कुश्ती से कठिन जीवन महिला पहलवानों का

हरियाणा के रोहतक शहर के छोटू राम स्टेडियम में कठोर प्रशिक्षण से गुजरते पहलवान. अमित मेहरा/इंडियन एक्सप्रेस आर्काइव

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हरियाणा के रोहतक शहर में शीला बाईपास के पास एक पुराना सा गेट है. उस गेट पर लिखा है, ‘सर छोटू राम स्टेडियम.’ यह प्रदेश के पहलवानों के लिए चिर परिचित जगह है. मार्च 2023 की उस सुबह ‘कोच जी’ 60 लड़कियों का इंतज़ार कर रहे थे. जब वे आईं तो सभी ढीले-ढाले शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहने हुए थीं. सभी के छोटे बाल थे. और हो यूं जाता था कि लोग उन्हें लड़के समझने की गलती करते बैठते थे. रोज़ाना होने वाले दो कठोर प्रशिक्षण सत्रों में से पहले के लिए तैयार लड़कियां अगले चार घंटों में जैक-नाइफ़िंग पुश-अप्स, डीप नी बेंड्स, पुल-अप्स और रस्सी पर चढ़ने जैसी करसरतें करती हैं.

भारतीय खेलों के संदर्भ में कुश्ती को मीडिया ने हमेशा ही ग्रामीण लड़कियों को सशक्त करने के माध्यम के रूप में चित्रित किया है. फिर भी 2023 के वसंत में रोहतक में मेरे फ़ील्डवर्क ने दर्शाया है कि इन एथलीटों के सपने पारिवारिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए थे. एक 21 वर्षीय पहलवान ने मुझसे कहा, "मेरे माता-पिता ने मेरे कुश्ती कैरियर में बहुत निवेश किया है. मैं उनकी ऑलंपिक पदक जीतने और उनकी पसंद के लड़के से शादी करने की इच्छा को पूरा करना चाहती हूं."

सशक्तिकरण की यह कहानी जनवरी 2023 में उस समय धराशायी हो गई जब भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृज भूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप सामने आए. भारत के जाने-माने पहलवान जांच की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए. डब्ल्यूएफआई ने सिंह का पक्ष लेते हुए आरोपों साजिश बताकर खारिज कर दिया.

हिसार जिले में एटलियस कुश्ती स्कूल की कोच और सह-संस्थापक उषा शर्मा सिहाग ने मुझे बताया, "हर जगह महिलाएं उत्पीड़न का शिकार होती हैं लेकिन यह पहली बार है कि पहलवानों ने खेल के मैदान पर होने वाले शोषण के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया है." उन्होंने कहना था, “ये बेचारी लड़कियां पितृसत्ता के ख़िलाफ़ ऐसी लड़ाई लड़ कर जहां हार तय है, अपने एक दशक लंबे कुश्ती कैरियर को जोखिम में क्यों डालेंगी? वैसे भी हरियाणा में खेल कैरियर का विकल्प घरेलू काम-काज है जिसका विरोध करने के लिए पहलवान कुछ भी कर सकते हैं.”

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