कारवां के पास उपलब्ध जानकारियों से पता चलता है कि 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए फ्रांसीसी पक्ष से वार्ता कर रही 7 सदस्यीय भारतीय टीम के सदस्य करार के कई पक्षों पर आपस में सहमत नहीं थे और टीम के कई सदस्यों का मानना था कि करार में ऐसे प्रावधान हैं जो भारतीय हितों के खिलाफ हैं. सुप्रीम कोर्ट में राफेल खरीद प्रक्रिया का बचाव करते हुए सरकार ने इस असहमति की बात छिपाई और दावा किया कि वार्ता टीम ने “आदर्श प्रक्रिया का पालन किया”.
कारवां में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि विवाद का एक कारण करार की कीमत था. 36 लड़ाकू विमान की आरंभिक बेंचमार्क कीमत 5 अरब 20 करोड़ यूरो थी जो 2016 के करार की कीमत से 2 अरब 50 करोड़ यूरो कम थी. आरंभिक कीमत की गणना मूल्य निर्धारण करने वाली टीम के सदस्य एमपी सिंह ने की थी. टीम के दो सदस्य- वायुसेना के खरीद प्रबंधक और संयुक्त सचिव राजीव वर्मा और वायुसेना के ही वित्त प्रबंधक अनिल सूले ने, एमपी सिंह की गणना का समर्थन किया था. टीम के 7 सदस्यों में सिंह, वर्मा और सूले ही मूल्य संबंधी मामलों के जानकार थे. दल के चार सदस्यों ने आरंभ में कीमत को अपर्याप्त बता कर विरोध किया था. विरोध करने वाले सदस्यों में वायुसेना उपप्रमुख राकेश कुमार सिंह भदौरिया भी शामिल थे. मूल्य से संबंधित विषय को रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) और रक्षा हितों से संबंधित तकनीकी सुझावों के लिए उपयुक्त प्राधिकरण को भेज दिया गया. मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता वाली डीएसी ने रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के विपरीत वैकल्पिक गणना का प्रस्ताव दिया. राफेल करार की गणना 2013 की प्रक्रिया के तहत आती है. डीएसी ने कीमत के संबंध में अंतिम निर्णय करने के लिए संशोधित मूल्य को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी के पास भेज दिया. नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमिटी ने इस कीमत पर मुहर लगा दी जबकि उसके पास मूल्य जैसे तकनीकी मामलों पर विचार करने की विशेषज्ञता नहीं थी.
ऐसा ही हुआ अन्य आंतरिक विवादों के मामले में. सिंह, वर्मा और सूले ने विरोध के कई पक्ष सामने रखे जिनका विरोध भदौरिया और दल के अन्य सदस्यों ने किया. विवाद के मुद्दों को डीएसी के पास भेजा गया जिसने कई बिंदुओं को खारिज कर दिया और कुछ को कैबिनेट कमिटी के पास भेज दिया. कैबिनेट कमिटी ने वार्ता कर रहे अधिकारियों के विरोध के बावजूद राफेल करार को मंजूरी दे दी.
वार्ता दल के विसम्मत सदस्यों द्वारा उठाए गई आपत्तियां इस प्रकार हैं-
1. “अंतिम बेंचमार्क कीमत 7 अरब 89 करोड़ यूरो पहले की बेंचमार्क कीमत 5 अरब 20 करोड़ यूरो से बहुत ज्यादा है इसलिए नई कीमत की तार्किकता पर सवाल उठता है”.
विसम्मत अधिकारियों ने नई कीमत पर यह कह कर आपत्ति की कि यह सिंह द्वारा पहले सुझाई कीमत से 2 अरब 50 करोड़ यूरो अधिक है.
2. “डसॉल्ट एविएशन से एडवांस और प्रदर्शन गारंटी हासिल नहीं की गई और आपूर्ति से पहले किया गया एडवांस भुगतान सुरक्षित नहीं था”.
राफेल की निर्माता कंपनी डसॉल्ट एविएशन को एडवांस में भारी भुगतान के लिए भारत सरकार तैयार हो गई लेकिन उसने डसॉल्ट या फ्रांस की सरकार से किसी भी प्रकार की वित्तीय सुरक्षा नहीं ली जिसे अंनुबंध के उल्लंघन की अवस्था में वसूला जा सकता था. इस प्रकार की प्रतिभूति (वित्तीय सिक्युरिटी) रक्षा खरीद प्रक्रिया का मानक हिस्सा होती हैं. निर्माता से सीधे खरीदारी करते समय निर्माता इस प्रकार की प्रतिभूति देते हैं. दो सरकारों के बीच होने वाले ऐसे करारों में जहां संप्रभु सरकार करार की गारंटर होती है वहां यह सिक्युरिटी विदेशी सरकार उपलब्ध कराती है. रूस और अमेरिका के साथ होने वाले करारों में भारत इस प्रकार की गारंटी निर्माता कंपनियों से नहीं लेता क्योंकि दोनों देशों में रक्षा लेनदेन सरकार की मध्यस्थता से होता है और आपूर्ति के लिए दोनों देशों की सरकार जिम्मेदार होती हैं. जैसा कारवां की एक रिपोर्ट में बताया गया है, फ्रांस में इस तरह का प्रावधान नहीं है. इससे यह साबित होता है कि राफेल करार दो सरकारों के बीच होने वाले करारों की शर्तों को पूरा नहीं करता. बावजूद इसके मोदी ने करार को इस तरह से पेश किया है.
3 और 4. “36 राफेल अंतर सरकार समझौता (आईजीए) की संभावित डिलिवरी तारीख 126 एमएमआरसीए से बेहतर नहीं थी.”
“पीबीजी (प्रदर्शन आधारित गारंटी) सहित रखरखाव की शर्तें 126 मीडियम बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान (एमएमआरसीए) की शर्तों से बेहतर नहीं थीं.”
मोदी के पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के समय डसॉल्ट एविएशन ने 126 मीडियम बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान की आपूर्ति का ठेका सबसे कम बोली लगाकर प्राप्त किया था. मोदी सरकार ने 126 विमानों की खरीद वाले करार को रद्द कर दिया और सरकारों के बीच होने वाले अंतर सरकारी समझौते के तहत केवल 36 राफेल विमान खरीदने का समझौता किया. वायुसेना प्रमुख सहित कई अधिकारियों ने मोदी सरकार के फैसले का यह कह कर बचाव किया कि नया समझौता पूर्व के करार से बेहतर शर्तों और तीव्र आपूर्ति के हिसाब से अधिक लाभप्रद है. लेकिन विसम्मत अधिकारियों ने इस तर्क को सही नहीं माना है. उनकी आपत्तियों को रक्षा खरीद परिषद के एक तरफ रख दिया और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने इस निर्णय को मंजूरी दे दी.
5. “वायुयान और हथियार आपूर्ति प्रॉटोकॉल के अंतर सरकारी करार के अनुच्छेदों और धाराओं का मिलान विधि एवं न्याय मंत्रालय की सिफारिशों से होना चाहिए.”
कारवां में इससे पहले छपी रिपोर्ट में बताया गया था कि 36 विमानों के करार को जिस समय मंजूरी के लिए विधि मंत्रालय भेजा गया तब मंत्रालय ने इसके कई पक्षों पर आपत्ति जताई थी. इन चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया गया और विधि मंत्रालय की आपत्तियों का संज्ञान लिए बिना ही करार को कैबिनेट समिति ने मंजूरी दे दी. फ्रांस के साथ “संयुक्त दस्तावेज” को मंजूरी देने वाली भारतीय वार्ता टोली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल शामिल थे. दल ने कानूनी आपत्तियों की अनदेखी की और भविष्य में उठाए जा सकने वाले सवालों को प्रभावकारी रूप में मिटा दिया. एनएसए को खरीद प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में सरकार ने डोभाल की भूमिका को छुपाया था.
6 . “126 एमएमआरसीए टेंडर में ईएडीएस द्वारा प्रस्तावित 20 प्रतिशत छूट को नजरअंदाज कर दिया गया. भारतीय वार्ता दल को 36 राफेल विमानों की कीमतों की तुलना ईएडीएस के प्रस्ताव से करनी चाहिए.”
यूरो टाइफून की निर्माता कंपनी यूरोपियन डिफेंस एंड स्पेस (ईएडीएस) कंपनी एमएमआरसीए टेंडर के लिए तकनीकी ट्रायल को पास करने वाली दूसरी कंपनी थी. 126 जेटों के अनुबंध में कम बोली लगाने के चलते डसॉल्ट को यह टेंडर दे दिया गया. इसके बाद ईएडीएस ने प्रस्तावित कीमत में 20 प्रतिशत छूट देने का प्रस्ताव दिया लेकिन भारत सरकार अपने निर्णय पर कायम रही. विसम्मत सदस्य छूट वाली कीमत से 36 राफेल विमानों की कीमत की तुलना करना चाहते थे. अन्य चार सदस्यों ने दावा किया कि ईएडीएस का यह प्रस्ताव अमान्य है क्योंकि यह बोली प्रक्रिया के बाद का है इसलिए इससे खरीद प्रक्रिया का उल्लंघन होता है. राफेल की अंतिम करार कीमत एमएमआरसीए प्रक्रिया में डसॉल्ट द्वारा प्रस्तावित कीमत से बहुत अधिक थी.
7. “भारतीय जरूरतों पर आधारित सुधारों का खर्च बहुत अधिक है.”
भारत सरकार ने बार-बार यह दावा किया है कि 36 राफेल की खरीद में इन विमानों में भारतीय परिस्थतियों के अनुरूप किए गए सुधारों को शामिल किया गया है. विसम्मत तीन सदस्यों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इन सुधारों की कीमत भी बहुत अधिक है. अन्य चार सदस्यों का कहना था कि यह कीमत आवर्ती लागत नहीं है और विमानों की संख्या से इस पर असर नहीं पड़ता. उनका यह भी दावा था कि एमएमआरसीए करार में भारतीय विशेषताओं पर आधारित सुधार शामिल है. रक्षा खरीद परिषद और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी ने चार सदस्यों के दावों का समर्थन किया. भारतीय विशेषताओं के अनुरूप विमानों पर होने वाले सुधार की कीमत एमएमआरसीए अनुबंध में उल्लेखित औसत कीमत से अधिक थी.
8. "फ्रांस, मिस्र और कतर के साथ डसॉल्ट के अनुबंध के कारण यह कंपनी करार में तय आपूर्ति की समय सीमा का मान नहीं रख पाएगी. "
विसम्मत अधिकारियों का दावा था कि डसॉल्ट कंपनी ने फ्रांसीसी सेना तथा मिस्र और कतर के साथ भी विमानों की आपूर्ति का अनुबंध किया है इसलिए वह भारत के साथ तय समय सीमा में विमानों की आपूर्ति नहीं कर सकेगी.
9. "डसॉल्ट द्वारा जारी वित्तीय विवरण की माने तो कंपनी की वित्तीय स्थिति कमजोर है. ऐसा हो सकता है कि वह 36 विमानों की आपूर्ति न कर पाए. "
इन तीन अधिकारियों का मानना था कि डसॉल्ट की वित्तीय स्थिति पर विश्वास नहीं किया जा सकता. कारवां में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि फ्रांस सरकार ने अंतर सरकार समझौते के तहत अपनी जवाबदेही को डसॉल्ट सहित निजी निर्माताओं को हस्तांतरित कर दिया है और भारत सरकार इन निर्माताओं से कानूनी रूप से बाध्यकारी गारंटी लेने में विफल हो गई. यदि डसॉल्ट 36 विमानों की आपूर्ति करने में विफल रहता है तो भारत के पास कोई भी वैध वित्तीय सुरक्षा नहीं होगी.
10. "डसॉल्ट के वित्तीय विवरण के अनुसार उसने कतर और मिस्र को भारत से सस्ते में राफेल बेचे हैं."
डसॉल्ट की वित्तीय रिपोर्टों के अनुसार कंपनी ने मिस्र और कतर को भारत से सस्ते में राफेल बेचे हैं. लेकिन चार अधिकारियों ने उक्त दावे पर असहमति व्यक्त की. कारवां के पास उपलब्ध जानकारी से संकेत मिलता है कि डसॉल्ट ने दावा किया है कि उसके वित्तीय खुलासे की गलत व्याख्या हुई है और फ्रांस सरकार ने लिखित में माना है कि भारत को मिस्र और कतर से कम कीमत में राफेल विमान बेचे गए हैं. रक्षा खरीद परिषद ने विसम्मत अधिकारियों की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी ने परिषद के निर्णय का समर्थन किया.