मराठाओं और ब्राह्मणों के बीच सत्ता हासिल करने की तनातनी मराठा साम्राज्य के समय से ही चली आ रही है. छत्रपति की उपाधि से नवाजे गए मराठा योद्धा राजा शिवाजी भोंसले प्रथम द्वारा कायम किया गया साम्राज्य साल 1750 में अपने उरूज पर था. उनकी बादशाहत तमिलनाडु में थंजावुर से लेकर पश्चिम में पेशावर (आज पाकिस्तान) तक तथा पूर्व में बंगाल तक, करीब 25 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैली थी.
अठाहरवीं सदी के मध्य में उनके इस साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ. इस काल को पेशवा काल भी कहा जाता है. शिवाजी की मृत्यु के कुछ दशकों बाद मराठा छत्रपति के अधीन काम करने वाले ब्राह्मण पेशवाओं ने सत्ता पर अपना दबदबा कायम कर लिया और छत्रपति से भी अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे. मराठा छत्रपति अब सिर्फ नाम का राजा रह गया था. ब्राह्मण पेशवा अब प्रशासन के सबसे ऊंचे ओहदों पर काबिज थे. साम्राज्य को एकजुट रखने के लिए पेशवाओं ने मराठा सेनापतियों जैसे धार के पेशवाओं, ग्वालियर के सिंधियाओं, नागपुर के भोंसलों को आधी खुदमुख्तारी दे दी. साम्राज्य अब एक राज्यसंघ बन चुका था. लेकिन आज भी ब्राहमण मंत्रियों द्वारा मराठा शासकों को सत्ता से बेदखल किए जाने का दर्द मराठा समुदाय को बेचैन कर देता है.
इस दौर के सबसे असाधारण ब्राहमण राजनीतिज्ञ शायद नाना फडणवीस थे, जो पेशवा प्रशासन में पेशकार के पद से तरक्की करते हुए मंत्री बने (फडणवीस की उपाधि पेशवाओं के बही-खातों का हिसाब-किताब रखने वालों को दी गई थी).
1760 और 1800 के बीच के इस दौर में ज्यादातर समय नाना फडणवीस पूरे मराठा साम्राज्य में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे. उन्हें ही असल में राजा के रूप में देखा जाता था. 1773 में किशोर पेशवा नारायण राव की उनके चाचा रघुनाथ राव ने हत्या कर दी और खुद पेशवा बन बैठे. फडणवीस ने तुरंत 11 मंत्रियों के साथ मिलकर रघुनाथ राव को सत्ता से बेदखल कर दिया. इसे इतिहास में “बारभाई साजिश” के नाम से जाना गया – यानी बारह भाइयों की साजिश.