बेसिल इकलौते पादरी नहीं है जिन्हें मुलक्कल से पंगा लेने के दुष्परिणाम झेलने पड़े. कट्टुथरा के बारे में भी कहा जाता है कि उनका भी हश्र बेसिल जैसे हुआ. वे एक वरिष्ठ पादरी थे और जालंधर सूबे के संस्थापक कीपरथ के साथ काम करते थे. बावजूद इसके उनका तबादला दसुया में कर दिया गया. पंजाब के होशियारपुर जिले की इस जगह पर अप्रैल 2018 में उन्हें जेम्स उल्लाटिल का सहायक बना कर भेजा गया जबकि उल्लाटिल जूनियर पादरी थे जो कट्टुथरा छात्र रह चुके थे. कट्टुथरा के चचेरे भाई ने मुझे बताया, “उन्हें इलाके का प्रभार तक नहीं दिया गया. मुलक्कल ने कट्टुथरा को अपने समूह का हिस्सा बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. फ्रैंको को पता था कि कुरियाकोस दिमाग वाले हैं और यदि कट्टुथरा उनके साथ आ जाते हैं तो कई काम आसानी से हो जाएंगे.” चचेरे भाई के मुताबिक कट्टुथरा का तबादला और उनके हाथ से सभी जिम्मेदारियों को छीन लेना (यही बेसिल के मामले में भी हुआ था) मुलक्कल का उन पादरियों पर हमला था जो उनका साथ देने से मना कर देते थे.
मुलक्कल ने इस बात से मना कर दिया कि उन्होंने बेसिल या कट्टुथरा को मनाने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा कि कट्टुथरा को सूबे का जिम्मा इसलिए नहीं मिला क्योंकि “उनसे जुड़े बेहद गंभीर मामले थे” लेकिन मुलक्कल ने इन मामलों के बारे में बताने से मान कर दिया. मुलक्कल ने कहा कि मुकेन्थोटैथिल को इसलिए सस्पेंड कर दिया गया क्योंकि उन्होंने तबादले का आदेश मानने से इनकार किया था. मुलक्कल ने इस बात पर बल दिया कि इस तबादले का आदेश अन्य पादरियों के तबादले के साथ दिया गया था. मुलक्कल ने मुझसे कहा, “अगर वे (लुधियाना में खुश नहीं थे) तो उन्हें पुंगा में जाने का विकल्प दिया गया था. उन्होंने उसके लिए भी मना कर दिया. ऐसा करने की वजह से धार्मिक आधार पर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. इसमें कोई निजी बात नहीं थी.”
द फ्रांसिसियन मिशनरी ऑफ जीजस को लेकर सिर्फ ये विवाद नहीं रहा कि मुलक्कल पर पादरियों के ऊपर उनकी मंडली का हिस्सा बनने से जुड़े आरोप लगे हैं. एफएमजे से जुड़ी दो बातों को खास तौर पर जालंधर सूबे में, आलोचना का सामना करना पड़ा है. इनमें से एक तो वह फैसला था जिसके तहत इन्होंने उन आठ बच्चों को वापस लेने से मना कर दिया था जिन्हें पाठशालाओं से निकाला गया था और दूसरा मंडली के भीतर की जीवनशैली है. ऐसी ही एक पाठशाल में छह महीने तक रहे एक शख्स ने मुझे बताया, “उन सबको अलग-अलग पाठशालाओं से निकाला गया था. लोगों को 12 साल की निर्माण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इन 12 सालों में व्यक्ति का मूल्यांकन आध्यात्मिक, भावनात्मक, शारीरिक, बौद्धिक रूप से किया जाता है. ऐसे में कुछ लोग जो इस जीवनशैली में नहीं ढल पाते उन्हें बाहर कर दिया जाता है. उन सभी लोगों को (जिन्हें निकाल दिया गया था) विशप मुलक्कल वापस लेकर आए.”
पलाचुवत्तील ने अपनी चिट्ठी में एफएमजे द्वारा इन छात्रों को वापस लेने के फैसले की आलोचना की. चिट्ठी में तर्क दिया गया कि इसे "विद्यालय के वरिष्ठों के सामूहिक निर्णय" के खिलाफ जाना माना जा सकता है. पलाचुवत्तील ने मंडली के नाम मिशनरी ऑफ जीजस रखे जाने का भी विरोध किया क्योंकि ये कीपरथ की मंडली से मिलता-जुलता था. चिट्ठी में लिखा है, “क्या ये दिवंगत विशप के आखिरी इच्छा के सम्मान के लिए ठीक नहीं होगा कि मंडली का संक्षिप्त नाम, एमजे, का इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि उन्होंने ऐसी ही मंडली बनाई थी और नई मंडली के लिए नया नाम तलाशा जाए.”
हालांकि, पलाचुवत्तील ने बाकी के पादरियों द्वारा जताई गई चिंताओं को खारिज नहीं किया. मंडली से पहले से संबद्ध लोगों ने इसे एमएमजे के सदस्यों के साथ किया जाने वाले व्यवहार को “बाकियों के मामले में अलग बताया.” यह सेमिनरी (एक तरह का विद्यालय) चार माले की बिल्डिंग में है जिसमें केंद्रीकृत एयर कंडिशनिंग है और एक स्विमिंग पूल भी है. यह पंजाब के नौशेरा जिले में मालुपोट में स्थित है. इसके परिसर में एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल है जो बंद हो गया. बाद में सूबे ने इसे खरीद लिया. कैथलिक पादरियों से पारंपरिक रूप से सीधे-साधे जीवनशैली को देखें तो मंडली द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं को सूबा के भीतर कई पुजारियों द्वारा दिखावटी माना जाता है. इसमें सदस्यों के लिए हवाई सफर के पैसे भी शामिल हैं.
कमेंट