मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों का इतिहास

15 अगस्त 2020
न्याय का पहला सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति अपने मामले में जज नहीं हो सकता.
न्याय का पहला सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति अपने मामले में जज नहीं हो सकता.

14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मशहूर अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया. भूषण की सजा 20 अगस्त को तय की जाएगी. भूषण पर अवमानना का आरोप जून में उनके ट्विटों के लिए लगा था. इससे पहले भी उन पर अदालत की अवमानना का आरोप लग चुका है. 2009 में तहलका पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में भूषण ने कहा था कि “उनके विचार से भारत के विगत 16 या 17 मुख्य न्यायधीश भ्रष्ट रहे हैं.”

नीचे प्रस्तुत है कारवां के स्टाफ राइटर अतुल देव की जुलाई 2019 में प्रकाशित कवर स्टोरी भारतीय न्यायपालिका : आरोपी भी जज भी का अंश जिसमें इन आरोपों के इतिहास की चर्चा है.

21वें सीजेआई रंगनाथ मिश्रा और 22वें सीजेआई के. एन. सिंह को छोड़कर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले किसी भी न्यायाधीश को, 1993 में कॉलेजियम प्रणाली प्रारंभ होने से पहले तक, भ्रष्टाचार या घोटाले के आरोपों का सामना नहीं करना पड़ा. 25वें सीजेआई वेंकटचलैया के अक्टूबर 1994 में अवकाश प्राप्त करने के बाद से ऐसे घोटाले सामान्य बात बन गए.

26वें सीजेआई ए. एम. अहमदी ने भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े एक मुकदमे में यूनियन कार्बाइड के खिलाफ कल्पबल होमोसाइड (आपराधिक मानव वध) के आरोप को खारिज कर दिया था. मेलमिलाप का भाव प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने संस्था को शहर में एक अस्पताल कायम करने का आदेश दिया. सेवानिवृत्ति के बाद अस्पताल का प्रबंध देखने वाले ट्रस्ट के वह आजीवन चेयरमैन नियुक्त कर दिए गए. 2010 में सुप्रीम कोर्ट में अहमदी के खिलाफ अस्पताल के कथित कुप्रबंधन की जांच और ट्रस्ट के वित्तीय रिकॉर्ड जारी करने के लिए बाध्य करने का आदेश देने की याचिका दाखिल की गई. उस याचिका पर आदेश कभी नहीं आया लेकिन न्यायालय ने अहमदी के पद से त्यागपत्र को स्वीकार कर लिया. न्यायालय ने अस्पताल को दी गई उनकी अच्छी सेवाओं की प्रशंसा भी की.

28वें सीजेआई एम.एम. पुंछी को कार्यभार ग्रहण करने से पहले ही बर्खास्तगी के खतरे का सामना करना पड़ा था. कदाचार की बहुलता के आरोपों पर उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए राज्य सभा में प्रस्ताव पेश किया गया था. विश्वास भंग के दोषी व्यापारी को कानून के प्रावधानों से परे जाते हुए उन्होंने दोषमुक्त करार दिया था. हरियाणा के कांग्रेसी नेता और मुख्यमंत्री भजन लाल के खिलाफ दुराचार के आरोप के एक मुकदमे को पुंछी ने जिस दिन खारिज किया था उसी दिन उनकी पुत्रियों को मुख्यमंत्री के विवेकाधिकार पर जमीन के प्लाट प्राप्त हुए थे. पुंछी ने केस गलत तरीके से जिताया था और उस मामले की सुनवाई करने का प्रयास किया था जिसमें वह स्वयं एक पक्ष थे. पुंछी के शपथ ग्रहण करने से पहले प्रस्ताव को राज्य सभा में आवश्यक समर्थन नहीं मिल पाया. 27वें सीजेआई जे.एस. वर्मा ने पदोन्नति के लिए उनके नाम की अनुशंसा की थी.

अतुल देव कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

Keywords: Prashant Bhushan Chief Justice of India Dipak Misra Ranganath Misra commission
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