केरल नन रेप मामला भाग दो : बगावत की सुगबुगाहट

सितंबर 2018 को पांच ननों और समर्थकों ने केरल हाई कोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया. उनकी मांग थी कि फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ कार्रवाई की जाए. एएफपी/गैटी इमेजिस
सितंबर 2018 को पांच ननों और समर्थकों ने केरल हाई कोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया. उनकी मांग थी कि फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ कार्रवाई की जाए. एएफपी/गैटी इमेजिस

बेसिल इकलौते पादरी नहीं है जिन्हें मुलक्कल से पंगा लेने के दुष्परिणाम झेलने पड़े. कट्टुथरा के बारे में भी कहा जाता है कि उनका भी हश्र बेसिल जैसे हुआ. वे एक वरिष्ठ पादरी थे और जालंधर सूबे के संस्थापक कीपरथ के साथ काम करते थे. बावजूद इसके उनका तबादला दसुया में कर दिया गया. पंजाब के होशियारपुर जिले की इस जगह पर अप्रैल 2018 में उन्हें जेम्स उल्लाटिल का सहायक बना कर भेजा गया जबकि उल्लाटिल जूनियर पादरी थे जो कट्टुथरा छात्र रह चुके थे. कट्टुथरा के चचेरे भाई ने मुझे बताया, “उन्हें इलाके का प्रभार तक नहीं दिया गया. मुलक्कल ने कट्टुथरा को अपने समूह का हिस्सा बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. फ्रैंको को पता था कि कुरियाकोस दिमाग वाले हैं और यदि कट्टुथरा उनके साथ आ जाते हैं तो कई काम आसानी से हो जाएंगे.” चचेरे भाई के मुताबिक कट्टुथरा का तबादला और उनके हाथ से सभी जिम्मेदारियों को छीन लेना (यही बेसिल के मामले में भी हुआ था) मुलक्कल का उन पादरियों पर हमला था जो उनका साथ देने से मना कर देते थे.

मुलक्कल ने इस बात से मना कर दिया कि उन्होंने बेसिल या कट्टुथरा को मनाने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा कि कट्टुथरा को सूबे का जिम्मा इसलिए नहीं मिला क्योंकि “उनसे जुड़े बेहद गंभीर मामले थे” लेकिन मुलक्कल ने इन मामलों के बारे में बताने से मान कर दिया. मुलक्कल ने कहा कि मुकेन्थोटैथिल को इसलिए सस्पेंड कर दिया गया क्योंकि उन्होंने तबादले का आदेश मानने से इनकार किया था. मुलक्कल ने इस बात पर बल दिया कि इस तबादले का आदेश अन्य पादरियों के तबादले के साथ दिया गया था. मुलक्कल ने मुझसे कहा, “अगर वे (लुधियाना में खुश नहीं थे) तो उन्हें पुंगा में जाने का विकल्प दिया गया था. उन्होंने उसके लिए भी मना कर दिया. ऐसा करने की वजह से धार्मिक आधार पर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. इसमें कोई निजी बात नहीं थी.”

द फ्रांसिसियन मिशनरी ऑफ जीजस को लेकर सिर्फ ये विवाद नहीं रहा कि मुलक्कल पर पादरियों के ऊपर उनकी मंडली का हिस्सा बनने से जुड़े आरोप लगे हैं. एफएमजे से जुड़ी दो बातों को खास तौर पर जालंधर सूबे में, आलोचना का सामना करना पड़ा है. इनमें से एक तो वह फैसला था जिसके तहत इन्होंने उन आठ बच्चों को वापस लेने से मना कर दिया था जिन्हें पाठशालाओं से निकाला गया था और दूसरा मंडली के भीतर की जीवनशैली है. ऐसी ही एक पाठशाल में छह महीने तक रहे एक शख्स ने मुझे बताया, “उन सबको अलग-अलग पाठशालाओं से निकाला गया था. लोगों को 12 साल की निर्माण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इन 12 सालों में व्यक्ति का मूल्यांकन आध्यात्मिक, भावनात्मक, शारीरिक, बौद्धिक रूप से किया जाता है. ऐसे में कुछ लोग जो इस जीवनशैली में नहीं ढल पाते उन्हें बाहर कर दिया जाता है. उन सभी लोगों को (जिन्हें निकाल दिया गया था) विशप मुलक्कल वापस लेकर आए.”

पलाचुवत्तील ने अपनी चिट्ठी में एफएमजे द्वारा इन छात्रों को वापस लेने के फैसले की आलोचना की. चिट्ठी में तर्क दिया गया कि इसे "विद्यालय के वरिष्ठों के सामूहिक निर्णय" के खिलाफ जाना माना जा सकता है. पलाचुवत्तील ने मंडली के नाम मिशनरी ऑफ जीजस रखे जाने का भी विरोध किया क्योंकि ये कीपरथ की मंडली से मिलता-जुलता था. चिट्ठी में लिखा है, “क्या ये दिवंगत विशप के आखिरी इच्छा के सम्मान के लिए ठीक नहीं होगा कि मंडली का संक्षिप्त नाम, एमजे, का इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि उन्होंने ऐसी ही मंडली बनाई थी और नई मंडली के लिए नया नाम तलाशा जाए.”

हालांकि, पलाचुवत्तील ने बाकी के पादरियों द्वारा जताई गई चिंताओं को खारिज नहीं किया. मंडली से पहले से संबद्ध लोगों ने इसे एमएमजे के सदस्यों के साथ किया जाने वाले व्यवहार को “बाकियों के मामले में अलग बताया.” यह सेमिनरी (एक तरह का विद्यालय) चार माले की बिल्डिंग में है जिसमें केंद्रीकृत एयर कंडिशनिंग है और एक स्विमिंग पूल भी है. यह पंजाब के नौशेरा जिले में मालुपोट में स्थित है. इसके परिसर में एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल है जो बंद हो गया. बाद में सूबे ने इसे खरीद लिया. कैथलिक पादरियों से पारंपरिक रूप से सीधे-साधे जीवनशैली को देखें तो मंडली द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं को सूबा के भीतर कई पुजारियों द्वारा दिखावटी माना जाता है. इसमें सदस्यों के लिए हवाई सफर के पैसे भी शामिल हैं.

20 नवंबर को मैं एफएमजे के जेनरलेट में गई. ये सेमिनरी का मुख्यालय है. यह जालंधर के पर्टापुरा में 10 एकड़ के फार्म हाउस में फैला हुआ है. जब मैं कंपाउंड में घूम रही थी तो मैंने घोड़ों का अस्तबल देखा, एक बड़े चारागाह में गायें चर रही थीं और एक दो माले का बंगला भी था. बंगले में इसके निदेशक एंटनी मैडेसरी रहते हैं.

कुरियाकोस कट्टुथरा (बाएं) और बेसिल मुकन्थोट्ताथिल (दाएं), जालंधर सूबे के इन दोनों पादरियों को मुलक्कल का कोपभाजन बनना पड़ा.

मैडेसरी ने इस बात से इनकार किया कि सेमिनरी के सदस्य भोग-विलास लिप्त हैं. जिन घोड़ों को मैंने देखा था उनके बारे में बताते हुए उन्होंने मुझसे कहा, “अगले साल हम एक नया स्कूल शुरू करने जा रहे हैं जिसमें घुड़सवारी का कोर्स होगा. हम जहां कही से भी मुफ्त में या सस्ते घोड़े ले रहे हैं और उन्हें यहां ट्रेनिंग दे रहे हैं.” मैडेसरी का दावा है कि सेमिनारी ने स्थानीय गांवों को रोजगार के अवसर मुहैया कराए हैं. उन्होंने कहा, “जब खेती का मौसम चला जाता है, उनके पास कोई काम नहीं होता. ऐसे में वो इस फार्म हाउस की देख रेख करते हैं. इस काम की वजह से पांच-छह लोगों का परिवार पल जाता है. ऐसे कामों की वजह से भविष्य में 50-60 और परिवार को समर्थन देने की स्थिति में होंगे.”

मैडेसरी ने इस बात से भी इनकार कर दिया कि एफएमजे के छात्रों को बाकी जगहों से निकाला गया है. उन्होंने कहा कि कुछ ने तो इसलिए इन जगहों को छोड़ दिया क्योंकि वे इनके कठोर नियमों का पालन नहीं कर पा रहे थे और बाकियों ने एफएमजे से जुड़ने के लिए पुरानी जगह को छोड़ दिया. उन्होंने कहा, “हमारे पास 40-45 लोगों के आवेदन आए थे जिनमें से हमने 10 लोगों को ही लिया.” इस आरोप से इनकार करते हुए कि मुलक्कल ने पादरियों पर उनसे जुड़ने का दबाव बनाया था. मैडेसरी ने कहा, “यहां तक की पादरियों ने भी एफएमजे से जुड़ने का आवेदन दिया है जिसे हमने शालीनता से नाकर दिया. इसका कारण ये है कि हमें लगता है कि वे हमारे तौर-तरीकों के साथ नहीं ढल पाएंगे.” उनके मुताबिक मुलक्कल ने एक बार सभा के लोगों की मुलाकात के दौरान कहा था, “अगर आपके पास कोई एफएमजे से जुड़ने के लिए आता है तो आप उन्हें किसी भी हद तक लिए हत्तोतसाहित करें और अगर फिर भी वे इसका हिस्सा बनते हैं तब मैं यह कह सकता हूं कि उनके पास सभा से जुड़ने की सच्ची आस्था है.”

मुलक्कल के खिलाफ लगे सभी आरोपों का मैडेसरी ने जमकर बचाव किया. उन्होंने कहा, “बिशप लोगों के लिए जीते हैं. लोगों के विकास के लिए वो किसी हद तक जा सकते हैं.” वो मुलक्कल के निर्दोष होने को लेकर 100 प्रतिशत आश्वस्त थे और उन्हें मुलक्कल पर “शत प्रतिशत” विश्वास है. जब मैंने उनसे कहा कि कई पादरियों को मुलक्कल का अक्सर कुराविलानगड जाना आपत्तिजनक लगता है, तो उनका कहना था, “ये हमारा मिशन हाउस है”-सूबे के भीतर आने वाले आवासीय घरों के लिए मिशन हाउस टर्म का इस्तेमाल होता है. मैडेसरी ने इस बात पर जोर दिया, “अगर वो एर्नाकुलम और कोट्टायम जिले में हैं तो उन्हें वहीं रहना चाहिए, कहीं और नहीं. बिशप सिंफोरियन वहीं रहते थे... इसे बिशप सिंफोरियन ने ही बनवाया था और उन्होंने ही तय किया था कि एक कमरा बिशप के लिए होगा. मुझे नहीं लगता कि वे वहां इसलिए जाते थे क्योंकि वे वहां थीं.”

पादरी कोझिचिरा मुलक्कल को 2011 से जानते हैं. उन्हें लगता है कि मुलक्कल पर लगे आरोप सही नहीं हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कोझिचिरा के मुताबिक मुलक्कल अपने काम और जीवन को बेहद शानदार तरीके से संभालते हैं. कोझिचिरा ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि उनका किसी ऐसी स्थिति में पकड़े जाना संभव है. वे अपनी किसी भी हरकत की आखिरी संभावना तक पर विचार करते हैं.” कोझिचिरा ने मुलक्कल पर आरोप लगाने वाली नन से आरोप लगाए जाने के बाद से दो बार मुलाकात की है और कोझिचिरा कहते हैं कि उन्होंने दूसरी मुलाकात के बाद मुलक्कल से आरोपों के बारे में बात की. यह मुलाकात 2018 के जुलाई के मध्य में हुई थी. वे कहते हैं, “मुझे लगा कि मैं उनसे ये पूछने को स्वतंत्र हूं कि क्या उनके और नन के बीच कुछ हुआ था, क्योंकि दोनों ने साथ में सफर किया है. उन्होंने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘मेरी सच्चाई मुझे कभी ऐसा कुछ भी नहीं करने देगी.’”

वहीं कोझिचिरा ने उन ख़तरों को भी स्वीकारा जो सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने वाली नन पर मंडरा रहा है. उन्होंने कहा, “अगर उसे इस हद तक जाकर खुद को सामने ला कर ये करना पड़ा तो यह जरूर एक गंभीर मामला होगा.” कोझिचिरा वे पहले भारतीय पादरी थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से मुलक्कल का इस्तीफा मांगा. जुलाई 2018 में एनडीटीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में कोझिचिरा ने कहा, “अगर जांच को सफल बनाने के लिए बिशप को अपना पद छोड़ना पड़ता है तो मुझे लगता है कि उन्हें यह करना चाहिए. लोग का महत्व होता है लेकिन संस्था की कीमत पर नहीं.”

हालांकि, मुलक्कल ने नन के आरोपों से जुड़े किसी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया लेकिन हमारी बातचीत से साफ था कि अगर हम इस पर चर्चा करते तो उन्होंने कैसी प्रतिक्रिया दी होती. जब भी मैंने पादरियों द्वारा उनके ऊपर लगाए गए आरोपों की बात की तो उन्होंने छटपटाहट भरे लहजे में उन्हें “झूठ” कह कर खारिज कर दिया. जब मैंने उनसे एफएमजे को लेकर जताई गई पादरियों की चिंता पर सवाल किया तो मुलक्कल ने कहा कि चर्च के पादरियों का सभाओं के बीच पाला बदलना आम बात है. उन्होंने कहा, “लोग राई का पहाड़ बना रहे हैं.”

जब मैंने उनसे कहा कि उनके डर से मुझसे बात करने वाले कई पादरियों ने अपना नाम छुपा लिया तो उन्होंने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें पता है कि जो वे कह रहे हैं वह झूठ है. मैं बदला नहीं लेता. यहां तक की अभी भी मैं उनके विचारों का सम्मान करता हूं.” मुलक्कल ने अब भी उनको मिल रहे समर्थन पर जोर दिया. मुलक्कल ने मुझसे कहा, “सिवाय उनके जो मेरे दामन पर दाग लगाना चाहते है, पूरे पंजाब को मेरी मासूमियत पर भरोसा है. मैं किसी को अपना दुश्मन नहीं मानता. मेरे लिए सब दोस्त हैं.”

लेकिन जालंधर सूबे में मुलक्कल का उदय उतना आसान नहीं था. जब उन्हें बिशप बनाया गया था तब कई पंजाबी ईसाइयों ने मुलक्कल का विरोध किया था. मुलक्कल ने माना कि एक तबका ऐसे लोगों का जे उनके विरोध में हैं और उनकी जगह किसी पंजाबी को सूबे का बिशप बनाना चाहता हैं. तो भी अपनी नियुक्ति के खिलाफ हुए विरोध को उन्होंने तव्वजो नहीं ही. उन्होंने कहा कि इसमें सिर्फ 50 लोगों ने हिस्सा लिया था.

पीटर सहोटा जालंधर सूबे के सैंट सेबेस्टियन कैथलिक चर्च के सदस्य हैं. उन्होंने मुलक्कल के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व किया था. उन्होंने मुझसे कहा कि वो सिर्फ मुलक्कल ही नहीं बल्कि पूरे सूबे के खिलाफ थे. सहोटा ने कहा, “वे पंजाबियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं करते हैं. वे बस अपना धंधा चलाना चाहते हैं. चर्च अपने आप में धंधा है.” उन्होंने इसके लिए चर्च की भारी अमीरी और पंजाब के ईसाइयों की भारी गरीबी का हवाला दिया. उन्होंने कहा, “यहां लगी कारों को देखिए. कमरों में एसी लगे हैं. वे खूब मजे की जिंदगी जीते हैं जबकि हमारा समुदाय उतना ही गरीब है जितना हमेशा से था.”

जालंधर सूबे के पूर्व कर्मचारी की भावनाएं भी इन बातों से मेल खाती थीं. पंजाब के ईसाइयों की पिछड़ी स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने मुझसे कहा, “जब आप पंजाब में कोई फॉर्म भरते हैं और लिखते हैं कि आप ईसाई हैं तो मान लिया जाता है कि आप अनुसूचित जाति से आते होंगे.” ऐसे में जब हम पंजाब के ईसाई समुदाय की गरीबी की तुलना सूबे की समृद्धि के साथ करते हैं तो यह बेहद घिनौना लगता है. उन्होंने कहा, “यहां के पादरियों का आधायत्मिकता से कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें बस कैसे भी पैसा बनाना और इसका आनंद उठाना है. उनके लिए बस यही मायने रखता है.”

ऑल इंडिया कैथलिक यूनियन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जॉन दयाल ने जालंधर सूबे और पंजाबी ईसाइयों के बीच के संघर्ष के बारे में बताया. दयाल ने कहा, “पंजाब मिशन स्टेशन एरिया में लगभग पूरी स्थानीय आबादी दलित है. मंडली जिसमें पुजारी, बिशप और नन शामिल हैं उसमें मूल रूप से पाला के सिरो-मालाबार चर्च से कई मलयाली शामिल हैं. ऐसे में स्थानीय लोगो और इनके बीच फूट है. वे हमेशा अलग होते हैं.” स्थानीय लोगों की पंजाबी बिशप की मांग पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “दुनिया भर में हमेशा ऐसी मांग रही है कि लोगों को पुजा के मामले में और आध्यात्मिक रूप से अपने लोगों द्वारा प्रशासित किया जाना चाहिए.”

यहां तक कि नन की शिकायत और मुलक्कल की गिरफ्तारी के बावजूद इस पूर्व बिशप को जालंधर सूबे और मिशनरी ऑफ जीजस का विश्वास हासिल है. नन यहां की सदस्य थीं. जब मुलक्कल के खिलाफ मंडली के पांच ननों ने सितंबर 2018 में अभूतपूर्व रूप से सार्वजनिक विरोध शुरू किया, तो मंडली ने प्रेस में कई बयान जारी किए जिनमें मुलक्कल को बिना किसी झिझक के समर्थन दिया गया था. एक प्रेस रिलीज में दावा किया गया कि ननों का विरोध प्रदर्शन “जालंधर बिशप, एमजे मंडली और जालंधर सूबे की छवि को तबाह करने का एजेंडा था.” सितंबर में किए गए इस प्रदर्शन के दौरान द मिशनरी ऑफ जीजस ने शिकायतकर्ता की एक तस्वीर भी जारी की जिसमें की वब पूर्व बिशप के साथ थीं. तस्वीर जारी करना भारतीय कानून का उल्लंघन है. इसकी वजह से केरल पुलिस ने इनके खिलाफ शिकायत दर्ज की.

दयाल का मानना है कि द मिशनरी ऑफ जीजस मंडली को भंग कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह जालंधर मंडली से जुड़ा है. वे द मिशनरी ऑफ जीजस जैसी मंडलियों के आलोचक रहे हैं जो कि सिर्फ एक सूबे से जुड़ी है और वकालत करते हैं कि मंडलियां ऐसी होनी चाहिए जो कई सूबों से जुड़ी हों. उन्होंने कहा कि द मिशनरी ऑफ जीजस सिर्फ जालंधर सूबे की सेवा में लगी है जिसकी वजह से ननों की शिकायत को सूबे और मंडली दोनों ही के भीतर विरोध का सामना करना पड़ा. जब कोई मंडली कई सूबों से जुड़ी होती है तो इसका फायदा ये होता है कि ननों और उनके बीच दूरी होती है जिनके लिए वे काम करती हैं. उन्होंने कहा कि कई सूबों वाली मंडली में किसी शिकायत को बाकी के सूबों का समर्थन प्राप्त होता. दयाल ने कहा, “अगर (कई सूबों वाली मंडली में) ऐसा कुछ होता है तो शक होते ही आरोपी का तबादला कर दिया जाता है.”

द मिशनरी ऑफ जीजस ने ननों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना बंद नहीं किया है. तीन जनवरी को मंडली ने पांच में से चार ननों को केरल के कुराविलानगड कॉन्वेंट से ट्रांसफर करने का आदेश दिया. पांचवीं नन नीना रोज को मंडली के नेतृत्व के सामने 26 जनवरी को पेश होने को कहा गया. लेकिन किसी भी नन ने आदेश नहीं माना. उल्टे इस ट्रांसफर ऑर्डर के विरोध में उन्होंने सेव ऑर सिस्टर्स द्वारा आयोजित किए गए एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया. प्रदर्शन में मुलक्कल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. प्रदर्शन कोट्टायम के ओल्ड पुलिस ग्राउंड में आयोजित किया गया था. इसमें कई अहम लोगों ने हिस्सा लिया था जिनमें कविता कृष्णण जैसी कार्यकर्ता भी शामिल थीं. उन्होंने इसके पहले भी ननों की सुरक्षा को लेकर केरल के सीएम पिनराई विजयन को लिखा था.

यह प्रदर्शन एक अहम विकास के बीच हुआ. पांच फरवरी को पोप फ्रांसिस ने ये बात स्वीकारी की रोमन कैथलिक चर्च बिशपों द्वारा ननों के यौन उत्पीड़न की भयानक समस्या का सामना कर रहा है. कोट्टायम प्रदर्शन के दिन जालंधर सूबे के वर्तमान प्रमुख एग्नेलो ग्रासिया ने विवाद पर अपनी चुप्पी तोड़ दी. उन्होंने पांचो ननों को लिखा और भरोसा दिया कि उन्हें कॉन्वेंट से बलपूर्वक बाहर नहीं किया जाएगा. ग्रासिया ने लिखा, “जब तक ये मेरी ताकत में है, जालंधर सूबे से आपको कुराविलानगड कॉन्वेंट से बाहर करने से जुड़ा कोई कदम तब तक नहीं उठाया जाएगा जब तक की आपकी दरकार कोर्ट में है.” उन्होंने ये भी लिखा कि ननों को लिखे जाने वाले किसी पत्र के लिए पहले ग्रासिया की “स्पष्ट अनुमति” लेनी पड़ेगी और “मंडली के प्रमुख” के तौर पर यह उनके क्षमता में जारी किया गया आदेश होगा.

लेकिन कुछ ही घंटो के भीतर जालंधर सूबे के पब्लिक-रिलेशन अधिकारी पीटर कावुमपुरम ने एक सफाई जारी करते हुए कहा, “चर्च मामले के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहता.” कावुमपुरम ने आगे कहा कि ननों को जारी की गई चिट्ठी “कोई ट्रांसफर ऑर्डर नहीं था” बल्कि यह “वापसी का बुलावा था जिसमें उन्हें उनके उन समुदायों की ओर लौटने को कहा गया था जिससे वे बिना किसी आज्ञा चली आई थीं.” उन्होंने आगे कहा कि ग्रासिया ने “मंडली के आतंरिक मसलों में हस्ताक्षेप नहीं किया है, इसलिए ननों के उनके अपने समुदायों की ओर लौटने का आदेश अभी भी जस का तस बरकरार है.” ट्रांसफर का आदेश मिलने के बाद पांच में से एक नन अनुपमा केलमंगलाथुवेलियिल ने मीडिया से कहा, “यह कुछ और नहीं बल्कि बदले के तहत किया गया तबादला है और चर्च हमें अलग-अलग जगह भेज देने का खेल खेल रहा चाहता है.” कावुमपुरम की सफाई से नन की दृढता कमजोर नहीं हुई. अनुपमा ने मीडिया को 10 फरवरी को बताया, “सफाई वाला बयान हमें स्वीकार नहीं है. हम इस कॉन्वेंट में तब तक रहेंगे तब तक मामला खत्म नहीं हो जाता.”

केरल पुलिस को फ्रैंको मुलक्कल के मामले में अभी चार्जशीट दाखिल करनी है. वायकॉम पुलिस स्टेशन के उप अधीक्षक ने मुझे बताया, “हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि इसे जल्द ही फाइल किया जाएगा क्योंकि इसे लेकर विशेष अभियोजक के साथ बातचीत जारी है.” मुलक्कल को दोषी ठहराया जाएगा या नहीं यह तो तय नहीं है लेकिन दयाल को लगता है कि यह मामला जालंधर सूबे पर एक अमिट छाप छोड़ेगा. उन्होंने कहा, “ट्रायल में बेहद छोटे हिस्से का समाधान होगा. नैतिकता, चर्च के प्रशासन जैसे बड़े मुद्दे हमारे बीच लंबे समय तक बने रहेंगे.”

(जारी...)

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