5 जनवरी की शाम को, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक छात्रावास की फीस में प्रस्तावित बढ़ोतरी का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे.अचानक उन पर एक नकाबपोश भीड़ ने हमला कर दिया. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, भीड़ लाठियां और लोहे की रॉड से हमला कर रही थी. भीड़ में शामिल लोगों ने पथराव किया, कारों को क्षतिग्रस्त किया, छात्रावासों में तोड़फोड़ की और छात्रों और शिक्षकों के साथ मारपीट की. इस दौरान, छात्रों ने विश्वविद्यालय में तैनात पुलिस से मदद की गुहार की लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.उस रात बीस से अधिक लोग घायल हो गए और उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया. घायलों में से एक जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइश घोष भी थी. उन्हें बुरी तरह से पीटा गया था. सोसल मीडिया में प्रसारित एक फोटो में उनके चेहरे से खून बहतें हुए देखा जा सकता है.
कई छात्रों ने दावा किया कि नकाबपोश भीड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्रसंघ अध्यक्ष अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे. इस आरोप से इनकार करते हुए, एबीवीपी ने दावा किया है कि "वामपंथी" समूहों ने उसके सदस्यों पर हमला किया. 7 जनवरी को, कारवां के सहायक फोटो एडिटर शाहिद तांत्रे ने 25 वर्षीय घोष से बात की. घोष ने कहा, "जब तक कुलपति को नहीं हटाया जाता है, कोई स्वतंत्र या निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती."
शाहिद तांत्रे : आपको किस परिस्थिति में और कैसे चोट आई?
आइशी घोष : 5 जनवरी को शाम 6.30 बजे, हम जेएनयू में साबरमती टी-पॉइंट पर आयोजित एक शांतिपूर्ण सभा में शामिल थे. हम वहां करीब 4.30 बजे गए थे. फिर हमलोग चाय पीते हुए छात्रों के साथ बातचीत कर रहे थे. सभा में लगभग 300-400 छात्र शामिल थे. शाम को लगभग 6.30 और 7 बजे के बीच, मैंने छात्रों को दौड़ते हुए देखा. बतौर जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष मैंने उनसे कहा कि वे घबराएं नहीं और उनसे पूछा कि वे क्यों भाग रहे हैं? पांच मिनट बाद मैं समझ गई कि आखिर क्या हुआ था.
मैंने लगभग 50 से 70 लोगों को अपनी तरफ आते देखा. उनके हाथों में लोहे की छड़ें थीं. कुछ के हाथों में हथौड़े और डंडे थे और उनके चेहरे कपड़ों से ढंके हुए थे. मैं हॉस्टल की तरफ जाने लगी. मेरा एक दोस्त भी मेरे साथ थे. तीस-चालीस लोगों ने हमें घेर लिया और उन्होंने मेरे सिर पर लोहे की रॉड से हमला किया. उन्होंने मेरे दोस्त को भी मारा. वे कुछ मिनटों तक हमें लगातार मारते रहे. मेरा खून बह रहा था. उन्होंने मेरे हाथ पर मारा. हम दोनों नीचे गिर पड़े. नीचे गिरते ही वे हमें छोड़ कर आवासीय इलाके की ओर भागे. किसी तरह, जेएनयू के छात्रों ने हमें उठाया, एम्बुलेंस बुलाई और हमें एम्स ट्रॉमा सेंटर ले गए.
शाहिद तांत्रे : जिन्होंने आप पर हमला किया वे लोग कौन थे?
आइशी घोष : वे नकाबपोश थे, मुझे नहीं पता कि वे कौन थे.
शाहिद तांत्रे : ऐसी खबरें हैं कि एबीवीपी ने कैंपस में वामपंथी संगठनों के छात्रों पर हमला किया. क्या आप मानती हैं कि वही लोग थे?
आइशी घोष : यह सच है. जो हुआ है वह एबीवीपी के लोगों ने किया है. इन लोगों ने खासतौर पर हमें निशाना बनाया. उन्होंने हमारे शिक्षकों को भी निशाना बनाया. हमें किस लिया निशाना बनाया? हम लोग वर्तमान शुल्क वृद्धि आंदोलन के बारे में एक सभा कर रहे थे. हमलोग विचार-विमर्श कर रहे थे कि आंदोलन को लोकतांत्रिक तरीके से कैसे आगे बढ़ाया जाए. यह हिंसा, तीन-चार दिन पहले हुई थी, इस तरह के झगड़े पहले से ही हो रहे थे. तब से, हम बार-बार सुरक्षाकर्मियों से कह रहे थे कि ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए. हम बार-बार कह रहे थे कि जो कुछ भी कैंपस में हो रहा था, सुरक्षाकर्मी उसका संज्ञान नहीं ले रहे हैं. 4 जनवरी को एबीवीपी के लोग आए और छात्रों के साथ मारपीट की और उनके हाथ-पैर तोड़ दिए. सुरक्षाकर्मियों ने कोई कार्रवाई नहीं की और न ही उन्हें रोका. जो कुछ भी 5 जनवरी को हुआ उसका कुछ संबंध इस बात से है कि आरएसएस से जुड़े और खुद को जेएनयूटीएफ (जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स फेडरेशन) कहने वाले प्रोफेसरों ने व्यक्तिगत रूप से उन छात्रों को, जो परीक्षा का बहिष्कार कर रहे थे या जो पंजीकरण का बहिष्कार कर रहे थे, यह कहते हुए धमकाया था कि "अब आप छात्र नहीं रहेंगे, हम देखेंगे कि आपके साथ क्या करना है." (दिसंबर में जेएनयू के छात्रों ने हॉस्टल शुल्क वृद्धि के विरोध में परीक्षा का बहिष्कार किया था. जेएनयूएसयू ने अगले सेमेस्टर के लिए पाठ्यक्रम पंजीकरण प्रक्रिया का बहिष्कार करने का भी आह्वान किया है.) ऐसी घटनाएं लगातार हो रही थीं.
अब तक, कुलपति ने हमारे साथ एक बार भी बातचीत नहीं की है. यहां तक कि अदालत ने भी कहा है कि वीसी को हमारे साथ बातचीत करती चाहिए लेकिन तब भी उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? (23 दिसंबर को दिए गए एक आदेश में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेएनयू के कुलपति को "गतिरोध तोड़ने की खातिर" "छात्रों के साथ बातचीत करने" को कहा था.) लेकिन 5 जनवरी को लोग उत्तेजित थे, हिंसा हुई, एक संगठित हमला हुआ. जो भी शामिल था, उससे पूछताछ होनी चाहिए. वीसी को इस्तीफा देना चाहिए, हम उनके तत्काल निष्कासन की मांग कर रहे हैं. जब तक वीसी को हटा नहीं दिया जाता है तब तक परिसर में कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच नहीं होगी. इस घटना के बाद, जेएनयू प्रशासन की ओर दर्ज शिकायत के आधार पर मेरे, जेएनयूएसयू के कुछ साथियों और कुछ अन्य दोस्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई. इसलिए हम जानते हैं कि वीसी कैंपस में किस तरह का काम कर रहे हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय को तुरंत इसे समझना चाहिए और इस वीसी को हटाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए. मैं एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग करती हूं. अपराधियों का पता लगना चाहिए और उन्हें दंडित किया जाना चाहिए.
शाहिद तांत्रे : आपकी मुलाकात साइक्लोप्स सिक्योरिटी टीम के प्रमुख रामा राव और वसंत कुंज पुलिस स्टेशन के एसएचओ ऋतुराज से हुई. क्या आप उनके साथ हुई अपनी बातचीत के बारे में कुछ बताना चाहेंगी?
आइशी घोष : 4 जनवरी को एसएचओ कैंपस में आए थे. मैंने उनसे कहा कि कैंपस में माहौल ठीक नहीं है, कृपया प्रशासन से बात करें और उनसे जल्द से जल्द बातचीत करने को कहें. यहां तक कि मैंने स्कूल ऑफ सोसल साईंसेज के डीन और रेक्टर-1 के डीन को भी फोन से संदेश भेज दिया था. लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया. प्रशासन से कोई भी हमारे साथ बातचीत नहीं कर रहा है. समस्या यह है कि कोई भी हमारे साथ बातचीत नहीं चाहता है. वे कैंपस में ऐसी स्थिति चाहते हैं. इसके साथ ही, चौबीस घंटे से ऊपर हो गया है, जेएनयू प्रशासन से किसी ने भी हालात की जांच करने की जहमत नहीं उठाई है. उन्होंने यह तक नहीं पूछा कि हमें किस तरह की तत्काल सहायता की आवश्यकता है? मैं मांग करती हूं कि हमारी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. छात्र बहुत डरे हुए हैं. लेकिन एक बात तय है कि हम एकजुट रहेंगे. यहां तक कि जब मैं कल प्रेस कॉन्फ्रेंस में गई, तो मैंने केवल एक बात कही कि छात्र एकजुट रहें, हमारी लड़ाई प्रशासन के खिलाफ है. पिछले कुछ दिनों में कैंपस में हुई सभी हिंसाओं के लिए प्रशासन जिम्मेदार है. यह हमला एक संगठित हमला था और इसकी जांच होनी चाहिए. लेकिन जेएनयूएसयू की तत्काल मांग है कि वीसी को तुरंत हटा दिया जाए और एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की जाए.
शाहिद तांत्रे : दिल्ली पुलिस ने आपके खिलाफ विश्वविद्यालय के सर्वर रूम में तोड़फोड़ करने की एफआईआर दर्ज की है. आपका इस बारे में क्या कहना है?
आइशी घोष : तोड़फोड़ करने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी बेबुनियाद है. इस तरह का कुछ भी कभी नहीं हुआ कि मैंने कोई सर्वर या कुछ और तोड़ दिया हो. एफआईआर की शिकायत 4 जनवरी की दोपहर को की गई थी. उस दिन क्या हुआ था? एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने आकर तोड़-फोड़ की. एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने छात्रों के हाथ-पैर तोड़ दिए. प्रशासन को किसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी? उनके पास वीडियो भी हैं. हमने फेसबुक पर उन लोगों के वीडियो साझा किए थे जिन लोगों ने हिंसा की थी. यह तो प्रशासन भी जानता है कि अगर वह इसका संज्ञान लेता तो किसका नाम एफआईआर होना चाहिए था. हमें यह समझ में नहीं आता है कि प्रशासन ने मामला क्यों दर्ज किया और जेएनयूएसयू के छात्रों के नाम उसमें क्यों दिए. प्रशासन को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए, वीसी को इस्तीफा देना चाहिए.
शाहिद तांत्रे : क्या आपको लगता है कि प्रशासन और एबीवीपी मिलकर काम कर रहे हैं?
आइशा घोष : यहां के कुछ प्रोफेसर आरएसएस से जुड़े हैं. दिल्ली पुलिस और विश्वविद्यालय की आंतरिक सुरक्षा ने जेएनयू को बदनाम करने के लिए एक गठजोड़ बनाया है. लेकिन फिर, हम वही बात दोहरा रहे हैं कि बाहर से लोग अंदर आए थे. वे कैसे अंदर आ गए? आज, हमारे प्रोफेसर रिपोर्ट कर रहे थे, मैंने ट्विटर पर पढ़ा, कि टोकन (परिसर में प्रवेश करने के लिए टोकन की आवश्यकता होती है) शाम को समाप्त हो गए थे. किसे टोकन की आवश्यकता पड़ी? जेएनयू के छात्र और शिक्षक को तो टोकन की जरूरत नहीं होती. टोकन बाहरी लोगों द्वारा उपयोग किए जाते हैं. तो, हमारे टोकन कैसे खत्म हो गए? काफी संख्या में बाहर के लोग कैंपस में घुस आए थे. उन्हें रोका क्यों नहीं गया? प्रशासन को तुरंत इसका संज्ञान लेना चाहिए था. दिल्ली पुलिस दोपहर 1.30 बजे से कैंपस के अंदर मौजूद थी. अपनी वर्दी में नहीं, बल्कि सिविल कपड़ों में, कैंपस के अंदर बहुत सारे पुलिसकर्मी पहले से मौजूद थे. उन्होंने कुछ क्यों नहीं किया? जो एफआईआर अब वे दाखिल कर रहे हैं वे आधारहीन हैं, उनके पास कोई सबूत नहीं है.
शाहिद तांत्रे : जब 5 जनवरी को भीड़ ने आप पर हमला किया, तो क्या आपने मदद के लिए पुलिस को फोन किया?
आइशी घोष : मैं पीसीआर (पुलिस कंट्रोल रूम) को कॉल करने स्थिति में नहीं थी. जो दोस्त मेरे साथ था वह और मैं दोनों नीचे गिर गए थे. मेरा बहुत खून बह रहा था. जब खून बह रहा था तो एक छात्र ने मेरा एक वीडियो बना लिया था. मुझे नहीं पता था कि मुझे किसने मारा है, लेकिन मैं उन्हें पहचान सकती हूं, मैं स्वेटशर्ट्स की पहचान कर सकती हूं, मैंने इतना ही कहा और फिर मैं नीचे गिर गई. किसी तरह मुझे एम्स ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया. लेकिन बात यह है कि ऐसा क्यों हुआ कि लोग कैंपस के अंदर घुस गए और छात्रों के साथ मारपीट की और हॉस्टल में तोड़-फोड़ की? साबरमती हॉस्टल में जो हुआ उसकी तस्वीरें सामने आ रही हैं. जिस बात को दोहराया जाना चाहिए वह यह है कि लोगों को साबरमती छात्रावास के छात्रों से बात करनी चाहिए. साबरमती हॉस्टल के छात्रों ने उनकी पहचान की है जो लोग वैन में थे और साबरमती में घुस कर तोड़-फोड़ की था. वे पुलिस को नाम देने के लिए तैयार हैं.
शाहिद तांत्रे : पुलिस और प्रशासन घटना की जांच कर रहे हैं. क्या आपको लगता है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होगी?
आइशी घोष : जब तक वीसी को नहीं हटाया जाता है तब तक कोई स्वतंत्र या निष्पक्ष जांच नहीं होगी. वीसी को हटाना हमारी तत्काल मांग है. एमएचआरडी को यहां होने वाली स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए इसे ध्यान में रखना चाहिए. हम इसके बारे में सुनिश्चित हैं क्योंकि कुलपति छात्रों को बदनाम करने और यहां जो कुछ हो रहा है उसकी एक अलग कहानी बनाने पर आमादा हैं. 4 जनवरी को जो हिंसा हुई, उसमें एक भी एफआईआर दर्ज नहीं है. लेकिन बिना किसी कारण के उन्होंने हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज की और हमें दोषी ठहराया गया. कैसे हम एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की उम्मीद कर सकते हैं?
हम विशेष रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? 5 जनवरी को जो घटना हुई इससे वास्तव में छात्रों में घबराहट फैल गई. एबीवीपी के लोग खुद कह रहे हैं कि उनके पास लाठियां और रॉड थीं. एबीवीपी की दिल्ली की संयुक्त सचिव अनिमा सोनकर ने इसे एक टीवी बहस पर कबूल किया है. कहीं भी वे हिंसा को अस्वीकार नहीं कर रहे हैं और कह रहे हैं कि आत्मरक्षा के लिए लाठियां लेकर घूम रहे थे.
शाहिद तांत्रे : आप पिछले 65 दिनों से फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. क्या आपको लगता है कि यह हमला आंदोलन को तोड़ने का प्रयास था?
आइशी घोष : बिल्कुल. हम, जेएनयूएसयू, पिछले तीन-चार दिनों से छात्रों को यह बता रहे हैं कि हमारे आंदोलन को तोड़ने के लिए कैंपस में ऐसी स्थितियां बनाई जा रही हैं. लेकिन इस हमले के बाद भी, वे आंदोलन को तोड़ नहीं पाए. यहां तक कि जब मैं घायल हुई और मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो अन्य पदाधिकारियों ने तुरंत गेट तक शांति मार्च निकाला और हमने दिल्ली पुलिस, प्रोफेसरों और प्रशासन की सांठगांठ के खिलाफ आवाज उठाई. आपको यह जेएनयू के लिए नहीं करना है. जेएनयू छात्र संघ जानता है कि हम इस लड़ाई को लोकतांत्रिक तरीके से कैसे आगे ले जा रहे हैं और हम इसे आगे ले जाएंगे. 28 अक्टूबर को, जिस दिन हमने आंदोलन शुरू किया था, हमने मार्च निकाला, हमें पिटा गया, हम वापस आ गए, फिर हमने दुबारा मार्च निकाला. हमने कभी कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जिसकी वजह से कोई हिंसा हुई और न ही हम कभी हिंसक कदम उठाएंगे. जेएनयूएसयू के प्रतिनिधियों के रूप में, हमने हमेशा यही कहा है. मैंने छात्रों से भी यही अपील की है कि हम शांति बनाए रखेंगे और शांतिपूर्वक विरोध करेंगे. पिछले 65 दिनों से हम जिस तरह से आंदोलन को लोकतांत्रिक तरीके से चला रहे हैं, हम उसी तरह इसे आगे बढ़ाएंगे.
प्रशासन हताश था क्योंकि उसकी योजना विफल हो गई थी. परीक्षाओं का डर दिखाने की उसकी योजना असफल हो गई, व्हाट्सएप के जरिए परीक्षा योजना असफल हो गई, जबरदस्ती पंजीकरण फेल हो गया.
जब उनकी सभी योजनाएं विफल हो गईं, तो उन्होंने सोचा कि वे हिंसा का सहारा लेंग और स्थिति को संभाल लेंगे. वे जानते थे कि अगले दिन 6 जनवरी को इस मामले पर हमारी एमएचआरडी के साथ बैठक होनी थी. अचानक यह हताशा क्यों? वीसी ने एमएचआरडी के माध्यम से बातचीत करने और मुद्दे को हल करने तक का इंतजार क्यों नहीं किया? जेएनयूएसयू, एमएचआरडी के साथ हमारी बैठक की तैयारी कर रहा था. हम इस स्थिति को जल्द से जल्द हल करने की कोशिश करने जा रहे थे. हम अपने दस्तावेजों को तैयार कर रहे थे और यह निर्णय कर रहे थे कि नए सचिव से कैसे बात की जाए और हम तुरंत इस मुद्दे को कैसे हल कर सकते हैं. लेकिन, क्योंकि कैंपस में यह हिंसा हुई, हम बातचीत करने नहीं जा सके. हम उस स्थिति में बातचीत में नहीं जा सकते थे. इसलिए, यह स्पष्ट है कि जेएनयू प्रशासन ने हताशा में आंदोलन को और जेएनयू की छवि को खराब करने के लिए ऐसे कदम उठाए.
शाहिद तांत्रे : एबीवीपी के सदस्यों का आरोप है कि वामपंथी दलों से जुड़े छात्रों ने एबीवीपी कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की. इस आरोप का आप कैसे जवाब देंगी?
आइशी घोष : जेएनयूएसयू पहले ही दिन से अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है कि हम किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करते हैं. हम हिंसा को बर्दाश्त नहीं करेंगे और हम इसकी पूरी निंदा करते हैं. लेकिन जो हिंसा की तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, उनमें से किसी के खिलाफ कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई?