लोहिया दलित नेता बी. आर. अंबेडकर को अपनी नई पार्टी में शामिल करने के लिए बेताब थे. द प्रिंट के लिए 2018 के एक लेख में कानून के छात्र अनुराग भास्कर ने लोहिया द्वारा अम्बेडकर को पार्टी में लाने के प्रयासों का विस्तृत वर्णन किया है. 10 दिसंबर 1955 को लोहिया ने अंबेडकर को एक पत्र लिखा. उन्होंने अंबेडकर को अपनी नई पत्रिका मैनकाइंड के लिए एक लेख लिखने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें वे अंबेडकर द्वारा "जाति की समस्या को पूरी तरह से दिखाना" चाहते थे. लोहिया ने मध्य प्रदेश में संसदीय अभियान में अंबेडकर के बारे में जो भाषण दिए थे, उनका उल्लेख किया. उन्होंने यहां तक कहा कि वो चाहते हैं कि अंबेडकर सिर्फ "अनुसूचित जाति के नहीं, बल्कि भारतीय लोगों के भी नेता बनें."
लोहिया के कुछ सहयोगियों ने सितंबर 1956 में अंबेडकर से सोशलिस्ट पार्टी और अंबेडकर के अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन के बीच संभावित गठबंधन पर चर्चा की. अंबेडकर ने 24 सितंबर 1956 को लोहिया को वापस लिखते हुए कहा कि अपनी दिल्ली की अगली यात्रा के दौरान वो लोहिया से मिलना चाहते हैं. पत्र में अंबेडकर ने लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता पर बल दिया, और "नई जड़ों वाली एक नई राजनीतिक पार्टी की वकालत" की.
1 अक्टूबर 1956 को लोहिया ने अपने सहयोगियों को लिखा और अंबेडकर के साथ उनकी प्रस्तावित बैठक के महत्व पर चर्चा की. उन्होंने लिखा कि बैठक न केवल इसके राजनीतिक परिणामों के लिए महत्वपूर्ण होगी, बल्कि "इस बात के लिए एक बड़ी होगी कि पिछड़ी और अनुसूचित जातियां भी उनके जैसे महान व्यक्ति को पैदा कर सकती हैं." उन्होंने उसी दिन अंबेडकर को पत्र भी लिखा जिसमें उन्हें स्वास्थ की उचित देखभाल करने का अनुरोध किया. 5 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने लोहिया को अपनी प्रस्तावित बैठक का समय निर्धारित करने के लिए लिखा.
बैठक होने से पहले 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर का निधन हो गया.
लोहिया ने लिमये को 1 जुलाई 1957 को लिखा, “आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि डॉक्टर अंबेडकर की आकस्मिक मृत्यु पर मेरा दुख कुछ हद तक व्यक्तिगत रहा है. ये हमेशा से मेरी महत्वाकांक्षा थी कि हम उन्हें न केवल संगठनात्मक रूप से बल्कि पूरे वैचारिक अर्थों में भी अपनी ओर आकर्षित करें और वो पल निकट आ गया था.” लोहिया आगे लिखते हैं, “डॉक्टर अंबेडकर मेरे लिए भारतीय राजनीति में एक महान व्यक्ति थे और गांधीजी के अलावा हिंदुओं में भी बहुत महान हिंदू थे. इस तथ्य ने मुझे हमेशा शांति और विश्वास दिया है कि हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था एक दिन नष्ट हो सकती है.”
(कारवां के जनवरी 2019 अंक में प्रकाशित कवर स्टोरी. पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)