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एक बेहद रसूखदार शख्स ही अपनी व्यावसायिक उपलब्धि का जश्न राष्ट्रपति भवन में मनाने का ख्वाब पाल सकता है. 2013 में राधिका और प्रणय रॉय ने अपनी मूल कंपनी 'नई दिल्ली टेलीविजन प्राइवेट लिमिटेड' की 25वीं सालगिरह के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति निवास में एक कार्यक्रम आयोजित किया. लेकिन यह उनके लिए कोई नई बात नहीं थी. 15 साल से भी अधिक समय पहले उन्होंने अपने 24 घंटे वाले समाचार चैनल का उद्घाटन प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास पर किया था.
रॉय परिवार ने उस साल दिसंबर की एक शाम को इस भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें भारत के कई सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली लोगों ने भाग लिया, जिन्हें नेटवर्क द्वारा देश की “महानतम ग्लोबल जीवित हस्ती” के रूप में सम्मानित किया जा रहा था. इसमें उद्योग जगत के दिग्गज (मुकेश अंबानी, रतन टाटा, इंद्रा नूयी, एनआर नारायण मूर्ति), खेल के दिग्गज (सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, लिएंडर पेस) और फिल्मी सितारे (अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, वहीदा रहमान, शाहरुख खान) शामिल थे. सितारों की इस महफिल में थोड़ी देर में प्रणय रॉय एक काले रंग का बंधगला पहने मंच पर आए.
चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लिए उन्होंने आहिस्ता से बोलना शुरू किया, “कुछ दिन पहले मैंने एनडीटीवी की संस्थापक राधिका से पूछा कि एनडीटीवी 25 साल से कैसे चला आ रहा है?” चैनल का सबसे जाना-पहचाना चेहरा होने के बावजूद रॉय अक्सर लोगों को यह याद दिलाते हैं कि कंपनी की स्थापना उनकी पत्नी ने की थी और वह उनके बाद कंपनी में शामिल हुए थे. वह अपनी बात जारी रखते हुए बोले, “उन्होंने जवाब में सिर्फ एक शब्द कहा: भरोसा. आपका भरोसा. और आज मैं यहां पूरे एनडीटीवी की ओर से आप के भरोसे के लिए आप सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं.”
दो साल बाद, यानी 8 नवंबर 2015 की शाम को दक्षिण दिल्ली स्थित एनडीटीवी स्टूडियो में अपनी एंकर डेस्क पर बैठे प्रणय एक बार फिर अपने दर्शकों के भरोसे को माप रहे थे. इस बार हालांकि वह स्पष्ट रूप से असहज नजर आ रहे थे. उन्होंने कहा, “आज मैं एक स्पष्टीकरण और एक माफी के साथ शुरुआत करना चाहता हूं.” उनके चैनल ने दो गलतियां की थी. सबसे पहले, चैनल के एग्जिट पोल ने बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत का अनुमान लगाया था, जिसे बाद में राष्ट्रीय जनता दल-जनता दल (यूनाइटेड)-कांग्रेस गठबंधन ने जीत लिया था. उलझन में दिख रहे रॉय ने उमड़-घुमड़ शब्दों में अपनी बात रखते हुए कहा, “कई सांख्यिकीय त्रुटियां हैं, जिन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए. आप कई बार सही होते हैं, कई बार गलत. यही एक पोलस्टर (पोल विशेषज्ञ) का जीवन है.” उनकी बात सही थी. एग्जिट पोल भले ही पूर्व-चुनाव सर्वेक्षणों की तुलना में स्पष्ट रूप से अधिक सटीक होते हैं, फिर भी बहुत से कारणों के चलते (सैम्पलिंग की त्रुटियां और मतदाताओं की झूठी प्रतिक्रियाओं) उनमें कभी भी फेरबदल हो सकता है.
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