू से पूछा था कि उन्होंने किस कानून के तहत जनमत संग्रह कराने की मांग की. उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में रहने या न रहने के लिए स्कॉटिश जनमत संग्रह या यूरोपीय संघ के भीतर जनमत संग्रह का उदाहरण दिया. मान लोकतांत्रिक तरीकों से खालिस्तान की मांग कर रहे हैं, उन्होंने जोर दिया कि केवल संयुक्त राष्ट्र या भारतीय राज्य ही इस तरह के जनमत संग्रह का संचालन कर सकते हैं.

मान ने जनमत संग्रह के परिणामों के बारे में एक प्रासंगिक सवाल भी उठाया. "क्या होगा अगर खालिस्तान विरोधी लोग 'नहीं' का बटन दबाते हैं?" ऐसा होने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जनमत संग्रह में खालिस्तान के समर्थन की स्पष्ट कमी का पता चलेगा. “यह सिखों के लिए शर्मनाक होगा. लेकिन उसने अभी तक हमें जवाब नहीं दिया है.” अपने जुलाई के पत्र में भी, चीमा और मान ने लिखा था कि नवंबर में एसजेएफ की रेफरेंडम 2020 की बातचीत से नासमझ सिखों में गलत धारणा पैदा हो सकती है कि यह खालिस्तान बनने की तारीख है.

एसएडी (ए) प्रमुख मान पन्नू और एसजेएफ पर विस्तार से टिप्पणी करने को लेकर अनिच्छुक दिखाई दिए. ऐसा इसलिए कि वे एक ही उद्देश्य के लिए लड़ रहे हैं. लेकिन उनके बीच बुनियादी मतभेद भी हैं. मान ने जोर देकर कहा कि पन्नू और एसएफजे की "पंजाब या भारत में कोई मौजूदगी नहीं है और एजेंसियां बेवजह रेफरेंडम 2020 का हव्वा बना रही है." यह पूछे जाने पर कि क्या उनके पास राज्य की इस कार्रवाई के लिए कोई स्पष्टीकरण है, मान ने जवाब दिया, "ओह ते तुसिं मोदी हॉर आने सीएम नू पुछो" यानी यह तो आप मोदी और अपने सीएम से पूछ लीजिए.

चीमा ने भी मुझसे कहा, "मुझे सिख फॉर जस्टिस, जिसका भारत में कोई पदाधिकारी तक नहीं है, पर प्रतिबंध लगाने या गुरपतवंत को आतंकवादी घोषित करने के पीछे के कारणों का कुछ नहीं पता." उन्होंने कहा, "भारत ने ऐसे व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया है जिसने कभी आतंकवादी काम नहीं किया है और न ही उसकी या उसके संगठन की पंजाब में कोई उपस्थिति या गतिविधि है." चीमा के मुताबिक पन्नू को बस उन युवाओं का समर्थन है जिन्होंने 1984 के बाद पंजाब छोड़ दिया और ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा या यूरोप में शरण ले ली थी. उन्होंने कहा, "सरकार इसे बढ़ाचढ़ा कर बता रही है, जैसे कि खालिस्तान के लिए कोई बड़ा आंदोलन अमेरिका या कनाडा से शुरू होगा और 2020 में खालिस्तान बन जाएगा."

ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के अध्यक्ष मंजीत सिंह भोमा इस बात से चकित थे कि पन्नू का चीमा के दल खालसा के साथ या मान के एसएडी (ए) के साथ कोई संबंध नहीं था. भोमा ने कहा कि पन्नू का सिख आंदोलन या सिखी से कोई ताल्लुक नहीं और यह कि "वह तो शक्ल-सूरत और उठने-बैठने के अंदाज से ही सिख नहीं लगते."

मैंने जुलाई 1985 में कांग्रेस नेता ललित माकन और उनकी पत्नी गीतांजलि की हत्या के लिए लगभग बीस साल जेल में बिताने वाले रणजीत सिंह गिल से संपर्क किया. गिल को अंततः 2009 में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने माफी दे दी थी और अब वह लुधियाना में सामुदायिक और सामाजिक विकास गतिविधियों में सक्रिय हैं. अपनी रिहाई के बाद के वर्षों में गिल खालिस्तान और सिख उग्रवाद के विषय पर राज्य में एक प्रमुख आवाज बन गए.

गिल का मानना ​​था कि पन्नू नाजसझ सिखों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं जो मूर्खता के चलते उस पर भरोसा कर रहे हैं. गिल ने कहा, सिख डायस्पोरा के कुछ वर्गों का मानना ​​है कि पंजाब में हिंसा पैदा करने से किसी भी फैसले पर गलत असर पड़ेगा. “अतीत की हिंसा से दुख और क्रूरता के अलावा कुछ नहीं मिला. एक मात्र मौजूद तरीका राजनीतिक है लेकिन 1985 में अकाली दल के लिए जगह खुली रख कर चूक हो गई थी.” गिल पंजाब विधानसभा चुनावों का जिक्र कर रहे थे, जो 1984 के सिख विरोधी जनसंहार के बाद हुए थे और शिरोमणि अकाली दल सत्ता में आया था.

गिल ने कहा कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां ​​पन्नू की संपत्तियों को कुर्क कर उन्हें उनकी तुलना में ज्यादा बड़ा खतरा बता रही हैं. गिल ने पंजाब में उन राजनीतिक संगठनों का उल्लेख किया जो खुले तौर पर अलगाववादी मांगें करते हैं लेकिन उनकी संपत्तियों को कभी कुर्क नहीं किया गया. उदाहरण के लिए, न तो एसएडी (ए) और न ही दल खालसा की कोई संपत्ति कुर्क की गई है. गिल ने बताया कि वह एक साधारण इंसान हैं और अमेरिका में या कहीं भी किसी गुरुद्वारे में जनमत संग्रह कराने में सक्षम नहीं हैं.'' उन्होंने कहा, “पंजाब या विदेश में कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेता और न ही उनका समर्थन करता है. वह सिर्फ हो हल्ला करने वाले हैं, ठीक उसी तरह से जैसे कि खालिस्तान के बारे में कई दूसरे लोग बयानबाजी करते रहते हैं जैसे कि जगजीत सिंह चौहान, जिन्होंने ब्रिटेन में खालिस्तान के गठन की घोषणा करने के बाद खुद को खालिस्तान गणराज्य का राष्ट्रपति घोषित किया, कैबिनेट का गठन किया और यहां तक ​​कि खालिस्तान पासपोर्ट, डाक टिकट और खालिस्तान डॉलर भी जारी किए.”

गिल ने एसएफज के प्रस्तावित जनमत संग्रह को भी खारिज कर दिया. "आप इस तरह से जनमत संग्रह कैसे करा सकते हैं?" उन्होंने पूछा. “वह इसे स्कॉटलैंड, कैटेलोनिया, कुर्दिस्तान और क्यूबेक में हुए जनमत संग्रह के साथ जोड़ रहे हैं. हालांकि हमें याद रखना चाहिए कि ये जनमत संग्रह चुनी हुई सरकारों द्वारा किए गए थे.” गिल ने कहा कि यह संभव हो सकता है कि  कुछ हजार सिख उनके बहकावे में आ जाएं लेकिन पश्चिमी देशों में रहने वालों सहित अधिकांश समुदाय का उनसे बहुत कम जुड़ाव है.

एसएफजे को पंजाब में कुछ समर्थक मिले हैं. हालांकि यह संदिग्ध है कि यह उनके वैचारिक झुकाव के कारण है या संगठन द्वारा पैसे देने के चलते. अगस्त में एसएफजे ने संदेश और पोस्टर प्रसारित करना शुरू कर दिया, जिसमें खालिस्तानी झंडा उठाने के लिए 2500 डॉलर और अकाल तख्त पर अरदास पढ़ने के लिए 5000 डॉलर देने की पेशकश की गई.

एसएफजे के इस प्रलोभन में फंसे कुछ लोग पकड़े भी गए. दो लोगों को मोरगा में खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए गिरफ्तर किया गया और एक को अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में अरदास पढ़ने के लिए गिरफ्तार किया गया. पंजाब ने यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए युवाओं की बढ़ती संख्या को भी किसी संभावित खालिस्तानी नेटवर्क पर कार्रवाई करने और रेफरेंडम 2020 के सिलसिले में देखा है.

मान ने कहा कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए युवाओं के पास उनके मामलों को देखने लिए कोई नहीं है. गिल ने भी इन मामलों के बारे में चिंता जाहिर की और कहा, "जिन्हें गिरफ्तार किया गया और सलाखों के पीछे भेजे दिया गया वे यह भी नहीं समझते कि जनमत संग्रह होता क्या है." उन्होंने मुझे बताया कि पैसे के लिए खालिस्तानी झंडे फहराने वाले लोगों की तुलना में पंजाब सरकार की यह कोशिश अधिक परेशान करने वाली है कि पंजाब में कुछ युवा सिखों को हिरासत में लेकर एक डर मनोविकृति पैदा की जाए और उन्हें जनमत संग्रह 2020 के प्रस्तावकों के रूप में पेश किया जाए. मान का मानना ​​था कि गिरफ्तारी के चलते आंदोलन और मजबूत होगा क्योंकि "राज्य का आतंक" बढ़ेगा .

शेर-ए-पंजाब विकास पार्टी के प्रमुख सिद्धू के मुताबिक, पंजाब का कोई भी सिख खालिस्तान नहीं चाहता और उसके निर्देशों पर काम करने वाले हैं वह आसानी से पैसा पाना चाहते हैं. सिद्धू ने कहा, "वे 5 लाख रुपए अगर वह पिट भी जाएं तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता और बहुत कम ये जानते हैं कि उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ." इसी तरह भोमा ने कहा, "उपद्रव फैलाने के बदले में इस तरह पैसे देने के प्रस्तावों के कारण मांएं अपने बेटों को खो रही हैं जबकि यह आदमी दूसरों के कंधों पर बंदूक चलाकर डॉलर कमाना चाहता है." छात्र-महासंघ के अध्यक्ष ने कहा, "कोई भी कट्टर या समर्पित सिख इस तरह के कार्यों को करने के लिए आगे नहीं आया और जिन लोगों को पैसों की तंगी हैं, वे झंडा फहराने या अरदास पढ़ने के लिए आगे आए. इस आदमी का पंजाब में कोई आधार नहीं है.”

एक सिख विद्वान और पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गुरतेज सिंह, जिन्होंने 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को खत्म करने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में इस्तीफा दे दिया था, ने मान और गिल की चिंताओं को ही दुहराया. गुरतेज ने मुझे बताया कि जनमत संग्रह को लेकर हो रही राजनीति और जिस तरह से इसे सिख समुदाय को अलगाववादी दिखा कर बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया गया है, वह एसएफजे की तुलना में अधिक नुकसानदायक है.

"यह खेल काफी समय से चल रहा है. 1984 के बाद से और अभी भी खत्म नहीं हुआ है," उन्होंने कहा. "वे उन लोगों को गिरफ्तार करेंगे जो अपना बचाव नहीं कर सरते और फिर ऐसा जाहिर करेंगे और दिल्ली नरसंहार की तरह उन लोगों को मार डालेंगे जो खुद का बचाव करने में असक्षम हैं." गुरतेज पंजाब में उन सिख युवाओं का जिक्र कर रहे थे जिन्हें यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है और उन्होंने उनकी तुलना उन मुस्लिमों से की जिन्हें दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी में फरवरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के लिए गिरफ्तार किया है. “इन पीड़ितों को फिर अपनी जीत की ट्रॉफी की तरह दिखाया जाएगा. इसलिए वे पंजाब में जो कर रहे हैं यह पहली बार नहीं है. वे 1984 से यही कर रहे हैं. "

इस बारे में गृह मंत्रालय के प्रवक्ता नितिन वाकणकर और पंजाब पुलिस के महानिदेशक दिनकर गुप्ता को संदेश और कॉल किए थे लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. उनकी प्रतिक्रिया मिलते ही इस स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.